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बोली इस तरह की भी देखी सुनी ... कुछ राज्यों में कुछ चिकित्सा ईकाईयों को ठेके पर चलाने के लिए दिया गया, और यह भी बोली के आधार पर ही होता है।
कभी कभी अखबार में यह भी दिख जाता है कि किसी ट्रेन में जो डाक्टरी टीम जायेगी उस का भी ठेका सा ही दे दिया जाता है।
ठीक है, विचार आते हैं... जाते हैं.... विचारों का क्या है, लेकिन कुछ दिन पहले टाइम्स ऑफ इंडिया में एक विज्ञापन देख कर तो मैं दंग रह गया। मैंने ऐसा विज्ञापन पहले कभी नहीं देखा था। श्रीमति जी ने भी यही कहा कि उन्होंने भी डाक्टरों की भर्ती से संबंधित ऐसा विज्ञापन पहले नहीं देखा।
केन्द्र सरकार के अंतर्गत एक अस्पताल में शिशु रोग विशेषज्ञ, फ़िज़िशियन, दंत चिकित्सक, महिला चिकित्सा अधिकारी, लैब टैक्नीशियन, क्लीनिकल साईकॉलोजिस्ट एक वर्ष के लिए भर्ती किये जाने हैं।
अस्पताल का नाम मैं यहां नहीं लिख सकता........
हर पोस्ट के आगे लिखा था कि कौन से डाक्टर को हफ्ते में कितने दिन कितने घंटे के लिए एंगेज किया जायेगा।
यहां तक तो ठीक था, लेकिन अगली बात बहुत ही अजीब सी लगी.......
"The candidates are required to intimate their remuneration (payment) they expect per visit for the fixed duration. The candidate will be selected based on lowest payment per visit asked by them/negotiated and personal interview at the time of selection."
"आवेदनकर्ता यह सूचित करें कि वे प्रत्येक विज़िट के लिए कितनी रकम की अपेक्षा करते हैं। आवेदनकर्ताओं का चयन सब से कम मांगी गई रकम एवं साक्षात्कार के आधार पर किया जायेगा।"बहुत महसूस हुआ यह विज्ञापन देख कर........कोई न्यूनतम् रेट नहीं, कोई फिक्स रेट नहीं कि हम इतना मानदेय देंगे ... और फिर इंटरव्यू में आने वालों में से जो प्रशासन के मापदंडों पर सही उतरें, उन की नियुक्ति कर ली जाए।
मैं सोच रहा हूं कि क्या मैडीकल वर्करों की भर्ती के लिए इस तरह की बोली लगवाना सही है?
विज्ञापन में लिखा तो है ना कि चयन सब से कम मांगी गई फीस एवं साक्षात्कार के आधार पर किया जायेगा लेकिन सब के कम मांगी गई फीस को कभी भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जायेगा, मुझे ऐसा लगता है। विजिलेंस के डर से, नहीं तो ऑडिट के झंझट से बचने के लिए न्यूनतम् फीस मांगने वालों को ही अकसर रख लिया जाता है क्योंकि सरकारी तंत्र में इस से सेफ़ कोई रास्ता किसी को दिखता नहीं।
अब बात यह उठती है कि क्या यह सब से सस्ता डाक्टर जो भर्ती किया जाता है, क्या यह मरीज़ों के हितों के लिए ठीक होता है?...आप स्वयं इस का निर्णय कर सकते हैं। पहली बात तो यह है कि मैं अनुभव के आधार पर यह कह सकता हूं कि इस तरह की भर्ती के लिए अकसर वे लोग ही अप्लाई करते हैं जिन की प्राईव्हेट प्रैक्टिस ठीक नहीं चल रही हो। वरना कौन सा काम धंधे वाला चिकित्सक अपने कीमती ३ घंटे (आने जाने का समय जोड़ें तो आधा दिन ही हो गया)...इस तरह की पोस्ट के लिए देना चाहता है?
एक बात तो यह है कि सब से कम कीमत में जो इस तरह के काम के लिए आयेगा उस की अपनी निजी प्रैक्टिस कम चल रही होगी...कारण कुछ भी हो सकते हैं, पर्याप्त अनुभव का अभाव या फिर कुछ अन्य कारण जिस के बारे में यध्यपि यहां उपर्युक्त न होगा, लेकिन फिर भी लोग समझते हैं। और एक कारण हो सकता है कि जो न्यूनतम् रेट पर इस तरह की व्यवस्था के अधीन काम करने आयेगा, उस का उद्देश्य यह भी हो सकता है कि चलो जब सरकारी अस्पताल के मरीज़ उस के प्राईव्हेट क्लीनिक में आना शुरू हो जाएंगे तो भरपाई अपने आप हो ही जाएगी।
ऐसे में मरीज़ के हित में क्या है? मेरा व्यक्तिगत विचार यह है कि इस तरह के बोली के आधार पर डाक्टरों की भर्ती का जो नया फैशन चल निकला है, उस पर रोक लगनी चाहिए....... इतनी प्रोफैशनली क्वालीफाईड कम्यूनिटी के साथ ऐसा कैसे चल सकता है।
आप हर पोस्ट का एक मानदेय नियत करें और उसे विज्ञापन में दर्शा दें........जिसे ठीक लगेगा वह अप्लाई करेगा, और जो आएंगे उन में से आप सर्वश्रेष्ठ को ले लें।
इस तरह की व्यवस्था जिस में डाक्टरों को एक तरह से बोली लगाने को कहा जा रहा है.. अजीब सी बात लगती है क्योंकि मैं अकसर विभिन्न जगहों पर इंटरव्यू लेने जाता रहता हूं और पार्ट-टाइम दंत चिकित्सक की एक पोस्ट के लिए ४०-५० से लेकर ६०-७० उम्मीदवार तो आते ही हैं। अब अगर सोचें कि अगर हम लोग उन्हें हम भी २०हज़ार रूपये के मानदेय के स्थान पर अपना अपना स्वीकार्य मानदेय लिख कर भेजने को कहेंगे तो क्या होगा........कल्पना करिए कि कैसे हो पायेगा फिर सही उम्मीदवार का चयन ...अगर न्यूनतम् बोली को ही प्राथमिकता दी जायेगी।
विभिन्न कारणों से मुझे तो बहुत बार ऐसा लगता है कि लोग मुफ्त में भी दो-तीन घंटे सरकारी अस्पतालों में काम करने को सहमत हो जाएंगे।