पिछले कुछ दिनों में ऐसे तीन केस मेरी नज़र में आये जिन में बस पहली बार ही पेट में दर्द हुआ --दर्द ज़्यादा था, अल्ट्रासाउंड करवाया गया तो पता चला कि दो केसों में गुर्दे में पत्थरी है और एक केस में किसी दूसरी तरह की रूकावट (stricture) है।
एक केस तो लगभग बीस साल के लड़के का--- पहले कोई समस्या नहीं, बस एक बार पेट में दर्द उठा, पेशाब में जलन ---और अल्ट्रासाउंड करवाने पर पता चला कि पत्थरी तो है ही लेकिन इस की वजह से दायें गुर्दे में पानी भी भर गया है ---अब यह देसी जुगाड़ वाली भाषा ही बड़ी खतरनाक है--- मुझे कईं बार लगता है कि डाक्टरों एवं पैरामैडीकल लोगों का एक विषय यह भी होना चाहिये कि प्रादेशिक भाषाओं में मरीज़ को कैसे बताना है कि उसे क्या तकलीफ़ है, अब जो तकलीफ़ है, वह तो है लेकिन कईं बार इतने लंबे लंबे से डरावने नाम सुन के मरीज के साथ साथ उस के संबंधी भी लड़ाई से पहले ही हिम्मत हार जाते हैं।
हां, तो हम लोग उस बीस साल के लड़के की बात कर थे जिसे स्टोन तो है और इस के साथ उस के एक गुर्दे में पानी भर गया है --इसे मैडीकल भाषा में हाइड्रोनैफरोसिस (hydronephrosis) कहते हैं। इस तरह की हालत के बारे में सुन कर किसी का भी थोड़ा हिल सा जाना स्वाभाविक सा है।
और एक दूसरे केस में जिस की उम्र लगभग पचास साल की थी उस में भी पेट दर्द ही हुआ था और जांच करने पर पता चला कि एक गुर्दे में पानी भरा हुआ है और इस की वजह कोई रूकावट लग रही थी ---जब उस ने रंगीन एक्स-रे ( IVP --intravenous pyelogram) करवाया तो पता चला कि किसी स्ट्रिक्चर (stricture) की वजह से यह तकलीफ हो रही है।
आप भी सोच रहे होंगे कि यह क्या हुआ ---पहले से कोई तकलीफ़ नहीं, बस एक बार पेट में दर्द हुआ और पता लगा कि यहां तो कोई बड़ा लफड़ा है।
एक बात तो तय है कि 35-40 की आयु के आसपास तो हम सब को अपनी नियमित जांच करवानी ही चाहिये और कईं बार उस में पेट का अल्ट्रासाउंड (ultrasonography of abdomen) भी शामिल होता है।
अकसर देखने में आया है कि अल्ट्रासाउंड की इस तरह की रिपोर्ट आने के बाद भी कईं बार उसे इतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता। यही सोच कर कि कोई बात नहीं, अपने आप देसी दवाई से सब ठीक हो जायेगा।
लेकिन एक बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि दवा देसी हो या ऐलोपैथिक --एक तो अपने आप नहीं और दूसरा किसी क्वालीफाई डाक्टर के नुख्से द्वारा ही प्राप्त की जानी चाहिये। वरना बीमारी लंबी खिंच जाती है।
अब उस 20 साल के लड़के की ही बात करें ---अल्ट्रासाउंड करवाने के बाद उसे चाहिये कि किसी सर्जन से मिले जो ज़रूरी समझेगा तो रंगीन एक्स-रे करवायेगा ताकि पत्थरी से ग्रस्त गुर्दे के बारे में और भी कुछ जाना जा सके। और फिर प्लॉन किया जा सके को पत्थरी किस तरह से निकालनी है।
