पिछले हफ्ते की बात है मैं पानीपत से एक पैसेंजर गाड़ी में रोहतक की तरफ़ जा रहा था ---हरियाणा ज़्यादा तो मैं घूमा नहीं हूं --- लेकिन जिस रास्ते से मेरा वास्ता पड़ता है वह यही है ---- पानीपत से रोहतक और रोहतक से दिल्ली ---- मैंने नोटिस किया है कि इस रूट पर कुछ बहुत ही अक्खड़ किस्म के जाहिल से लोग भी अकसर गाड़ी में मिल जाते हैं ( कृपया मेरी जाहिल शब्द को अन्यथा न लें, आप को तो पता ही है कि मुझे अनपढ़ लोगों से पता नहीं वैसे तो बहुत ही ज़्यादा सहानुभूति है ही , लेकिन जो अनपढ़ है, ऊपर से अक्खड़ हो और साथ ही बदतमीज़ भी हो , तो ऐसे बंदे को तो सहना शायद सब के बश की बात नहीं होती) ....
हां, तो उस पानीपत से रोहतक जा रही पैसेंजर गाड़ी में मेरी सामने वाली सीट पर एक 20-22 वर्ष का युवक बैठा था ---बीड़ी पी रहा था ---- मेरी समस्या यह है कि बीड़ी का धुआं मेरे सिर पर चढ़ता है तो मुझे चक्कर आने शुरू हो जाते हैं, ऐसे में उस का मेरा वार्तालाप क्या आप नहीं सुनना चाहेंगे ?
मैंने कहा ----बीड़ी बंद कर दो भई। धुआं मेरे सिर को चढ़ता है।
नवयुवक ---- ( बहुत ही अक्खड़, बेवकूफ़ी वाले अंदाज़ में ) ---- अकेला मैं ही थोड़ा पी रिहा सू---वो देख घने लोग पीन लाग रहे हैं।
मैंने कहा ----लेकिन मुझे तो इस समय तुम्हारी बीड़ी से तकलीफ़ है।
नवयुवक ----तो फिर किसी दूसरी जा कर बैठ जा ।
और साथ ही उस ने अगला कश खींचना शुरू कर दिया। मैंने चुप रहने में ही समझदारी समझी ---- क्योंकि इस के आगे अगर वार्तालाप चलता तो उन का ग्रुप या तो मेरे को जूतों से पीट देता ---और अगर मैं अपनी बात पर अड़ा रहता तो क्या पता --- रास्ते में ही कहीं गाड़ी से नीचे ही धकेल दिया जाता। वैसे मैं इतनी जल्दी हार मानने वाला तो नहीं था लेकिन मेरी बुजुर्ग मां मेरे साथ थी , इसलिये मैं चुपचाप बैठा उस बेवकूफ़ इंसान के धूम्रपान का बेवकूफ़ सा मूक दर्शक बना रहा। लेकिन मैंने भी मन ही मन में उसे इतनी खौफ़नाक गालियां निकालीं कि क्या बताऊं ?
