बुधवार, 6 अप्रैल 2016

नाखुन भी बहुत कुछ ब्यां कर देते हैं..

मैं ने किसी से सुना था कि एक अनुभवी चिकित्सक मरीज़ के सेहत के बारे में कुछ कुछ अंदाज़ इस बात से भी लगा लेता है जिस ढंग से वह उस के पास चल कर आया है...निःसंदेह चिकित्सक लोग बहुत महान हैं।

हमारी आंखें तो बोलती ही हैं...दिल की जुबां कहा गया है इन्हें..बेशक हैं, लेिकन चिकित्सक इन को देख कर बहुत सी शारीरिक तकलीफ़ों का पता ढूंढ लेते हैं, मुंह के अंदर झांकने से हमें किसी बंदे की सेहत का कुछ कुछ अंदाज़ा हो जाता है, और हां, जुबान देख कर भी बहुत कुछ पता चल जाता है .. एक १००० पन्नों की किताब को आधी-अधूरी पढ़ कर मैंने छोड़ दिया था...Tongue- in Health & Disease...चकरा गया था मैं उसे पढ़ते पढ़ते...

हमारे बाल, उन का टैक्सचर, उन की मोटाई...हमारी चमड़ी की हालत, हमारे पैरों की अंगुलियों की हालत, और यहां तक कि हमारे नाखुन भी बहुत कुछ ब्यां करते हैं...

नाखुन का ध्यान मुझे कुछ दिनों से ज़्यादा ही आ रहा है...मेरे पैर के अंगूठे के नाखुन का रंग कुछ अजीब सा था पिछले कुछ हफ्तों से.. अकसर इस तरह का काला वाला नाखुन तभी पड़ता है जब कोई चोट वोट लगी हो.....ऐसा मुझे कुछ ध्यान नहीं आ रहा था...

एक दिन सोचा व्हाट्सएप पर सारा दिन फालतू फालतू ज्ञान तो बांटते रहते हैं हम लोग.....किसी काम के लिए ही इसे इस्तेमाल कर लिया जाए.. मेरा मतलब एक तरह की टेलीमेडीसन से था...

पिछले महीने मेरा नाखुन ऐसा था..
मैंने पैर के अंगूठे की फोटो खींची और अपने मित्र डा अमरजीत सिंह सचदेवा को व्हाट्सएप की और पूछा कि यह क्या है...तुरंत जवाब मिला था कि यह फंगल इंफेक्शन है ...फलां फलां दवाई एक महीने में एक हफ्ते के लिए तीन महीने ले लो...

तुरंत शुरू कर दी...एक महीना खा ली है...अभी दूसरे महीने वाले हफ्ते के लिए खा रहा हूं..

आज डा सचदेवा के बारे में कुछ कहने की इच्छा हो रही है...ये एक बेहतरीन चिकित्सक, अनुभवी स्किन स्पैशलिस्ट होने के साथ साथ एक बहुत अच्छे इंसान भी हैं...आए दिन इन के लिखे लेखों की कतरनें व्हाट्सएप पर मिलती रहती हैं... ये अत्याधुनिक तकनीकों का भी पूरा ज्ञान रखते हैं..

मुझे अकसर याद आ जाती है जनवरी २००६ की एक रात ..हम लोग अंबाला से फिरोजपुर जा रहे थे..भटिंडा उतर गये और वहां से गाड़ी नहीं मिली...स्टेशन के वेटिंग रूम में मां को अचानक आंख के आस पास भयंकर दर्द शुरू हो गया..भयंकर दर्द... सारी रात उन्होंने कराहते हुए ही बिताई... अगले दिन माथे पर कुछ दाने दाने से हो गए..और दर्द भी बना रहा।

मैंने डा सचदेवा को फोन किया... उन्होंने एक मिनट बात सुनी और कहा कि मुझे हर्पिज़ ज़ोस्टर Herpes Zoster लग रहा है, किसी चमडी रोग विशेषज्ञ को दिखा लेना ज़रूर....उसी दिन शाम को दिखाया...वही तकलीफ निकली ..तुरंत इलाज शुरू हो गया...आंख के डाक्टर को भी दिखाया गया...क्योंकि इस में कईं बार दृष्टि बाधित होने का भी खतरा बना रहता है .. कुछ दिनों में सब ठीक हो गया..

अभी दूसरे महीने वाली दवाई की खुराक ले रहा हूं (आज की तस्वीर है) 
हां, तो मैं कह रहा था कि नाखुन भी हमारी सेहत के बारे में कुछ कुछ कह देते हैं...कुछ दिन पहले एक महिला आई..दांतों की झनझनाहट से परेशान, उस के घिसे हुए दांत देख कर मैंने पूछा कि क्या आप देशी खुरदरे मंजनों के चक्कर में हैं...जब इन्होंने मना किया तो मैंने फिर से कहा कि बिना इस तरह की चीज़ों के इस उम्र में दांत इतने ज़्यादा तो इस तरह से घिस ही नहीं सकते.. फिर उसने कहा कि मुझे मिट्टी खाना अच्छा लगता है .. पहले तो लोग राख ही खा लिया करते थे, अब चूल्हे-वूल्हे तो रहे नहीं, मैंने पूछा कैसी मिट्टी?...जमीन से उठा कर?...कहने लगीं कि नहीं, ये जो मिट्टी की गोलक आदि होती हैं इन्हें तोड़ कर खा लेती हूं...इस की सोंधी सोंधी खुशबू की वजह से अपने आप को रोक नहीं पाती...