अब यह सोचना स्वाभाविक है कि पहेल अल्ट्रासाउंड, फिर रंगीन एक्स-रे और फिर ब्लड-यूरिया, सीरम किरैटीनिन ( Blood urea, Serum creatinine etc) --- इतने सारे टैस्ट ही परेशान कर देंगे। लेकिन यह गुर्दे की सेहत को समझने के लिये नितांत आवश्यक हैं।
अल्ट्रासाउंड से तो पता चल गया कि गुर्दे की बनावट कैसी है, वह अपने सामान्य आकार से बड़ा है या कम है, बड़ा है तो उस के बड़े होने का कारण क्या है, क्या उस में पानी भरा हुया है, अगर हां, तो गुर्दे के किन किन हिस्सों में पानी भरा हुया है, और अल्ट्रासाउंड से यह भी पता चलता है कि पत्थरी है तो कहां पड़ी है, उस का साईज़ कितना है, क्या आयुर्वैदिक दवाईयों से उस का अपने आप बाहर निकलने का कोई चांस है या नहीं, क्या यह केस लिथोट्रिप्सी (lithotripsy -- किरणों से पत्थरी की चूरचूर कर देना) के लिये सही है या फिर इस में सर्जरी करनी चाहिये।
इतने सारे निर्णय कोई भी चिकित्सक एक अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट देख कर ही नहीं कर पाता --- उस के लिये उसे कईं तरह के और टैस्ट भी करने होते हैं। पेट का रंगीन एक्स-रे (IVP -- intravenous pyelography) करने से उस के गुर्दे के बारे में एवं उस के आस पास के एरिया के बारे में डाक्टर और भी बहुत सी जानकारी इक्ट्ठी करता है ताकि बीमारी का डॉयग्नोसिस एकदम सटीक हो।
और अब अगर चिकित्सक को यह देखना हो कि इस के गुर्दों की कार्य-क्षमता क्या है, ये काम कैसे कर रहे हैं, इसके लिये उसे मरीज के रक्त की जांच करवानी पड़ती है जिस के द्वारा उस के शरीर में ब्लड यूरिया एवं सीरम क्रिटेनिन आदि के स्तर का पता चलता है जिस के द्वारा यह पता चलता है कि इस के गुर्दे कितनी कार्यकुशलता से अपना काम कर रहे हैं।
यह सब को देख लेने के बाद चिकित्सक निर्णय लेते हैं कि आगे क्या करना है। वैसे आप को यह लगता होगा कि अगर किसी को इस तरह की तकलीफ़ हो तो उसे जाना कहां चाहिये ----जो डाक्टर गुर्दे के आप्रेशन इत्यादि करते हैं उन्हें यूरोलॉजिस्ट कहते हैं ---Urologist --- अगर अल्ट्रासाउंड में पत्थरी होने की पुष्टि हो गई है तो यूरोलॉजिस्ट के पास जाना ही मुनासिब है। यह जो यूरोलॉजी सुपर-स्पैशलिटी है इसे सामान्य सर्जरी (MS general surgery) की डिग्री लेने के बाद तीन साल की एक और डिग्री (MCh) करने के बाद किया जाता है।
वैसे देखा गया है कि कुछ सामान्य सर्जन भी गुर्दे संबंधी सर्जरी में अच्छे पारंगत होते हैं ---सारा अनुभव का चक्कर है, अपनी अपनी रूचि की बात है---इसलिये बहुत बार अच्छे अनुभवी सामान्य सर्जन भी इस तरह की सर्जरी से मरीज़ को ठीक ठाक कर देते हैं।
