वोटर कार्ड (चाहे आप उस शहर में ३० साल पहले रहे हों)
आधार कार्ड
पासपोर्ट फोटो (जितनी ज्यादा अपने झोले में रख सकें..)
राशन-कार्ड (चाहे पच्चीस तीस साल पुराना हो, परेशान मत होइए, कोई कुछ नहीं पूछेगा)
अपना वर्तमान पहचान पत्र तो साथ में रखना ही है हमेशा
ड्राईविंग लाइसेंस
पैन कार्ड
यैलो कार्ड
अपना डेबिट कार्ड
क्रेडिट कार्ड
चैकबुक, पासबुक, पुरानी नईं जो भी हैं बस थैले में रख तो लीजिए...
बिजली के बिल या टेलीफोन के बिल की कापी भी पहले मांगी जाती थी(रख लीजिए थैले में अगर आप के पास है तो)
अगर आप के बच्चों से संबंधित कुछ लेन देन है तो उस का जन्म-प्रमाण पत्र..
अगर पिता जी स्वर्गवासी हैं और आप मां के साथ जा रहे हैं तो पिता जी के स्वर्गलोक प्रस्थान के प्रमाण की भी कुछ कापियां रख लीजिए...
अपना वह फोन जिस पर आप को बैंक के मैसेज आते हैं..
(इस के अलावा भी आप शांत मन से दस मिनिट के लिए सोचिए कि अगर आप उस बाबू की जगह हों तो आप किसी से किस किस दस्तावेज़ की मांग कर सकते हैं, वे सब कुछ थैले में साथ लेकर चलिए)
(इस के अलावा भी आप शांत मन से दस मिनिट के लिए सोचिए कि अगर आप उस बाबू की जगह हों तो आप किसी से किस किस दस्तावेज़ की मांग कर सकते हैं, वे सब कुछ थैले में साथ लेकर चलिए)
अभी तो मुझे इन डाक्यूमेंट्स का ध्यान आ रहा है ...उस जिल्लत के आधार पर जो इतने वर्षों में डाकखानों और बैंकों में झेलनी पड़ी ..और जो इस जिल्लत से सीखा....मैं अकसर लोगों से कहता हूं कि जिल्लत से घबराया मत करिए...हर अनुभव हमें बहुत कुछ सिखा भी जाता है ..
हां, तो जो मैंने ऊपर लिस्ट तैयार की है, वह इसलिए है कि बैंक और डाकखाने में पता नहीं कब कौन सा दस्तावेज मांग लें, इस का अंदाज़ आप नहीं लगा सकते..मैं भी नही ंलगा पाया पचास की उम्र पार करने के बाद भी ...
दरअसल जो काउंटर पर कर्मचारी बैठा है, वह आप को भगवान होता है उस समय ..उस ने जो कह दिया वह कानून है .....और बहुत बार सब कुछ उस के मूड पर ही निर्भर करता है और आप के बातचीत करने के अंदाज़ पर भी ...इसलिए बेहतर यही होगा कि अपनी सभी डिग्रीयां पीएचडी-डीएचडी भी घर पर ही रख कर जाइए..वहां जाकर उस बाबू से कोई तर्क-वितर्क के चक्कर में पड़ गये तो अपना ही नुकसान है .....किसी सीधे-सादे काम में भी ऐसा अडंगा लगा देगा कि बार बार हांफने लगेंगे आप ...वहां तो बस चुपचाप रहने में और जो कहा जाए उतना ही करने में भलाई है ....
एक तो यह केवाईसी की बड़ी सिरदर्दी हो गई है .....कुछ कुछ अंतराल के बाद अब मैसेज आने लगे हैं कि आप का खाता के वाई सी कंप्लायंट नहीं है ...अपनी शाखा से संपर्क कीजिए...वहां जाने पर अगर तो आप ऊपर दी गई मेरी चैक-लिस्ट के हिसाब से जाते हैं... तो ज्यााद सिरदर्दी नहीं होगी...बाबू जो जो मांगता जाए, उसे उसी समय उस की कापी थमाते जाइए....बिना कुछ कहे ..जैसे आप को दीन-दुनिया का कुछ पता नहीं....तीन चार दस्तावेज मांगने पर वह थोड़ा सा थक जायेगा कि इस के पास तो सब कुछ है..इसलिए आप को काम होने की पूरी संभावना है ...
