सन् 2001-2002 के आस पास की बात रही होगी...मैंने केंद्रीय हिंदी डायरेक्ट्रेट की तरफ़ से एक विज्ञापन अख़बार में देखा...उन्होंने लिखा कि अहिंदी भाषी नवलेखकों के लिए एक नवलेखक शिविर का आयोजन कर रहे हैं...लेकिन उस की एक चयन प्रक्रिया होगी...और उस के लिए पहले आप को अपना कोई एक लेख लिख कर भेजना होगा....
पढ़ा, अच्छा लगा ...इस से पहले मैं केवल छुट-पुट मेडीकल एवं डेंटल विषयों पर ही लिखता था , अपने स्कूल की पत्रिका का स्टूडेंट-एडिटर भी रहा...बाद में पत्रिकाओं के लिेए लिखता था..लेकिन क्रिएटिव राइटिंग के बारे में कुछ पता न था...इसलिए सोचा कि देखते हैं अगर मौका मिलेगा तो इस नवलेखक शिविर में हो कर आएंगे।
अपने पास यादों का बढ़िया ज़खीरा तो है ही ..हम एक ऐसे दौर में रहे हैं जिस में बहुत कुछ देखा, महसूस भी किया ....और ज़िंदगी को नज़दीक से देखा भी। तो, जनाब, हिदी की टाइपिंग तो तब आती न थी, मैंने भी कागज़ पर एक लेख लिख कर दाग दिया...उस का शीर्षक लिखा...डाकिया डाक लाया। सच बताऊं उसे लिखने में ही मुझे इतना मज़ा आया कि मैं बता नहीं सकता...इस में मैंने लिखना क्या था, अपनी दादी, नानी, मामा, चाचा, बुआ और पापा की चिट्ठीयों की यादें लिख डालीं...और कुछ दिन बाद मुझे चिट्ठी मिल गई कि आप का 15 दिन के नवलेखक शिविर के लिए चयन कर लिया गया है ...मैं बहुत खुश ...जोरहाट में यह शिविर हुआ...गुवाहाटी से भी एक रात का सफर था ..उस दौरान मुझे समझ आया कि लिखना किसे कहते हैं....बस, अपने दिल की बातों को लिखते लिखते कोई भी लिक्खाड़ बन सकता है, कोई रॉकेट साईंस नहीं है यह भी ...आप को पता ही है कि सरकारी महकमों के खलारे भी कैसे होते हैं...वहां पर उन्होंने बड़े बड़े नामचीन लेखकों को बुलाया था...हमें कहानी, लेख, संस्मरण लिखने की विधा से रू-ब-रू करवाने के लिए।
वापिस पोस्ट कार्ड पर लौटें...मेरी ड्यूटी का समय हो रहा है ...बात छोटी ही रखेंगे आज... हां, तो पोस्ट कार्ड से जुड़ी मेरी सभी यादों को मैंने अपने एक पंजाबी ब्लाग में सहेज दिया है ...बहुत बार सोचा कि उस का ही हिंदी अनुवाद कर के इस ब्लॉग पर भी टिका दूं लेकिन कभी कोई मोटीवेशन लगी नहीं...लेकिन कभी इस ब्लॉग पर भी लिखूंगा ज़रूर पोस्ट कार्ड से जुड़ी मेरी बेशुमार यादें। आप को सुन-पढ़ कर भी मज़ा आएगा।
बहरहाल, उस दिन विश्व पोस्ट कार्ड दिवस था ...मैं मुंबई के जीपीओ में गया तो पता चला कि अभी स्पेशल कवर तैयार हो कर नहीं आया...मुझे वह ज़रूरी चाहिए था...वह अब मुझे मिल गया है, लीजिए आप भी उस के दीदार कर लीजिए....