---- जी हां, बिल्कुल एक औसत हिंदोस्तानी की तरह जिस तरह वह अपने मन की आग जगह जगह मन ही में गालियां निकाल कर शांत सी कर लेता है। चलिये, उस किस्से पर मिट्टी डालते हैं। क्या है ना इस रूट पर बस में , ट्रेन में खूब बीड़ीयां पीने-पिलाने का जश्न खूब चलता है,लेकिन मेरे जैसों को इन बीड़ी-धारियों की सुलगती बीड़ी देखते ही फ * ने लगती है---शायद उस से भी पहले जब कोई भला पुरूष बीड़ी के पैकेट को हाथ में ले कर रगड़ता है ना तो बस मेरा तो सिर तब ही दुःखने लगता है कि अब खैर नहीं। इस रूट पर ---बार बार इस रूट की बात इसलिये कर रहा हूं क्योंकि इस रूट का वाकिफ़ हूं ---भुक्तभोगी हूं --- पता नहीं दूसरे रूटों पर क्या हालात होंगे , कह नहीं सकता।
लेकिन मेरे उस जाहिल-गंवार को एक बार कुछ पूछ लेने का असर यह हुआ कि उस ने दूसरी बीडी नहीं सुलगाई ----लेकिन पहली उस ने पूरे मजे से पी। होता यह है कि कानून का इन बीड़ी पीने वालों को भी पता होता है ---इसलिये मन में यह भी डरे डरे से ही होते हैं लेकिन हम हिंदोस्तानियों का रोना यही है कि हम लोग पता नहीं चुप रहने में ही अपनी सलामती समझते हैं ----काहे की यह सलामती जिस की वजह से रोज़ाना ऐसे लोगों की बीड़ीयों के कारण हज़ारों लोगों के फेफड़े बिना कसूर के सिंकते रहते हैं।
रोहतक-दिल्ली रूट पर मैंने 1991 में कुछ हफ़्तों के लिये डेली पैसेंजरी की थी ---- डिब्बे में घुसते ही ऊपर वाली सीट पर अखबार बिछा कर आंखें बंद कर लिया करता था । इसलिये जब मुझे यह वाली सर्विस छोड़ कर दूसरी सर्विस बंबई जा कर ज्वाइन करने का अवसर मिला तो मैं ना नहीं कर पाया। तुरंत इस्तीफा दे कर बंबई भाग गया ---- शायद मन के किसी कौने में यही खुशी थी कि इस साली, कमबख्त बीड़ी से तो छुटकारा मिलेगा।
बीड़ी की बात हो रही है ---आज सुबह एक 42 वर्ष का व्यक्ति आया जो लगभग पच्चीस साल से एक पैकेट बीड़ी पी रहा था लेकिन दो महीने से बीड़ी पीनी छोड़ दी है। परमात्मा इस का भला करे ----मुझे इस के मुंह के अंदर देख कर बहुत ही दुःख हुआ। यह आया तो इस तकलीफ की वजह से था कि मुंह के अंदर कुछ भी खाया पिया बहुत लगता है , दर्द सा होता है। उस के मुंह के अंदर की तस्वीर आप यहां देख रहे हैं। इस के बाईं तरफ़ के मुंह के कौने का क्या हाल है, यह आप इस तस्वीर में देख रहे अगर आप को याद होगा कि मैंने अपने एक दूसरे मरीज़ के मुंह की तस्वीर अपनी किसी दूसरी पोस्ट में डाली थी ---- लेकिन इस के मुंह की हालत उस से भी बदतर लग रही थी ।
अनुभव के आधार पर यही लग रहा था कि सब कुछ ठीक नहीं है ---- यही लग रहा था कि यह कुछ भी हो सकता है, शायद यह जख्म कैंसर की पूर्वावस्था की स्टेज पार कर चुका था । इसलिये उसे तो यह सब कुछ बहुत ही हल्के-फुलके ढंग से बताया -----पहली बार ही उस को क्या कहें, देखेंगे अब तुरंत ही उस के इस ज़ख्म की बायोप्सी ( जख्म का टुकड़े लेकर जांच की प्रोसैस को बायोप्सी कहते हैं ) ....का प्रबंध किया जायेगा और उस के बाद उचित इलाज का प्रवंध किया जायेगा।
एक बहुत ही अहम् बात यह है कि उस की दाईं तरफ़ का कौना लगभग ठीक ठाक लग रहा था ----इसलिये उस की बाईं तरफ़ के ज़ख्म का किसी चिंताजनक स्थिति की तरफ़ इशारा करता लगता है।
और आप इस के तालू की अवस्था देखिये ---आप देखिये कि इस 42 वर्षीय व्यक्ति की बीड़ी की आदत ने तंबाकू का क्या हाल कर दिया है ---- इस की भी बायोप्सी करवानी ही होगी क्योंकि वहां पर भी काफ़ी गड़बड़ हो चुकी लगती है।
