बिना टैस्ट करवाए ही मलेरिया की दवाईयां ले लेना आज अजीब सा लगता है। और टैस्ट करवाने के बाद अगर मलेरिया की रिपोर्ट नैगेटिव है तो भी अकसर ये दवाईयां दे दी जाती हैं, ले ली जाती हैं।
पिछले दशकों में भी ऐसा होता रहा है कि जब भी कंपकंपी से बुखार होता तो उसे मलेरिया ही समझा जाता और तुरंत उपचार शुरू कर दिया जाता।
हाल ही में मेरी एक डाक्टर से बात हो रही थी, वह बता रहा था कि यह जो मलेरिया की जांच करने के लिये टैस्ट होता है उस की पॉज़िटिव रिपोर्ट देखे उसे कईं कईं महीने बीत जाते हैं। इस में टैस्ट करने वाले लैबोरेट्री टैक्नीशियन की कार्यकुशलता की बहुत अहम् भूमिका रहती है--- ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि मलेरिया के केसों में इतनी कमी आ गई है कि ये Peripheral Blood film test for malarial parasite निगेटव दिखने लगे हैं।
लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन का मत यह है कि मलेरिया की पुष्टि होने के बाद ही मलेरिया की दवाईया दी जाएं। ऐसे में कोई करे तो क्या करे ? -- एक तो हो गई बैक्टीरियोलॉजिक्ल टैस्टिंग जिस के बारे में अभी बात हुई। दूसरी विधि है मलेरिया की जांच के लिये --- रैपिड डॉयग्नोस्टिक टैस्ट (Rapid Diagnostic test). इसे प्रावईट लैब में भी लगभग एक सौ रूपये में करवाया जा सकता है।
मलेरिया के रेपिड डॉयग्नोस्टिक टैस्ट की विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जांची, परखी एवं रिक्मैंडेड किटें बाज़ार में उपलब्ध हैं। और बेहतर तो यही होता है कि WHO की सिफारिश के अनुसार यह टैस्ट करवाने के बाद ही मलेरिया का इलाज शुरू किया जाए।
Rapid Diagnostic Test (RDT)- An antigen-based stick, casette or Card test for malaria in which a colored line indicates that plasmodial antigens have been detected.
और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मलेरिया की पुष्टि किये बिना केवल लक्षणों के आधार पर ही मलेरिया का उपचार उन्हीं हालात में किया जा सकता है अगर उस का टैस्ट करने की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
यह सोचा जाना कि अगर हर ऐसे केस में जिसमें मलेरिया होने का संदेह हो उस में यह टैस्टिंग करवाना महंगा पड़ेगा ----ऐसा नहीं है, मलेरिया के लिये रेपिड डॉयग्नोस्टिक टैस्ट करवाना भी मलेरिया के उपचार से सस्ता बैठता है। इसलिये अगर बहुत से लोगों का रेपिड डॉयग्नोस्टिक टैस्ट भी करना पड़ता है तो ज़ाहिर है कि उस के बाद उन लोगों में से इलाज उन मरीज़ों का ही किया जाएगा जिन में मलेरिया की पुष्टि हो पाएगी। (ऐसा इसलिये भी कहा जा सकता है कि अधिकांश केसों में मलेरिया की जो स्लाइड तैयार की जाती है उस का परिणाम निगेटिव ही आता है लेकिन फिर भी अधिकांश लोगों के "मलेरिया" का उपचार तो कर ही दिया जाता है).
इस रेपिड डॉयग्नोस्टिक टैस्ट से संसाधनों के बेहतर उपयोग के साथ साथ एक फायदा यह भी होगा कि अगर यह टैस्ट निगेटिव आता है तो चिकित्सक तुरंत बुखार होने के दूसरे कारणों को ढूंढने में लग जाएंगे जिस से बीमार व्यक्ति के उपचार में तेज़ी आयेगी। और यह बात वैसे तो सभी आयुवर्ग के लिये बहुत अहम् है लेकिन पांच वर्ष से कम शिशुओं के लिये तो यह जीवनदाता साबित हो सकती है।
वैसे है यह मच्छर भी एक खूंखार आतंकी --- इस के आतंक की वजह से हर साल लाखों लोग मलेरिया की वजह से बेमौत मारे जाते हैं। इस आतंकी ने लोगों को बाहर आंगन में बैठना, सुस्ताना, लेटना, सोना तक भुला दिया है ----लेकिन अगर अपने आप को टटोलें तो यही पाएंगे कि अपनी हालत के हम स्वयं जिम्मेदार हैं...........है कि नहीं ?
