शुक्रवार, 21 मार्च 2008

आखिर ये हैं क्या---होली के रंग, रंगीन मिट्टी, सफेदी या चाक मिट्टी....

बचपन में जहां तक होली की यादें हैं उन में बस रेहड़ीयां ही याद हैं जिन के ऊपर छोटी-छोटी थैलियों में तरह तरह के रंग बिका करते थे। लेकिन आज जब बाज़ार में तो कुछ अजीब ही नज़ारा देखने को मिला......तरह तरह के रंग तो बिक रहे थे...लेकिन जिस तरह से बिक रहे थे , वो तरीका देख कर बहुत अचंभा हुया । आप भी इन तस्वीरों में देख सकते हैं कि इतनी इतनी बड़ी बोरियों में ये तथाकथित रंग बिक रहे हैं कि यकीन ही नहीं हो पा रहा कि ये रंग ही हैं। इन को देख कर हंसी ज्यादा आ रही है क्योंकि ये तो रंगीन मिट्टी , चाक, सफेदी के इलावा तो मुझे कुछ भी नहीं लग रहे। लेकिन अगर आप को इस तरह से बिक रहे रंगों के बारे में कुछ विस्तृत जानकारी हो तो कृपया बतलाईएगा।

इन बिक रहे रंगों की भी अलग अलग श्रेणीयां हैं....एक है बीस रूपये किलो और दूसरी क्वालिटी थी चालीस रुपये किलो !

अब मेरी हिमाकत देखिये....मैं आप सब के लिये इन की फोटो खींचने में इतना तल्लीन था कि मुझे यह भी नहीं पता कि बेटे ने गुब्बारों और पिचकारी के इलावा कुछ रंग भी खरीदे हैं या नहीं। अगर रंग भी खरीदे हैं तो कल पूरा ध्यान रखना पड़ेगा। वैसे मैंने दुकानदार से पूछ ही लिया कि वैसे इन रंगों में होता क्या है। उस का जवाब भी तो पहले ही से तैयार था......... यह हमें कुछ नहीं पता...बस जो पीछे से आ रहा है, हम बेच देते हैं।उस की बात सुन मेरे मन में क्या विचार आया, अब यह भी आप को बताना पड़ेगा क्या !

चलिये, छोड़िये....काहे के लिये होली मूड को खराब किया जाए !


अच्छा तो आप सब को होली की बहुत बहुत मुबारकबाद। और यह लीजिये हमारी तरफ से होली का तोहफा.....बस क्लिक मारिये और सुन लीजिये।

आखिर ये हैं क्या---होली के रंग, रंगीन मिट्टी, सफेदी या चाक मिट्टी....


बचपन में जहां तक होली की यादें हैं उन में बस रेहड़ीयां ही याद हैं जिन के ऊपर छोटी-छोटी थैलियों में तरह तरह के रंग बिका करते थे। लेकिन आज जब बाज़ार में तो कुछ अजीब ही नज़ारा देखने को मिला......तरह तरह के रंग तो बिक रहे थे...लेकिन जिस तरह से बिक रहे थे , वो तरीका देख कर बहुत अचंभा हुया । आप भी इन तस्वीरों में देख सकते हैं कि इतनी इतनी बड़ी बोरियों में ये तथाकथित रंग बिक रहे हैं कि यकीन ही नहीं हो पा रहा कि ये रंग ही हैं। इन को देख कर हंसी ज्यादा आ रही है क्योंकि ये तो रंगीन मिट्टी , चाक, सफेदी के इलावा तो मुझे कुछ भी नहीं लग रहे। लेकिन अगर आप को इस तरह से बिक रहे रंगों के बारे में कुछ विस्तृत जानकारी हो तो कृपया बतलाईएगा।

इन बिक रहे रंगों की भी अलग अलग श्रेणीयां हैं....एक है बीस रूपये किलो और दूसरी क्वालिटी थी चालीस रुपये किलो !

