कल मेरी मां रात को अपने हाथों पर नींबू घिस रही थीं...अचानक उन का ध्यान आसाराम की तरफ़ चला गया (क्योंकि इस तरह के टोटके वह खूब बांटते थे) और कहने लगीं कि समय समय की बात होती है...एक ज़माना था हज़ारों लाखों की संख्या में लोग उस के आने पर जुट जाया करते थे ..लेिकन फिर अचानक कैसे बिल्कुल पत्ता ही कट जाता है और कहने लगीं कि सुख के सब साथी...दुःख में ना कोई। सब कैसे किनारा कर लेते हैं। सोचता तो मैं भी हूं आसाराम के बारे में और उस के लाडले के बारे में ...लेकिन अब सोचने के लिए कुछ रह नहीं गया.
लेकिन अभी रामदेव के बारे में मैं कईं बार बहुत कुछ सोचता हूं। मैं अकसर सोचता हूं कि यह बंदा किस शिखर पर था और कहां से कहां ....। ठीक है, कल हरियाणा सरकार ने रामदेव को कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया...पहले हरियाणा शासन ने इन्हें ब्रॉंड अम्बेसेडर बना दिया..लेकिन अगर कपिल सिब्बल और चिदंबरम के साथ वह वाली मीटिंग न होती ..जिस में रामदेव कुछ पर्चा लिख कर दे आए थे...और एक वह रात जिस में रामलीला मैदान से रामदेव उठ कर रात को भाग लिए....उस दिन के बाद तो बस....। मुझे पता नहीं क्यों ऐसा लगता है कि कपिल सिब्बल और चिदंबरम अगर बाबा रामदेव की जन्मपत्री में ना होते तो आज बाबा कम के कम भारत के केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री तो बने ही होते। लेकिन आज बाबा की वे पांच सौ और हज़ार रूपये को बंद करवाने वाली बातें भी नहीं सुन रहीं!
रामदेव के योग शिविरों के बारे में यह सुन कर मेरे को बहुत अजीब लगता था कि आगे आगे वही लोग बैठते हैं जो हज़ारों के टिकट खरीदा करते थे ...पता नहीं अब भी यह सिलसिला चालू होगा लेकिन कुछ साल पहले तक तो मैं सुना ही करता था। योग विद्या जैसे अनमोल ज्ञान को हम पैसे से जोड़ कर देखें ...इस की कल्पना भी कैसे की जा सकती है? ...मुझे तब भी यह बात अजीब लगती थी...लेिकन जो था वह था ...क्या कर सकते थे! एक ध्यान यह भी आता है कि बिना पैसे के इस तरह के आयोजन किए भी कैसे जा सकते हैं !
फिर पतंजलि की दुकानें खुल गईं...अच्छा लगता था वहां जाकर आंवला कैंडी, शैंपू, साबुन, शक्कर, दलिया, आटा, मुलैठी, चूर्ण-वूरन ...पता नहीं क्या क्या ...खरीदना...लेकिन फिर कुछ समय बाद वहां जा कर एक किरयाना स्टोर जाने की फील आने लगी।
यहां लखनऊ भी इन की दुकानों पर
जाते हैं तो देखते हैं लोग तरह तरह के मसाले, साबुन, धनिया पावडर वहीं से ले रहे होते हैं....कईं बार तो अब मन में यही विचार आता है कि अब तो ये किराना की दुकानें लगने लगी हैं। और यह तस्वीर कल एक व्हाट्सएप ग्रुप तो मिली तो यही लगा कि पतंजलि में इतनी वैरायटी देख कर लोगों की अपेक्षाएं भी किस कद्र बढ़ती जा रही हैं।
जाते हैं तो देखते हैं लोग तरह तरह के मसाले, साबुन, धनिया पावडर वहीं से ले रहे होते हैं....कईं बार तो अब मन में यही विचार आता है कि अब तो ये किराना की दुकानें लगने लगी हैं। और यह तस्वीर कल एक व्हाट्सएप ग्रुप तो मिली तो यही लगा कि पतंजलि में इतनी वैरायटी देख कर लोगों की अपेक्षाएं भी किस कद्र बढ़ती जा रही हैं।
