रविवार, 9 मार्च 2008

जागो ग्राहक जागो, लेकिन फिर ?


हां, लेकिन ग्राहक जाग कर भी आखिर कर क्या लेगा ! अभी अभी बाज़ार से हो कर आ रहा हूं। कुछ दिन पहले एक दुकानदार को कोर्डलैस फोन के लिए पैनासॉनिक की ओरिजिनल बैटरी के लिये बोल कर आया था। कह रहा था कि दिल्ली से मंगवानी पड़ेगी.....सो, आज लेने गया तो उस ने एक बैटरी उस कोर्डलैस के हैंड-सैट में डाल दी और मैं उसे 125 रूपये थमा दिये।
लेकिन जब मैंने उस बैटरी की तरफ़ देखा तो मुझे लगा कि यह तो ऐसे ही कोई चालू सा ब्रांड है, ऐसे ही लोकल मेक....बस उस की पेकिंग पर केवल ग्रीन-पावर लिखा हुया था....ना कोई आईएसआई मार्क, न ही कोई अन्य डिटेल्स..........सीधी सी बात कि मैं एक बार फिर उस दुकानदार के हाथों उल्लू बन गया था।
मैंने उस से पूछा कि तुम्हें तो ओरिजिनल बैटरी के लिये कहा था , लेकिन वह कहने लगा कि ओरिजिनल अब कहां मिलती हैं....यह जो आप ने पहले से इस में डलवाई हुई है,वह तो बिल्कल ही डुप्लीकेट है जो कि 75रूपये में ही मिल जाती है और यह केवल आठ महीने चलेगी। लेकिन यह जो बैटरी अभी मैंने डाली है ...इस की कोई कंप्लेंट हमारे पास आई नहीं है और कम से कम एक साल तक चलेगी। मैं समझ गया कि अब एक बार फिर से बेवकूफ़ बन तो गया हूं ....अब ज़्यादा इस से बात करने से कुछ हासिल होने वाला तो है नहीं। इसलिए मैंने उस को यह भी बताना ठीक नहीं समझा कि यह जो बैटरी जिसे वह डुप्लीकेट कह रहा है वह तो इस कोर्डलेस के साथ खरीदते वक्त ही मिली थी और पिछले चार सालों से ठीक ठाक बिना किसी कंप्लेंट के चल रही थी....अब खत्म हुई है।
सही सोच रहा हूं कि हमारे यहां पर ग्राहक का तो बस हर तरफ़ शोषण ही शोषण है....पढ़ा-लिखा बंदा कहीं यह सोचने की हिमाकत भी न कर बैठे कि अनपढ़ या कम पढ़े लिखे लोग ही उल्लू बना करते हैं। देखिए, इस की एक जीती-जागती उदाहरण आप के सामने मौज़ूद है। क्या है ना , इन सब बातों से फ्रस्ट्रेशन होती है कि जब कोई ओरिजिनल चीज़ के लिये कहता है और मोल-भाव भी नहीं करता तो भी उसे ओरिजिनल चीज़ नहीं मिलती। अब यहां पर रोना तो इसी बात का है।
यह तो एक उदाहरण है..............ऐसे सैंकड़ों किस्से हम और आप अपने मन में दबाये हुये हैं और दबाये ही रहेंगे क्योंकि दैनिक दिनचर्या में हम लोग इतने पिसे हुये हैं कि हमारा यही एटिट्यूड हो जाता है......यार, भाड़ में जायें ये सौ-दो-सौ रूपये..................दफा करो..............कौन इतनी माथा-पच्ची करे ! बस, इतना सुकून है कि एक लेखक होने के नाते अपनी सारी फ्रस्ट्रेश्नज़ ( सारी बिल्कुल नहीं, बहुत कुछ दबा कर रखा हुया है, लेकिन आप लोगों से प्रोमिस कर चुका हूं कि एक न एक दिन सारा पिटारा आप के सामने खोल दूंगा.....फिर चाहे उस का कुछ भी हो अंजाम....परवाह नहीं करूंगा.................लेकिन वह समय कब आयेगा, मुझे भी पता नहीं) ...अपनी उंगलियों को की-बोर्ड पर पीट पीट कर निकाल लेता हूं...............what a great stress-buster, indeed!.....Isn’t it?.
लेकिन, हां, यकीन मानिये मैं किसी ग्राहक संगठन या किसी ट्रेंडी से नाम वाले उपभोक्ता संगठन में अपना दुःखड़ा रोने नहीं जाऊंगा। बस, आप तक अपनी बात पहुंचा दी है ना, चैन सा आ गया है..............जो कि दोपहर में किसी दूसरे दुकानदार के द्वारा मूर्ख बनाये जाने से पहले बहुत ज़रूरी था।
लेकिन, हां, यकीन मानिये मैं किसी ग्राहक संगठन या किसी ट्रेंडी से नाम वाले उपभोक्ता संगठन में अपना दुःखड़ा रोने नहीं जाऊंगा। बस, आप तक अपनी बात पहुंचा दी है ना, चैन सा आ गया है..............जो कि दोपहर में किसी दूसरे दुकानदार के द्वारा मूर्ख बनाये जाने से पहले बहुत ज़रूरी था।
मैंने भी आज संडे के दिन आप का मूड भी आफ कर दिया है.....सो, चलिये अब थोडा मूड फ्रैश करते हैं , चलिये आप मेरी पसंद का एक गाना सुनिये..................यह गाना भी वह गाना है जिसे मैं सुनते कभी थक नहीं सकता !!...

