मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

इंस्पेक्शन वाले तेवर ...(व्यंग्य)

मुझे कईं बार वह कहानी...नहीं, नहीं, कोई व्यंग्य लेख था स्कूल की किताब में जिस में आदमियों को तीन श्रेणीयों में बांटा गया था...पहले दर्जे वाले के पास...तीन चीज़ें होनी लाज़मी हैं...चश्मा, पेन और कलाई घड़ी....ऐसे ही जिस के पास दो चीज़ें हैं, वह द्वितीय श्रेणी का और एक ही चीज़ होने पर वह बंदा तृतीय श्रेणी ....अब हमारे बाल मन ने यह कभी नहीं सोचा कि यार, अगर इन तीनों में से कुछ भी नहीं तो क्या वह बंदा ही नहीं! निर्णय आप पर छोड़ता हूं...

यह कहानी एक हिंदी के नामचीन लेखक की थी...मुझे अच्छे से याद है जब मैं यह कहानी पढ़ता था ...तो मां भी अकसर उस लेखक का नाम पढ़ कर बताया करतीं कि यह तुम्हारे नाना जी के दोस्त हैं, तुम्हारा नाना जी से कहानियां लिखते हैं उर्दू में ...फिर यह उन्हें हिंदी में लिखते हैं अपने नाम से। बड़े होते होते इस बात की पुष्टि हमें बहुत से लोगों से हो गई....पक्का यकीं तब हुआ जब नानी ने भी इस बात की पुष्टि कर दी...

पहले घर में बच्चों की किताबें सारे सदस्यों के लिए भी हुआ करती थीं...बच्चे तो भारी मन से उन्हें उठाते थे लेकिन दूसरे लोग मनोरंजन  के लिए कहानियां-कविताएं ज़रूर पढ़ते थे ..

बहरहाल, इतने सालों में यह आदमियों की श्रेणियों की बात मन में है...

फिर आदमियों की श्रेणी की बात याद तब आई जब आज से तीस पैंतीस साल पहले पंजाब का एक सर्जन जो वैसे तो सरकारी अस्पताल में काम करता था..लेकिन घर आने वाले मरीज़ों को साफ साफ पूछता था कि यात्रा टांगे में करनी है, बस में, ट्रेन में या फिर हवाईजहाज़ से ....संदेश साफ़ था..जो उस की घर में जा कर सेवा कर आते ..उन का आप्रेशन अगले ही दिन हो जाया करता था...पता नहीं कितना सच है, कितना झूठ है, बेहतर होगा आप इसे झूठ ही मान लीजिए...मेरी तरह।

लखनऊ का ऐशबाग रामलीला मैदान (आज शाम मोदी यहां आ रहे हैं) 
श्रेणीयां अभी भी दिख जाती हैं...केवल उन का रूप बदला है ... कल रात हम लोग यहां लखनऊ के ऐशबाग में रामलीला देखने गये ..इसी जगह पर आज मोदी आ रहे हैं...निःसंदेह मैंने इस तरह का भव्य रामलीला का आयोजन पहले कभी नहीं देखा था..हज़ारों की संख्या में लोग बैठ कर आनंद ले रहे थे...पंडाल में भी तीन विभाजन हो रखे थे...अति विशिष्ट, विशिष्ट और सामान्यजन .....अजीब सा लगा ...यहां पर भी श्रेणीयों का इतना चक्कर ....मुझे तो बचपन वाली रामलीला याद है ...जहां पर बहुत बड़े पंडाल में सब के लिए दरियां बिछी रहती थीं...सब को वही बैठना होता था...और हम लोग नींद लगने पर वहां पांच दस मिनट पसर भी जाया करते थे.

ऐशबाग रामलीला - निःसंदेह एक भव्य आयोजन 
वैसे जिस समय हम लोग वहां पहुंचे इन श्रेणियों में कोई फर्क लग भी नहीं रहा था... सारा पंडाल ठसाठस भरा हुआ था..मोदी तो वहां एक घंटा रूकेंगे ..हम लोग आधे घंटे में ही वापिस हो लिए..
इस रामलीला मैदान के बाहर इस तरह के बीसियों बोर्ड लग चुके हैं ..और दर्जनों तैयार हो रहे थे ..
फिर वही बीमारी ....किधर की बात किधर ले गया....बातें हो रही थीं आदमियों की श्रेणीयों की ...जिस से मैं इत्तेफ़ाक नहीं रखता बिल्कुल...कभी रखूंगा भी नहीं .... अब मेरे जैसे आदमी को पंजाब में किसी आयोजन के लिए कल जालंधर से फोन आया कि डा. साहब, आप को चीफ़ गेस्ट के तौर पर बुलाना चाहते हैं....पहले तो मेरी हंसी छूटी खूब...फिर मैंने उस मित्र को कहा कि यार, इतनी इज़्जत की आदत नहीं है, न ही कभी तमन्ना है...चुपचाप आखिरी कतार के कोने में किसी समारोह का आनंद लेना का अपना ही लुत्फ है ....खूब हंसे हम लोग...मैंने उस से माफ़ी मांग ली....फिर बेटे के साथ भी यह बात शेयर कर के बहुत मज़ा आया कि तेरे बापू को चीफ-गेस्ट के तौर पर बुलाना चाह रहे थे ..