जो भी है, बाबा रामदेव ने लोगों को सुबह पांच बजे उठने की आदत डाल दी ...और योगाभ्यास करवा दिया....मुझे अच्छे से याद है िक आज से १४-१५ बरस पहले जब इन के कैंप टीवी पर दिखाए जाते थे ..तो इन के पेट को अंदर-बाहर करते देख कर मेरा तीन-चार साल का बेटा भी बिल्कुल वैसा ही करने लगा था। हम लोग पूरा परिवार पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार भी दो बार हो कर आ चुके हैं...बहुत अच्छा अनुभव रहा था वहां जाने का।
रामदेव वैसे एक कुशल बिजनेसमेन भी हैं....अब ऐसा लगता है ...और ऐसे करने में कोई बुराई भी नहीं...कम से कम उस ने उन चीज़ों से जनता को रू-ब-रू तो करवा दिया जिन्हें हम ने देखा तक नहीं था....आंवला कैंडी खाते खाते बच्चों ने आंवले का स्वाद तो चखा, जौं का दलिया मेरे जैसों को भा गया.....शायद और कहीं तो इसे बिकता नहीं देखा.....और मुलैठी क्वाथ (मुलैठी छोटे छोटे टुकड़ों में कटी हुई)...जिसे मेरे जैसे लोग बचपन ही से गले खराब होने की अवस्था में चूस लेते हैं...इस तरह के बहुत से उत्पादन हैं जिन के लिए रामदेव निःसंदेह साधुवाद के पात्र हैं।
कुछ कुछ बातें थोड़ा कचोटती हैं.....पक्के बिजनैसमेन जैसी बातें कईं बार ठीक नहीं लगती....मैं कईं बार देखा कि कुछ लोग आंवला कैंड़ी के दस-बारह रूपये के पाउच की मांग करते हैं...पहले ये लोग वे पाउच बेचा करते थे...अब वे बड़ा डिब्बा ही बेचते हैं...जो काफी महंगा होता है...हर व्यक्ति की अपनी जेब की क्षमता है।
परसों भी जब मैं जौ का दलिया खरीद रहा था तो दो युवक आए....उन्होंने केशकांति शैंपू के एक-दो रूपये के पाउच के बारे में पूछा...यही कालेज में पढ़ रहे होंगे... जवाब मिला कि अब नहीं पाउच मिलते। यह बात मुझे ठीक नहीं लगी....पतंजलि औषधालय को मार्कीट के गुर अभी सीखने की ज़रूरत है ... किस तरह से अन्य शैंपू बाज़ार में एक एक दो दो रूपये मे बिकते हैं ...फिर इन्हें क्या दिक्कत है। और नहीं तो अमूल कंपनी से ही सीख ले ली जाए.....वह तो बहुत बड़ा ब्रांड है.....लेकिन मैंने कुछ महीने पहले देखा कि उन्होंने भी पांच पांच रूपये के दूध के पैकेट भी तैयार कर रखे हैं....कम से कम यार कोई पांच रूपये खर्च कर ढंग की चाय तो पी ही सकता है ! ज़ाहिर सी बात है इस तरह का कोई भी काम कोई कंपनी बिना मुनाफे के नहीं करती, लेकिन इतनी संवेदना और इस तरह के सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाह करना ही बड़ी बात है।
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की देखादेखी हम सब को भी मन की बात कहने की लत लगती जा रही है....जैसे कि आज मेरे को मन हुआ रामदेव की बात करने का।
एक बात मैं जाते जाते कहना चाहता हूं कि पतंजलि की पेस्ट और मंजन इस्तेमाल करने की मैं कभी किसी को सलाह नहीं दूंगा....कुछ साल पहले मैं चुप रहता था जब कोई इस के इस्तेमाल की बात किया करता था... लेिकन फिर धीरे धीरे जैसे ही मैंने इस पेस्ट मंजन की वजह से लोगों के दांतों को घिसते देखा तो मैंने मना करना शुरू कर दिया।