पंजाबी अखबार पढ़ के वी हुन मज़ा नहीं आंदा..

हुने हुने इक पंजाबी दी अखबार पढ़ के हटिया हां.... पर ज़रा वी मज़ा नहीं आया। ऐन्ने कु ज्यादा इश्तिहार इस विच भरे होये हुंदे ने कि बंदे दा दिल करदै कि वगा के परे सुट्टे ऐन्नां अखबारां नूं। दो-चार पंज मिनट च अखबार पूरी खतम हो जांदी ऐ। वैसे मैं पिछले कुछ सालां दौरान लगभग सारीयां पंजाबी दीयां अखबारां नूं पढ़ मारीया है.....पर कुछ कम जचिया जिहा नहीं । कुछ ने जिहडीयां सिऱफ सियासी पारटीयां दी ही गल करदीयां ने, कुछ ने जिहड़ीयां बहुत ही अजीब तरह दीयां गल्लां ते फोटोयां छापदीयां रहंदीयां ने ते कुज जिह़डीयां कुछ ज्यादा ही चल्लन लग पैंदीयां ने उह तां ऐन्नां इश्तिहारां नाल ऐंज तूसीयां हुदीयां ने जिवें पढ़न वाले ने तिन रूपये इन्नां हज़ारां ऐडां नूं ही पढ़न लई खर्चे ने........बस, कुज दिनां बाद ही उन्नां तो मन भर जांदै। बस, हुन तां बस ऐतवार वाले दिन इक पंजाबी दा अखबार आंदा ऐ ताकि छोटे मुंडे दी पंजाबी वधिया हो जावे।
मैं समझदा हां कि अपनी मां -बोली दा गियान होना वी बहुत ज़रूरी है.....सानू्ं अपनी गल अपनी मां-बोली विच कहन च फखर वी महसूस होना चाहीदै। साडे सिर ते अपनी इस मां बोली दा इक बड़ा वड्डा करजा ऐ जिहडा सानूं थोडा़ जिहा तां लाउन दी कोशिश करनी ही चाहीदे ऐ......पूरा भार तां असीं लाउन दी सोच ही नहीं सकदे। पता नहीं अज कल मियारी अखबार क्यों नहीं लभदे.............इक आम बंदा ऐ ..उस नूं नेट नाल कोई सरोकार नहीं, उस दा महंगे महंगे रसालियां नाल वी कोई ऐडा कोई रिश्ता नहीं.....बस, उस दा तां रिश्ता है उस दी अपनी लोकल भाषा दे अखबार नाल....पर , हुन ऐह वी मसला बनिया होया ऐ कि आम बंदे तक असीं किवें अपनी गल बिना तोडे -मरोडे पहुंचा सकिये।
हां, जे कर तुसीं किसे पंजाबी ब्लोग ऐगरीगेटर बारे जानदे हो तां मैंनूं दसियो......होर तुसीं की की चाहंदे हो कि इस ब्लोग विच कवर होवे ,मैनूं लिखयो.....मैं पूरी कोशिश करांगा। अपनी मां-बोली विच वी लिखना किन्ना आसान ऐ ...बंदा नूं लगदै जिवे अपने यारा मितरां नाल गप्पां ही मार रिहा होवे। बस अजे एत्थे ही ब्रेक लानां वां.............मितरो, बोर ते नहीं हो रहे ना, जेकर कुछ अजेही गल वी होवे तां दस ज़रूर देयो................आपां उस्से वेले बंद कर दियांगे।
अच्छा , बेलीयो....................अगली पोस्ट तक रब राखा