मुझे ऐसा लगता है और जो मरीज़ मेरे पास किसी तरह के मशवरे के लिये आते हैं उन्हें मैं यह सलाह देता हूं कि तीन चार भिन्न भिन्न जगह दिखा कर ही कोई निर्णय लें ---जैसे कि पहले तो किसी सर्जन से बात कर लें, फिर यूरोलॉजिस्ट को दिखा लें, और अगर लगे कि किसी आयुर्वैदिक विशेषज्ञ से भी बात की जाए तो ज़रूर करें क्योंकि ऐसा सुना है कि छोटी मोटी पत्थरी के लिये आयुर्वैदिक दवाई भी बहुत काम करती हैं। और ज़रूरत महसूस हो तो लित्थोट्रिप्सी सैंटर में जाकर दिखा आने में भी कोई खराबी नहीं -----सब विशेषज्ञों की सलाह के बाद अपना मन बनाया जा सकता है। लेकिन वही मिलियन डॉलर प्रश्न ----आखिर आम बंदा यह च्वाईस हो तो कैसे करे? कईं बार बस रब पर ही सब कुछ छोड़ना पड़ता है ---- मेरी एक बार कोई सर्जरी होनी थी, यूरोलॉजिस्ट करने ही वाले थे कि एक बहुत अनुभवी जर्नल सर्जन ओटी में किसी काम से घुसे और उन्होंने मेरे केस को देख कर चाकू अपने हाथ में ले लिया ----क्योंकि उन्हें देखते ही लगा कि यह यूरोलॉजी का केस नहीं है, यह गैस्ट्रोइंटैसटाइनल ट्रैक्ट का केस था जिस में उन्हें विशेष महारत हासिल थी। होता है , कभी कभी ऐसा भी होता है। आज भी हम लोग जब उस दिन को याद करते है तो यही सोचते हैं कि अपनी होश्यारी कम ही चल पाती है, पता नहीं कब कौन सा फरिश्ता किस मुश्किल से निकालने कहां से आ जाता है !! है कि नहीं ?
हां, तो उस लड़के के गुर्दे में पानी भरे जाने की बात हो रही थी ---ऐसा इसलिये होता है कि चूंकि पेशाब के बाहर निकलने के रास्ते में अवरोध होता है इसलिये वह वापिस बैक मारता है और गुर्द मे यह सब जमा होने से गुर्दे फूल जाते हैं।
लेकिन अगर एक ही तरफ़ के गुर्दे में यह हाइड्रोनैफरोसिस की शिकायत है तो पत्थरी इत्यादि से निजात मिल जाने के बाद गुर्दा वापिस सामान्य होने लगता है।
इस में सब से अहम् बात यह है कि किसी तरह की देरी नहीं होनी चाहिये --क्योंकि गुर्दे के रोग इस तरह के हैं कि कईं कई साल तक ये बिना किसी लक्षण के पनपते रहते हैं और अचानक गुर्दे फेल होने के साथ धावा बोल देते हैं।
इस लिये गुर्दे के रोगों से बचाव बहुत ज़रूरी है --- और अगर कोई तकलीफ़ है तो उस का तुरंत उपचार ज़रूरी है। हा, हम ने यूरोलॉजिस्ट के बारे में तो बात कर ली, गुर्दे का एक विशेषज्ञ होता है ---नैफरोलॉजिस्ट (Nephrologist) जो दवाईयों आदि से मरीज़ के गुर्दे का उपचार करता है--- नैफरोलॉजिस्ट ने सामान्य MD (general Medicine) करने के बाद तीन साल की DM( Nephrology) का कोर्स किया होता है।
