रविवार, 2 नवंबर 2008

क्या ब्रेसेज़ से बचा जा सकता है ?


इस प्रश्न का जवाब ढूंढने से पहले कुछ बातें करते हैं। तो, सब से पहले तो जब मैं किसी 18-20 साल के युवक अथवा युवती को देखता हूं जिसके दांत टेढ़े-मेढ़े होते हैं तो मुझे बहुत दुःख होता है क्योंकि बहुत बार तो उन के दांत देखने से ही पता चल जाता है कि उन के लंबे समय तक इन ब्रेसेज़ के चक्कर में पड़ना पड़ेगा, बार-बार आर्थोडोंटिस्ट के क्लीनिक के चक्कर काटने पड़ेगे।

डैंटिस्ट्री के प्रोफैशन में पच्चीस साल बिताने के बावजूद भी कभी मैं इन ब्रेसिस के इलाज से बहुत ज़्यादा इम्प्रैस नहीं हो पाया। क्या यह इलाज कारगर नहीं है ?—नहीं, नहीं , ऐसी कोई बात नहीं है, बस केवल इतनी सी बात है कि यह काफी महंगा इलाज है। इस में इस्तेमाल होने वाले मैटीरियल्ज़ काफी महंगे हैं, इस का इलाज आर्थोडोंटिस्ट विशेषज्ञ द्वारा ही हो पाता है – इन सब कारणों की वजह से यह काफी महंगा इलाज है और मरीज़ को लंबे समय तक डाक्टर के पास नियमित रूप से जाना पड़ता है। इसलिये मैंने जो कुछ खास इम्प्रैस न होने वाली बात कही है उस का कारण भी केवल यही है कि यह इलाज आम आदमी की पहुंच के बहुत ज़्यादा बाहर है और यह केवल मेरी व्यक्तिगत परसैप्शन है।

वैसे तो कुछ झोला-छाप डाक्टर भी दांत सीधे करने का पूरा ढोल पीटते रहते हैं लेकिन मैं अपने मरीज़ों को बार बार आगाह करता रहता हूं कि या तो आप टेढ़े-मेढ़े दांतों के लिये कुछ भी इलाज करवाओ नहीं ----अगर किसी विशेषज्ञ से इलाज करवाना अफोर्ड कर सकते हैं तो ही करिये- वरना, ये नीम-हकीम पता नहीं कौन कौन से गलत तरीके अपना कर दांतों को थोड़ा सरका तो देते हैं लेकिन दांतों की सेहत की पूरी धज्जियां उड़ाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ते। दो-चार हज़ार रूपया भी ये मरीज़ों को बातें में उलझा कर ले लेते हैं----अब मरीज़ क्या जाने कौन सच्चा है कौन झूठा !!

आज कल टेढ़े-मेढ़े दांतों की समस्या बहुत आम हो गई है। लेकिन आम तौर पर मां बाप बच्चों को बहुत लेट ले कर आते हैं। इस का कारण यह है कि हमारे यहां पर दंत-चिकित्सक के पास नियमित तौर पर छः महीने के बाद जाकर चैक-अप करवाने का कंसैप्ट ही नहीं है।

कल मेरे पास एक 23 वर्ष की युवती आई जिस की दो महीने में शादी थी –शकल-सूरत अच्छी भली थी लेकिन उस की प्राब्लम थी कि जब वह हंसती है तो साइड के दो दांत बहुत भद्दे से दिखते हैं। लेकिन इस तरह की तकलीफ़ को बिना ब्रेसिस के ठीक किया ही नहीं जा सकता। इस उम्र की युवतियां एवं युवक तो इन टेढ़े-मेढ़े दांतों से बहुत परेशान होते हैं। वे कईं तरह के कंपलैक्स के शिकार हो जाते हैं—अंदर ही अंदर कुढ़ते रहते हैं। हंसना तो लगभग भूल ही जाते हैं---बस सब जगह पीछे ही पीछे रहते हैं।

