प्रिय ई-मित्रो, जब तक टीवी आया नहीं था, या यूं कहूं कि खरीदा नहीं था, ले देकर हमारी मनोरंजन की दुनिया तो भाई अमृतसर में आल इंडिया रेडियो की उस प्यारी सी उर्दू सर्विस पर ही टिकी हुई थी। सुबह, शाम और रात को खूब फिल्मी गीत बजते थे----इन तीनों कार्यक्रमों का नाम भी अलग था। स्कूल-कालेज के दिन थे--- लेकिन छुट्टी वाले दिन सुबह से ही ये गीत सुनना हमारे शुगल में शामिल था। और, रविवार तो शायद कोई इकबाल भाई और एक आपा बच्चों का प्रोग्राम बच्चों के लिए पेश करते थे जिसे मैं बड़े चाव से सुना करता था। उस कार्यक्रम की रिकार्डिंग के लिए बच्चों को रेडियो स्टेशन बुलाया जाता था, और वह एक घंटा कैसे बीत जाता था, पता ही नहीं चलता था। दोपहर में जहां तक मुझे याद है कभी कभी किसी फिल्म के अंश भी प्रसारित किए जाते थे—बीच बीच में डायलाग और बीच बीच में गीत। बस, इन गीतों के बीच जो तप्सरा ( पता नहीं मैं ठीक से इस का नाम लिख भी पाया हूं कि नहीं) पांच मिनट के लिए आता था, वह मुझे कभी नहीं भाता था। बस, शोले, रोटी, रोटी कपड़ा मकान और डान जैसै फिल्मों के गीत बारम-बार सुनने का सिर पर जुनून सवार रहता था...... देखिए, दोस्तो, आखिर होता भी क्यों न, रेडियो पर इन गीतों का लुत्फ लेने के इलावा बनारस वाले पान की गीत की ट्यून पर मन ही मन थिरकने का दूसरे तरह का मौका पता है कब मिलना होता था----- जब मोहल्ले में कोई शादी हो, किसी के घर जागरण हो, या कहीं रामलीला का आयोजन हो रहा हो-----भला, फिर जब लाऊड-स्पीकर पर कान का पर्दा-फाड़ वाल्यूम पर दस-नंबरी का कोई गीत, संयासी का कोई गाना , या फिर हरे रामा हरे कृष्णा का ही कोई गीत चल रहा हो ,तो कौन भला ऐसा होता होगा जो किसी दुनिया में न खो जाता होगा।
हां, तो बात हो रही थी उर्दू –सर्विस की--- तो रात में बजने वाले गीत हम लोग आंगन में चारपाई पर लेट कर ही सुना करते थे--- अपने रेडियो पर नहीं, सामने वाले घरों से ही इतनी सीधी आवाज़ आ जाया करती थी कि अपने ट्रांसिस्टर के सैल क्यों बर्बाद किए जाते। उस समय पाकीज़ा, बरसात की रात के गीत बज रहे होते थे .....और उस समय मैं और मेरी मां मेरे पिता जी के आने की बड़ी ही व्यग्रता से इंतजार कर रहे होते थे----जैसे ही बाहर किसी साइकिल की चेन सी आवाज़ सुनती, मैं खुश होता कि पिता जी आ गए....पिता जी आ गए। मौसम के अनुसार उन के द्वारा लाए हुए फलों एवं किसी मिठाई वगैरह का जश्न लूट कर पता नहीं कब निंदिया की गोद में चला जाता।
दोस्तो, यह ब्लाग तो बस मेरा मन हल्का करने का एक बहाना है, और आप से यह शेयर करने का एक बिलकुल तुच्छतम प्रयास है कि रेडियो किस तरह से मेरी जि़दगी से जुड़ा हुया है और आज तक जुड़ा हुया है।
लेकिन अतीत में गोते लगाना अब लगता है इतना आसान काम भी नहीं है...एक मिश्रित सा अनुभव है क्योंकि कुछ छोटी-छोटी बातें बेहद तंग करती हैं......छोटी2 बातें कहें, छोटी2 खुशियां कहें...........कुछ भी कहें.......लेकिन मैं तो इतना ही कहूंगा,दोस्तो........
Enjoy the little things in life……someday, you will look back and realize that those were indeed the big things..
OK, friends, good night……आज कल कभी वह वाली उर्दू-सर्विस के द्वारा प्रसारित गीत सुने नहीं......सर्विस तो अभी ज़रूर होगी, शायद मेरे इस नए शहर में मेरे वाला रेडियो कैच ही न कर पाता हो। तो , फिर अब क्या करूं.....वारदात की कुछ खौफनाक बातें टीवी पर देख कर डर कर, सहम कर सो जाएंगे, और क्या !!!
शनिवार, 22 दिसंबर 2007
लिफ्ट प्लीज़..............
