शुक्रवार, 5 मई 2017

अच्छा तो चलते-फिरते झोलाछाप दंदानसाज़ भी होते हैं..

दंदानसाज़ उर्दू का शब्द है ...जब मेरा डेंटिस्ट्री में दाखिला हुआ तो मेरे ताऊ जी मुझे यह कह कर बुलाया करते थे...आज अभी गूगल पर इस का अर्थ देखा .. लेकिन अकसर पुराने लोग फुटपाथों पर दांतों की दुकाने सजाए हुए लोगों के लिए ही इस शब्द का इस्तेमाल करते हैं..

अकसर नीम-हकीम दंदानसाज़ आपने भी अपने शहरों में जगह जगह बैठे देखे होंगे .. फिक्स अड्डों पर ..सामने कुछ पत्थर के दांतों के जबड़े रखे हुए, कुछ दांत उखाड़ने वाले औज़ार ..और कुछ दवाईयां ...दरअसल यह हमारे देश की बदकिस्मती है कि आज भी ये लोग अपनी दुकानें चमकाने के नाम पर जनता की सेहत से खेल रहे हैं..

दांत उखाड़ना कोई बड़ी बात नहीं है ..लेेकिन जब यह काम ये नीम हकीम करते हैं तो सारी गड़बड़ ही गड़बड़ है ...एक दो रिस्क हो तो मैं गिना भी दूं...लेकिन इन खतरों की लिस्ट इतनी लंबी है कि लिखते लिखते रात बीत जाएगी... पता नहीं कितने लोगों को ये लोग लाइलाज बीमारियां भी दे डालते होंगे..

बहरहाल, मैंने भी अनेकों जगहों पर यह सब काम होते देखा है....एक खबरिया चैनल की भाषा है ..सत्ता के गलियारे ...जी हां, दिल्ली के सत्ते के गलियारों की नाक के बिल्कुल नीचे भी इने पनपते देखा ...लेकिन मुझे हमेशा यही लगता था कि ये लोग एक फिक्स जगह पर बैठ कर ही अपना धंधा करते हैं ...

आज पहली बार एक मरीज़ से पता चला कि चलते फिरते झोलाछाप दंदानसाज़ भी हुआ करते हैं..

एक मरीज़ आया...बता रहा था कि आगे का एक दांत हिल रहा था तो उसने तार लगवा ली दांतों को हिलने-ढुलने से रोकने के लिए...मुझे देखने से ही अंदाज़ा हो गया कि यह किसी नीमहकीम बंदे की ही कारस्तानी है ...उसने भी बताया कि ऐसे ही करवा लिया था चार पांच साल पहले ...ऑफिस में ही दांतों का इलाज करने के लिए एक आदमी आया करता था ...बडे़ बाबू, छोटे बाबू...सब लोग उसी से ही दांतों का इलाज करवा लिया करते थे ...मैंने भी एक दिन यह काम करवा लिया...

एक संदूकची रखे रहता था वह दंदानसाज़ और सारा काम उधर दफ्तर के अंदर ही बैठे बैठे कर के चला जाता था.. मुझे बड़ी हैरानगी हुई ... कानों की सफ़ाई वाले तो ऐसे गली-गली कूचे कूचे घूमते देखे थे ..लेकिन इन घूमते फिरते दंदानसाज़ों के बारे में आज पहली बार सुन रहा था ..

हां, दो दिन पहले मैंने आप को ऐसे ही एक नीमहकीम द्वारा लगाए गये किसी मरीज़ के फिक्स दांतों का नमूना दिखाया था... फिक्स दांतों की सिरदर्दी...  इन झोलाछाप सड़कछाप दंदानसाज़ों के काम का एक नमूना और देखते हैं..


आप देखिए किस तरह से एक दो हिलते हुए दांतों को रोकने के लिए कैसे साथ के स्वस्थ दांतों पर भी कस के तार बांध दी गई है ..मरीज़ को कुछ पता नहीं होता...उन्हें तो फौरी तौर पर लगता है कि हां, हिलते हुए दांत कसे गये हैं...बस, काफ़ी है...लेकिन इस तरह का इलाज तकलीफ़ को और भी बिगाड़ देता है ...

इस तार की वजह से और पायरिया की वजह से अब इस मरीज़ के चार दांत बुरी तरह से हिल रहे थे ...और मसूड़े भी कैसे दांतों से पीछे हट रहे हैं.. आप इस तस्वीर में देख सकते हैं..


इन दांतों के अंदर की तरफ़ देखिए कैसे एक्रिलिक नामक मैटीरियल तार के ऊपर लगा कर दांतों को रोकने का जुगाड़ किया गया है ...यह "मसाला" तो उसने तार के ऊपर बाहर की तरफ़ भी लगाया था, लेकिन वह निकल गया है ....मरीज़ मेरे पास इसीलिए आया था ..

मैंने उसे समझाया तो है कि उचित इलाज के लिए पहले तो उसे तार से निजात पानी होगी...यह सुन कर दुविधा में पड़ गया दिखता था ...मैंने कहा, दो तीन दिन सोच लो...उस के बाद ही समुचित इलाज की बात हो सकती है ..

हां, ये जो हिलते दांत होते हैं इन को फिक्स करने का क्वालीफाईड डैंटिस्ट के पास वैज्ञानिक तरीका और सलीका होता है ...जो कि पूरी तरह से सुरक्षित होता है ..वह पहले तो इस बात का पता करता है कि ये दांत हिल क्यों रहे हैं, फिर जितना संभव हो सके उस का इलाज भी किया जाता है ...

बस, आज इतनी ही बात कहनी थी कि ऐसे चलते-फिरते झोलाछाप दंदानसाज़ों से बचे रहिए...मुझे यकीन है कि इसे पढ़ने वाले कभी ना तो इन के चंगुल में फंसे होंगे और ना ही फंसेगे.....लेकिन फिर भी मैं अपनी आदत से मजबूर.......ज्ञान बांटने बैठ जाता हूं!!

इस समय मेरे रेडियो पर यह गीत बज रहा है ..आप भी सुनिए....पल्ले विच अग्ग दे अंगारे नहीं लुकदे ..