शनिवार, 7 मई 2016

मजे में हूं...

एक सत्संग में जाता हूं..वहां पाखंडबाजी बिल्कुल नहीं है..अच्छा लगता है वहां बैठना, महांपुरूषों के वचन सुनना और अगर ये वचन मन में अगर बस जाएं तो बात बने!

बहरहाल, कुछ दिन पहले सत्संग में सुना महात्मा बता रहे थे कि हर हाल में, हर पल इस परमपिता परमात्मा का शुक्रिया अदा करते रहा करिए...सच में यह हमारी सब से बड़ा कर्त्तव्य है कि हम लोग हर क्षण इस परमात्मा का शुकराना करते रहें...इस से यह खुश हो जाता है ज़ाहिर सी बात है ...

यही समझा रहे थे कि जो लोग ईश्वर में आस्था रखते हैं अगर कोई उनसे पूछता है कि कैसे हैं तो वे यही कहते हैं....बिल्कुल ठीक हूं...मजे में हूं, ईश्वर का लाख लाख शुक्र है। और अगर दुनिया में इधर उधर देखें तो अकसर यही देखने में आता है कि अगर कोई किसी का हाल चाल पूछता है तो अगर सामने वाला कहे कि मेरे एक घुटने में दर्द है ...तो पूछने वाला तुरंत कह देता है कि यार, मेरे तो दोनों घुटनों में दर्द है।

आज के हिन्दुस्तान अखबार में घुघूतीबासूती ब्लाग की एक पोस्ट दिखी ...मजे में हूं...इन के ब्लॉग पर नियमित जाना होता रहता है और ये भी अकसर मेरे ब्लॉग पर आकर उचित मार्ग-दर्शन करती हैं...बहुत अच्छा लिखती हैं ...आप भी इन का ब्लॉग देख-पढ़ सकते हैं इस लिंक पर क्लिक कर के..

लिखतीं हैं इस लेख ..मजे में हूं ..कि लोग अकसर पूछते हैं अगर किसी से कि आप कैसे हैं तो हम लोग अपनी सारी परेशानियों को छुपा कर कितनी सहजता से कह देते हैं ....मजे में हूं...लेकिन एक छोटा बच्चा है, उस से कोई पूछे तो वह कितनी ईमानदारी से अपनी तकलीफ़ें िगना देता है ...नाक बह रही है, बुखार है, पैर में फोड़ा है, खांसी हो रही है..आदि इत्यािद।

इन का लेख सुबह ही पढ़ लिया था...ड्यूटी पर चला गया...बात यही मन में बार बार आ रही थी कि चलिए बच्चे तो बच्चे हैं, मन के सच्चे हैं, उन्होंने जैसा भी अपना हाल ब्यां कर दिया, ठीक ही है...लेिकन बड़ों के लिए यह कहने के साथ साथ कि मजे में हूं, हर पल ईश्वर का शुक्रिया अदा करना भी बनता है ...

आज ओपीडी में एक अधेड़ उम्र की औरत आई ...कुछ बात हुई तो अपनी सास के बारे में बताने लगीं कि सास बहुत बीमार है...मैं उन की सास को अच्छे से जानता हूं ..डेढ-दो साल पहले वे मेरे पास इलाज के लिए डेढ--दो महीने आती थीं...बहुत नेक औरत..उम्र यही ७५-८० के करीब रही होगी....

उस बुज़ुर्ग की बहू बता रही थीं कि सास की शूगर कंट्रोल नहीं हो रही है, पिछले कुछ दिन दाखिल थीं...मैं इस बुज़ुर्ग औरत को बड़ा ज़िंदादिल मानता हूं...यहां लखनऊ महोत्सव में पिछले से पिछले साल बड़े से झूले पर बैठने की इच्छा ज़ािहर की ... जो बहुत ऊंचे जा कर नीचे आता है ...बेटे ने टिकट ले कर बिठा दिया...इन्होंने खूब एंज्वाय किया...वैसे भी किसी से बातचीत करने पर पता चल ही जाता है ...बड़ी करूणामयी, वात्सल्य से भरी हुई लगी मुझे यह बुज़ुर्ग...
आज जो बात पता चली बहू से कि ये अपने अड़ोस-पड़ोस में तो दूसरी की मदद करती ही हैं ...अपनी बुज़ुर्ग काया के बावजूद भी ...लेकिन पिछले दिनों जब यह अस्पताल में थीं तो इन्होंने यहां भी नेकी की कमाई कर गईं...क्या किया बताऊं?...मैं दंग रह गया उन की बहू से यह सुन कर कि थोड़ी सी तबीयत सुधरी तो आस पास की अपने से बुज़ुर्ग औरतों की मदद करने लगतीं ...एक बहुत ही बुज़ुर्ग औरत जिसे घर वाले दाखिल करवा कर चले गये थे उसे नहलाने ले गईं...बाथरूम उस के साथ जाना....और तो और बहू ने बताया कि हम घर से खाना लाते हैं...एक चपाती खातीं, बाकी दूसरों में बांट देतीं आस पास के मरीज़ों में जिन के घर से खाना नहीं आया होता....
मुझे तो ये बातें सुन कर इतना अच्छा लगा िक मैंने तो उस महिला को इतना ही कहा ....अम्मा को ऐसा ही बने रहने दीजिए, सेवा में बड़ी शक्ति है...

साथ में मैंने एक कागज़ के टुकड़े पर आशीर्वाद के रूप में एक संदेश लिख कर उस बुज़ुर्ग को भिजवा दिया..बहू बता रही थी कि आप को बहुत याद करती हैं ...मुझे लिखते लिखते ध्यान आया कि पिछले साल मेरे बेटे का रिजल्ट आया तो मेरी मां, बीवी और मेरी फोटो बेटे के साथ पेपर में छपी तो पेपर देख कर बताते हैं बहुत खुश हुईं...और बधाई देने भी आईं।

वैसे तो गांव में इनका घर है लेकिन पारिवारिक कारणों की वजह से (जिन्हें मैं यहां लिखना नहीं चाहता) उन्हें लखनऊ में ही रहना अच्छा लगता है ...बड़ा बेटा गांव में रहता है ..इन की बहू ने बताया कि जब इन के पति केवल २९ दिन के थे तो इन के ससुर चल बसे थे...और तब इन का बड़ा बेटा डेढ़ साल का था...इन के ससुर को २१ साल की उम्र में पेट का कैंसर हो गया था, जैसा उन्होंने बताया...बड़े संघर्ष से बेटों को पालन-पोषण किया।

उस बुज़ुर्ग महिला के महान कामों के बारे में सुन कर मुझे यही लगा कि मैं तो बस शब्दों से खेलना ही जानता हूं...सच में यह शब्दों का खेल ही है कि कोई हाल पूछे तो क्या कहना है, क्या नहीं कहना है, लेकिन इस वयोवृद्ध महिला ने तो सच में जीने की कला ही सिखा दी हो जैसे ....अपना हाल ठीक नहीं है, लेकिन उस का रोना रोने की बजाए (वैसे भी आज के दौर में किसे परवाह है किसी की तकलीफ़ की, और कोई सुनना भी तो नहीं चाहता!) अपने से ज़्यादा लाचार-बेबस किसी अन्य बुज़ुर्ग का हाथ थाम लिया....लेकिन सब कुछ निःस्वार्थ भाव से...आप के इस जज्बे को बार बार नमन ...ईश्वर आप को स्वस्थ रखे और आप श्तायु हों..