उस दिन मैं एक न्यूज़-रिपोर्ट की बात कर रहा था जिस में बताया गया था कि केवल बीएमआई (बाडी मॉस इंडैक्स) ही पता कर लेना ही काफ़ी नहीं है, शरीर के किस भाग में यह फैट(चर्बी) जमा है, यह जानना ज़रूरी है। इसलिये समझा जाता रहा है कि सेब जैसा मोटापा जिस में मोटापा अधिकर पेट (abdomen) पर ही केंद्रित रहता है, यह सेहत के लिये ज़्यादा हानिकारक है।
लेकिन लगता है यह खबर अब पुरानी हो गई है...क्योंकि आज बीबीसी की एक रिपोर्ट ... Doubts emerge over heart risk to 'apple shape'.....यह खुलासा कर रही है कि ऐसा कुछ नहीं है कि सेब जैसे मोटापे के शिकार लोगों में हृदय रोग की तकलीफ़ों का ज़्यादा खतरा रहता है। और यह स्टडी लगभग दो लाख बीस हज़ार लोगों के ऊपर 10 वर्षों तक चली।
वैसे इस खबर ने सेबों (जिन में से मैं भी एक हूं)..को इतना बिंदास होने की भी कोई वजह नहीं दी है, क्योंकि वैज्ञानिकों ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि मोटापा अपने साथ बीमारियां ही लाता है चाहे वह किसी भी रूप में ही हो। इसलिये सेब और नाशपाती के हिसाब किताब में पड़ने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है!
और एक बात जिस पर बल दिया गया है कि ठीक है, सेब जैसे मोटे लोगों में हृदय-रोग का रिस्क दूसरे तरह के मोटापे (नाशपाती जैसा !!) के शिकार लोगों की अपेक्षा न भी बढ़े लेकिन दूसरी सब तकलीफ़ों की सुनामी जो मोटापा साथ लाता है, उन से तो कोई बचाव है नहीं।
ऐलोपैथी भी कमाल की चीज़ है –आज कुछ कल कुछ ....कभी यह बुरा, कभी वो बुरा, कभी यह अच्छा, कभी वो और अगले दिन सब कुछ बदल जाता है .... ठीक है, होता यह सारा कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों से ही है लेकिन जिंदगी में कुछ बातों के लिये यू-टर्न की सुविधा कहां रहती है !! दवाईयों के मामले में भी तो यही कुछ हो रहा है।
लोग मोटापा कम करने वाली दवाईयां, कोलेस्ट्रोल कम करने वाली कुछ नईं नईं दवाईयां, ब्लड-प्रैशर, मधुमेह (शक्कर, शूगर) कईं कईं वर्षों तक लेते रहते हैं और अचानक एक दिन अखबार में खबर दिखती है फलां फलां दवाई के फलां फलां प्रभाव अत्यंत हानिकारक होने की वजह से इस की दो गई एप्रूवल खारिज की जाती है ...चिंता मत करें ऐसी खबरें अधिकतर अमेरिकी एफडीआई( Food and Drug Administration) से ही प्राप्त होती हैं....हमारा क्या है, हमें तो सब चलता है, है कि नहीं !! अमेरिका इंग्लैंड जैसे देशों में प्रतिबंधित होने के बाद भी ये दवाई अकसर यहां धड़ल्ले से बिकती रहती हैं।
हां,तो बात हो रही थी कि मैडीकल साईंस में बदलाव तेज़ी से होते रहते हैं ...यह वास्तविकता है। साईंस को जिस बात का कल पता नहीं था आज पता चल रहा है।
ऐसे में मेरा ध्यान यकायक अपनी देसी आयुर्वैदिक पद्धति की तरफ़ जा रहा है ...सदियों सदियों से जांचा परखा ... किसी तरह के बदलाव की रती भर भी गुंजाइश ही नहीं ... ज़रूरत है तो केवल इस में पूर्ण आस्था की ... इस के सिद्धांतों के अनुसार जीवनशैली बनाए रखने की, सामान्य सी तकलीफ़ों के लिये घरेलू उपायों – घरेलू जड़ी बूटियों को काम में लाने की, सक्रिय बने रहने की, खान पान में पथ्य और अपथ्य (Do’s and Don’ts) को बिना सोच विचार किए मान लेने की (यह पद्धति ऋषियों मुनियों ने जांच परख कर ही तैयार की है) , और खुश रहने की ......ताकि सब लोग स्वस्थ जीवन जी सकें।
और फिर इस बात की फ़िक्र करने की भी बेवजह ज़रूरत नहीं कि मैं सेब जैसा हूं या नाशपाती जैसा ...क्योंकि अगर इतना सब कुछ मान लिया जायेगा तो मोटापा छू-मंतर हो जायेगा –बिना किसी दवाई के, बगैर लॉइपोसक्शन के और पेट के साइज को कम करवाने की सर्जरी के बिना ही सब कुछ फिट रहेगा।
सोच रहा हूं यह बढ़ा वजन अधिकतर पढ़े-लिखे, खाते पीते लोगों की ही समस्या है, आपने भी मेहनतकश लोग कम ही देखे होंगे जो स्थूल काया से परेशान हों, लेकिन समस्यायें तो उन्हें भी हैं, कुछ अलग तरह की ........