अब मेरी हिमाकत देखिये....मैं आप सब के लिये इन की फोटो खींचने में इतना तल्लीन था कि मुझे यह भी नहीं पता कि बेटे ने गुब्बारों और पिचकारी के इलावा कुछ रंग भी खरीदे हैं या नहीं। अगर रंग भी खरीदे हैं तो कल पूरा ध्यान रखना पड़ेगा। वैसे मैंने दुकानदार से पूछ ही लिया कि वैसे इन रंगों में होता क्या है। उस का जवाब भी तो पहले ही से तैयार था......... यह हमें कुछ नहीं पता...बस जो पीछे से आ रहा है, हम बेच देते हैं।उस की बात सुन मेरे मन में क्या विचार आया, अब यह भी आप को बताना पड़ेगा क्या !

चलिये, छोड़िये....काहे के लिये होली मूड को खराब किया जाए !


अच्छा तो आप सब को होली की बहुत बहुत मुबारकबाद। और यह लीजिये हमारी तरफ से होली का तोहफा.....बस क्लिक मारिये और सुन लीजिये।

6 comments:

Kagahn said...

See here or here

PD said...

Don't click there.. 99% chance of Virus.. :)
holi me khushi manaaiye... virus ka gam na paalen.. :D

PD said...

ek baat to bhul hi gaya..
Holi mubarak ho Dr. sahab.. :)

मीत said...

होली आप को भी बहुत बहुत मुबारक़ !

पंकज अवधिया Pankaj Oudhia said...

आपको होली की हार्दिक शुभकामनाए।

Dr.Parveen Chopra said...

कृपया नोट करें कि जैसे डियर PD ने हमें सचेत किया है...इस पोस्ट में कोई वॉयरस नहीं है , केवल एक Kagahn नामक id से जो कमैंट आया है उस पर क्लिक न करने को कहा गया है। वैसे मैं सोचता हूं कि अब जैसे जैसे हिंदी की प्रयोग इंटरनैट पर बढ़ेगा,ये सब चीज़ें भी , ये सब शरारतें, सैडिस्टिक हरकतें भी बढ़ेंगी....इसलिये इन की क्या परवाह करनी । वैसे आज तो पीडी की एडवाइस ने बचा लिया।
@मीत जी, आप को भी बहुत बहुत होली मुबारक, आशा है अब आप की अक्कू आप के साथ होली का हुड़दंग मचाने के लिये बिल्कुल फिट हो गई होंगी। बॉय गाड, उस दिन आप की पोस्ट बहुत टचिंग थी, शायद हम सब ने ही अक्कू के शीघ्र स्वास्थय लाभ की प्रार्थना कर डाली होगी।
@ पंकज अवधिया जी, आप के लिये एक काम है..कृपया इसी बलोग पर पिछली पोस्ट...रंगों का त्योहार न लाये.....ज़रूर देखें। आप को भी होली की बहुत बहुत शुभकामनायें....आप सब बलोगर बंधुओं की पोस्टें पढ़ता रहता हूं .....लेकिन बस बात ही नहीं हो पाती।
@PD, I am very thankful to you for your timely help. May God bless you...today I went to your blog reg..telephonic conversation but the comment box never opened up. It was a nice post.....आज होली की पूर्व-संध्या पर आप ने अपने बचपन के कॉमिक्स को याद कर लिया...अच्छा है। खुश रहो।
@अरे भईया Kagahn तेरा भी बहुत बहुत शुक्रिया...तूने की तो बहुत शरारत...लेकिन तेरी इस शरारत ने भी हम लोगों को बहुत सिखा दिया ..वह यह कि किसी भी अनजान बंदे की टिप्पणी पर किसी लिंक को क्लिक करने की कोशिश मत करो।
एक तो यह जब से बलोगिंग की है, बच्चे पास ही बैठे रहते हैं.....और इस समय डायलाग मार रहे हैं कि बापू, कमैंट को मार रहा है, इतना ही लिखना है तो एक पोस्ट ही लिख डाल।
सो, अब बंद करता हूं।
शुभकामनायें।

रंगों का त्योहार.......न लाये रोगों की बौछार !

