शनिवार, 25 जुलाई 2009

यहां पढ़े हैं आरटीआई के अनगिनत सवाल ...

मैं अकसर सोचा करता हूं कि ये आर टी आई में पूछने लायक सवाल मिलते कहां हैं ----मुझे लगता है ये इन जगहों पर मिलते हैं।

मैं पिछले वर्षों में बहुत सारी अखबारें पढ़ने के बाद कुछ अरसे से केवल तीन अखबारें पढ़ता हूं। मेरे दिन की शुरूआत सुबह सुबह तीन अखबारें पढ़ने से होती है -- अमर उजाला, टाइम्स ऑफ इंडिया और दा हिंदु। मुझे बहुत सारी अखबारें छानने के बाद यह लगने लगा है कि अगर हम इन को ध्यान से देखें तो इन के हर पन्ने पर कोई न कोई सूचना के अधिकार का सवाल बिखरा पड़ा होता है।

वह बात भी कितनी सही है कि एक पत्रकार किसी बेबस, गूंगे इंसान की जुबान है। कितनी ही बातें हैं जिन से हम केवल अखबार के द्वारा ही रू-ब-रू होते हैं। अब एक पत्रकार ने तो इतनी मेहनत कर के किसी मुद्दे को पब्लिक के सामने रख दिया। लेकिन अगर गहराई में जायें तो बस इन्हीं न्यूज़-रिपोर्टज़ से ही कईं आरटीआई के सवाल तैयार हो सकते हैं।
आरटीआई के बहुत से सवालों का खजाना वह इंसान भी होता है जिन ने कभी सूचना के अधिकार में कुछ पूछने की ज़ुर्रत तो कर ली लेकिन जाने अनजाने उस ने किसी की दुखती रग पर हाथ रख दिया जिस की वजह से उसे किसी बहाने से ....।

ज़िंदगी के करीब के बहुत से सवाल किसी भी आम आदमी के पसीने के साथ रोज़ बहते रहते हैं। यह आम आदमी की ज़िंदगी तो आरटीआई में पूछने लायक सवालों का खजाना है। जिस किसी भी जगह पर कोई भी लाचार, बेबस, कमज़ोर, शोषित, सताया हुआ, पीड़ित, किसी षड़यंत्र का शिकार इंसान खड़ा है उस के पास आप को बीसियों आरटीआई के सवाल बिखरे पड़े मिलेंगे। लेकिन उस का बेबसी है कि अभी तक उसे अपनी कलम की ताकत पर विश्वास नहीं है या यूं कह लें कि अभी उस ने अपनी कलम उठाई नहीं है। या फिर यह भी हो सकता है कि उसे लगता हो कि वह आरटीआई में दिये जानी वाली दस रूपये की फीस से वह कुछ और भी अहम् काम कर सकता है।

जो भी हो, जब कभी मैं कभी कभी यहां-वहां किसी के मुंह से यह सुनता हूं कि यह आरटीआई सिरदर्दी बन चुका है तो मैं यह समझ जाता हूं कि इस का मतलब है कि सूचना के अधिकार अधिनियम का काम बिलकुल ठीक ठाक चल रहा है। जहां तक लोगों के द्वारा ढंग से सवाल पूछने जाने पर कुछ लोगों को कभी कभी आपत्ति रहती है तो इस में मुझे तो कुछ खराब लगता नहीं -----सीख जायेंगे, सीख जायेंगे, दोस्त, उन्हें हम लोग अपना दिल खोल तो लेने दें। ढंग वंग का क्या है, किसी भी सवाल की आत्मा का ही तो महत्व है।

आरटीआई में अवार्ड्स की घोषणा कुछ दिनों से दिख रही है ---- मेरे लिये उस का पात्र आने वाले समय में कौन होगा पता है ? --- वह मज़दूर जो सुबह मज़दूरी करता है और रात में प्रौढ़-शिक्षा कार्यक्रम के तहत पढ़ना सीख रहा है। और जैसे ही सीख लेता है वह रात में कैरोसीन के दीये की धुंधली लौ में अपने बच्चे की कलम से एक काग़ज पर आरटीआई का एक सवाल लिख रहा है जो कि उस की बाजू पर आये पसीने की वजह से गीला है और ऊपर से उस के माथे से पसूने की बूंदे उस गीले कागज़ पर टपक रही हैं --- जिसे उस का बेटा किसी चाक के टुकड़े से लगातार पौंछे जा रहा है ताकि उस के बापू का यह सवाल कहीं गीलेपन की वजह से खराब ही न हो जाये ------उस के गांव में स्कूल में मास्टर पिछले चार महीनों से नहीं है, इस का क्या कारण है और उस के गांव के दवाखाने में कोई डाक्टर पिछले छः महीनों से तैनात क्यों नहीं है। जब इस तरह के लोगों द्वारा सवाल पूछे जाने लगेंगे तो मैं समझूंगा कि हां, भई, अब हलचल शुरू हुई है।
पता नहीं मुझे तो हर तरफ़ आरटीआई के सवाल ही पड़े दिखते हैं ----- आप जिस सड़क पर जा रहे हैं उस की खस्ता हालत जिन खड्डों की वजह से है, उन में बहुत से आरटीआई के सवाल छुपे पड़े हैं, लोगों ने अपने घरों के बाहर कईं कईं फुट की जो एनक्रोचमैंट कर रखी होती है, वह भी एक सवाल है ................हर तरफ सवाल ही सवाल हैं, केवल इन्हें देखने वाली आंख चाहिये।

