शुक्रवार, 11 मार्च 2011

अच्छा तो सेब जैसा मोटापा भी इतना बुरा नहीं है ...

उस दिन मैं एक न्यूज़-रिपोर्ट की बात कर रहा था जिस में बताया गया था कि केवल बीएमआई (बाडी मॉस इंडैक्स) ही पता कर लेना ही काफ़ी नहीं है, शरीर के किस भाग में यह फैट(चर्बी) जमा है, यह जानना ज़रूरी है। इसलिये समझा जाता रहा है कि सेब जैसा मोटापा जिस में मोटापा अधिकर पेट (abdomen) पर ही केंद्रित रहता है, यह सेहत के लिये ज़्यादा हानिकारक है।

लेकिन लगता है यह खबर अब पुरानी हो गई है...क्योंकि आज बीबीसी की एक रिपोर्ट ... Doubts emerge over heart risk to 'apple shape'.....यह खुलासा कर रही है कि ऐसा कुछ नहीं है कि सेब जैसे मोटापे के शिकार लोगों में हृदय रोग की तकलीफ़ों का ज़्यादा खतरा रहता है। और यह स्टडी लगभग दो लाख बीस हज़ार लोगों के ऊपर 10 वर्षों तक चली।

वैसे इस खबर ने सेबों (जिन में से मैं भी एक हूं)..को इतना बिंदास होने की भी कोई वजह नहीं दी है, क्योंकि वैज्ञानिकों ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि मोटापा अपने साथ बीमारियां ही लाता है चाहे वह किसी भी रूप में ही हो। इसलिये सेब और नाशपाती के हिसाब किताब में पड़ने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है!

और एक बात जिस पर बल दिया गया है कि ठीक है, सेब जैसे मोटे लोगों में हृदय-रोग का रिस्क दूसरे तरह के मोटापे (नाशपाती जैसा !!) के शिकार लोगों की अपेक्षा न भी बढ़े लेकिन दूसरी सब तकलीफ़ों की सुनामी जो मोटापा साथ लाता है, उन से तो कोई बचाव है नहीं।

ऐलोपैथी भी कमाल की चीज़ है –आज कुछ कल कुछ ....कभी यह बुरा, कभी वो बुरा, कभी यह अच्छा, कभी वो और अगले दिन सब कुछ बदल जाता है .... ठीक है, होता यह सारा कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों से ही है लेकिन जिंदगी में कुछ बातों के लिये यू-टर्न की सुविधा कहां रहती है !! दवाईयों के मामले में भी तो यही कुछ हो रहा है।

लोग मोटापा कम करने वाली दवाईयां, कोलेस्ट्रोल कम करने वाली कुछ नईं नईं दवाईयां, ब्लड-प्रैशर, मधुमेह (शक्कर, शूगर) कईं कईं वर्षों तक लेते रहते हैं और अचानक एक दिन अखबार में खबर दिखती है फलां फलां दवाई के फलां फलां प्रभाव अत्यंत हानिकारक होने की वजह से इस की दो गई एप्रूवल खारिज की जाती है ...चिंता मत करें ऐसी खबरें अधिकतर अमेरिकी एफडीआई( Food and Drug Administration) से ही प्राप्त होती हैं....हमारा क्या है, हमें तो सब चलता है, है कि नहीं !! अमेरिका इंग्लैंड जैसे देशों में प्रतिबंधित होने के बाद भी ये दवाई अकसर यहां धड़ल्ले से बिकती रहती हैं।

हां,तो बात हो रही थी कि मैडीकल साईंस में बदलाव तेज़ी से होते रहते हैं ...यह वास्तविकता है। साईंस को जिस बात का कल पता नहीं था आज पता चल रहा है।

ऐसे में मेरा ध्यान यकायक अपनी देसी आयुर्वैदिक पद्धति की तरफ़ जा रहा है ...सदियों सदियों से जांचा परखा ... किसी तरह के बदलाव की रती भर भी गुंजाइश ही नहीं ... ज़रूरत है तो केवल इस में पूर्ण आस्था की ... इस के सिद्धांतों के अनुसार जीवनशैली बनाए रखने की, सामान्य सी तकलीफ़ों के लिये घरेलू उपायों – घरेलू जड़ी बूटियों को काम में लाने की, सक्रिय बने रहने की, खान पान में पथ्य और अपथ्य (Do’s and Don’ts) को बिना सोच विचार किए मान लेने की (यह पद्धति ऋषियों मुनियों ने जांच परख कर ही तैयार की है) , और खुश रहने की ......ताकि सब लोग स्वस्थ जीवन जी सकें।

और फिर इस बात की फ़िक्र करने की भी बेवजह ज़रूरत नहीं कि मैं सेब जैसा हूं या नाशपाती जैसा ...क्योंकि अगर इतना सब कुछ मान लिया जायेगा तो मोटापा छू-मंतर हो जायेगा –बिना किसी दवाई के, बगैर लॉइपोसक्शन के और पेट के साइज को कम करवाने की सर्जरी के बिना ही सब कुछ फिट रहेगा।

सोच रहा हूं यह बढ़ा वजन अधिकतर पढ़े-लिखे, खाते पीते लोगों की ही समस्या है, आपने भी मेहनतकश लोग कम ही देखे होंगे जो स्थूल काया से परेशान हों, लेकिन समस्यायें तो उन्हें भी हैं, कुछ अलग तरह की ........