कहते हैं कि भगवान कृष्ण टेसू के फूलों से होली खेला करते थे जो कि होली का एक पारंपरिक रंग है। ये फूल तो वैसे औषधीय गुणों से भी लैस होते हैं। इन्हें एक रात के लिये पानी में भिगो दिया जाता है, खुशबूदार संतरी पीले रंग के लिये इन्हें उबाला भी जा सकता है। प्रकृति में तो सभी रंगों का भंडार है और इन्हीं से प्राकृतिक रंग बनाये जाते हैं। कुछ रंग तो हम आसानी से घर पर ही बना सकते हैं।


जैसे जैसे समय बदलता गया.....अन्य चीज़ों के साथ-साथ होली का स्वरूप भी अच्छा खासा बदला हुया दिख रहा है। होली के दिन हम चमकीले रंग वाले पेंट से लोगों के चेहरों को पुते हुये देखते हैं। और कुछ नहीं तो पानी से भरी बाल्टीयां, पानी से भरे गुब्बारे राहगीरों पर फैंक कर ही उन्हें परेशान करने का एक सिलसिला कईँ सालों से शुरू है।


होली रंगों और खुशियों का त्योहार है...लेकिन बाज़ार में बिकने वाले रंग कोरे कैमिकल्स हैं....इन में ऐसे अनेक पदार्थ मौजूद रहते हैं जो हम सब की सेहत तो खराब करते ही हैं, इस के साथ ही साथ ये कैमिकल्स पानी में रहने वाले जीवों के लिये भी विषैले होते हैं। इन्हीं कैमिकल्स की वजह से चमड़ी एवं आंखों के रोगों के साथ-साथ दमा एवं एलर्जी भी अकसर हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार यदि दिल्ली की आधी जनसंख्या भी करीब 100ग्राम कैमिकल्स युक्त रंग प्रति व्यक्ति इस्तेमाल करे तो इससे लगभग 70टन कैमिकल्स यमुना में मिलने की संभावना रहती है।


विभिन्न तरह के पेंटस जिन में कारखानों में इस्तेमाल होने वाले रंग, इंजन आयल, कापर सल्फेट, क्रोमियम आयोडाइड, एल्यूमीनियम ब्रोमाइड, लैड ऑक्साइड एवं कूटा हुया कांच .........ये सब कैमिकल्स को निःसंदेह चमकीला तो बना देते हैं, लेकिन हमारे शरीर को इनसे होने वाले नुकसान के रूप में बहुत बड़ा मोल चुकाना पड़ता है। इन के दुष्प्रभावों से हमारा शरीर, मन और मस्तिष्क कईं बार स्थायी तौर पर प्रभावित हो सकता है। बाज़ार में उपलब्ध कुछ रासायनिक रंगों की थोड़ी चर्चा करते हैं.....

काला रंग (लैड ऑक्साइड

)...यह रंग गुर्दे व मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालता है।

हरा रंग( कॉपर सल्फेट)...इसे आम भाषा में नीला थोथा कहते हैं। इस को लगाने से आँखों की एलर्जी व अस्थायी अंधापन हो सकता है, वैसे तो इस कैमिकल से होने वाले भयंकर घातक प्रभावों के बारे में तो आप सब भली-भांति परिचित ही हैं।

बैंगनी रंग( क्रोमियम ऑयोडाइड)...इस के इस्तेमाल से दमा ओर एलर्जी होती है।

सिल्वर रंग( एल्यूमीनियम ब्रोमाइड)...यह रंग कैंसर पैदा कर सकता है।

लाल रंग ( मरक्यूरिक सल्फाइट)...इस के इस्तेमाल से चमड़ी का कैंसर, दिमागी कमज़ोरी, लकवा हो सकता है और दृष्टि पर असर पड़ सकता है।