जब हम लोग अमृतसर के डीएवी स्कूल में पढ़ते थे तो हमारी क्लास में हमारा एक साथी था, उसने पेन-फ्रेंड बना रखे थे, उन को चिट्ठीयां लिखता था, उन की चिट्ठीयां उन्हें आती थीं, वह हमें दिखाता था, उस ख़तों पर लगी शानदार टिकटें देख कर ही हम हैरान होते रहते थे ..लेकिन कभी पेन-फ्रेंडशिप की दुनिया में जा न सके...शायद इसलिए कि हमें घर में आने-जाने वाले ख़तों को पढ़ने-लिखने से ही फुर्सत न थी...और मेरी तो एक और ड्यूटी भी थी ...अडो़स पड़ोस के कुछ लोगों की चिट्ठीयां पढ़ कर उन्हें सुनाना और उन की चिट्ठीयों के जवाब लिख कर देना...मैं कभी भी उन्हें इस काम के लिए मना नहीं करता था...लेकिन वह चाहते थे कि मैं ही उन की चिट्ठीयां लिखूं...😄..मुझे कहीं न कहीं अपनी नानी का ख़्याल भी आ जाता उन दिनों ,जो बस दो-चार क्लास गुरमुखी पढ़ी थीं, इसलिए उन्हें हिंदी में खत लिखने-पढ़ने के लिए पड़ोस की लड़कीयों की खुशामद करनी पड़ती थी...
मालगुडी डेज़ के डाकिये को अगर जानना हो तो इस लिंक पर क्लिक कीजिए ..
खैर,...पेनफ्रेंड शिप के बारे में बाद में भी सोचता रहा ...लेकिन इस पूल में डुबकी न लगाई ..फिर तो डिजिटल दुनिया में इस तरह के शौक की कोई जगह ही न थी.....लेकिन कल ही मुझे एक नवयुवक से पता चला है पोस्टक्रासिंग डॉट काम के बारे में ..आप भी एक बार इसे देख तो ज़रूर लीजिए... postcrossing.com ---मुझे तो इसे देख कर बहुत मज़ा आया।
और हां, उस दिन मैंने जब जीपीओ के बाबू को एक ख़त स्पीड पोस्ट के लिए दिया तो उसने मुझे कहा कि यह आप की हैंड-राइटिंग है ...मैने कहा ..जी, मेरी ही है ..उसने कहा कि आप को हैंड-राईटिंग बहुत सुंदर है । मैं किसी के साथ शेयर कर रहा था कि यह कंप्लीमेंट मेरे लिए अभी तक का सब से कीमती कंप्लीमैंट है ..एक बाबू जिस की नज़रों से हज़ारों-लाखों हस्त-लिखित काग़ज़ गुज़र गए ...अगर उस ने भी तारीफ़ कर दी एक पते को देख कर तो .....!! लेकिन अपने आप को यह याद दिलाना भी ज़रूरी है कि ज़मीन पर टिका रहो..इतना उड़ने की भी ज़रूरत भी नहीं...बडे़ से बड़े कलाकार पड़े हैं, मैंने अभी दुनिया देखी ही कितनी है...!
और हां, उस दिन एक संयोग यह भी तो हुआ कि पोस्ट-बाक्स की रंगाई-पुताई हो रही थी ...मैं यह देख कर रूक गया और इन को कहा कि आज पहली बार किसी पोस्ट-बाक्स की रंगाई होते देख रहा हूं , अच्छा लगा, इसलिए एक फोटो ले रहा हूं....वह दोनों भी बहुत खुश हुए और कहने लगे कि बंबई जीपीओ के अंतर्गत आने वाली सभी डाक-पेटियों की रंगाई-पुताई हर बरस होती है ...यह बात भी ऩईं पता चली थी....
आप के काम को मैं सलाम करता हूं... |
अब यहीं ब्रेक लगा रहे हैं.....और डाकिये पर फिल्माया मेरा बेहद पसंदीदा गीत आप भी सुुनिए...और गुज़रे दौर की यादों में खो जाइए कुछ लम्हों के लिए ही सही ...बाद में दिन भर की भाग-दौड़ में तो हम सब को दौड़ना ही है ...
अरे यार, बंद करते करते निदा फ़ाज़ली साहब की बात याद आ गई...
"सीधा सादा डाकिया जादू करे महान....
एक ही थैले में भरे, आंसू और मुस्कान ..
वो सूफी का क़ौल हो या पंडित का ज्ञान.
जितनी बीते आप पर उतनी ही सच मान....."😎👏