शनिवार, 23 अगस्त 2014

शीघ्र पतन वतन सब मन ही में होता है..

मुझे अच्छे से याद है कि लगभग छः-सात वर्ष पहले ऐसे ही आक्रोश में आकर शीघ्र-पतन के मुद्दे पर अपने विचार लिख दिये थे....शीघ्र पतन का फैसला भी होगा अब घड़ी की टिक टिक से।  आक्रोश का कारण... बस केवल इतना ही था कि किस तरह से आज के युवकों को इस मुद्दे पर गुमराह कर के ये नीम हकीम करोड़ों रूपये लूट रहे हैं।

मैं जब भी अपने ब्लॉग के स्टैटेस्टिक्स देखता हूं तो सब से ज़्यादा सर्च किए गये यही लेख हैं... तो मैंने सोचा कि इस संबंध में बिल्कुल परफैक्ट जानकारी पाठकों तक पहुंचनी चाहिए।

जिस वेबपेज का लिंक मैं नीचे दे रहा हूं उस से ज़्यादा विश्वसनीय जानकारी इस मुद्दे पर आप को कहीं भी नहीं मिल सकती।

इस पेज पर देखिए कि कितना साफ साफ लिखा है कि यह एक आम समस्या है लेकिन इस के पीछे किसी शारीरिक कारण का होना बहुत ही कम होता है। और कितनी सफाई से लिखें ये लोग कि यह शीघ्रपतन की समस्या मन की उपज है और किस तरह से आज के तनाव की वजह से इस तरह की समस्याएं सामने आने लगी हैं।

यह वेबपेज इंगलिश में है, आशा है सभी पाठक पढ़ ही लेंगे और समझ भी लेंगे.......... इस शीघ्रपतन की समस्या से जूझने के लिए (चाहे वह मानसिक ही क्यों न हो).....कुछ फार्मूले भी इस में बताए गये हैं........पहले मैंने सोचा उन्हें हिंदी में लिख दूं.....लेकिन फिर पता नहीं ऐसा करते करते रूक गया....थोड़ा अजीब सा लगा....... जो कि एक मैडीकल लेखन करने वाले को लगना नहीं चाहिए। मुझे लगता है कि मेरे ब्लॉग की रीडरशिप अलग तरह की है.. शायद इसलिए मैं इतने खुलेपन से खुलासा करने से झिझक गया।

लेकिन फिर भी अगर आप मुझे इस तरह की फीडबैक देंगे कि इस तरह की जानकारी को भी मुझे हिंदी में सरल भाषा में भी उपलब्ध करवाना चाहिए तो मैं तैयार हूं यह सब करने के लिए। निष्कर्ष यही है कि बस रिलैक्स होना सीखो, मस्त रहना सीखो...

यह रहा लिंक ..  http://www.nlm.nih.gov/medlineplus/ency/article/001524.htm      ...वैसे आप इस लिंक ..शीघ्र पतन पर भी क्लिक कर के इस वेबपेज पर पहुंच सकते हैं। इसे पढ़ कर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ईमानदारी से किसी जानकारी को कैसे पाठकों तक पहुंचाने का काम मैडलाईन जैसे अमेरिकी संस्थाएं कर रही हैं। इसे अच्छे से पढ़ें और इस ज्ञान का आगे भी ज़रूरतमंदों के साथ बांटने में संकोच न करें ... you lose nothing, isn't it?



रेलवे पुल के नीचे से गुज़रते वक्त क्या आपने कभी यह सोचा?

प्रश्न ही कितना अटपटा सा लगता है कि क्या रेलवे पुल के नीचे से गुज़रते वक्त आपने कभी कुछ सोचा?... इस में सोचने लायक बात ही क्या है, आप यही सोच रहे हैं...मैं भी आप की तरह ही सोचा करता था... लेिकन पिछले रविवार के दिन से मैं भी सोचने लगा हूं।