अब इस में कोई कंफ्यूजन नहीं होना चाहिये कि कोई तकलीफ़ होने पर यूरोलॉजिस्ट के पास जाया जाए अथाव नैफरोलॉजिस्ट के पास। जिस तरह की तकलीफॉ है उस तरह के स्पैशलिस्ट के पास ही जाना होगा ---- अब उदाहरण देखिये कि अगर सर्जन कहता है कि किसी व्यक्ति के गुर्दे में ऐसी कोई तकलीफ़ नहीं है जिस का आप्रेशन करने की ज़रूरत है लेकिन उस बंदे के गुर्दों की सेहत अल्ट्रासाउंड से और ब्लड-टैस्ट द्वारा पता चलता है कि ठीक नहीं है, ऐसे में उसे नैफरोलॉजिस्ट के पास भेजा जाता है। यही कारण है कि नैफरोलॉजिस्ट विशेषज्ञों के पास ब्लड-प्रैशर एवं डायबीटीज़ आदि रोगों से ग्रस्त ऐसे लोग बहुत संख्या में पहुंचते हैं जिन के गुर्दे में इन रोगों की वजह से थोड़ी गड़बड़ होने लगती है।
बड़े बड़े कारपोरेट हस्पतालों में तो सभी तरह के विशेषज्ञ यूरोलॉजिस्ट, लैपरोस्कोपिक सर्जन ( जो दूरबीन द्वारा गुर्दे आदि के आप्रेशन करते हैं), नैफरोलॉजिस्ट, लित्थोट्रिप्सी सैंटर आदि सभी कुछ रहता है ---- बस, मरीज़ की हालत, ज़रूरत एवं उस की जेब पर काफी कुछ निर्भर करता है।
लेकिन सोचने की बात है कि ये तकलीफ़े आजकल इतनी बढ़ क्यों गई हैं ----हम सब कुछ लफड़े वाला ही खा -पी रहे हैं, कोई कितने भी ढोल पीट ले, लेकिन हर तरफ़ मिलावट का बाज़ार गर्म है-----ऐसे में बड़े बड़ो की छुट्टी हो जाती है, अब गुर्दे भी कितना सहेंगे ---------- लेकिन जितना हो सके जितना अपनी तरफ़ से कोशिश हो बच सकें, बाकी तो प्रभु पर छोड़ने के अलावा क्या कोई चारा है?
बातें तो बहुत सी हो गईं लेकिन इस पोस्ट के शीर्षक का जवाब मेरे पास नहीं है ---पंजाब में अकसर लोग किसी की तारीफ़ के लिये भी यह कह देते हैं ----ओए यार, एस बंदे का बड़ा वड्डा गुर्दा ए -- (इस आदमी का गुर्दा बहुत बड़ा है) ---पता नहीं, यह कहावत कहां से चली ?
एक केस तो लगभग बीस साल के लड़के का--- पहले कोई समस्या नहीं, बस एक बार पेट में दर्द उठा, पेशाब में जलन ---और अल्ट्रासाउंड करवाने पर पता चला कि पत्थरी तो है ही लेकिन इस की वजह से दायें गुर्दे में पानी भी भर गया है ---अब यह देसी जुगाड़ वाली भाषा ही बड़ी खतरनाक है--- मुझे कईं बार लगता है कि डाक्टरों एवं पैरामैडीकल लोगों का एक विषय यह भी होना चाहिये कि प्रादेशिक भाषाओं में मरीज़ को कैसे बताना है कि उसे क्या तकलीफ़ है, अब जो तकलीफ़ है, वह तो है लेकिन कईं बार इतने लंबे लंबे से डरावने नाम सुन के मरीज के साथ साथ उस के संबंधी भी लड़ाई से पहले ही हिम्मत हार जाते हैं।
हां, तो हम लोग उस बीस साल के लड़के की बात कर थे जिसे स्टोन तो है और इस के साथ उस के एक गुर्दे में पानी भर गया है --इसे मैडीकल भाषा में हाइड्रोनैफरोसिस (hydronephrosis) कहते हैं। इस तरह की हालत के बारे में सुन कर किसी का भी थोड़ा हिल सा जाना स्वाभाविक सा है।