कागज़ के फूलों को सहेजने जैसा शौक है हेयर-कलर का क्रेज़

कंपनियां चाहे कुछ भी ढिंढोरा पीटें, बालों को कलर करने का काम पंगे वाला तो है ही ... लेकिन कल मुझे लगा कि इस के बारे में अकसर हम लोग केवल अपने तक ही सोच कर सीमित रह जाते हैं ... इस के एक बहुत ही अहम् पहलू के बारे कल में कैसे मैंने भी आज तक सोचा ही नहीं !!

कल बृहस्पतिवार था—हेयर-ड्रैसरों के यहां सन्नाटा छाया रहता है क्योंकि इक्कीसवीं सदी में भी लोग इस भ्रम से निकल नहीं पाए कि हफ्ते के कुछ दिनों में बाल कटवाना, दाढ़ी मुंडवाना गृहों के लिये ठीक नहीं है। बचपन से ही इस तरह की बेतुकी बातों में रती भर भी विश्वास न होने की वजह से हमेशा इन ‘वर्जित’ दिनों में ही हेयर ड्रेसर के यहां जाना ठीक लगता है ... बिल्कुल भी इंतज़ार ही नहीं करना पड़ता।

बाल काटते समय उस 20-22 वर्षीय युवक ने मुझ से पूछा कि डाक्टर साहब, यह फंगल इंफैक्शन क्यों होती है, इस का इलाज क्या है! मेरे पूछने पर उस ने बताया है कि उसे पैरों पर फंगल है, और हाथों पर भी है...मैंने सोचा कि पैरों पर तो शायद वही खारिश वारिश होगी जो अकसर सर्दी-वर्दी के दिनों में कुछ लोगों को हो जाती है।

उसने आगे बताया कि जब वह हेयर-कलर इस्तेमाल करता है तो अचानक उस के पैरों में खारिश बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है। आगे कहने लगा कि वह अपने लिये तो कभी इन कलर्ज़ का इस्तेमाल कभी नहीं करता ... लेकिन ग्राहकों के लिये वह दिन में कईं कईं बार हेयर-डाई का इस्तेमाल करता है...

उस ने आगे हाथ रखे तो मैं समझ गया कि यह चमड़ी रोग है ...Allergic contact dermatitis—मैंने उसे कहा कि दस्ताने डाल के अपना काम किया करे क्योंकि वह कभी भी हेयर-डाई करते वक्त ग्लवज़ नहीं डालता।

और मैंने उसे किसी चमड़ी रोग विशेषज्ञ से संपर्क करने के लिये कहा। अब बात उस की समझ में आ गई थी... मैंने बाहर आते वक्त उसे पैर दिखाने को भी कहा ...वहां पर भी हाथों की तरह ही पैरों की चमड़ी की तकलीफ़ – इसे फंगल समझ कर वह कईं कईं ट्यूबें इस्तेमाल कर चुका है ....वह भी क्या करे .. हिंदी के अखबारों में नित-प्रतिदिन इतने विज्ञापन आते हैं जो किसी को भी कोई भी विशेषज्ञ बना डालें।

उसे तो मैंने कह दिया कि यह सब हेयर-डाई के इस्तेमाल से हो रहा है और उसे चमड़ी रोग विशेषज्ञ से एक बार तो मिल ही लेना चाहिये ...हाथों वाली बात तो समझ में आती है  लेकिन पैरों पर एर्लिजक रिएक्शन हेयर डाई की वजह से ...बात कुछ ज़्यादा समझ में आती नहीं ...मैंने कल इस के बारे में गूगल भी किया ..लेकिन कुछ नहीं निकला...

सोचता हूं फेसबुक पर जो मेरे कुछ मित्र चमड़ी रोग विशेषज्ञ हैं जो अगर इस पोस्ट को पढ़ेंगे तो अपनी टिप्पणी में कृपया लिख दें कि क्या हेयर-डाई के इस्तेमाल करने से पैरों पर भी एलर्जिक रिएक्शन हो सकता है...