उस बंदे को तो मैंने जाते जाते बिलकुल सहज सा ही कर दिया ---लेकिन लोहा गर्म देखते हुये मैंने उस के मन में निष्क्रिय धूम्रपान ( passive smoking) के प्रति नफ़रत का बीज भी अच्छी तरह से बो ही दिया ---चूंकि वह स्वयं इस बीड़ी का शिकार हो चुका था ( उस ने मुझे इतना कहा कि डाक्टर साहब, मुझे भी लग तो रहा था कि छःमहीने से मेरे मुंह में कुछ गड़बड़ तो है ) ....मैंने पहले तो उसे समझाया कि पैसिव धूम्रपान होता क्या है ---- जब कोई आप के घर में , आप के कार्य-स्थल पर आप का साथी सिगरेट-बीड़ी के कश मारता है, बस-गाड़ी में कोई बीडी से अपने शरीर को फूंक रहा होता है तो वह एक धीमे ज़हर की तरह ही दूसरे लोगों के शरीर की भी तबाही कर रहा होता है।
इसलिये मैंने उसे कहा कि जहां भी सार्वजनिक स्थान पर, अपने साथ काम करने वाले लोगों को धुआं छोड़ते देखो , तो चुप मत रहो ----- बोलो, उसे बताओ कि आप के धुएं से मेरे को परेशानी है। आप यह काम यहां नहीं कर सकते -----यहां पर यह सब करना कानूनन ज़ुर्म है । ऐसा सब लोग कहने लगेंगे तो इस का प्रभाव होगा ---मेरा जैसा कोई अकेला कहेगा तो उसे बीड़ी-मंडली के द्वारा की जाने वाली जूतों की बरसात के डर से या गाड़ी से नीचे गिराये जाने के डर से अपना मुंह बंद करना पड़ सकता है ----अब सरकार गाड़ी के एक एक डिब्बे में तो घुसने से रही ----कुछ काम तो पब्लिक भी करे ----इन बीड़ी-सिगरेट पीने वालों को बतायो तो सही कि हमें आप की बीड़ी सिगरेट पीने से एतराज़ है ---इसे बंद करें ----वरना धूआं बाहर न निकालें ---इसे अपने फेफड़े अच्छी तरह से झुलसा लेने तो दो -------जब हर बंदा इस तरह की आपत्ति करने लगा तो फिर देखिये इन का क्या हाल होगा !!
वैसे आज सुबह मैं अपने मरीज़ से यह पैसिव स्मोकिंग वाली बात कर रहा था और वह बेहद तन्मयता से सुन कर मुंडी हिला रहा था तो मुझे बहुत ही सुकून मिल रहा था ---यह एक नया आईडिया था जिस पर शायद मैंने अपने मरीज़ों को इतना ज़ोर देने के लिये कभी प्रेरित नहीं किया था ----- क्योंकि मेरा बहुत सारा समय तो उन की स्वयं की बीड़ी सिगरेट छुड़वाने में निकल जाता है ---- लेकिन आज से यह बातें भी सभी मरीज़ों के साथ ज़रूर हुआ करेंगी । और हां, मुझे लग रहा था कि सार्वजनिक स्थानों पर पैसिव स्मोकिंग के बारे में बहुत कुछ लिख कर इस का मैं इतना प्रचार प्रसार करूंगा कि उस पैसेंजर गाड़ी वाले युवक की ऐसी की तैसी ---- जिस ने मेरे को कहा कि तू जा के किसी दूसरी जगह पर बैठ जा ------ मज़ा तो तब आये जब इन्हीं रूटों पर लोग गाड़ी में बीड़ी सिगरेट सुलगायें तो साथ बैठा दूसरा बंदा उस के मुंह से बीड़ी छीन कर बाहर फैंक दे -----------तो फिर, देर किस बात की है ------ह्ल्ला बोल !!!!!--------------लगे रहो, मुन्ना भाई। मेरे इस सपने को साकार करने के लिये आप में से हरेक का सहयोग चाहिये होगा ----वैसे, अभी तो इस बात की कल्पना कर के कि बस-गाड़ी में सफर कर रहे किसी बंधु की जलती बीड़ी उस के मुंह से छीन कर बाहर फैंके जा रही है ----ऐसा सोचने से ही मन गदगद हो गया है। हम लोगों की खुशीयां भी कितनी छोटी छोटी हैं और कितनी छोटी छोटी बातों से हम खुश हो जाते हैं ----- तो फिर इस सारे समाज को यह छोटी सी खुशी देने से हमें कौन रोक रहा है ?