और एक दूसरे केस में जिस की उम्र लगभग पचास साल की थी उस में भी पेट दर्द ही हुआ था और जांच करने पर पता चला कि एक गुर्दे में पानी भरा हुआ है और इस की वजह कोई रूकावट लग रही थी ---जब उस ने रंगीन एक्स-रे ( IVP --intravenous pyelogram) करवाया तो पता चला कि किसी स्ट्रिक्चर (stricture) की वजह से यह तकलीफ हो रही है।
आप भी सोच रहे होंगे कि यह क्या हुआ ---पहले से कोई तकलीफ़ नहीं, बस एक बार पेट में दर्द हुआ और पता लगा कि यहां तो कोई बड़ा लफड़ा है।
एक बात तो तय है कि 35-40 की आयु के आसपास तो हम सब को अपनी नियमित जांच करवानी ही चाहिये और कईं बार उस में पेट का अल्ट्रासाउंड (ultrasonography of abdomen) भी शामिल होता है।
अकसर देखने में आया है कि अल्ट्रासाउंड की इस तरह की रिपोर्ट आने के बाद भी कईं बार उसे इतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता। यही सोच कर कि कोई बात नहीं, अपने आप देसी दवाई से सब ठीक हो जायेगा।
लेकिन एक बात का ध्यान रखना ज़रूरी है कि दवा देसी हो या ऐलोपैथिक --एक तो अपने आप नहीं और दूसरा किसी क्वालीफाई डाक्टर के नुख्से द्वारा ही प्राप्त की जानी चाहिये। वरना बीमारी लंबी खिंच जाती है।
अब उस 20 साल के लड़के की ही बात करें ---अल्ट्रासाउंड करवाने के बाद उसे चाहिये कि किसी सर्जन से मिले जो ज़रूरी समझेगा तो रंगीन एक्स-रे करवायेगा ताकि पत्थरी से ग्रस्त गुर्दे के बारे में और भी कुछ जाना जा सके। और फिर प्लॉन किया जा सके को पत्थरी किस तरह से निकालनी है।
अब यह सोचना स्वाभाविक है कि पहेल अल्ट्रासाउंड, फिर रंगीन एक्स-रे और फिर ब्लड-यूरिया, सीरम किरैटीनिन ( Blood urea, Serum creatinine etc) --- इतने सारे टैस्ट ही परेशान कर देंगे। लेकिन यह गुर्दे की सेहत को समझने के लिये नितांत आवश्यक हैं।
अल्ट्रासाउंड से तो पता चल गया कि गुर्दे की बनावट कैसी है, वह अपने सामान्य आकार से बड़ा है या कम है, बड़ा है तो उस के बड़े होने का कारण क्या है, क्या उस में पानी भरा हुया है, अगर हां, तो गुर्दे के किन किन हिस्सों में पानी भरा हुया है, और अल्ट्रासाउंड से यह भी पता चलता है कि पत्थरी है तो कहां पड़ी है, उस का साईज़ कितना है, क्या आयुर्वैदिक दवाईयों से उस का अपने आप बाहर निकलने का कोई चांस है या नहीं, क्या यह केस लिथोट्रिप्सी (lithotripsy -- किरणों से पत्थरी की चूरचूर कर देना) के लिये सही है या फिर इस में सर्जरी करनी चाहिये।
इतने सारे निर्णय कोई भी चिकित्सक एक अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट देख कर ही नहीं कर पाता --- उस के लिये उसे कईं तरह के और टैस्ट भी करने होते हैं। पेट का रंगीन एक्स-रे (IVP -- intravenous pyelography) करने से उस के गुर्दे के बारे में एवं उस के आस पास के एरिया के बारे में डाक्टर और भी बहुत सी जानकारी इक्ट्ठी करता है ताकि बीमारी का डॉयग्नोसिस एकदम सटीक हो।