एब बार तो है कि अगर दर्द की एक टिकिया लेने से होने वाले रिएक्शन से सारे शरीर में खारिश, खुजली और फ़फोले से पड़ सकते हैं तो हेयर डाई से भी तो रिएक्शन से सब संभव ही तो है। लेकिन सोचता हूं कि यह अटकलबाजी न हो, इस लिये इस के बारे में प्रामाणिक बात का पता चलते ही इस पोस्ट को अपडेट करूंगा... हाथों पर तो उस वर्कर को हेयर डाई की वजह ही से समस्या हो रही है, कह रहा था कि अब दस्ताने डाला करेगा......

कल मुझे लगा कि कईं बार हम लोग केवल अपने बारे में ही सोचते हैं .... लेकिन उन लोगों की सेहत की फ़िक्र भी तो कोई करने वाला होना चाहिये जिन्हें इस तरह की समस्याओं का पता ही नहीं है, और कुछेक केसों में पता होते हुये भी पापी पेट के आगे यह हाथों, पैरों की खुजली घुटने टेक देती है !!

इस पोस्ट के शीर्षक को लिखते समय मुझे उस गीत का ध्यान आ गया जिसे मैं पिछले कईं दिनों से यू-ट्यूब पर ढूंढ रहा था लेकिन मिल नहीं रहा था .. आज अचानक दिख गया, बिल्कुल पोस्ट की बातों से मैच करता हुआ...




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हेयर ड्रेसर के पास जाने से पहले

नीम हकीम खतराए जान...

मैंने कुछ अरसा पहले अपने एक बुज़ुर्ग मरीज़ का ज़िक्र किया था कि वे किस तरह कभी कभी मेरे पास दस-बीस तरह की स्ट्रिप लेकर आते हैं, और मुझ से पूछ कर कि वे तरह तरह की दवाईयां किस किस मर्ज़ के लिये हैं उन के ऊपर छोटी छोटी पर्चियां स्टैपल कर देते हैं।

आज भी वह शख्स आये .. खूब सारी दवाईयां लिफ़ाफे में डाली हुईं ---कहने लगा कि जब मैं मरीज़ों से फ्री हो जाऊं तो उन्हें मेरे पांच मिनट चाहिए।

इस बार वे दवाईयों के साथ साथ पर्चीयां एवं स्टैपर के साथ साथ फैवीस्टिक भी लाए थे। मेरे से एक एक स्ट्रिप के बारे में पूछ कर उस के ऊपर लिखते जा रहे थे – ब्लड-प्रैशर के लिये, गैस के लिये, सूजन एवं दर्द के लिए आदि आदि।


 घर में रखी दो-तीन तरह की आम सी दवाईयों के बारे में जानकारी हासिल करने वाली बात समझ में आती है लेकिन इस तरह से अलग अलग बीमारियों के लिये इस्तेमाल की जाने वाली दवाईयों के ऊपर एक स्टिकर लगा देने से कोई विशेष लाभ तो ज़्यादा होता दिखता नहीं, लेकिन नुकसान अवश्य हो सकता है।


अब अगर घर में रखी किसी दवाई के ऊपर स्टिकर लगा दिया गया है कि यह ब्लड-प्रैशर के लिये है...यह काफ़ी नहीं है। चिकित्सक किसी को भी कोई दवाई देते समय उस के लिये उपर्युक्त दवाई  का चुनाव करते समय दर्जनों तरह की बातें ध्यान में रखते हैं --- जैसे ब्लड-प्रैशर की ही दवाई लिखते समय किसी के सामान्य स्वास्थ्य, उस की लिपिड-प्रोफाइल, गुर्दै कि कार्यक्षमता, उस की उम्र, वज़न आदि बहुत सी बातें हैं जिन्हें ध्यान में रखा जाता है। इसलिये इन दवाईयों पर लेबल लगा देने से और विशेषकर उन पर जिन्हें वह व्यक्ति ले नहीं रहा है, यह कोई बढ़िया बात नहीं है। अब सब तरह की दवाईयां अगर इस तरह से घर में दिखती रहेंगी तो उन के गल्त इस्तेमाल का अंदेशा भी बना ही रहेगा।

 एक दवा मेरे सामने कर के पूछने लगे कि यह किस काम आती है, मेरे यह बताने पर कि दर्द-सूजन के लिये है – फिर आगे से प्रश्न कि घुटने, दांत, सिर, पेट, बाजू, कमर-दर्द, पैर दर्द .....किस अंग की दर्द एवं सूजन के लिये ....अब इस तरह की बात का जवाब देने के लिये उन की पूरी क्लास लेने की ज़रूरत पड़ सकती थी ..... संक्षेप में मैंने इतना ही कहा कि इस तरह की दवाईयां अकसर कॉमन ही हुआ करती है।

