हैलो आमिर,
कैसे हो ?...वैसे आज सुबह तक मेरी कोई ऐसी प्लॉनिंग नहीं थी तुम्हें ख़त लिखने की। आज सुबह जब हिन्दुस्तान अखबार देखा तो बहुत ज़्यादा दुःख हुआ... इसलिए सोचा कि आज तो एक ख़त लिख ही देता हूं।
विषय पर आने से पहले मैं यह बताना चाहता हूं कि मेरा तुम से तारूफ़ अस्सी के दशक में हुआ, जब उस दशक के अंत में मैं होस्टल में रहता था तो तुम्हारी वह फिल्म जो जीता वही सिकंदर का वह गीत हमारी फ्लोर के कमरे में खूब बजा करता था... पापा कहते हैं बड़ा काम करेगा। वह उम्र का कसूर था।
फिर कुछ वर्षों बाद जब "अकेले तुम अकेले हम" आई....तो वह फिल्म अच्छी लगी। फिर राजा हिंदोस्तानी के गीत सुनते सुनते मेरा बेटा जवान हो गया.....और अभी भी जब उस के गाने कहीं बजते दिखते हैं तो कहता है कि पापा, मैं ये गीत कितनी बार सुन चुका हूं.....फिर हंसता है।
उस के बाद रंग दे बसंती आई.....लोगों को बहुत पसंद आई.....पता नहीं मुझे कुछ खास नहीं लगी। हां, उस के बाद तारे ज़मीं पर .....जितनी तारीफ़ की जाए कम है। उस के बाद जब थ्री-इडिएट्स आई ...तो बहुत मज़ा आया।
फिर टीवी पर सत्यमेव जयते शुरू हुआ....दो तीन एपिसोड देखे, फिर जब पता चला कि एक एपीसोड का तुम्हें चार करोड़ रूपया मिलता है......(पता नहीं उस में कितनी सच्चाई है, मैं नहीं जानता) ...लेकिन फिर पता नहीं क्या हुआ जब से यह पता चला तब से वह प्रोग्राम फिर देखने की कभी इच्छा ही नहीं हुई। आज तक फिर से इच्छा हुई ही नहीं।
अब बात पर आता हूं....... हां, तो आज की अखबार की जो खबर थी उस का शीर्षक था..... पीके बनने के लिए आमिर ने खाए १०,००० पान।
आज की अखबार की खबर.. |
यह खबर पढ़ कर बहुत अजीब लगा.....अजीब क्या, बहुत बुरा लगा.......क्योंकि बहुत से युवाओं के लिए तुम शायद रोल-माडल हो, इसलिए जब उन्हें पता लगेगा कि तुम ने एक दिन में कम से कम ५० से ज्यादा पान खाए और कुल मिला कर इस फिल्म की शूटिंग के लिए १०,००० पान तो खाए ही होंगे, वे कहीं इस से इंस्पायर ही न हो जाएं।
तुम ने इतने पान असल में खाए कि नहीं......मैं नहीं जानता लेकिन मैं इतना जानता हूं कि पान खाना एक जानलेवा शौक साबित हो सकता है। पिछले ३० वर्षों से दांतों का एक साधारण सा डाक्टर हूं......१९९२ में पहली बार मुंह के कैंसर का मरीज देखा था, पान रखता था होठों के अंदर...और मुंह के कैंसर की चपेट में आ गया।
उस के बाद इन २२ वर्षों से निरंतर गुटखे, पानमसाले, पान, तंबाकू की विनाश लीला देख रहा हूं..... इसी ब्लॉग पर बीसियों ऐसे ही मरीज़ों के दर्द की कहानियां दर्ज हैं, कभी फुर्सत में देख लेना।
जिस तरह से मुंह के कैंसर के मरीज़ तिल तिल मरते हैं, यह देखना बड़ा दुःखद लगता है।