PS....After writing this post, I just gave it to my son to have a look and I was feeling a bit embarrased about the too much frankness shown in the post. With somewhat I shared with my son that I feel like not posting it. So, I am going to delete it. "Papa, if you are not feeling like opening your heart --- your thoughts in your own blog, then where would you get a better opportunity to do that stuff like that !!" So, after getting his nod and clearance, i am just going ahead and pressing the PUBLISH button.
Good luck !!
हां, तो उस पानीपत से रोहतक जा रही पैसेंजर गाड़ी में मेरी सामने वाली सीट पर एक 20-22 वर्ष का युवक बैठा था ---बीड़ी पी रहा था ---- मेरी समस्या यह है कि बीड़ी का धुआं मेरे सिर पर चढ़ता है तो मुझे चक्कर आने शुरू हो जाते हैं, ऐसे में उस का मेरा वार्तालाप क्या आप नहीं सुनना चाहेंगे ?
मैंने कहा ----बीड़ी बंद कर दो भई। धुआं मेरे सिर को चढ़ता है।
नवयुवक ---- ( बहुत ही अक्खड़, बेवकूफ़ी वाले अंदाज़ में ) ---- अकेला मैं ही थोड़ा पी रिहा सू---वो देख घने लोग पीन लाग रहे हैं।
मैंने कहा ----लेकिन मुझे तो इस समय तुम्हारी बीड़ी से तकलीफ़ है।
नवयुवक ----तो फिर किसी दूसरी जा कर बैठ जा ।
और साथ ही उस ने अगला कश खींचना शुरू कर दिया। मैंने चुप रहने में ही समझदारी समझी ---- क्योंकि इस के आगे अगर वार्तालाप चलता तो उन का ग्रुप या तो मेरे को जूतों से पीट देता ---और अगर मैं अपनी बात पर अड़ा रहता तो क्या पता --- रास्ते में ही कहीं गाड़ी से नीचे ही धकेल दिया जाता। वैसे मैं इतनी जल्दी हार मानने वाला तो नहीं था लेकिन मेरी बुजुर्ग मां मेरे साथ थी , इसलिये मैं चुपचाप बैठा उस बेवकूफ़ इंसान के धूम्रपान का बेवकूफ़ सा मूक दर्शक बना रहा। लेकिन मैंने भी मन ही मन में उसे इतनी खौफ़नाक गालियां निकालीं कि क्या बताऊं ?
---- जी हां, बिल्कुल एक औसत हिंदोस्तानी की तरह जिस तरह वह अपने मन की आग जगह जगह मन ही में गालियां निकाल कर शांत सी कर लेता है। चलिये, उस किस्से पर मिट्टी डालते हैं। क्या है ना इस रूट पर बस में , ट्रेन में खूब बीड़ीयां पीने-पिलाने का जश्न खूब चलता है,लेकिन मेरे जैसों को इन बीड़ी-धारियों की सुलगती बीड़ी देखते ही फ * ने लगती है---शायद उस से भी पहले जब कोई भला पुरूष बीड़ी के पैकेट को हाथ में ले कर रगड़ता है ना तो बस मेरा तो सिर तब ही दुःखने लगता है कि अब खैर नहीं। इस रूट पर ---बार बार इस रूट की बात इसलिये कर रहा हूं क्योंकि इस रूट का वाकिफ़ हूं ---भुक्तभोगी हूं --- पता नहीं दूसरे रूटों पर क्या हालात होंगे , कह नहीं सकता।
लेकिन मेरे उस जाहिल-गंवार को एक बार कुछ पूछ लेने का असर यह हुआ कि उस ने दूसरी बीडी नहीं सुलगाई ----लेकिन पहली उस ने पूरे मजे से पी। होता यह है कि कानून का इन बीड़ी पीने वालों को भी पता होता है ---इसलिये मन में यह भी डरे डरे से ही होते हैं लेकिन हम हिंदोस्तानियों का रोना यही है कि हम लोग पता नहीं चुप रहने में ही अपनी सलामती समझते हैं ----काहे की यह सलामती जिस की वजह से रोज़ाना ऐसे लोगों की बीड़ीयों के कारण हज़ारों लोगों के फेफड़े बिना कसूर के सिंकते रहते हैं।