और मुझे यह लिखने में कोई संकोच नहीं है कि अधिकांश लोग इस देश में इतनी महंगी ट्रीटमैंट अफोर्ड भी नहीं कर सकते--- 15-20 हज़ार रूपये एक आम परिवार के लिये दांतों को सीधा करवाने के लिये खर्च करने काफी होते हैं। वैसे तो ब्रेसेस के इलावा तारें लगवा कर ( removable orthodontic appliance) भी काफी कम खर्च में भी टेढ़े-मेढ़े दांतों को ठीक करवाया जा सकता है लेकिन मैं तो इन्हें एक कमज़ोर सी सैकेंड- ऑप्शन ही मानता हूं। वैसे भी बिलकुल साधारण से केसों को ही इन रिमूवेबल-एपलाईऐंसिस के ज़रिये ठीक किया जा सकता है।

तो अब थोड़ी सी बातें हो जायें कि इन ब्रेसिस से आखिर बचा कैसे जाये। तो, मेरी पहली सिफारिश है कि हर छः महीने के बाद किसी दंत-चिकित्सक से दांतों का चैक-अप ज़रूर ही करवाया जाये –इस के इलावा कोई रास्ता है ही नहीं है। इस का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि नियमित चैक-अप करवाने से दांत टेढ़े-मेढ़े होंगे नहीं और ब्रेसिस लगवाने की ज़रूरत बिलकुल पड़ेगी नहीं। हो सकता है कि आप ब्रेसिस लगवाने से बच जायें लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि अगर आप डाक्टर के पास जा कर नियमित बच्चों के दांतों की जांच करवाते रहे हैं तो शायद ब्रेसिस लगें लेकिन बहुत कम समय के लिये क्योंकि दांतों के टेढ़े-पन वाला केस बिलुकल सिंपल है, कोई कंपलीकेशन है ही नहीं।

तो चलिये इन टेढ़े-मेढ़ेपन से बचाव की कुछ बातें करते हैं----इलाज की बातें तो होती ही रहती हैं----सारा नैट भरा पड़ा है----लेकिन बचाव की बातें ही लोगों की समझ में आनी बंद हो गई हैं।

सब से पहले तो यह ज़रूरी है कि जब शिशु एक साल का हो जाये तो उसे डैंटिस्ट के पास ले कर जाना बहुत ज़रूरी है ---उस समय वह उस के मुंह के अंदरूनी हिस्सों के विकास का आकलन करेगा और उस के मां-बाप को उस के दूध के दांतों की केयर के बारे में बतायेगा।

जब आप बच्चे को हर छःमहीने के बाद डैंटिस्ट के पास लेकर जायेंगे तो कुछ विचित्र सी आदतें( oral parafunctional habits) जैसे कि अंगूठा चूसना, जुबान से बार बार अपने ऊपरी दांतों को धकेलना, दांतों से होंठ अथवा गाल काटते रहना इत्यादि ---ये सब आदतें दांतों को टेढ़ा-मेढा करने का काम करती हैं और जैसे ही डैंटिस्ट इन्हें नोटिस करता है वह इन आदतों से मुक्ति दिलाने में पूरी मदद करता है।

इसी तरह से अगर किसी बच्चे में मुंह से सांस लेने की आदत है ( mouth-breathers) तो भी इस आदत का निवारण किया जाता है क्योंकि इस आदत की वजह से ऊपर वाले आगे के दांत बाहर की तरफ़ आने लगते हैं।
अब अगर आप ने नोटिस किया है कि बच्चे के कुछ दूध वाले दांत तो गिरे नहीं हैं लेकिन उन के पास ही गलत जगह पर पक्के दांत निकलने लगे हैं। ऐसे में अगर आप बच्चे को डैंटिस्ट के पास ले जाकर दूध वाले दांत उखड़वायेंगे नहीं तो पक्के दांत किसी दूसरी जगह पर ही अपनी जगह बनानी शुरू कर देते हैं-----और अगर इन परिस्थितियों में दूध के दांत अथवा दांतों को सही समय पर निकलवा दें तो कुछ ही महीनों में पक्के दांत बिलकुल बिना कुछ किये हुये ही अपनी सही जगह ले लेते हैं----ऐसे बहुत से केस हमारे पास आते हैं जिन में थोड़ा सा कुछ करने से ही दांतों के टेढ़े-पन से बचा जा सकता है।