नहीं साहब, आप ने लगता है गलत अंदाज़ा लगा लिया - मुझे लिफ्ट मांगने वालों से तो न कभी कोई शिकायत है और न ही कभी ज़िंदगी में होगी। दोस्तो, मेरे तो शिकायत के पात्र हैं मेरे वह बंधु लोग जो लिफ्ट वाले की विनम्रता को नज़र-अंदाज़ कर के बिना परवाह किए आगे बढ़ जाते हैं। शायद इस का अंदाज़ा वह बंदा कभी लगा ही नहीं सकता जिस ने कभी खुद लिफ्ट न मांगी हो। दोस्तो, यह ब्लाग भी गज़ब की चीज़ है यारो, पता नहीं अपने बारे में कोई भी अच्छी बात कहते हुए अच्छी खासी हिचकिचाहट होती है। यह बात होने नहीं चाहिए, जाते जाते जायेगी। लेकिन सच्चाई ब्यां करना भी अपना फर्ज़ ही समझता हूं ----तो, दोस्तो जब भी मैं स्कूटर, मोटर-साइकल पर जा रहा होता हूं तो मैंने आज तक कभी भी किसी खुदा के बंदे को लिफ्ट देने से इंकार न ही तो किया है और न ही कभी करूंगा। यार, हम केवल आम बंदे के ऊपर ही शक करते जाएंगे--पता नहीं बंदा कैसा होगा, क्या हो जाएगा। क्या हमें यह तो नहीं लगता कि यह बंदा शायद कोई आत्मघाती हमलावर ही हो....आप भी इत्मीनान रखिए, दोस्तो, कुछ न होगा----कुछ भी मांगना (फिर वह चाहे लिफ्ट ही क्यों न हो ) क्या आप को नहीं लगता अच्छा खासा मुश्किल काम है, तो फिर उस खड़े बंदे के स्वाभिमान को एक छोटी सी बात के लिए क्यों आहत करें। किसी स्कूल के बाहर खड़े बच्चे में अथवा किसी चौराहे पर लिफ्ट मांग रहे स्टूडैंट में हमें अपने बेटे एवं छोटे भाई की तसवीर क्यों नहीं दिखती। हर बात के पीछे कोई तो कारण होता है, तो वह कारण भी आप से बांटना जरूरी हो गया है। दोस्तो, जब मैं पांचवी कक्षा में पढ़ता था तो एक-दो बार शिखर-दोपहरी में हमारे ही स्कूल एक मास्टर जी ने बीच रास्ते में अपने आप ही अपने साइकिल पर मुझे बुला कर लिफ्ट दी थी---मुझे बहुत अच्छा लगा था। हमारे स्कूल के यह मास्टर जी हमारे मोहल्ले में ही रहते थे----बस, बचपन की इन छोटी छोटी बातों से ही पता नहीं कितनी मजबूत मंज़िलों की नींवे पड़ जाती हैं, दोस्तो।
ले दे कर फक्त एक नज़र ही तो हमारे पास,
क्यों देखे दुनिया को किसी और की नज़र से ..
ले दे कर फक्त एक नज़र ही तो हमारे पास,
क्यों देखे दुनिया को किसी और की नज़र से ..
दोस्तो, आओ अब तो इन भ्रांतियों का भांडा फोड़ ही डालें.....
मेरी तरह से आप ने बहुत बार सुना है न कि अगर एकदम फिट रहना है तो सारे दिन में पानी के आठ गिलास पीने ही होंगे। और कितनी बार हम डाक्टरों ने ही इस बात पर मुंडी हिलाई होगी जब कोई यह कहता है कि हम अपने मस्तिष्क का केवल 10फीसदी हिस्सा ही इस्तेमाल कर पाते हैं। लेकिन दोस्तो इन दोनों में से कोई भी बात सच नहीं है। जी हां, इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल आफ मैडीसन के वरिष्ट चिकित्सकों के अनुसार ऐसी कई तरह की भ्रांतियां हैं जो हमें विरासत में ही मिल जाती हैं और जिन्हें चिकित्सक भी जाने-अनजाने मानने लगते हैं। इन चिकित्सकों ने अपना यह अध्ययन ब्रिटिश मैडीकल जर्नल में छपवाया है। दिन में जबरदस्ती आठ-गिलास पानी पीने का कोटा पूरा करने वालों के लिए इन का कहना है कि पानी तो हमें नाना प्रकार के खाध्य पदार्थों से भी प्राप्त होता है जैसे कि फल, सब्जियां आदि.....इस लिए जबरदस्ती पानी के गिलास पर गिलाक गटक जाना सुरक्षित नहीं है। दिमाग के 10 फीसदी हिस्से को इस्तेमाल करने के बारे में उन का कहना है कि हमारा मस्तिष्क तो अभी तक दुनिया भर के वैज्ञानिकों के लिए एक रहस्य बना हुया है, अभी तो हम उस की पूरी तरह से खोज ही नहीं कर पाए हैं ! इसलिए इस धारणा को भी वे सिरे से नकार रहे हैं।
दोस्तो, आप को भी याद होगा जब आप के चेहरे पर दाढ़ी ने नई-नई दस्तक दी होगी, तो आप के भी पिता जी ने चेताया होगा कि बेटा,अभी से शेव-वेव के चक्कर में मत पड़ो, दाढ़ी सख्त हो जाएगी। और इस के लिए हम सब को अकसर हेयर-ड्रैसर के यहां जा कर मशीन चलवानी पड़ती थी। लेकिन,दोस्तो, अपने पिता जी की तरह हम भी गलत ही सोच रहे हैं, इन वैज्ञानिकों ने इस धारणा को भी बेबुनियाद बताया है कि जब बालों को शेव करना शुरू कर दें तो वापिस आने वाले बाल खुरदरे और सख्त होते हैं। इस बात के प्रमाण तो बताया जाता है कि आज से 80 साल ही मिल गए थे कि शेव के बाद आने वाले बाल न तो खुरदरे होते हैं और न ही सख्त.