लेकिन लगता है यह खबर अब पुरानी हो गई है...क्योंकि आज बीबीसी की एक रिपोर्ट ... Doubts emerge over heart risk to 'apple shape'.....यह खुलासा कर रही है कि ऐसा कुछ नहीं है कि सेब जैसे मोटापे के शिकार लोगों में हृदय रोग की तकलीफ़ों का ज़्यादा खतरा रहता है। और यह स्टडी लगभग दो लाख बीस हज़ार लोगों के ऊपर 10 वर्षों तक चली।
वैसे इस खबर ने सेबों (जिन में से मैं भी एक हूं)..को इतना बिंदास होने की भी कोई वजह नहीं दी है, क्योंकि वैज्ञानिकों ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि मोटापा अपने साथ बीमारियां ही लाता है चाहे वह किसी भी रूप में ही हो। इसलिये सेब और नाशपाती के हिसाब किताब में पड़ने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है!
और एक बात जिस पर बल दिया गया है कि ठीक है, सेब जैसे मोटे लोगों में हृदय-रोग का रिस्क दूसरे तरह के मोटापे (नाशपाती जैसा !!) के शिकार लोगों की अपेक्षा न भी बढ़े लेकिन दूसरी सब तकलीफ़ों की सुनामी जो मोटापा साथ लाता है, उन से तो कोई बचाव है नहीं।
ऐलोपैथी भी कमाल की चीज़ है –आज कुछ कल कुछ ....कभी यह बुरा, कभी वो बुरा, कभी यह अच्छा, कभी वो और अगले दिन सब कुछ बदल जाता है .... ठीक है, होता यह सारा कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों से ही है लेकिन जिंदगी में कुछ बातों के लिये यू-टर्न की सुविधा कहां रहती है !! दवाईयों के मामले में भी तो यही कुछ हो रहा है।
लोग मोटापा कम करने वाली दवाईयां, कोलेस्ट्रोल कम करने वाली कुछ नईं नईं दवाईयां, ब्लड-प्रैशर, मधुमेह (शक्कर, शूगर) कईं कईं वर्षों तक लेते रहते हैं और अचानक एक दिन अखबार में खबर दिखती है फलां फलां दवाई के फलां फलां प्रभाव अत्यंत हानिकारक होने की वजह से इस की दो गई एप्रूवल खारिज की जाती है ...चिंता मत करें ऐसी खबरें अधिकतर अमेरिकी एफडीआई( Food and Drug Administration) से ही प्राप्त होती हैं....हमारा क्या है, हमें तो सब चलता है, है कि नहीं !! अमेरिका इंग्लैंड जैसे देशों में प्रतिबंधित होने के बाद भी ये दवाई अकसर यहां धड़ल्ले से बिकती रहती हैं।
हां,तो बात हो रही थी कि मैडीकल साईंस में बदलाव तेज़ी से होते रहते हैं ...यह वास्तविकता है। साईंस को जिस बात का कल पता नहीं था आज पता चल रहा है।
ऐसे में मेरा ध्यान यकायक अपनी देसी आयुर्वैदिक पद्धति की तरफ़ जा रहा है ...सदियों सदियों से जांचा परखा ... किसी तरह के बदलाव की रती भर भी गुंजाइश ही नहीं ... ज़रूरत है तो केवल इस में पूर्ण आस्था की ... इस के सिद्धांतों के अनुसार जीवनशैली बनाए रखने की, सामान्य सी तकलीफ़ों के लिये घरेलू उपायों – घरेलू जड़ी बूटियों को काम में लाने की, सक्रिय बने रहने की, खान पान में पथ्य और अपथ्य (Do’s and Don’ts) को बिना सोच विचार किए मान लेने की (यह पद्धति ऋषियों मुनियों ने जांच परख कर ही तैयार की है) , और खुश रहने की ......ताकि सब लोग स्वस्थ जीवन जी सकें।
और फिर इस बात की फ़िक्र करने की भी बेवजह ज़रूरत नहीं कि मैं सेब जैसा हूं या नाशपाती जैसा ...क्योंकि अगर इतना सब कुछ मान लिया जायेगा तो मोटापा छू-मंतर हो जायेगा –बिना किसी दवाई के, बगैर लॉइपोसक्शन के और पेट के साइज को कम करवाने की सर्जरी के बिना ही सब कुछ फिट रहेगा।
सोच रहा हूं यह बढ़ा वजन अधिकतर पढ़े-लिखे, खाते पीते लोगों की ही समस्या है, आपने भी मेहनतकश लोग कम ही देखे होंगे जो स्थूल काया से परेशान हों, लेकिन समस्यायें तो उन्हें भी हैं, कुछ अलग तरह की ........