पिछले दशकों में भी ऐसा होता रहा है कि जब भी कंपकंपी से बुखार होता तो उसे मलेरिया ही समझा जाता और तुरंत उपचार शुरू कर दिया जाता।
हाल ही में मेरी एक डाक्टर से बात हो रही थी, वह बता रहा था कि यह जो मलेरिया की जांच करने के लिये टैस्ट होता है उस की पॉज़िटिव रिपोर्ट देखे उसे कईं कईं महीने बीत जाते हैं। इस में टैस्ट करने वाले लैबोरेट्री टैक्नीशियन की कार्यकुशलता की बहुत अहम् भूमिका रहती है--- ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि मलेरिया के केसों में इतनी कमी आ गई है कि ये Peripheral Blood film test for malarial parasite निगेटव दिखने लगे हैं।
लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन का मत यह है कि मलेरिया की पुष्टि होने के बाद ही मलेरिया की दवाईया दी जाएं। ऐसे में कोई करे तो क्या करे ? -- एक तो हो गई बैक्टीरियोलॉजिक्ल टैस्टिंग जिस के बारे में अभी बात हुई। दूसरी विधि है मलेरिया की जांच के लिये --- रैपिड डॉयग्नोस्टिक टैस्ट (Rapid Diagnostic test). इसे प्रावईट लैब में भी लगभग एक सौ रूपये में करवाया जा सकता है।
मलेरिया के रेपिड डॉयग्नोस्टिक टैस्ट की विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जांची, परखी एवं रिक्मैंडेड किटें बाज़ार में उपलब्ध हैं। और बेहतर तो यही होता है कि WHO की सिफारिश के अनुसार यह टैस्ट करवाने के बाद ही मलेरिया का इलाज शुरू किया जाए।
Rapid Diagnostic Test (RDT)- An antigen-based stick, casette or Card test for malaria in which a colored line indicates that plasmodial antigens have been detected.
और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मलेरिया की पुष्टि किये बिना केवल लक्षणों के आधार पर ही मलेरिया का उपचार उन्हीं हालात में किया जा सकता है अगर उस का टैस्ट करने की सुविधा उपलब्ध नहीं है।
यह सोचा जाना कि अगर हर ऐसे केस में जिसमें मलेरिया होने का संदेह हो उस में यह टैस्टिंग करवाना महंगा पड़ेगा ----ऐसा नहीं है, मलेरिया के लिये रेपिड डॉयग्नोस्टिक टैस्ट करवाना भी मलेरिया के उपचार से सस्ता बैठता है। इसलिये अगर बहुत से लोगों का रेपिड डॉयग्नोस्टिक टैस्ट भी करना पड़ता है तो ज़ाहिर है कि उस के बाद उन लोगों में से इलाज उन मरीज़ों का ही किया जाएगा जिन में मलेरिया की पुष्टि हो पाएगी। (ऐसा इसलिये भी कहा जा सकता है कि अधिकांश केसों में मलेरिया की जो स्लाइड तैयार की जाती है उस का परिणाम निगेटिव ही आता है लेकिन फिर भी अधिकांश लोगों के "मलेरिया" का उपचार तो कर ही दिया जाता है).
इस रेपिड डॉयग्नोस्टिक टैस्ट से संसाधनों के बेहतर उपयोग के साथ साथ एक फायदा यह भी होगा कि अगर यह टैस्ट निगेटिव आता है तो चिकित्सक तुरंत बुखार होने के दूसरे कारणों को ढूंढने में लग जाएंगे जिस से बीमार व्यक्ति के उपचार में तेज़ी आयेगी। और यह बात वैसे तो सभी आयुवर्ग के लिये बहुत अहम् है लेकिन पांच वर्ष से कम शिशुओं के लिये तो यह जीवनदाता साबित हो सकती है।
वैसे है यह मच्छर भी एक खूंखार आतंकी --- इस के आतंक की वजह से हर साल लाखों लोग मलेरिया की वजह से बेमौत मारे जाते हैं। इस आतंकी ने लोगों को बाहर आंगन में बैठना, सुस्ताना, लेटना, सोना तक भुला दिया है ----लेकिन अगर अपने आप को टटोलें तो यही पाएंगे कि अपनी हालत के हम स्वयं जिम्मेदार हैं...........है कि नहीं ?
All said and done, the treating physician is the best judge to decide when to start anti-malarial therapy right way though empirically and when to wait for confirmation by testing.