चारबाग स्टेशन के पास वाला पुल 
हुआ यूं कि पिछले रविवार के दिन मैं एक कार्यक्रम में जा रहा था, जिस जगह पर कार्यक्रम होना था --लखनऊ के हज़रतगंज-- यहां पर चारबाग एरिया से होकर जाना होता है। रास्ते में यह पुल पड़ता है जिस की तस्वीर आप यहां देख रहे हैं... इस पुल के नीचे से मैं सैंकड़ों बार गुजर चुका हूं, लेकिन उस दिन मैंने क्या देखा कि कुछ साईकिल, स्कूटर, मोटरसाईकिल सवार इस पुल के दोनों किनारों पर चुपचाप खड़े थे। ज़ाहिर सी बात है कि मैंने भी अपने स्कूटर को ब्रेक लगा दी। 

इस तरह से लखनऊ शहर के लोगों को रूकते देखना मुझे हैरान कर गया क्योंकि ये तो रूकते ही नहीं हैं....बस जब व्हीआईपी मूवमैंट होती है तो ट्रैफिक पुलिस वाले १०-१५ मिनट सारा यातायात रोके रखते हैं, और तो कहीं मैंने इतना सिरियसली ट्रैफिक रूकता देखा नहीं। 

हां, जिस समय इस पुल के दोनों तरफ़ दो पहिया वाहनों वाले रूके हुए थे, उस समय इस पुल के ऊपर से एक ट्रेन सरक रही थी। मुझे यही अंदेशा हुआ कि यह पुल बहुत पुराना लगता है ......ये लोग भी शहर के पुराने जानकार है, शायद कोई चेतावनी होगी कि जब पुल से गाड़ी निकलने तो रूक जाना ज़रूरी है, क्योंकि पुल पुराना है। 

अभी मैं यह सोच ही रहा था कि गाड़ी पूरी आगे निकल गई और झट से सारे दुपहिया वाहन चल पड़े......मैं भी चल पड़ा......सस्पैंस मेरे मन में ही रह गया कि ये बीस के करीब लोग रूके क्यों रहे............मेरे से रहा नहीं गया तो मैंने अपनी बाईं तरफ़ जा रहे एक साईकिल सवार स्कूली छात्र से पूछ ही लिया.......यार, ये लोग रूक क्यों गये थे?

अंकल, गाड़ी से हृमन वेस्ट मेटीरियल (human waste material) नीचे गिरता है ना, बस उसी से बचने के लिए रूकना पड़ता है, उस ने कितनी सहजता से मेरी जिज्ञासा को शांत कर दिया।

रेल की पटड़ियों के बीच वाली खाली जगह 
तभी मेरा ध्यान इस पुल के ऊपर गया......धत तेरे की.......वह स्कूल का बच्चा सच कह गया........ऊपर से यह इस तरह से खुला था जिस तरह के आप इस तस्वीर में देख रहे हैं। 

यह पुल लखनऊ के चारबाग मेन स्टेशन से लगभग कुछ दो-तीन सौ मीटर की दूरी पर ही है और यात्रियों को वैसे ही कहा जाता है कि स्टेशन पर आप लोग ट्रेन की टॉयलेट का इस्तेमाल न करें....ताकि स्टेशनों को साफ़ सुथरा रखने में मदद मिल सके........लेकिन जैसे ही ट्रेन छूटती होगी और फिर इस तरह के पुल से सब तरह के वेस्ट मेटिरियल की बरसात होती होगी.........इसीलिए लोगों ने इस से बचने का जुगाड़ भी ढूंढ लिया कि चंद मिनट रूकने में ही बेहतरी है...

काश, लखनऊ के कुछ लोग जो हर जगह पान-पानमसाला-तंबाकू-गुटखा थूकते रहते हैं वे जब सड़कों पर वाहनों पर चलते हुए थूकते हैं तो दूसरे के साफ़-सुथरे कपड़ों के बारे में भी थोड़ा संवेदनशील रहा करें, यहां तो यह बहुत ही आम समस्या है.......पहली बार यही देखा कि महंगी कारें चलाने वाले भी कईं बार रोड़ के किनारे गाड़ी रोकते हैं, झटके से दरवाजा खोलते हैं और पाव-भर थूक-पीक-पान से व्हीआईपी रोड़ को रक्त रंजित कर के आगे सरक जाते हैं........

आप को लग रहा होगा कि वे इतने संवेदनशील हैं कि सड़क पर दूसरे लोगों पर पीक न पड़े, इस का ध्यान रखते हुए यह करते होंगे, लेिकन मुझे लगता है अपनी महंगी कार को पीक के रंग से बचाने के लिए वे यह ईनायत करते होंगे हैं..