और कितना समय ये मुट्ठियां-वुठ्ठियां बंद रहेंगी, ये तो भई खुलनी ही चाहियें ....

शनिवार, 18 जुलाई 2009

शॉपिंग माल में चोरी करते ये बच्चे

अभी अभी बाज़ार से लौट कर आया हूं --मूड बहुत खराब है। एक शॉपिंग माल के अंदर दाखिल होते ही देखा कि छः-सात साल के दो बच्चों ने एक दूसरे के कान पकड़े हुये थे और उस शॉपिंग माल के तीन-चार कर्मचारी उन को घेरे खड़े थे। शुरू शुरु में तो लगा कि शायद कोई हंसी मज़ाक चल रहा है, लेकिन जब बच्चों की रोने की आवाज़ सुनी तो मैंने अपनी पत्नी को कहा कि मैं देखता हूं।
मैंने जाते ही कहा --- बस करो भई, बहुत हो गया। तब उस माल का एक कर्मचारी कहने लगा कि इस तरह के बच्चे रोज़ चोरी करते हैं। इन दोनों ने अपनी जेबों में चाकलेटें ठूंस रखी थीं और हम ने कैमरे की मदद से इन का यह काम पकड़ लिया, इसलिये इन्हें यह सज़ा दे रहे हैं। वह कर्मचारी कहने लगा कि इसी तरह की चोरियों की वजह से हमारे सारे कर्मचारियों को हर महीने अपनी तनख्वाह से एक हज़ार रूपये कटवाने पड़ते हैं।
मैंने उन्हें कहा कि चलो, छोड़ो अब इन को --- छोटे हैं। मैंने सुरक्षा वाले को कहा कि इन के लिये कुछ पैसे वैसे भरने हैं तो मैं तैयार हूं। उसने कहा कि नहीं, सामान तो हम ने वापिस करवा लिया है, इन्हें अब छोड़ भी देंगे। फिर मेरी पत्नी ने भी उन से बात करी ---- उन में से एक लड़के ने बताया की बाहर एक लड़का खड़ा था जिस के कहने पर हम यह काम कर रहे थे।
मेरा मूड इतना खराब हुया कि मैं बता नहीं सकता --- मैं एक डिओडोरैंट की शीशी शापिंग-बास्कट में डालते हुये यही सोच रहा था कि मेरी डिओडोरैंट से कहीं ज़्यादा ज़रूरत बच्चों को चाकलेट की होती है। वैसे हो भी क्यों नहीं, जब मैं इस उम्र में चाकलेट के लिये मचल जाता हूं तो फिर बच्चों की तो बिसात ही क्या है !
मैं पिछले एक घंटे से यही सोच रहा हूं कि आखिर कसूरवार कौन ? --शॉपिंग माल में जो दो छोटे छोटे बच्चे ये काम कर रहे थे इस के लिये असली कसूरवार कौन है ? मैं तो इस का जवाब ढूंढ पाने में असमर्थ हूं --- मुझे लगता है कि मेरा दिल मेरे दिमाग से हमेशा ज़्यादा काम करता है।
जिस रोड़ से वापिस हम लोग घर लौट रहे थे उस की हालत देख कर यही सोच रहा था कि इस के जितने खड्ढे हैं ये भी चीख चीख कर किसी न किसी की इमानदारी के किस्से ब्यां कर रहे हैं, जो लोग एटीएम में नकली नोट डालते हैं उन्हें आप क्या कहेंगे, स्मार्ट या कुछ और----------- मैं देख रहा था कि उन दो मासूम बच्चों को पकड़ कर उस माल का सारा स्टाफ आपस में और दूसरे ग्राहकों को यह किस्सा इस तरह से सुना रहे थे जैसे कि उन्होंने 26नवंबर के बंबई के उग्रवादी हमले के दोषियों को पकड़ लिया हो।
पता नहीं मुझे यह सब देख कर बहुत ही ज़्यादा दुःख हुया। लेकिन फिर भी मैंने बाहर आते आते घर में सो रहे अपने बच्चों के लिये दो चाकलेट उस शापिंग बास्केट में डाल दीं।
चलो, मेरी पसंद का यह गाना सुनते हैं -----

मंगलवार, 14 जुलाई 2009

जब एटीएम ही नकली नोट उगलने लगे तो ....