और अब अगर चिकित्सक को यह देखना हो कि इस के गुर्दों की कार्य-क्षमता क्या है, ये काम कैसे कर रहे हैं, इसके लिये उसे मरीज के रक्त की जांच करवानी पड़ती है जिस के द्वारा उस के शरीर में ब्लड यूरिया एवं सीरम क्रिटेनिन आदि के स्तर का पता चलता है जिस के द्वारा यह पता चलता है कि इस के गुर्दे कितनी कार्यकुशलता से अपना काम कर रहे हैं।
यह सब को देख लेने के बाद चिकित्सक निर्णय लेते हैं कि आगे क्या करना है। वैसे आप को यह लगता होगा कि अगर किसी को इस तरह की तकलीफ़ हो तो उसे जाना कहां चाहिये ----जो डाक्टर गुर्दे के आप्रेशन इत्यादि करते हैं उन्हें यूरोलॉजिस्ट कहते हैं ---Urologist --- अगर अल्ट्रासाउंड में पत्थरी होने की पुष्टि हो गई है तो यूरोलॉजिस्ट के पास जाना ही मुनासिब है। यह जो यूरोलॉजी सुपर-स्पैशलिटी है इसे सामान्य सर्जरी (MS general surgery) की डिग्री लेने के बाद तीन साल की एक और डिग्री (MCh) करने के बाद किया जाता है।
वैसे देखा गया है कि कुछ सामान्य सर्जन भी गुर्दे संबंधी सर्जरी में अच्छे पारंगत होते हैं ---सारा अनुभव का चक्कर है, अपनी अपनी रूचि की बात है---इसलिये बहुत बार अच्छे अनुभवी सामान्य सर्जन भी इस तरह की सर्जरी से मरीज़ को ठीक ठाक कर देते हैं।
मुझे ऐसा लगता है और जो मरीज़ मेरे पास किसी तरह के मशवरे के लिये आते हैं उन्हें मैं यह सलाह देता हूं कि तीन चार भिन्न भिन्न जगह दिखा कर ही कोई निर्णय लें ---जैसे कि पहले तो किसी सर्जन से बात कर लें, फिर यूरोलॉजिस्ट को दिखा लें, और अगर लगे कि किसी आयुर्वैदिक विशेषज्ञ से भी बात की जाए तो ज़रूर करें क्योंकि ऐसा सुना है कि छोटी मोटी पत्थरी के लिये आयुर्वैदिक दवाई भी बहुत काम करती हैं। और ज़रूरत महसूस हो तो लित्थोट्रिप्सी सैंटर में जाकर दिखा आने में भी कोई खराबी नहीं -----सब विशेषज्ञों की सलाह के बाद अपना मन बनाया जा सकता है। लेकिन वही मिलियन डॉलर प्रश्न ----आखिर आम बंदा यह च्वाईस हो तो कैसे करे? कईं बार बस रब पर ही सब कुछ छोड़ना पड़ता है ---- मेरी एक बार कोई सर्जरी होनी थी, यूरोलॉजिस्ट करने ही वाले थे कि एक बहुत अनुभवी जर्नल सर्जन ओटी में किसी काम से घुसे और उन्होंने मेरे केस को देख कर चाकू अपने हाथ में ले लिया ----क्योंकि उन्हें देखते ही लगा कि यह यूरोलॉजी का केस नहीं है, यह गैस्ट्रोइंटैसटाइनल ट्रैक्ट का केस था जिस में उन्हें विशेष महारत हासिल थी। होता है , कभी कभी ऐसा भी होता है। आज भी हम लोग जब उस दिन को याद करते है तो यही सोचते हैं कि अपनी होश्यारी कम ही चल पाती है, पता नहीं कब कौन सा फरिश्ता किस मुश्किल से निकालने कहां से आ जाता है !! है कि नहीं ?