हां, तो अपने शहर में भी इस तरह के पुलों के नीचे से गुज़रते वक्त ध्यान रखिएगा......फिर मत कहिएगा कि किसी ने पहले सावधान नहीं किया। 

पिछली सवारी के लिए हैल्मेट क्यों नहीं भाई?

ऐसी तस्वीरें उद्वेलित करती हैं लेकिन हम भी यही कुछ करते हैं...
मुझे यह बात बहुत परेशान करती है कि टू-व्हीलर पर पिछली सवारी के लिए हैल्मेट क्यों अनिवार्य नहीं कर दिया जाता. 

यही एक उपाय है कि पिछली सीट पर बैठी इस देश का महिलाएं भी हैल्मेट पहनने लगेंगी। दूसरा कोई उपाय मेरी समझ में तो नहीं आ नहीं रहा। और इस की पालना न करने पर चालक का तुरंत चालान होना चाहिए। 

तेज़ रफ़तार से चल रहे दो पहिया वाहनों को देख कर और पीछे बैठी महिलाओं को देख कर डर जाता हूं.... मैं क्या मेरा १७ वर्ष का बेटा भी डर जाता है और मुझे अकसर कहता है कि पापा, पिछली सवारी के लिए भी हैल्मेट कंपलसरी होना चाहिए. मैं उस से बिल्कुल इत्तेफाक रखता हूं। 

लेकिन शुरूआत घर से ही होनी चाहिए......मेरे स्कूटर के पीछे बहुत बार बीवी भी बैठती है और मां भी बैठती हैं, लेकिन मुझे उन्हें बिना हैल्मेट के बिठाना बहुत अजीब सा लगता है, डर लगता है ... अपने सिर पर हैल्मेट डालना उस समय एक अपराध सा लगता है कि यार, हमारी जान क्या ज़्यादा महंगी है या फिर पीछे बैठा इंसान हाड़-मांस का नहीं बना है। 

उस दिन भी मैं और मेरा बेटा कार से स्टेशन से आ रहे थे तो बेटे को एक स्कूटर के पीछे एक बुज़ुर्ग मां बैठी दिख गई....हो गया शुरू ..बड़ा संवेदनशील किस्म का बंदा है ..झट से उस मां-बेटे की फोटू खींच ली और कहने लगा कि पापा, यह तो गलत बात है कि पीछे बैठे बंदे के लिए हैल्मेट ज़रूरी नहीं है। 

कईं बार मैं सोचता हूं कि यार यह देश भी कैसा है, कुछ जगहों पर तो हैल्मेट पहनने की तरफ़ कोई ध्यान नहीं देता, कुछ में केवल चालक ही हैल्मेट पहनेगा क्योंकि यह कानून है उन राज्यों में ...लेिकन उन राज्यों की प्रशंसा करनी चाहिए जिन्होंने दोनों सवारों के लिए चालक और पीछे बैठी सवारी के लिए भी हैल्मेट अनिवार्य किया हुआ है। मुझे बहुत अच्छा लगता है यह देखना --शायद चंडीगढ़ में यही व्यवस्था है...

मुझे ऐसा लगता है कि देश में हर जगह यह कानून लागू हो जाना चाहिए कि पीछे बैठी सवारी और बापू के साथ स्कूटर पर आगे खड़े बच्चे भी हैड-प्रोटैक्शन तो पहनेंगे ही। 

सच में कहूं कईं बार बहुत अपराधबोध होता है .......लेकिन क्या हम ने कभी अपनी तरफ़ से पहल की .......कभी मां या बीवी को पीछे बैठाने से पहले कहा कि आप भी हैल्मेट पहन लें, .......नहीं ना, क्योंकि रिवाज ही नहीं है, हमें यह भी तो डर सताने लगता है कि कहीं हम लोग सड़क पर जाते हुए कार्टून ही न लगें........अब सोचने की बात है कि यह मेरे जैसे ठीक ठाक पढ़े लिखे बंदे की मानसिकता है, तो फिर वह आदमी जिसे हम लोग कम पढ़ा लिखा लेबल करते हैं, अगर वह ऐसी सोच रखे तो वह गंवार........

