शनिवार, 29 अप्रैल 2017

सारी ड्रामेबाजी है पेज थ्री वाली ...

महान एक्टर विनोद खन्ना साहब नहीं रहे, मन दुःखी है ...

कल रात मैं दो तीन अखबारें देख रहा था जिस में उन के स्वर्गवास होने के समाचार के साथ साथ बहुत से श्रद्धांजलि संदेश भी छपे हुए थे...

वे संदेश पढ़ते पढ़ते मुझे यही लग रहा था जैसा कि मेरा विश्वास भी है कि दुनिया में सब शब्दों का ही खेल है..लिखे-पढ़े गये, कहे-सुने गये ...और वे शब्द भी जो कभी कहे नहीं गये लेकिन आंखें बेहतर ढंग से कह गईं....हम इस आंखों की भाषा को अकसर कम आंक लेते  हैं लेकिन हैं ये भी दिल की जुबां...शायद इसीलिए लोग कुछ अवसरों पर काला चश्मा चढ़ा लेते होंगे..

हां, तो जब मैं श्रद्धांजलि संदेश पढ़ रहा था तो मुझे एक बार बड़ी अजीब सी लगी ...सब लोगों ने कहा कि वे बहुत हेंडसम थे, बड़े अच्छे इंसान थे, और एक्टर तो एकदम सुपरहिट तो थे ही... वह तो यार हमें भी पता है ..लेकिन जो बात इन सब संदेशों में गायब थी कि ये लोग कब विनोद खन्ना साहब का हाल चाल लेने पहुंचे थे ...

वे बीमार तो पिछले दो साल से चल ही रहे थे ...किसी ने लिखा कि उन से मिले कईं साल हो चुके थे ..लेकिन वे थे बहुत अच्छे...एक ने कहा कि वह उन के थोड़ा ठीक होने की इंतज़ार कर रहा था, ताकि वह फिर अपने भाई के साथ जा कर उन का हाल चाल पता कर के आते...

सब ऐसी ही बातें थी ..किसी ने यह नहीं लिखा कि हम उन्हें अस्पताल में कब मिल कर आए...बस, वह नाटक हमें उन की सांसे थमने के बाद दिखा कि कौन सा बंदा कौन सा काम छोड़ कर उन के यहां पहुंच गया। 

वैसे यह बॉलीवुड का ही हाल नहीं है...समाज का भी तो यही हाल है ..किसी के पास किसी के लिए समय ही कहां हैं..बस ऐसे ही लफ़्फाज़ी है ...कोई इसे अच्छे से कर पाता है, कोई इस में भी पीछे रह जाता है ....लेकिन सोचने वाली बात यह है कि फर्क पड़ता है!!

मुझे यह तो आभास है कि हम सब लोगों की तरह इन फिल्मी हस्तियों की ज़िंदगी भी खोखली ही होती है ....बस बाहरी चमक दमक ही इन्हें रखनी पड़ती है...वरना कौन इन्हें विज्ञापनों के लिए करोड़ों देगा.. 

बस, एेसी ही ड्रामेबाजी है बॉलीवुड में भी ...बिल्कुल बाहर वाले हमारे समाज की ही तरह ...

खुशकिस्मत हैं वे लोग जो अपनी शर्तों पर ज़िंदगी को जी पाते हैं ...वरना लोग तो हरेक को खुश करने के चक्कर में अपनी ज़िंदगी कबाड़ कर लेते हैं...


मुझे ध्यान आ रहा था कि हम लोग कह तो देते हैं कि फलां फलां कलाकार इस उम्र में भी काम कर रहा है ..लेकिन सोचने वाली बात है कि वह काम क्या कर रहा है, कोई समाज सेवा का या परोपकार का काम हो तो बात भी है, वरना करोड़ो रूपये लेकर तेल मालिश के विज्ञापन, पान मसालों के विज्ञापन कर के क्या हासिल .. पानमसाले का विज्ञापन इतना बड़ा स्टार है कि सोच रहा हूं कि पानमसाले पर एक किताब छाप कर उसे तो भेज ही दूं... पैसे की क्या कमी होती है इन हस्तियों के पास, अगर ये चाहें तो बहुत से सामाजिक सरोकारों से जुड़ कर समाज की बेहतरी के लिए काम कर सकते हैं...

कल रात मच्छरों के आतंक की वजह से १ बजे के करीब उठ बैठा...टीवी लगाया तो देखा कि धर्म भाजी कब्ज दूर करने वाली किसी दवाई का बहुत लंबा विज्ञापन कर रहे हैं... कम से कम १५-२० मिनट तक तो चला ही होगा यह विज्ञापन!! 

दुनिया में तो सारी ड्रामेबाजी ही है...लफ़्फ़ाज़ी है ...कोई किसी की चापलूसी में लिप्त है, कोई किसी की खुशामद में संलिप्त है, लफ़्फ़ों का खेल है बस! बंद करो यार यह नौटंकी ...जाने वाले को क्या फ़र्क पड़ता है कि कौन उसे श्रद्धांजलि देने आया, कौन नहीं आया...He was already an eolved soul who would be remembered for being a great human being and great artist.....rest in peace, Vinod Khanna! 


खुली नज़र क्या खेल दिखेगा दुनिया का , बंद आंख से देख तमाशा दुनिया का ....पिछले दिनों मैंने इस गीत को बहुत बार सुना...गीतकार ने भी क्या गजब लिख दिया है!!