हां, तो उस लड़के के गुर्दे में पानी भरे जाने की बात हो रही थी ---ऐसा इसलिये होता है कि चूंकि पेशाब के बाहर निकलने के रास्ते में अवरोध होता है इसलिये वह वापिस बैक मारता है और गुर्द मे यह सब जमा होने से गुर्दे फूल जाते हैं।
लेकिन अगर एक ही तरफ़ के गुर्दे में यह हाइड्रोनैफरोसिस की शिकायत है तो पत्थरी इत्यादि से निजात मिल जाने के बाद गुर्दा वापिस सामान्य होने लगता है।
इस में सब से अहम् बात यह है कि किसी तरह की देरी नहीं होनी चाहिये --क्योंकि गुर्दे के रोग इस तरह के हैं कि कईं कई साल तक ये बिना किसी लक्षण के पनपते रहते हैं और अचानक गुर्दे फेल होने के साथ धावा बोल देते हैं।
इस लिये गुर्दे के रोगों से बचाव बहुत ज़रूरी है --- और अगर कोई तकलीफ़ है तो उस का तुरंत उपचार ज़रूरी है। हा, हम ने यूरोलॉजिस्ट के बारे में तो बात कर ली, गुर्दे का एक विशेषज्ञ होता है ---नैफरोलॉजिस्ट (Nephrologist) जो दवाईयों आदि से मरीज़ के गुर्दे का उपचार करता है--- नैफरोलॉजिस्ट ने सामान्य MD (general Medicine) करने के बाद तीन साल की DM( Nephrology) का कोर्स किया होता है।
अब इस में कोई कंफ्यूजन नहीं होना चाहिये कि कोई तकलीफ़ होने पर यूरोलॉजिस्ट के पास जाया जाए अथाव नैफरोलॉजिस्ट के पास। जिस तरह की तकलीफॉ है उस तरह के स्पैशलिस्ट के पास ही जाना होगा ---- अब उदाहरण देखिये कि अगर सर्जन कहता है कि किसी व्यक्ति के गुर्दे में ऐसी कोई तकलीफ़ नहीं है जिस का आप्रेशन करने की ज़रूरत है लेकिन उस बंदे के गुर्दों की सेहत अल्ट्रासाउंड से और ब्लड-टैस्ट द्वारा पता चलता है कि ठीक नहीं है, ऐसे में उसे नैफरोलॉजिस्ट के पास भेजा जाता है। यही कारण है कि नैफरोलॉजिस्ट विशेषज्ञों के पास ब्लड-प्रैशर एवं डायबीटीज़ आदि रोगों से ग्रस्त ऐसे लोग बहुत संख्या में पहुंचते हैं जिन के गुर्दे में इन रोगों की वजह से थोड़ी गड़बड़ होने लगती है।
बड़े बड़े कारपोरेट हस्पतालों में तो सभी तरह के विशेषज्ञ यूरोलॉजिस्ट, लैपरोस्कोपिक सर्जन ( जो दूरबीन द्वारा गुर्दे आदि के आप्रेशन करते हैं), नैफरोलॉजिस्ट, लित्थोट्रिप्सी सैंटर आदि सभी कुछ रहता है ---- बस, मरीज़ की हालत, ज़रूरत एवं उस की जेब पर काफी कुछ निर्भर करता है।
लेकिन सोचने की बात है कि ये तकलीफ़े आजकल इतनी बढ़ क्यों गई हैं ----हम सब कुछ लफड़े वाला ही खा -पी रहे हैं, कोई कितने भी ढोल पीट ले, लेकिन हर तरफ़ मिलावट का बाज़ार गर्म है-----ऐसे में बड़े बड़ो की छुट्टी हो जाती है, अब गुर्दे भी कितना सहेंगे ---------- लेकिन जितना हो सके जितना अपनी तरफ़ से कोशिश हो बच सकें, बाकी तो प्रभु पर छोड़ने के अलावा क्या कोई चारा है?
बातें तो बहुत सी हो गईं लेकिन इस पोस्ट के शीर्षक का जवाब मेरे पास नहीं है ---पंजाब में अकसर लोग किसी की तारीफ़ के लिये भी यह कह देते हैं ----ओए यार, एस बंदे का बड़ा वड्डा गुर्दा ए -- (इस आदमी का गुर्दा बहुत बड़ा है) ---पता नहीं, यह कहावत कहां से चली ?