ठीक है, बात हो तो हो गई, लेकिन एक राष्ट्र स्तर पर एक अभियान चलना चाहिए कि सारे देश में पिछली सवारी के लिए भी हैल्मेट ज़रूरी होना चाहिए वरना चालक से मोटी रकम ज़ुर्माना के रूप में वसूली जानी चाहिए। हम इतने लंबे समय से गुलाम रहे हैं, शायद हम सब यही भाषा समझते हैं। आप का क्या ख्याल है..... 

नेट से प्राप्त जानकारी और सेहत संबंधी निर्णय

मुझे बड़ी हैरानी हुई थी कल ओपीडी में जब उस २५-३० उम्र की महिला ने यह कहा कि उसने अपनी टुथपेस्ट इसलिए बदल दी क्योंकि नेट पर उसने एक बार देखा था कि उस में मौजूद घटकों से कैंसर हो जाता है।

समस्या यह थी कि उस पेस्ट को छोड़ कर जिस मंजन को उस ने थाम लिया था उसी मंजन की वजह से ही उसे दांतों में तकलीफ़ हो रही थी। हैरानी मुझे यह सुन कर हुई जब मैंने उसे नेट पर इन मंजनों आदि के बारे में भी कुछ पढ़ने को कहा तो वह तुरंत कहने लगी....कि इंटरनेट कहां है हमारे यहां, बस तब एक बार देखा था।

यह छोटी सी बात इसलिए आपके समक्ष रखी कि किस तरह से नेट पर उपलब्ध जानकारी आज लोगों को अपने फ़ैसले स्वयं करने के लिए एक आज़ादी सी दे रही है, देखते हैं कि यह आज़ादी ठीक भी है कि नहीं।

मेरा व्यक्तिगत विचार है कि नेट पर किसी भी शारीरिक समस्या के बारे में छोटी-मोटी जानकारी पा लेना तो एक बात है, लेकिन उसी के आधार पर जाकर अपने आप दवाई खरीद लेना या कोई ब्लड-टैस्ट करवाने या अल्ट्रासाउंड या सी टी स्कैन करवाने पहुंच जाना बिल्कुल गलत बात है। इससे कोई भी फायदा होने वाला नहीं है।

सब से पहले तो यह जान लें कि इंगलिश में भी सेहत संबंधी मामलों में अच्छी और सही जानकारी के साथ साथ इतनी गलत और भ्रामक जानकारी नेट पर पड़ी है कि सर्च करने वाले के लिए यही तय करना कईं बार मुश्किल हो जाता है कि कौन सही कह रहा होगा, कौन गलत।

इतनी इतनी कठोर और निर्दयी मार्कीट शक्तियां हैं कि आप को पता लगे बिना ही आप कहीं न कहीं बुरे फंस सकते हैं, किसी ने कोई टैस्ट बेचना है, किसी ने कोई सप्लीमैंट, कोई सेहत ही बेचने का ठेका लिए हुए है........सब कुछ बहुत ही ज़्यादा कंफ्यूज़िंग सा कर रखा है इन सब ने मिल कर --- यह जानने के लिए कि बेटा होगा या बेटी जैसे टैस्टों की किटें तो नेट पर बिकने लगी हैं।

लेकिन अंग्रेजी में फिर भी हाल इतना बुरा नहीं है, भ्रामक सामग्री की भरमार के साथ साथ विश्वसनीय सामग्री भी भरी पड़ी है, बस हमें छांटना आना चाहिए। इसी विषय पर मैंने एक पोस्ट कुछ दिन पहले लिखी थी...(बिल्कुल विश्वसनीय हैल्थ जानकारी हिंदी में मैडलाइन प्लस पर)  और एक कुछ वर्ष पहले लिखी थी (इंटरनेट पर स्वास्थ्य संबंधित जानकारी के लिए वेबसाइटें), और मैं आज भी उन में लिखी सभी बातों पर कायम हूं।

जितनी दुर्दशा हिंदी में उपलब्ध सेहत संबंधी जानकारी की है, उतनी तो शायद..।

कल सुनील दीपक  के ब्लॉग पर एक अच्छी पोस्ट देखने को मिली.......आप भी पढ़िए..  भाषा, स्वास्थ्य अनुसंधान और वैज्ञानिक पत्रिकाएं । हिंदी में सेहत संबधी विषयों पर जानकारी का टोटा है।