वापिस इंस्पेक्शन वाले तेवरों पर लौटते हैं.....मेरी आदत है मैं अखबार की तस्वीरें बहुत अच्छे से देखता हूं ...और पिछले पंद्रह वर्षों के दौरान मैंने जितनी भी इंस्पेक्शन की तस्वीरें अखबारों आदि में देखी हैं उन से कुछ निष्कर्ष निकाले हैं ...
  • इंस्पेक्शन करने वाले का एक हाथ अपनी पतलून की जेब में घुसा होना ज़रूरी है ..
  • अगर इंस्पेक्शन करने वाले कोई बहुत ही बड़ा अादमी है तो उसके दोनों हाथों भी पतलून की जेब में घुसे हो सकते हैं..
  • इंस्पेक्शन करने वाले से कहीं ज़्यादा जानकारी रखने वाले लोग उस के सामने बिल्कुल स्कूली बच्चों की तरह दुबके हुए इंस्पेक्टर साहब के रफू-चक्कर होने का इंतज़ार करते हैं..
  • और हां, इंस्पेक्शन करने वाले का सिर अकसर कम से कम नब्बे डिग्री तक देखा गया है...और कुछ और रौब वाले तो इस की डिग्री को बढ़ा कर एक सौ तक कर सकते हैं.....डर लगता है उस समय इंस्पेक्शन करवाने वालों को कहीं धौन च वल न पै जावे (कहीं गर्दन में बल ही न पड़ जाएं!)
  • इंस्पेक्शन को दौरान अकसर बड़े साहिबों को कोई बीस तीस साल पुराना बंदा अचानक याद आ जाता है जो अभी भी घास ही काट रहा होता है ...उस से मिल कल कुछ साहिब लोग अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में पड़ जाते हैं....कृष्ण-सुदामा मिलन तो नहीं कहूंगा...लेकिन राजा भोज और गंगू तेली की कहानी याद आ जाती होगी ...
  • इस के अलावा भी कुछ इंडिकेटर्स हैं जिन से आप फोटो का कैप्शन पढ़े बिना यह अंदाज़ा लगा सकते हैं कि कौन इंस्पेक्शन कर रहा है और किस की इंस्पेक्शन हो रही है ...जैसे आंखों पर काला चश्मा, सिर पर कोई टोपी-वोपी..
  • और एक बात याद आ गई जाते जाते ...एक तेवर इस तरह का भी रखना ज़रूरी है ..मेरे पी.जी टीचर की तरह कि तुम्हें कुछ भी आता जाता नहीं, इस विषय से संबंधित जितना ज्ञान है मेरे पास है ...और चाय नाश्ते के दौरान काजू-कतली की एक टुकड़ी तोड़ कर उठाने में भी कुछ अलग तेवर नज़र आना चाहिए..
बस, मैं तो इनती ही समझ पाया इन तेवरों के बारे में ...अखबारों की तस्वीरें देख देख कर...अगर आप भी इस में कुछ जोड़ना चाहें तो आप का स्वागत् है!

मेरे लिए एक इंस्पेक्शन अविस्मरणीय है....मैंने नईं नईं सर्विस ज्वाईन की थी...कुछ दिन ही हुए थे....हमारे एक उच्च अधिकारी आए थे इंस्पेक्शन पर ....एक एक बात उन्होंने मेरे से पूछी ...मुझे कहा कि तुम एमडीएस हो, बड़ा स्कोप है तुम्हारे लिए...क्या तुमने हैपेटाइटिस बी का इंजेक्शन लगवाया हुआ है?....नहीं, मैंने जवाब दिया...तो उन्होंने अपने नोट्स में यह लिखवाया कि डैंटल सर्जन को हैपेटाइटिस बी से इम्यूमाईज़ड होना चाहिए....तब नया नया ही आया था यह टीका ...1991 की बात है .. मैंने कहा कि मुझे इस की सेफ्टी के बारे में कुछ संदेह है ...तब उन्होंने मुझे यह बताया कि अब जैनेटिकली इंजिनियर्ड तकनीक से आने वाले टीक पूर्णतया सुरक्षित हैं....मैंने अगले ही दिन उस टीके की पहली खुराक लगवा ली...एक सार्थक इंस्पेक्शन की यह बात आज याद आ गई लिखते लिखते तो यहां दर्ज कर दी....और हां, एक इंस्पेक्शन और है जिस की तस्वीरें देख कर मैं बहुत खुश हो जाता हूं....जी हां, अपने मेट्रो-मेन श्रीधरन जी ....खुशकिस्मत हैं वे लोग जो इन से सुझाव पाते होंगे इंस्पेक्शन के दौरान... such a great and grounded personality....real heroes of Today's India!

वरना आज कल भी जो हो रहा है बिल्कुल ठीक है....प्रतीकों और संकेतों का ज़माना है तो सब कुछ उस के अनुसार ही तो चलेगा...

अभी गीत की बारी है ...राम चंद्र जी की बात चलती है ..रामलीला की चर्चा होती है तो मुझे कोई चौपाईयां तो याद नहीं है, बस मुझे तो यह कथा ही बार बार सुनने की इच्छा होती है ....