तो फिर क्या सोचा है आपने ?.....सुरक्षित होली खेलने के लिये हमें प्राकृतिक रंगों का ही उपयोग करना चाहिये जो कि कईं जगहों पर उपलब्ध होते हैं लेकिन विभिन्न प्रकार के फूलों से इन्हें घर में ही प्राप्त कर लेते हैं। कईं लोग लाल चंदन पावडर से होली खेलते हैं। एक बात है ना....होली कैसे भी खेलें...लेकिन प्रेम से....होली को गंदे तरीके से खेल कर ना तो हमें अपना और ना ही किसी और का मज़ा किरकिरा करना है। जहां तक हो सके...अपने मित्रों, रिश्तेदारों एवं परिचितों के साथ ही होली खेलें....ऐसे ही हर राहगीर पर पानी फैंकना तो होली ना हुई!


वैसे मुझे इस समय ध्यान आ रहा है कि होली के त्योहार पर फिल्माए गये फिल्मों के सुप्रसिद्ध गीत जो सुबह से ही रेडियो, केबल और लाउड-स्पीकरों पर उस दिन बजते रहते हैं, वे लोगों के उत्साह में चार चांद लगाने का काम करते हैं। लेकिन मेरी पसंद में सब से ऊपर शोले फिल्म का यह वाली गीत है........जिसे मैं होली के बिना भी बार-बार सुन लेता हूं और इस में ऊधम मचा रहे हर बंदे के फन की दाद दिये बिना नहीं रह सकता। आप को इन सब हुड़दंगियों के साथ यह उत्सव मनाने से कौन रोक रहा है ............तो मारिये एक क्लिक और हो जाइए शुरू !!


PS…..पंकज अवधिया जी , आप तो वनस्पति विज्ञान के बहुत बड़े शोधकर्त्ता हो, मेरी एक समस्या का समाधान कीजिये। मैं इन मच्छरों से बहुत परेशान हूं......सुबह सुबह ढंग से पोस्ट भी नहीं लिखने देते। इसलिये हम सब लोगों को आप यह बतलायें कि क्या कोई ऐसा घास,कोई ऐसा पौधा नहीं बना ...या कोई ऐसी चीज़ जो इन पौधों से प्राप्त होती हो जिस की धूनि जला कर इन मच्छरों को दूर भगाया जा सके। मुझे आशा है कि आप के पास इस का भी ज़रूर कोई फार्मूला होगा......तो शेयर कीजियेगा। दरअसल बात यह भी है ना कि इन कैमिकल युक्त मच्छर-भगाऊ या मच्छर-मारू टिकियों एवं कॉयलों के ज़्यादा इस्तेमाल से भी डर ही लगता है....रात को तो चलिये मज़बूरी होती है लेकिन सुबह उठ कर इन्हें इस्तेमाल करने की इच्छा नहीं होती। अवधिया जी, आप ही इस परेशानी का हल निकाल सकते हैं। एडवांस में धन्यवाद और होली की मुबारकबाद....।

रूकावट के लिये खेद है............अब आप होली के रंग में रंगे इन हुड़दंगियों के जश्न में शामिल हो सकते हैं।


रंगों का त्योहार.......न लाये रोगों की बौछार !


कहते हैं कि भगवान कृष्ण टेसू के फूलों से होली खेला करते थे जो कि होली का एक पारंपरिक रंग है। ये फूल तो वैसे औषधीय गुणों से भी लैस होते हैं। इन्हें एक रात के लिये पानी में भिगो दिया जाता है, खुशबूदार संतरी पीले रंग के लिये इन्हें उबाला भी जा सकता है। प्रकृति में तो सभी रंगों का भंडार है और इन्हीं से प्राकृतिक रंग बनाये जाते हैं। कुछ रंग तो हम आसानी से घर पर ही बना सकते हैं।


जैसे जैसे समय बदलता गया.....अन्य चीज़ों के साथ-साथ होली का स्वरूप भी अच्छा खासा बदला हुया दिख रहा है। होली के दिन हम चमकीले रंग वाले पेंट से लोगों के चेहरों को पुते हुये देखते हैं। और कुछ नहीं तो पानी से भरी बाल्टीयां, पानी से भरे गुब्बारे राहगीरों पर फैंक कर ही उन्हें परेशान करने का एक सिलसिला कईँ सालों से शुरू है।