नेट पर सेहत से संबंधित विषयों पर बहुत ही खराब किस्म की जानकारी --भ्रामक तरह की-- भरी पड़ी है। ऊपर मैंने मैडलाइन प्लस का लिंक बताया है जहां पर सब कुछ विश्वसनीय ही मिलेगा और काफ़ी कुछ हिंदी में भी।

मुझे लगता है कि नेट पर सेहत की बारे में जुड़ी बातें केवल एक आधार के तौर पर पढ़ ली जाएं ....और आज की पीड़ी जैसे अभ्यस्त हो चुकी है कि फोन करने पर पिज़ा, अगले ही दिन फ्लिप-कार्ट से मंगवाई किताब की डिलिवरी.........ऐसा सेहत के साथ नहीं होना चाहिए......आज कर घर पर ही रक्त की जांच के लिए ब्लड-सैंपल लेने आ जाते हैं, ठीक है, अगर किसी चिकित्सक ने कहा है तो बिल्कुल ठीक है, आप घर पर ही सैंपल दें, लेकिन अपने आप कुछ पढ़ कर नहीं... और न ही अनाप-शनाप दवाईयां नेट से खरीदें।

सी टी स्कैन सैंटरों पर किस तरह से धड़ाधड़ सी टी स्कैन हो रहे हैं, आपको क्या लगता है कि अगर आप किसी सी टी स्कैन सैंटर या एमआरआई सैंटर पर जा कर कहेंगे कि कुछ समय से सिरदर्द जा नहीं रहा, तो क्या आप को लगता है कि वहां पर मौजूद स्टाफ आप को पहले अपने फैमिली फ़िज़िशियन से मिलने का सलाह देगा............बस, आप तो वहां से सी टी या एमआरआई करवा के ही लौटेंगे। करोड़ों रूपयों की मशीनें हैं, सफ़ेद हाथी तो हैं नहीं वे सब। काम करेंगी तो ही बैंकों की भारी किश्तें निकल पाएंगी।

इसलिए मेरी तो यही सलाह है कि नेट पर किसी भी सेहत से जुड़ी जानकारी को ध्यान से पढ़ें, इतना भी ध्यान से नहीं कि उस में लिखी सभी अशुभ एवं अप्रिय बातों को अपने ही शरीर में देखने लगें...... बस, पढ़ना तो ठीक है, लेकिन उस के आधार पर न तो मन में कोई उलझन या भ्रांति ही पैदा होने दें और न ही कोई निर्णय केवल उस पढ़ाई के आधार पर लें।

आप के पास अभी भी कुछ कुछ शहरों में आपका अपना फैमली डाक्टर उपलब्ध है......जो आपके शरीर के बारे में ही नहीं आप के मन के बारे में भी लगभग सब कुछ जानता है, उस पर भरोसा रखें, वह आगे किसी विशेषज्ञ के पास भेजे या कोई टैस्ट-वैस्ट करवाने को कहे तो ही अपना मन बनाएं, वरना सैकेंड ओपिनियन लेने में भी आखिर दिक्कत क्या है। बस, नेट पर दुकानें सजा कर बैठे जालसाज़ों से बच कर रहें, वे बैठे ही बस आप की व्लनेरेबिल्टी का फायदा उठाने के लिए।

एक उदाहरण क्या ध्यान आ गया...... आप ने किसी शारीरिक तकलीफ़ के किसी लक्षण को सर्च किया........आप को उस के पच्चीस कारण पता चल गये, पहली तो बात यह है कि आप कल्पना करेंगे कि जो सब से भयानक कारण है वही आप के केस में होगा, आप बेकार मन ही मन चिंता पाले रहेंगे लेकिन किसी फैमली डाक्टर के जब बात करने पहुंचेंगे तो उस के पके बालों के आधार पर, बीस तीस वर्ष प्रोफैशन में घिसने के आधार पर, और आप की चाल-ढाल देख कर वह दो मिनट में ही शायद आप की चिंता शांत कर दे और कुछ ज़रूरी किस्म के टेस्ट करवा के आप को भरोसा भी दिला दे।

I am reminded of a funny saying ......... Hypochondriacs...beware while reading medical literature. You may die of a misspelling! (हाईपोकांडर्रिक्स उन्हें कहते हैं जो हर समय अपने शरीर में विभिन्न रोगों की कल्पना करते रहते हैं).......