अगर बच्चा नियमित डैंसिस्ट के पास जाता है तो अगर कहीं दंत-क्षय नज़र आयेगा तो उस का इलाज तुरंत करवा लिया जाता है ताकि ऐसी नौबत ही न आये कि दूध के दांत को समय से पहले निकालने की ज़रूरत ही पड़े। यह इसलिये ज़रूरी है कि दूध के दांतों के गिरने का और नये पक्के दांत मुंह में आने का एक निश्चित टाईम-टेबल प्रकृति ने बनाया हुआ है और अगर इस के साथ कोई पंगा हो जाता है तो बहुत बार दांतों के टेढ़े-मेढ़ेपन से बचा नहीं जा सकता।

एक बात और भी है कि कुछ मां-बाप के मन में अभी भी यह बात घर की हुई है कि जब तक दूध के पूरे दांत गिर नहीं जायें तब तक किसी डैंटिस्ट के पास जाकर टेढ़े-मेढ़े दांतों के बारे में बात करने का भी कोई फायदा नहीं है। यह बिलकुल गलत धारणा है----बस आप तो नियमित रूप से हर छःमहीने बाद बच्चों को डैंटिस्ट के पास जा कर चैक करवाते रहें ----अगर कुछ करने की ज़रूरत होगी तो साथ साथ होता रहेगा।

और कईं बार डैंटिस्ट को मरीज़ का एक एक्सरे OPG -orthopantogram- भी करवाना होता है जिसमें उस के सभी दांत -जितने मुंह में हैं और जितने भी नीचे हड्डी के अंदर विकसित हो रहे हैं, उन सब का पता चल जाता है और फिर उस के अनुसार डैंटिस्ट अपना निर्णय करता है। ऐसे ही एक एक्स-रे की आप तसवीर यहां देख रहे हैं।

जो मैंने डैंटिस्ट्री की प्रैक्टिस में देखा है वह यही है कि अगर आप दांत की तकलीफ़ों से बच सकें तो ठीक है ---वरना, मुझे नहीं लगता कि दांतों की तकलीफ़ों का पूरा इलाज करवाना इस देश की एक फीसदी ( जी हां, 1% only)--- जनता के भी बस की बात है । ठीक है, शायद आप समझ रहे होंगे कि पैसे का चक्कर है----दांतों का इलाज करवाना अच्छा-खासा महंगा है लेकिन इस के इलावा भी क्वालीफाइड डैंटिस्ट भी तो कहां मिलते हैं---ज़्यादातर शहरों में ही मिलते हैं और जहां तक विशेषज्ञ डैंटिस्टों की बात है अर्थात् जिन्होंने किसी स्पैशलटी में एमडीएस की रखी होती है ---ये तो अकसर बड़े शहरों में अथवा डैंटल कालेजों में ही दिखते हैं। और जहां तक डैंटल कालेजों की बात है----इन टेढ़े-मेढ़े दांतों को सीधा करवाने के लिये ब्रेसिस लगवाने के लिये उन के चार्जेज़ भी हज़ारों में हैं...जिन्हें आम आदमी अफोर्ड कर ही नहीं सकता ---वो मैं बता रहा था कि इस इलाज में इस्तेमाल होने वाला सामान ही इतना महंगा है।

तो केवल रास्ता एक ही है कि बचाव में ही बचाव है और दंत-चिकित्सक के पास जाकर नियमित तौर पर हर छःमहीने के बाद जा कर जांच करवाते रहिये ताकि काफी हद तक तकलीफ़ों से बचा जा सके ---हां, कुछ तकलीफ़े हमें कईं बार अनुवांशिक तौर पर मिलती हैं जैसे कि अगर मां के दांत बहुत बाहर की तरफ़ हैं , पिता के जबड़े की हड्डी कुछ आगे की तरफ है तो भी अगर समय रहते मां-बाप को इन बातों के बारे में सचेत कर दिया जाये तो बेहतर होता है।
वैसे आप को मेरी ओपन-ऑफर है कि आप अपनी कोई भी डैंटल परेशानी मेरे को ई-मेल कर सकते हैं ---आप को तुरंत जवाब देने का मेरा वायदा है। वैसे याहू आंसर्ज़ के मेरे इस पन्ने को भी आप कभी-कभार खंगाल सकते हैं।