उस दिन ऐसा ही हुआ ...बैंक में कुछ काम था ...मैंने बेटे से कहा कि उस के पास जितने भी दस्तावेज हैं उन सब को और उन की फोटोकापियों को साथ लेकर चलेंगे ..मैंने भी अपने यही सारे हथियार साथ ले लिए...पहले तो जो डेस्क पर जो मैडम थी उन्होंने ने तीन चार तरह के दस्तावेज मांग लिए...उन का हर बार कहने का यही अंदाज़ था, यह लाना पड़ेगा...वही दस्तावेज उसे तुरंत थैले में से निकाल कर दे दिया जाता ....और यह प्रक्रिया इतनी तेज़ी से की जाती कि उसे वह दस्तावेज देखने-निहारने का समय ही न मिलता...बहरहाल, केस पहुंचा अधिकारी के पास....उन्होंने भी दो दूसरे दस्तावेज़ों की मांग कर दी...वे भी तुरंत उन्हें थमा दिये गये... .नतीजा यही कि काम हो गया.....वरना कुछ भी कम होता तो काम लटक जाता...
मैं बहुत बार सोचता हूं कि हमारे देश में यह सब सिक्योरिटी इतनी टाइट है तो फिर कैसे माल्या जैसे लोग रफू-चक्कर हो जाते हैं...चार दिन खबरों में रहते हैं .....फिर लंबी चलने वाली कानूनी प्रक्रिया ...
हां, जाते जाते एक बात....चुपचाप भोंदू की तरह सब कुछ दिए जाने के बाद भी अगर अंत में आप को यह कह दिया जाए कि क्या आप किसी गवाह को ला सकते हैं जो आप को जानता-पहचानता हो.....तो अगर उस समय आप का सब्र का बांध टूट पड़े तो अचानक आप के मुहं से फिरंगी भाषा के कुछ शब्द फूट पड़ेंगे......बड़े शालीन ढंग से .....तब बाबू को अचानक झटका लगता है कि यार, यह तो पढ़ा लिखा है .......शायद आप को काम हो जाए......अगर नहीं होता तो फिर आप को आखिर में उस बाबू को कहना होगा कि आप इस पर Regret लिख कर मुझे लौटा दीजिए.......पूरी संभावना है कि इतनी स्टेज तक पहुंचते पहुंचते आप का काम हो जायेगा.....वरना मैनेजर के पास जा कर थोड़ी फर्राटेदार इंगलिश का रूआब ज़रूर काम आ जायेगा.... Guaranteed!
वैसे मैं एक बात आप से शेयर करूं.....मुझे बैंकों और डाकखाने में जाने से बहुत नफ़रत है ...बडी़ फार्मेलिटीज़ हैं....यह लाओ, वो लाओ....आप की फोटो हमारे रिकार्ड में नहीं है, आप के दस्तखत अभी सिस्टम में नहीं हैं....ये सब बातें भुग्ती हुई हैं इसीलिए इतनी सुगमता से दिल से निकल पड़ीं.....
और हां, उस मैट्रिक - हाई स्कूल के सर्टिफिकेट की फोटोकापी मैं कैसे भूल गया...उस की भी कुछ कापियां झोले में फैंके रखिए, क्या पता किस बाबू की जिज्ञासा या उस का शक उसी प्रमाण-पत्र से ही शांत हो पाए..
इस पोस्ट रूपी लिफाफे को थूक से चिपकाते हुए (हम बचपन में यही तो करते थे...) यही ध्यान आ रहा है कि इस में तो आफिस आफिस वाले मुसद्दी बाबू की बेबसी ब्यां हो गई कुछ कुछ ....सिर भारी हो गया मेरा तो लिखते लिखते ..चलिए, इस भारीपन को बेलेंस करने के लिए एक हल्का फुल्का गीत सुन लेते हैं...