होली रंगों और खुशियों का त्योहार है...लेकिन बाज़ार में बिकने वाले रंग कोरे कैमिकल्स हैं....इन में ऐसे अनेक पदार्थ मौजूद रहते हैं जो हम सब की सेहत तो खराब करते ही हैं, इस के साथ ही साथ ये कैमिकल्स पानी में रहने वाले जीवों के लिये भी विषैले होते हैं। इन्हीं कैमिकल्स की वजह से चमड़ी एवं आंखों के रोगों के साथ-साथ दमा एवं एलर्जी भी अकसर हो जाती है। एक अनुमान के अनुसार यदि दिल्ली की आधी जनसंख्या भी करीब 100ग्राम कैमिकल्स युक्त रंग प्रति व्यक्ति इस्तेमाल करे तो इससे लगभग 70टन कैमिकल्स यमुना में मिलने की संभावना रहती है।


विभिन्न तरह के पेंटस जिन में कारखानों में इस्तेमाल होने वाले रंग, इंजन आयल, कापर सल्फेट, क्रोमियम आयोडाइड, एल्यूमीनियम ब्रोमाइड, लैड ऑक्साइड एवं कूटा हुया कांच .........ये सब कैमिकल्स को निःसंदेह चमकीला तो बना देते हैं, लेकिन हमारे शरीर को इनसे होने वाले नुकसान के रूप में बहुत बड़ा मोल चुकाना पड़ता है। इन के दुष्प्रभावों से हमारा शरीर, मन और मस्तिष्क कईं बार स्थायी तौर पर प्रभावित हो सकता है। बाज़ार में उपलब्ध कुछ रासायनिक रंगों की थोड़ी चर्चा करते हैं.....

काला रंग (लैड ऑक्साइड

)...यह रंग गुर्दे व मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालता है।

हरा रंग( कॉपर सल्फेट)...इसे आम भाषा में नीला थोथा कहते हैं। इस को लगाने से आँखों की एलर्जी व अस्थायी अंधापन हो सकता है, वैसे तो इस कैमिकल से होने वाले भयंकर घातक प्रभावों के बारे में तो आप सब भली-भांति परिचित ही हैं।

बैंगनी रंग( क्रोमियम ऑयोडाइड)...इस के इस्तेमाल से दमा ओर एलर्जी होती है।

सिल्वर रंग( एल्यूमीनियम ब्रोमाइड)...यह रंग कैंसर पैदा कर सकता है।

लाल रंग ( मरक्यूरिक सल्फाइट)...इस के इस्तेमाल से चमड़ी का कैंसर, दिमागी कमज़ोरी, लकवा हो सकता है और दृष्टि पर असर पड़ सकता है।


तो फिर क्या सोचा है आपने ?.....सुरक्षित होली खेलने के लिये हमें प्राकृतिक रंगों का ही उपयोग करना चाहिये जो कि कईं जगहों पर उपलब्ध होते हैं लेकिन विभिन्न प्रकार के फूलों से इन्हें घर में ही प्राप्त कर लेते हैं। कईं लोग लाल चंदन पावडर से होली खेलते हैं। एक बात है ना....होली कैसे भी खेलें...लेकिन प्रेम से....होली को गंदे तरीके से खेल कर ना तो हमें अपना और ना ही किसी और का मज़ा किरकिरा करना है। जहां तक हो सके...अपने मित्रों, रिश्तेदारों एवं परिचितों के साथ ही होली खेलें....ऐसे ही हर राहगीर पर पानी फैंकना तो होली ना हुई!