आ जाओ मितरो थोडी गप-शप वी तां कर लईये !

इस हिंदी बलोगिंग विच लोकां नूं अपने अपने इलाके दीयां बोलियां विच लिखदियां वेख रिहा हां तो मैं वी इह सोच रिहा हां कि कुज इहो जिहा मैंनू वी करना चाहिदा ऐ। क्योंकि गलां कुज ऐंज तरां दीयां वी हुंदियां ने जिहडीयां अपनी मां-बोली विच ही कह के, कर के ...दिल खुश हुंदा ऐ। नहीं तां उस दा मजा ही मारीया जांदा ए। बस, हुन तुसीं वेखियों मैं तुहाडे नाल ऐनियां गलां करिया करनीयां ने कि तुसीं कह देना ...य़ार, हुन बस वी कर। इह इक पहला अक्सपैरीमैंट जिहा ही कर रिहा हां , सो मैंनू आप सारियां दी बोत बोत हल्ला शेरी चाहीदी ऐ। नहीं तां, मैं किधरे ऐवें ही थक टुट के ना बह जावां। बस ऐना कू धियान रख लियो। इक तरां नाल मैं तां अपने मुंह दी मैल लाउन दा उपराला जिहा ही कर रिहा हां. ऐस ब्लोग विच तां बस आपां सारे वीरां-भैनां ने बस गलां ही गलां करनीयां ने।
चलो, अपने पिंड अंबरसर तो ही गल शुरू करदा हां....मैं उत्थे ही जमिया पलिया और उत्थे ही अपनी सारी पढ़ाई होई है, सो, मैंनू उस शहर नाल बहुत ही प्यार है। किहड़ा दिन होवेगा जदों मैं अपने शहर नूं याद नहीं करदा। बस, सब पुरानी गलां लगदियां हन ते तुहाडे सारेयां नाल दिल खोल के सांजियां करनीयां ने।
वैसे हुने हुने मैंनू उस कमल हीर दा उह गाना जिहडा मैंनू बडा ही पसंद है याद आ रिहा ऐ।
बैठ के त्रिंजना च सोहनीये,
कड्ढें जदों चादर उत्ते फुल तूं..
किन्नू याद कर कर हसदी ,
चुन्नी च लुका के सूहे बुल तूं।...
बस, अज ते मैं थोडी इंटरोडक्शन ही देनी सी। दसियो, तुहानूं मेरा ऐह ख्याल किद्दां दा लग्गा ऐ। वीरो, जे पसंद करोगे ठीक ऐ...नहीं ते अपने इस ने वगाह के परे सुटांगे..........असीं किहडा किसे कोलों कुछ पुछन जाना ऐ....बस, चुप चुपीते आप्शन्स ते जा कर के डिलेट दा ब्लाग ते ऊपर जा कर के उंगली रूपी सोटा नाल इक छोटा जिहा वार ही करना ऐ ना...................ते बलाग गायब।
वेखो, मैंनू मेरे इस अजीब जिहे आइडिये बारे ज़रूर लिखियो, चंगा लग्गेगा.................हां, इक गल दा होर ध्यान रखियो कि इस पोस्ट दे थल्ले टिप्पणी वगैरा लिखन विच कोई भी भाषा इस्तेमाल कर लियो, हिंदी , पंजाबी , अगरेजी.........मैंनू बहुत खुशी होवेगी। पर लिखियो ज़रूर।
अच्छा फेर हुन तां चलदा हां............फेर आपां मिलदे गिलदे रहां गे, बेलियो। तद तक रब राखा.........अपना ध्यान रखियो।
जिऊंदे-वसदे रवो।।।।।।।।