बुधवार, 3 दिसंबर 2025

लिखने के लिए आईडिया कहां से आते हैं....

कल ए.सी लोकल के जिस कोच में मैं बैठा हुआ था ...सामने तीन-चार 20-22 साल के लड़कों की एक मंडली भी थी...इंगलिश में खूब हंसी-मज़ाक चल रहा था, खुल के हंस रहे थे ...हंसते हुए लोगों के साथ बैठना किसे अच्छा नहीं लगता.....

मैं ट्रेन में बैठ कर अकसर किसी अखबार के पन्ने उलट पलट लेता हूं...कल भी मैं यही कर रहा था कि अचानक मैंने सुना उन की गुफ्तगू का टॉपिक कुछ संजीदा सा हो गया है ....बात तो इंगलिश में हो रही थी..लेकिन मैं उसे हिंदी में लिख रहा हूं...

"इसलिए कहता हूं कि हर किसी इंसान के साथ बिल्कुल बात नहीं करनी चाहिए"....एक ने कहा ...

"तू सही बोलता है, ऐसे ही पक जाता है आदमी हर किसी से बात करने लगा तो" ...दूसरे ने हामी भरी 

"हां,यह बात तो है और एक और भी बड़ी बात यह है कि हर एक इंसान से अगर बात करने लगे कोई तो वह टॉप पर नहीं पहुंच सकता"....किसी और ने अपनी बात रखी...

"इसलिए जो किसी भी काम में टॉप पर है, उसी से बात करनी चाहिए....तभी तुम भी टॉप पर पहुंच पाओगे"....एक तर्क यह आया...

"सही बोला तू ...यह नहीं होता कि पहले तुम टॉप पर पहुंचोगे, फिर टॉप के लोगोंं से बात करोगे"....दूसरे साथी ने उसकी बात पर मोहर लगा दी...

इस मुद्दे पर उन की बात अभी चल ही रही थी कि मेरा स्टेशन आ गया ...और मैं उतर गया ....उन की इस गुफ्तगू का सारांश मेरे पास है ....और सुन कर मैंने करना भी क्या था....

खैर, आज मुझे इन युवाओं की बातों का ख़याल बार बार आता रहा ...हर पीढ़ी का अपना व्यू-प्वाईंट..अपना नज़रिया...ज़िंदगी को देखने का अपना नज़रिया....वैसे मुझे उन की ये बातें सुन कर ज़्यादा हैरानी भी नहीं हुई...क्योंकि महानगरों में विचरते हुए यही सब देखा भी है कि लोग अकसर हर किसी के साथ बात नहीं करते...अगर किसी मतलब की वजह से करनी भी पड़ती है तो बड़ी घुटी घुटी सी बात ....

अब इस के बारे में क्या लिखूं....किस तरह से हम लोग अनजान के साथ पेश आते हैं....और तो और वैसे भी बातचीत सामने वाली की हैसियत, कपडे़, हुलिया आदि देख कर ही की जाती है ....

चलिए, ज़माने का चलन जो है सो है ...किसी से छुपा नहीं है..लेकिन सच्चाई यह है कि अगर हम लोग हर किसी के साथ बात नहीं कर सकते या करना नहीं चाहते तो हम बहुत कुछ मिस कर जाते हैं.....

मुझे अकसर मेरे आस पास के लोग या मेरे ब्लॉग को विज़िट करने वाले पूछते हैं कि लिखने के लिए आईडिया कहां से आते हैं...कोई पूछता है कि इंस्पिरेशन कहीं से मिल जाती है....

उस का दो टूक जवाब है ...सब कुछ इस दुनिया के मेला देखते-घूमते ही मिल जाता है ....

हर किसी से बात करना है निहायत ज़रूरी ....

सिर्फ़ पहचान वालों से ही नहीं, जो नहीं भी पहचानते उन से भी अगर बात करनी पड़े तो ढंग से बात की जाए....डरिए मत, कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा... न ही कोई फायदा उठा लेगा,....ये सब बेकार की बातें हैं....

जो हम लोग कहते तो हैं कि दो इंसानों के बीच सब कम से कम दूरी है क्या है.....एक मुस्कान। बेशक, इस की एक यूनिवर्सल भाषा है...। 

जब हर किसी से बात की जाती है ..तो बातों से बात निकलती है तो कुछ नया पता चलता है ...एक कहावत और भी है कि इस कायनात में हर इंसान के पास ऐसा कुछ ज्ञान या सीख है जो आप को नहीं पता....आप उस से सीख सकते हैं। बस, बातों बातों में लिखने के आईडिया निकलते हैं। 

अख़बार, किताबें, मैगज़ीन को पढ़ने से भी बत्ती जग जाती है ....