अकसर मीडिया के माध्यम से देखता सुनता रहता हूं कि फलां फलां एटीएम मशीन से नकली नोट निकले। मुझे लगता है कि यह एक बहुत ही ज़्यादा गंभीर मुद्दा है जिस के बारे में कोई न कोई पालिसी ज़रूर होनी ही चाहिये।
वैसे तो शायद इस के बारे में पहले ही से कोई पालिसी मौजूद हो ---शायद मुझे इस का ज्ञान न हो, वैसे पब्लिक को भी लगता है कि इस का कुछ पता-वता है नहीं।

समस्या यही है कि जिस भी आम बंदे के साथ ऐसा हादसा होता है उस की हालत तो देखते बनती है। यह चपत तो उसे लगी सो लगी, साथ में उसे यह डर सताता है कि पता नहीं अब बैंक वाले कितने तरह के सवाल पूछेंगे। मैंने एक बार रोहतक में एक ऐसे ही किसी गुमनाम आम आदमी को एक बैंक आफीसर को अपनी व्यथा सुनाते हुये सुना था।

मैंने नोटिस किया कि वह बंदा उस आफीसर से इस अंदाज़ में बात कर रहा था जैसे कि वह उस की चापलूसी कर रहा है, बिना वजह इतने दास-भाव से बात कर रहा था जैसे कि एटीएम से अगर उस के रूपयों में एक नकली पांच सौ रूपये का नोट आ गया है तो उस से कोई जुर्म हो गया है। शायद अगर मेरे साथ भी अगर इस तरह की वारदात हो तो मैं भी शायद उतनी ही विनम्रता से या उस से भी शायद ज़्यादा नर्मी से बात करूंगा।

दरअसल ऐसे मौकों पर एक आम ग्राहक की यह मानसिकता होती है कि बस कैसे भी हो मेरे यह नकली नोट जो एटीएम से निकला है --बस किसी तरह से यह एक्सचेंज हो जाये। और दूसरी बात यह होती है कि उसे कहीं न कहीं यह डर भी सताता होगा कि पता नहीं कितने सवाल उस से पूछे जायें। यह तो हम सब जानते ही हैं कि कईं बार ऐसे मौकों पर लेने के देने भी पड़ सकते हैं ----अब ग्राहक कैसे यकीन दिलाये कि यह वाला नकली नोट बैंक की एटीएम मशीन से ही निकला है।

वैसे यह बहुत कंपलैक्स ईश्यू है ना ---- वैसे देखा जाये तो एक सीधे-सादे ग्राहक का इस में क्या कसूर। मेरा विचार है कि अगर कभी ऐसा हो भी जाता है तो भी यह बैंक के उस कर्मचारी या अधिकारी की व्यक्तिगत जिम्मेदारी होनी चाहिये जो उस मशीन में नोट डालने के लिये जिम्मेदार होता है। जब तक इस तरह का कोई नियम नहीं होता, तब तक यह सब कुछ यूं ही ढीला-ढाला चलता रहेगा। लेकिन वही बात है ना कि अब ग्राहक कैसे यह विश्वास दिलाये कि यह नोट उस मशीन से ही निकला है। और दूसरी बात यह भी है ना बैंक के इंटरैस्ट का भी पूरा ध्यान रखा जाना चाहिये ताकि कोई भी बंदा इस तरह के नियम का गलत इस्तेमाल करते हुये अपने किसी नकली नोट को बैंक में जा कर एटीएम का बहाना बना कर एक्सचेंज न करवा पाये। शायद इस संबंध में पहले ही से कोई कानून हो, अगर इस तरह का कोई नियम है तो उसे एटीएम कक्ष में हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषा में लोगों की सूचना के लिये लिखा होना चाहिेये --- एटीएम कक्ष में ही क्यों, उस एटीएम की पर्ची पर भी यह लिखा होना चाहिये।

क्या आप को लगता है कि एटीएम में जो नोट भरे जाते हैं उन के नंबर किसी कर्मचारी द्वारा नोट किये जाते होंगे। भई जो भी आम बंदे के साथ किसी किस्म का धक्का नहीं होना चाहिये ---पांच सौ रूपये कम तो नहीं होते।
वैसे मैं इस संबंध में सूचना के अधिकार कानून के अंतर्गत एक आवेदन भेज कर इस संबंध में सटीक जानकारी पाने का विचार कर रहा हूं।