अकसर लोग सोच लेते हैं कि बाल और नाखुन तो मरने के बाद भी बढ़ते रहते हैं (ड्रैकुला इफैक्ट) --- लेकिन ऐसी धारणा भी बिल्कुल गलत है। होता यूं है कि मरणोपरांत चमड़ी सिकुड़ती है जिसकी वजह से ऐसा लगता है कि बाल अथवा नाखुन बढ़ गए हैं। यह हमारे जीवन काल के दौरान भी तो होता है- कैसे हमारे दांत अकसर उम्र के साथ उगते या बड़े होते दिखते हैं.....वास्तव में एक बार मुंह में उगने के बाद वे क्हां और ज्यादा बड़े हो पाएंगे-- यह जो मसूड़ा जब उस से अपनी दूरी बनानी शुरू करता है तो दांतों के बड़े होने का केवल भ्रम ही पैदा करता है।
ऐसी भ्रांतियों की लिस्ट अच्छी खासी है दोस्तो, लेकिन एक और तो जल्दी से गिना ही दूं ----हम में कितने अभी भी यह सोचते हैं कि च्यूंइंग गम को अगर कोई व्यक्ति गल्ती से निगल ले तो वह सात साल तक उस के पेट में ही पड़ी रहती है।
सुन कर तो हमें हंसी आती है लेकिन हम बस यूं ही इन भ्रांतियों, इन मिथकों को , इन धारणाओं को खुद तो मान बैठते ही हैं, और इन के प्रचार-प्रसार में कोई कसर भी कहां छोड़ते हैं!! सच है या नहीं,दोस्तो ??
दोस्तो, आप को भी याद होगा जब आप के चेहरे पर दाढ़ी ने नई-नई दस्तक दी होगी, तो आप के भी पिता जी ने चेताया होगा कि बेटा,अभी से शेव-वेव के चक्कर में मत पड़ो, दाढ़ी सख्त हो जाएगी। और इस के लिए हम सब को अकसर हेयर-ड्रैसर के यहां जा कर मशीन चलवानी पड़ती थी। लेकिन,दोस्तो, अपने पिता जी की तरह हम भी गलत ही सोच रहे हैं, इन वैज्ञानिकों ने इस धारणा को भी बेबुनियाद बताया है कि जब बालों को शेव करना शुरू कर दें तो वापिस आने वाले बाल खुरदरे और सख्त होते हैं। इस बात के प्रमाण तो बताया जाता है कि आज से 80 साल ही मिल गए थे कि शेव के बाद आने वाले बाल न तो खुरदरे होते हैं और न ही सख्त.
अकसर लोग सोच लेते हैं कि बाल और नाखुन तो मरने के बाद भी बढ़ते रहते हैं (ड्रैकुला इफैक्ट) --- लेकिन ऐसी धारणा भी बिल्कुल गलत है। होता यूं है कि मरणोपरांत चमड़ी सिकुड़ती है जिसकी वजह से ऐसा लगता है कि बाल अथवा नाखुन बढ़ गए हैं। यह हमारे जीवन काल के दौरान भी तो होता है- कैसे हमारे दांत अकसर उम्र के साथ उगते या बड़े होते दिखते हैं.....वास्तव में एक बार मुंह में उगने के बाद वे क्हां और ज्यादा बड़े हो पाएंगे-- यह जो मसूड़ा जब उस से अपनी दूरी बनानी शुरू करता है तो दांतों के बड़े होने का केवल भ्रम ही पैदा करता है।
ऐसी भ्रांतियों की लिस्ट अच्छी खासी है दोस्तो, लेकिन एक और तो जल्दी से गिना ही दूं ----हम में कितने अभी भी यह सोचते हैं कि च्यूंइंग गम को अगर कोई व्यक्ति गल्ती से निगल ले तो वह सात साल तक उस के पेट में ही पड़ी रहती है।
सुन कर तो हमें हंसी आती है लेकिन हम बस यूं ही इन भ्रांतियों, इन मिथकों को , इन धारणाओं को खुद तो मान बैठते ही हैं, और इन के प्रचार-प्रसार में कोई कसर भी कहां छोड़ते हैं!! सच है या नहीं,दोस्तो ??
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