अब मैंने कोई सिस्टेमेटिक रिसर्च तो की नहीं ...कि मेरे से पतंजलि वाले ही पूछ लें कि तेरे पास क्या प्रूफ़ है....वैसे कोई डाक्यूमेंटेड प्रूफ तो है नहीं ...लेकिन हर चीज़ के वह हो भी नहीं सकता....सुबह से शाम अगर मंजन-पेस्ट-ब्रुश की ही बातें कर रहे हैं और मुंह के अंदर ही झांक रहे हैं तो हमारी बात में यार कुछ तो दम होगा......बस उसी दम पर यह बात कह रहा हूं.....I don't have any conflict of interest....हां, मेरी मां की एक उदाहरण है, उन्होंने चार पांच साल पहले इसी मंजन-पेस्ट को शुरू किया...पहले उन के दांत एक दम सही थे...लेकिन इस चक्कर में उनके आगे के दांत ऐसे घिसे की अपने आप टूट ही गए....यहां पर वह बात बिल्कुल लागू नहीं होती कि घर का जोगी जोगड़ा....अगर मैंने अपनी मां को कहा होता कि ये मंजन पेस्ट मत इ्स्तेमाल करें तो वह मेरी बात मान लेतीं.....सच तो यह है कि मुझे भी तब नहीं पता था कि इनके मंजन पेस्ट इतने खुरदरे हैं...लेकिन उस के बाद मैं अपने मरीज़ों को बराबर इस तरह के खुरदरे मंजनों के बारे में सचेत करने लगा......ये पतंजलि के मंजन-पेस्ट की ही बात नहीं है....बहुत सी अन्य प्रसिद्ध कंपनियों के मंजन पेस्ट भी दांतों का घिसा देते हैं। मेन मुद्दा है इन पेस्ट मंजनों में गेरू मिट्टी मिली होती है ...अब गेरू के दांतों पर घिसा जाएगा तो क्या परिणाम निकलेगा, क्या यह बताने की ज़रूरत है!
एक बात और भी है ..जिस देश में आज की तारीख में कोई एमपी यह कह सकता है कि तंबाकू से कैंसर नहीं होता है...अगर कोई कल को इस पोस्ट के जवाब में उठ कर यह कहे कि नहीं, इस तरह के मंजनों से दांत नहीं घिसते....तो भाई मेरी उस से भी कोई तकरार नहीं है, मैं हाथ जोड़ कर यही कहूंगा कि जो मेरे अनुभव थे...वे मैंने दर्ज कर दिए हैं, आप की जो इच्छा हो इस्तेमाल करिए, कौन मना कर रहा है!
जब मैंने किसी मरीज़ को इस तरह के पेस्ट मंजन से दूर रहने की हिदायत देनी होती है ... तो मैं बात को ऐसे शुरू करता हूं ...बाबा रामदेव बहुत अच्छा इंसान है, उन की सभी दवाईयां आदि बहुत बढ़िया हैं लेकिन बस आप पतंजलि के पेस्ट और मंजन को इस्तेमाल न करें। आप उन के कहे अनुसार जीवनयापन करिए...खाना पीना रामदेव के कहे अनुसार खाएं, योगाभ्यास करें, प्राणायाम् करें और प्रसन्नचित रहिए।
बाबा रामदेव, बालकृष्ण और आंवला कैंड़ी पर छः सात साल पहले अपने मन के भाव मैंने इस ब्लॉग पर सहेजे थे....अब उस समय मेरा क्या ओपिनियन था...आप स्वयं पढ़ लीजिए....नीचे लिंक दे रहा हूं.....किसी भी पुराने लेख में मैं कभी भी कोई बदलाव नहीं करता.....
अब बात आती है ...रिकार्ड लगाने की ..कौन सा लगाऊं इस तरह की पोस्ट के बाद.... अपुन के दिमाग के मेमोरी कार्ड में बस हिंदी फिल्मी के मुखड़े भरे पड़े हैं....आप एक शब्द बोलें...पानी, संयासी, बचपन, बुढापा, प्यार, मोहब्बत....अगले सैकेंड में गीत पेश होगा.......
अब इस समय मुझे लग रहा है कि यह गीत ठीक रहेगा.....राम चंद्र कह गये सिया से...फिल्म गोपी....बचपन में कईं बार देखी हुई एक अच्छी साफ-सुथरी फिल्म..