रोहतक-दिल्ली रूट पर मैंने 1991 में कुछ हफ़्तों के लिये डेली पैसेंजरी की थी ---- डिब्बे में घुसते ही ऊपर वाली सीट पर अखबार बिछा कर आंखें बंद कर लिया करता था । इसलिये जब मुझे यह वाली सर्विस छोड़ कर दूसरी सर्विस बंबई जा कर ज्वाइन करने का अवसर मिला तो मैं ना नहीं कर पाया। तुरंत इस्तीफा दे कर बंबई भाग गया ---- शायद मन के किसी कौने में यही खुशी थी कि इस साली, कमबख्त बीड़ी से तो छुटकारा मिलेगा।
बीड़ी की बात हो रही है ---आज सुबह एक 42 वर्ष का व्यक्ति आया जो लगभग पच्चीस साल से एक पैकेट बीड़ी पी रहा था लेकिन दो महीने से बीड़ी पीनी छोड़ दी है। परमात्मा इस का भला करे ----मुझे इस के मुंह के अंदर देख कर बहुत ही दुःख हुआ। यह आया तो इस तकलीफ की वजह से था कि मुंह के अंदर कुछ भी खाया पिया बहुत लगता है , दर्द सा होता है। उस के मुंह के अंदर की तस्वीर आप यहां देख रहे हैं। इस के बाईं तरफ़ के मुंह के कौने का क्या हाल है, यह आप इस तस्वीर में देख रहे अगर आप को याद होगा कि मैंने अपने एक दूसरे मरीज़ के मुंह की तस्वीर अपनी किसी दूसरी पोस्ट में डाली थी ---- लेकिन इस के मुंह की हालत उस से भी बदतर लग रही थी ।
अनुभव के आधार पर यही लग रहा था कि सब कुछ ठीक नहीं है ---- यही लग रहा था कि यह कुछ भी हो सकता है, शायद यह जख्म कैंसर की पूर्वावस्था की स्टेज पार कर चुका था । इसलिये उसे तो यह सब कुछ बहुत ही हल्के-फुलके ढंग से बताया -----पहली बार ही उस को क्या कहें, देखेंगे अब तुरंत ही उस के इस ज़ख्म की बायोप्सी ( जख्म का टुकड़े लेकर जांच की प्रोसैस को बायोप्सी कहते हैं ) ....का प्रबंध किया जायेगा और उस के बाद उचित इलाज का प्रवंध किया जायेगा।
एक बहुत ही अहम् बात यह है कि उस की दाईं तरफ़ का कौना लगभग ठीक ठाक लग रहा था ----इसलिये उस की बाईं तरफ़ के ज़ख्म का किसी चिंताजनक स्थिति की तरफ़ इशारा करता लगता है।
और आप इस के तालू की अवस्था देखिये ---आप देखिये कि इस 42 वर्षीय व्यक्ति की बीड़ी की आदत ने तंबाकू का क्या हाल कर दिया है ---- इस की भी बायोप्सी करवानी ही होगी क्योंकि वहां पर भी काफ़ी गड़बड़ हो चुकी लगती है।
उस बंदे को तो मैंने जाते जाते बिलकुल सहज सा ही कर दिया ---लेकिन लोहा गर्म देखते हुये मैंने उस के मन में निष्क्रिय धूम्रपान ( passive smoking) के प्रति नफ़रत का बीज भी अच्छी तरह से बो ही दिया ---चूंकि वह स्वयं इस बीड़ी का शिकार हो चुका था ( उस ने मुझे इतना कहा कि डाक्टर साहब, मुझे भी लग तो रहा था कि छःमहीने से मेरे मुंह में कुछ गड़बड़ तो है ) ....मैंने पहले तो उसे समझाया कि पैसिव धूम्रपान होता क्या है ---- जब कोई आप के घर में , आप के कार्य-स्थल पर आप का साथी सिगरेट-बीड़ी के कश मारता है, बस-गाड़ी में कोई बीडी से अपने शरीर को फूंक रहा होता है तो वह एक धीमे ज़हर की तरह ही दूसरे लोगों के शरीर की भी तबाही कर रहा होता है।