मेडीकल फील्ड में इस आदत का भी अपना एक महत्व होता है .. इसे pica कहते हैं...इस तरह की अवस्था में मरीज़ के रक्त की जांच करवाई जाती है .. मुझे लगा कि शायद रक्ताल्पता (एनीमिया) होगा, लेकिन देखने से तो लग नहीं रहा था, लेकिन नाखुन तो बीमार लग ही रहे थे ..... फिजिशियन के द्वारा जांच करने पर और रक्त की जांच से ही बेहतर पता चलेगा है...उसे सामान्य चिकित्सक के पास भेज दिया था...

बहुत बार नाखुनों से ही शरीर में रक्त की कमी का पता चलता है ...एक अनुमान तो लग ही जाता है...नाखुन खून की कमी के बारे में ही नहीं बोलते, वे दिल की किसी भयंकर बीमारी के बारे में भी कईं बार सचेत कर देते हैं...विशेषकर उन के आस पास की चमडी, उसी तरह से गुर्दे रोग के मरीज़ों में भी नाखुन को कईं बार देखा जाता है...

यह तस्वीर जिस मरीज़ की है उन्हें कुछ गुर्दे की तकलीफ है, दांतों के इलाज के लिए आये थे.. नाखुन देखे तो बड़े brittle और कमजोर से .. अपने आप टूट जाते हैं, इन्हें भी कहा कि सामान्य चिकित्सक को नाखुन भी दिखा दें....पहले कभी दिखाए नहीं, मुझे याद है पहले एक routine हुआ करता था..किसी भी चिकित्सक के पास जा कर ...जिसे General Physical Examinaiton कहते थे..हम अपने सीनियर प्रोफैसरों को भी यह सब करते देखा करते थे..और फिर बेड पर लिटा कर मरीज़ के पेट को एग्ज़ामिन करना, टैप करना, प्रकस्स करना, पेलपेट करना (Percussion and palpation are medical terms)... शायद आज कल विभिन्न मैडीकल जांचों के चक्कर में इस की जरूरत नहीं पड़ती होगी, मुझे नहीं पता....शायद पता तो है ...

जो भी हो, मरीज़ों को इस से बहुत संतुष्टि मिलती रही है और रहेगी.....वह अलग बात है कि डाक्टरों की अपनी अलग मजबूरियां हैं और रहेंगी.....वह अलग मुद्दा है ..हमेशा बना रहेगा...It is very easy to comment on such an issue! .... times have changed and fast changing..(लिखते लिखते बस यह ध्यान आ गया कि जो चिकित्सक प्राईवेट प्रैक्टिस में हैं, अगर वे तीन चार पांच सौ फीस ले लेते हैं तो यह कहां ज़्यादा है....किसी को देख कर, उस से बात कर के, उस के हाथों को देख कर अंदर की बातें जान लेते हैं...और आप को उचित दवाई एवं मशविरा देते हैं...हमेशा डाक्टरों का सम्मान होना चाहिए...)

नाखुन की चमक होना या न होना, नाखून कितने मजबूत हैं ..क्या वे अपने अपने टूटते रहते हैं, बिल्कुल छोटे छोटे रह जाते हैं...महिलाओं में सर्दी के दिनों में विशेषकर नाखूनों की समस्याएं....बहुत कुछ है नाखुनों के बारे मे कहने लिखने सुनने को .....

बात बस रेखांकित करने वाली इतनी है कि किसी भी तकलीफ के लिए अपने आप दवाई लेना मत शुरू कर दीजिए...न काला होने के लिए , न गोरा होने के लिए...न ही दाद-खुजली को अपने आप ही ठीक करने लगिए...चिकित्सकों ने बीस-तीस साल तपस्या की होती है ....कईं बार लगता है कि हर चिकित्सक एक तरह का डिटेक्टिव ही है....जैसे वह हर बात में लक्षण ढूंढने लगता है।

मेरे मित्र थे बंबई में ..डा जगदीश रावत...बड़े अच्छे मनोरोग विशेषज्ञ.......मैं उन्हें अकसर कहा करता था कि रावत, तुम से बात करते हुए कईं बार ऐसा लगता है कि तुम यार मनोविश्लेषण - psychoanalysis कर रहे हैं...वैसे यह काम मनोरोग विशेषज्ञ ही नहीं करते....आज कल हिंदी ब्लॉगिंग के विषय पर कुछ लोग पीएचडी आिद कर रहे हैं.....उन की एक प्रश्नोत्तरी आई थी...चार पांच पेज की ..ईमेल से....मेरे इस ब्लॉग लिखने के अनुभव के बारे में, क्या लिखता हूं, कितना फ्रैंक हूं, क्या ब्यां कर देता हूं, क्या छिपाता हूं...सब कुछ, हम भी जैसे हैं बिल्कुल साफ साफ एक दम सच सच जवाब दे दिया था...अगर हमारी बातें किसी के काम आ जाएं!

ठीक है, आंखें दिल की जुबां होती हैं लेकिन हमारे शरीर के शेष हिस्से भी बहुत कुछ बोल जाते हैं....गाहे बगाहे..