अखबार हो या किताबें ...आईडिया इन को पढ़ते अकसर आते हैं...बहुत से आईडिया ...लेकिन अखबार किसी अच्छे स्तर की होनी चाहिए। बहुत बार उस में छपे किसी इश्तिहार, किसी तस्वीर से भी बत्ती जग जाती है....और बत्ती तो जल जाती है, फिर भी वह आईडिया कईं दिनों तक ज़ेहन की आंच में सुलगता रहता है ...जब अंगारे संभलते नहीं संभलते तो काग़ज़ पर गिर जाते हैं....

रेडियो, टीवी, सोशल मीडिया ...

इन से भी आईडिया आ जाते हैं...कोई गीत बज रहा है रेडियो पर तो गुज़रा दौर याद आ जाता है ...इसी तरह से टीवी और सोशल मीडिया पर चल रही किसी बात से भी आईडिया मिल जाते हैं...

दुनिया के मेले से बड़ी इंस्पिरेशन क्या होगी....

जी हां, इस से बड़ी इंस्पिरेशन कोई नहीं है। इस दुनिया के मेले को देखते, महसूस करते बहुत कुछ मिल जाता है ...सफर करते वक्त, बाज़ार में, सिनेमा घर में, स्कूल, कालेज, अस्पताल, ट्रेन, बस, टैंपो....क्या क्या लिखूं....जिधर देखिए आईडिया ही हैं....रास्ते पर आते जाते जो मंज़र दिख जाते हैं....मेरे लिए शायद यह भी एक बहुत बड़ी इंस्पिरेशन होती है ....किसी स्टेशन पर किसी दिव्यांग को अपने छोटे से बच्चे के साथ मस्ती करते देख कर...अगर उस की एक फोटो लेनी की गुस्ताखी कर ही ली तो फिर दिल में उठा वह उफान एक पोस्ट में ढल जाने के बाद ही शांत होता है ......ऐसी ही एक दो साल पुरानी मेरी पोस्ट यहां देखिए....मुकद्दर तो उन का भी होता है जिन के हाथ नहीं होते ... (नवंबर 2023) ...यह मुंबई के सीएसटी स्टेशन की बात है ....(लिंक तो मैंने उस पोस्ट का ढूंढ लिया है लेकिन मुझे एक दो बातों के अलावा कुछ नहीं पता कि मैंने उस में क्या लिखा हुआ है....क्योंकि मैं अपनी लिखी हुई किसी पुरानी पोस्ट को नहीं पढता, मुझे अजीब सा लगता है ....कईं बार असहजता भी होती है, इसलिए नहीं पढ़ता...बिल्कुल वैसे जैसे अकसर हलवाई अपनी मिठाई नहीं खाता...यह तो पता ही है आपको ...क्यों? )

दुनिया के मेेले में...सब की सलामती की दुआ करते चलें.....कईं बार यह जानना भी मुमकिन नहीं होता (और शायद गैरज़रुरी भी) कि सहारा किस ने किस को दे रखा है...🙏


मैंने भी आज कौन सा टॉपिक ले लिया....इतना विशाल ....कि आईडिया कहां से मिलते हैं लिखने के लिए....बस ये थोड़ा सा लिखने से बात पूरी तो क्या, शुरु भी नहीं हुई है ....क्योंकि आर्ईडिया हमारे हर तरफ़ हैं...उस के लिए किसी से बात करनी होगी, इधर-उधर-हर तरफ़ देखना होगा, अनजान इंसान को भी एक मुस्कान देने से डऱना न होगा.....

फिर से कालेज के लड़कों की बात याद आ रही है....पहले कंप्यूटर आने से युवा पीढ़ी लिखने से भागने लगी....अब बोलचाल भी कम ही है...यह सिर्फ उन कालेज के युवाओं की बात नहीं है, आज की पीढ़ी के पास बातें ही नहीं हैं, सिर्फ हॉय-बॉय....कूल, थम्स-अप के ईशारे और हर मौके के लिए बीसियों ई-मोजी.....क्या इतना ही काफ़ी है...

मैंने ऊपर एक शीर्षक लिखा है ...दुनिया का मेला...लीजिए, उस से मुझे मेरे बचपन के ज़माने का एक सुपर हिट गीत याद आ गया...दुनिया का मेला मेले में लड़की ....1972 की फिल्म राजा जानी, धर्मेन्द्र और हेमा मालिनी पर फिल्माया गया...इस गीत के हमारे लिए ये मायने हैं कि इसे हम लोगों ने रेडियो-ट्रांजिस्टर पर, और किसी शादी, त्योहार, समारोह कै दौरान घरों की छतों पर बड़े ब़ड़े स्पीकरों पर बजते खूब सुना.....अच्छा लगता था इसे सुनना, अभी भी लगता है...कितनी रौनक है इस गीत में ....सच में दुनिया का मेला ही लगा हुआ लगता है ....