इसलिये मैंने उसे कहा कि जहां भी सार्वजनिक स्थान पर, अपने साथ काम करने वाले लोगों को धुआं छोड़ते देखो , तो चुप मत रहो ----- बोलो, उसे बताओ कि आप के धुएं से मेरे को परेशानी है। आप यह काम यहां नहीं कर सकते -----यहां पर यह सब करना कानूनन ज़ुर्म है । ऐसा सब लोग कहने लगेंगे तो इस का प्रभाव होगा ---मेरा जैसा कोई अकेला कहेगा तो उसे बीड़ी-मंडली के द्वारा की जाने वाली जूतों की बरसात के डर से या गाड़ी से नीचे गिराये जाने के डर से अपना मुंह बंद करना पड़ सकता है ----अब सरकार गाड़ी के एक एक डिब्बे में तो घुसने से रही ----कुछ काम तो पब्लिक भी करे ----इन बीड़ी-सिगरेट पीने वालों को बतायो तो सही कि हमें आप की बीड़ी सिगरेट पीने से एतराज़ है ---इसे बंद करें ----वरना धूआं बाहर न निकालें ---इसे अपने फेफड़े अच्छी तरह से झुलसा लेने तो दो -------जब हर बंदा इस तरह की आपत्ति करने लगा तो फिर देखिये इन का क्या हाल होगा !!
वैसे आज सुबह मैं अपने मरीज़ से यह पैसिव स्मोकिंग वाली बात कर रहा था और वह बेहद तन्मयता से सुन कर मुंडी हिला रहा था तो मुझे बहुत ही सुकून मिल रहा था ---यह एक नया आईडिया था जिस पर शायद मैंने अपने मरीज़ों को इतना ज़ोर देने के लिये कभी प्रेरित नहीं किया था ----- क्योंकि मेरा बहुत सारा समय तो उन की स्वयं की बीड़ी सिगरेट छुड़वाने में निकल जाता है ---- लेकिन आज से यह बातें भी सभी मरीज़ों के साथ ज़रूर हुआ करेंगी । और हां, मुझे लग रहा था कि सार्वजनिक स्थानों पर पैसिव स्मोकिंग के बारे में बहुत कुछ लिख कर इस का मैं इतना प्रचार प्रसार करूंगा कि उस पैसेंजर गाड़ी वाले युवक की ऐसी की तैसी ---- जिस ने मेरे को कहा कि तू जा के किसी दूसरी जगह पर बैठ जा ------ मज़ा तो तब आये जब इन्हीं रूटों पर लोग गाड़ी में बीड़ी सिगरेट सुलगायें तो साथ बैठा दूसरा बंदा उस के मुंह से बीड़ी छीन कर बाहर फैंक दे -----------तो फिर, देर किस बात की है ------ह्ल्ला बोल !!!!!--------------लगे रहो, मुन्ना भाई। मेरे इस सपने को साकार करने के लिये आप में से हरेक का सहयोग चाहिये होगा ----वैसे, अभी तो इस बात की कल्पना कर के कि बस-गाड़ी में सफर कर रहे किसी बंधु की जलती बीड़ी उस के मुंह से छीन कर बाहर फैंके जा रही है ----ऐसा सोचने से ही मन गदगद हो गया है। हम लोगों की खुशीयां भी कितनी छोटी छोटी हैं और कितनी छोटी छोटी बातों से हम खुश हो जाते हैं ----- तो फिर इस सारे समाज को यह छोटी सी खुशी देने से हमें कौन रोक रहा है ?
PS....After writing this post, I just gave it to my son to have a look and I was feeling a bit embarrased about the too much frankness shown in the post. With somewhat I shared with my son that I feel like not posting it. So, I am going to delete it. "Papa, if you are not feeling like opening your heart --- your thoughts in your own blog, then where would you get a better opportunity to do that stuff like that !!" So, after getting his nod and clearance, i am just going ahead and pressing the PUBLISH button.
Good luck !!