फिर उन्होंने तथाकथित ताकत की दवाईयां – so called tonics—आगे कर दीं ... यह कब और वह कब, इस से क्या होगा, उस से क्या होगा.... बहुत मुश्किल होता है कुछ बातों का जवाब देना ... काहे की ताकत की दवाईयां ... पब्लिक को उलझाये रखने की शोशेबाजी...। एक -दो ऐंटीबॉयोटिक दवाईयों के बारे में पूछने लगा कि यह किस किस इंफैक्शन के लिये इस्तेमाल की जा सकती हैं, मैंने अपने ढंग से जवाब दे तो दिया ...लेकिन उन्होंने यह कह कर बात खत्म की कि गले खराब के लिये तो इसे लिया ही जा सकता है... मैं इस बात के साथ भी सहमत नहीं था।

घर में दो तीन तरह की बिल्कुल आम सी दवाईयां ऱखने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन अगर इधर उधर से इक्ट्ठी की गई दवाईयों पर स्टिकर लगा लेने से कोई समझे कि बात बन जाएगी, तो बिल्कुल गलत है, इस से बात बनने की बजाए बिगड़ने का जुगाड़ ज़रूर हो सकता है। बिना समझ के किसी को भी कोई दवा की एक टैबलेट भी दी हुई उत्पात मचा के रख सकती है।

इतनी सारी ब्लड-प्रैशर की दवाईयां तो हैं लेकिन उन्होंने इन्हें इस्तेमाल करना बंद किया हुआ है क्योंकि कुछ दिनों से उन्होंने एक होम्योपैथिक दवाई शुरू की है जिस की एक शीशी एक हज़ार रूपये की आती है, मेरे यह कहने पर कि आप नियमित ब्लड-प्रैशर चैक तो करवा ही रहे होंगे, वह कहने लगे कि नहीं, नहीं, मैं इस की ज़रूरत नही समझता क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें कोई तकलीफ़ है ही नहीं..... अब किसी को समझाने की भी एक सीमा होती है , उस सीमा के आगे कोई क्या करे!!

इन की अधिकांश दवाईयां यूं ही बिना इस्तेमाल किए बेकार ही एक्सपॉयरी तारीख के बाद कचरे दान में फैंक दी जाएंगी ....जब कि किसी को इन की बहुत ज़्यादा ज़रूरत हो सकती है। तो फिर क्यों न अस्पतालों में रखी दवा की दान पेटियों अथवा अनयुय्ड़ दवाईयों (unused medicines) के बक्से में इन को डाल दिया जाए.....ताकि किसी के काम तो आ सकें.... और स्वयं भी घर पर रखे-रखे इन के इस्तेलाम संबंधी गलत इस्तेमाल से बचा जा सके........ जाते जाते मैंने अपने अटैंडैंट से कहा कि इन बुज़ुर्ग की दवाईयों पर चिट लगाते हुये एक तस्वीर खींच लें, मैंने सोचा इस से मुझे अपनी बात कहने में आसानी होगी।

उन के जाने के बाद मैं फिर से दूसरे मरीज़ों में व्यस्त हो गया .....लेकिन मैं भी सुबह सुबह कैसी गंभीर बातें लेकर बैठ गया ... जो भी आपने मेरे लेख में पढ़ा उसे भुलाने के लिये इस गीत की मस्ती में खो जाइए ---



Updating at 6:55 AM (11.3.2011)
पोस्ट में नीरज भाई की एक टिप्पणी आई ...कमैंट बाक्स में जाकर कमैंट लिखना चाहा, तो लिख नहीं पाया ..(क्या कारण है, टैकसेवी बंधु इस का उपचार बताएं, बहुत दिनों से यह समस्या पेश आ रही है) .... इसलिये इसी लेख को ही अपडेट किये दे रहा हूं ....
@ नीरज जी, लगता है मुझे बात पूरी खोलनी ही पड़ेगी... हां तो, नीरज जी इन का एक बेटा किसी बहुत बड़ी कंपनी में सर्विस करता है जहां से इन्हें सभी तरह की चिकित्सा मुफ्त मिलती है। और जो मैं एक हजा़र रूपये वाली ब्लड-प्रैशर की होम्योपैथिक दवा की बात कर रहा था वह भी इन्हें वहीं से मिली हैं। बता रहे थे कि बेटा अच्छी पोस्ट पर है, इसलिये कंपनी के डाक्टरों की उन पर विशेष कृपा-दृष्टि बनी रहती है और वे उन्हें दो-तीन महीने बाद नाना प्रकार की दवाईयों से लैस कर के ही भेजते हैं।
अकसर दो तीन महीने में उन से सुन ही लेता हूं कि डाक्टर साहब, इस बार बेटे के पास गया था तो वहां पर मैंने 36 या 37 टैस्ट करवाए ... लेकिन सोचने की बात यह है जैसा कि मैंने लेख में भी लिखा कि वह अपने ब्लड-प्रैशर की जांच करवाने के लिये राजी नहीं है....
नीरज, धन्यवाद, यह इतना महत्वपूर्ण सवाल पूछने के लिये ...