वैसे मुझे इस समय ध्यान आ रहा है कि होली के त्योहार पर फिल्माए गये फिल्मों के सुप्रसिद्ध गीत जो सुबह से ही रेडियो, केबल और लाउड-स्पीकरों पर उस दिन बजते रहते हैं, वे लोगों के उत्साह में चार चांद लगाने का काम करते हैं। लेकिन मेरी पसंद में सब से ऊपर शोले फिल्म का यह वाली गीत है........जिसे मैं होली के बिना भी बार-बार सुन लेता हूं और इस में ऊधम मचा रहे हर बंदे के फन की दाद दिये बिना नहीं रह सकता। आप को इन सब हुड़दंगियों के साथ यह उत्सव मनाने से कौन रोक रहा है ............तो मारिये एक क्लिक और हो जाइए शुरू !!


PS…..पंकज अवधिया जी , आप तो वनस्पति विज्ञान के बहुत बड़े शोधकर्त्ता हो, मेरी एक समस्या का समाधान कीजिये। मैं इन मच्छरों से बहुत परेशान हूं......सुबह सुबह ढंग से पोस्ट भी नहीं लिखने देते। इसलिये हम सब लोगों को आप यह बतलायें कि क्या कोई ऐसा घास,कोई ऐसा पौधा नहीं बना ...या कोई ऐसी चीज़ जो इन पौधों से प्राप्त होती हो जिस की धूनि जला कर इन मच्छरों को दूर भगाया जा सके। मुझे आशा है कि आप के पास इस का भी ज़रूर कोई फार्मूला होगा......तो शेयर कीजियेगा। दरअसल बात यह भी है ना कि इन कैमिकल युक्त मच्छर-भगाऊ या मच्छर-मारू टिकियों एवं कॉयलों के ज़्यादा इस्तेमाल से भी डर ही लगता है....रात को तो चलिये मज़बूरी होती है लेकिन सुबह उठ कर इन्हें इस्तेमाल करने की इच्छा नहीं होती। अवधिया जी, आप ही इस परेशानी का हल निकाल सकते हैं। एडवांस में धन्यवाद और होली की मुबारकबाद....।

रूकावट के लिये खेद है............अब आप होली के रंग में रंगे इन हुड़दंगियों के जश्न में शामिल हो सकते हैं।


5 comments:

रवीन्द्र प्रभात said...

आपको होली की कोटिश: बधाईयाँ !

राज भाटिय़ा said...

आपको भी होली की शुभकामनाएं !!

परमजीत बाली said...

एक अच्छी पोस्ट के सा्थ ,होली के अच्छे रंग बिखेरे हैं। होली मुबारक।

Gyandutt Pandey said...

सही में रसायनिक होली नहीं होनी चाहिये। मैं तो एलर्जी के कारण न सूखे न गीले रंगों का प्रयोग करता हूं।
हां होली का मन होना चाहिये - जरूर। होली मुबारक जी।

पंकज अवधिया Pankaj Oudhia said...

क्षमा करे आने मे देरी हो गयी। आप कहाँ पर है यह तो मुझे पता नही पर अभी पूरे देश मे ब्लूमिया लेसेरा नामक खरपतवार उग रहा है। इसे कुकरौन्दा भी कहा जाता है। इसे सुखाकर जलाने से अच्छी सुगन्ध भी आयेगी और मच्छर भी भागेंगे। आयुर्वेद मे दमा के लिये इस धुँए को लाभकारी माना गया है खासकर अटैक के समय। यहाँ होली मे इसी पौधे को जलाने की सलाह मै देता हूँ ताकि पूरे शहर को मच्छरो से मुक्ति मिल सके। ब्लूमिया के चित्रो और इस पर मेरे आलेखो की कडी नीचे दी गयी है। फिर भी पहचान मे दिक्कत हो तो निसंकोच लिखे।


http://ecoport.org/ep?Plant=3744&entityType=PL****&entityDisplayCategory=eArticles

http://ecoport.org/ep?SearchType=pdb&Subject=blumea&Author=oudhia&SubjectWild=CO&Thumbnails=Only&AuthorWild=CO

सत्तर से अधिक शोध आलेख और 400 से अधिक चित्र है इन कडियो मे।