मैंने डैंस्टिस्ट्री कम की है, लोगों को तंबाकू के बारे में सचेत ज़्यादा किया है, इस काम को मैंने एक मिशन की तरह करने की ठान रखी है, सुबह से शाम तक लोगों के दिलों में इन सब चीज़ों के बारे में नफ़रत पैदा करता रहता हूं।
क्या लिखूं यार, अब, लिख दिया जितना लिखना था, तुम भी समझदार हो, आशा है कि इस बात को ज़्यादा पब्लीसाइज़ नहीं करोगे कि तुम ने कितने पान खाए......और यह जो हिंदुस्तान अखबार वालों ने कर दी है, इस का भी कुछ करोगे.......ताकि तुम्हारे रोल माडल कहीं इसी राह पर ही न चल पड़ें, मुझे ऐसा डर लगता है.......... आज के बहुत से युवा पहले ही से इन सब चीज़ों में लिप्त हैं।
अगर तुम यह कहना चाहते हो कि पान ही तो है, क्या फ़र्क पड़ता है,..........नहीं, बहुत फर्क पड़ता है, तंबाकू वाला पान तो मुंह में सब तरह के लफड़े करता ही है, यह बिन तंबाकू वाला पान भी सुपारी की वजह से मुंह में बहुत उत्पात मचाता है.......मैंने कहा ना कि मैंने पिछले सात-आठ वर्षों से अपने ब्लॉगों में इन सब लोगों को व्यथा को दर्ज कर रखा है।
कुछ दिन पहले मेरे पास एक आदमी आया है..जिस का मुंह खुलना बंद हो गया था.......लेकिन उस ने गुटखा-पानमसाला नहीं छोड़ा, मुंह का कैंसर इतना बढ़ गया था कि वह कितना फैल चुका है, पता ही नहीं चल रहा था, मैं उसे देख कर बहुत विचलित हुआ.....ऐसी ही एक ५०-५५ वर्ष की महिला भी कुछ दिन पहले आई.....मुंह में पान रखने की वजह से मुंह के कैंसर की वजह से नीचे वाले जबड़े की सारी हड्डी गल चुकी थी.........कुछ भी हो, इन मरीज़ों के साथ बहुत प्रेम से पेश आना होता है, इन की हर बात मान लेने की इच्छा होती है, मान भी लेता हूं, कारण लिखने की ज़रूरत नहीं है।
बस, यार, तुम ज़रा इस पीके की पब्लिसिटी के दौरान भी पान को ग्लोरीफाई मत कर देना.......प्लीज़......बहुत कृपा होगी........पता नहीं खाई के पान बनारस वाले अमिताभ को देख कर कितनों ने यह शौक पाल लिया होगा.......नहीं जानता।
एक सलाह और.......चूंकि तुम १०००० पान थोड़े से अरसे में खा चुके हो, तो बेहतर होगा अपने मुंह का निरीक्षण भी करवा लेना.......ठीक रहेगा.......वैसे तो तुम जैसे लोगों के लिए यह कोई समस्या नहीं है...जितनी बार भी चैक-अप करवा लो, लेकिन सोचना उस आदमी के बारे में है जो मुंह का एडवांस कैंसर होने पर ही डाक्टर के पास पहुंच पाता है।
आशा है कि तुम मेरी लिखी किसी बात को अन्यथा नहीं लोगो.......अगर तुम्हें मैं यह ख़त न लिखता तो मेरे मन में बोझ रहता। अब यह ख़त तुम्हारे तक पहुंचने की बात है तो १५ वर्ष पहले एक लेखक ने एक किस्सा सुनाया था कि एक ख़त को किसी ने बोतल में बंद कर के समुंदर में छोड़ दिया इस उम्मीद के साथ यह सही हाथों में पहुंच ही जाएगा, मैं भी ऐसी ही उम्मीद कर रहा हूं।
पीके की सफलता के लिए शुभकामनाएं........
डा प्रवीण चोपड़ा...