मंगलवार, 5 अगस्त 2014

कैमिस्ट की दुकानों पर होने वाली २० रूपये की ब्लड-शूगर जांच

अकसर अब हम लगभग सभी शहरों में कैमिस्टों की दुकानों पर इस तरह की जांच होने के बोर्ड देखने लगे हैं कि रक्त में शूगर की जांच २० रूपये में और ब्लड-प्रैशर की जांच १० रूपये में। यह जो १०-२० रूपये में जांचें वांचें होने लगी हैं, ठीक है, एक-दो रूपये में सड़क पर चलते हुए अपना वज़न देख लिया, और ज़रूरत पड़ने पर अपनी ब्लड-प्रेशर भी मपवा लिया.....कोई विशेष बात नहीं लगती, लेकिन है। और जहां तक यह २० रूपये में कैमिस्ट की दुकान से अपना ब्लड-प्रैशर मपवाने की बात है, यह मुझे ठीक नहीं लगती, क्योंकि इस के लिए मुझे नहीं पता कि ये लोग ज़रूरी सावधानियां बरतते भी होंगे कि नहीं!

 मैंने यह भी देखा है कि जिन घरों में भी यह घर में ही ब्लड-शूगर की जांच करने वाली मशीनें होती हैं, उस घर में दूसरे सदस्यों, रिश्तेदारों, मेहमानों और पड़ोसियों को भी अपनी शूगर की जांच के लिए एक उत्सुकता सी बनी रहती है। लेकिन मेरे विचार में यह सब करना बीमारी को बुलावा देने जैसा है।

मैं कईं बार लोगों से पूछा है कि आप जिस मशीन से इतने सारे लोग यह जांच करते हो, क्या उस लेंसेट (जिस से अंगुली से ब्लड निकाला जाता है) को बदलते हो, तो मुझे कभी संतोषजनक जवाब मिला नहीं। हर बार यही बात सुनने को मिलता है कि स्पिरिट से पोंछ लेते हैं। नहीं, ऐसा करना बिल्कुल गलत है।

इस तरह की मशीनों के पेम्फलेट पर भी लिखा रहता है कि यह जो इस में लेंसेट है, यह केवल एक ही व्यक्ति के ऊपर इस्तेमाल करने के लिए है।

जो बात मैं कहना चाहता हूं वह केवल इतनी सी है कि जिस भी चीज़ से --लेंसेट आदि से-- अंगुली से रक्त निकाला जाता है, उसे आज के दौर में एक दूसरे के ऊपर ऐसे ही स्पिरिट से पोंछ कर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। किया पहले भी नहीं जाना चाहिए था, आज से ३०-४० वर्ष पहले भी ..लेकिन तब कुछ बीमारियों के बारे में हैपेटाइटिस बी, सी और एचआईव्ही संक्रमण जैसे रोग के बारे में जागरूकता ही कहां थी, इसलिए सब कुछ भगवान भरोसे ही चलता रहा।

मुझे याद है बचपन में एक टैस्ट तो हम लोगों को बार बार लगभग हर साल करवाना ही पड़ता था , मलेरिया की जांच के लिए पैरीफ्रल ब्लड फिल्म...इस के लिए लैब वाला अंकल हमारी अंगुली से रक्त निकालने के लिए कुछ चुभो देता और सभी मरीज़ों पर उसी को स्पिरिट से पोंछ पोंछ कर इस्तेमाल किया करता। निःसंदेह एक खतरनाक प्रैक्टिस।

हां तो मैं बाज़ार में होने वाली कैमिस्ट की दुकान पर ब्लड-शूगर की जांच की बात कर रहा था, मुझे नहीं पता कि ये लोग हर केस में नईं लेंसेट इस्तेमाल करते होंगे या नहीं।

आज मुझे पता चला कि ये जो कंपनियां इस तरह की मशीनें बना रही हैं वे अलग से इस तरह के लेंसेट भी बेचती हैं लेकिन ये थोड़े महंगे ही दिख रहे थे जब मैंने नेट पर चैक किया। ऐसे में क्या आप को लगता है कि बाज़ार में २० रूपये में होने वाली जांच के लिे हर मरीज़ के लिए नया डिस्पोज़ेबल लेसेंट इस्तेमाल किया जाता होगा। आप इस के बारे में अवश्य सोचिए और उसी के आधार प ही इस तरह की जांच के लिए निर्णय लें और अपने से कम पढ़े-लिखों तक भी यह बात पहुंचाएं।

बात जितनी छोटी दिखती है उतनी है नहीं .. इस तरह का सस्ता टैस्ट बाज़ार में करवाना और जिस के लिए लेंसेट नया नहीं है, बिल्कुल वैसा ही हो गया जैसे कि कोई किसी दूषित या किसी दूसरे पर इस्तेमाल की गई सिरिंज से टीका लगवा ले। जहां पर एक दूसरे पर इस्तेमाल किए जाने वाले लेंसेंट या सिरिंज से बीमारी फैलने की बात है, इस में ज्यादा अंतर नहीं है, यह जानना बहुत ज़रूरी है।

वो फिल्मों की बात अलग है कि अमर अकबर एंथोनी में अकबर का खून निकल रहा है और सामने ही दूसरे किरदार को चढ़ाया जा रहा है, कोई बीमारी फैलने के लिए बिना टैस्ट किये हुए रक्त की जांच ही नहीं, रक्त की एक बूंद का उतना छोटे से छोटा अंश (देखना तो दूर, जिस की आप कल्पना भी नहीं कर सकते ) भी भयानक संक्रमण फैला सकता है।

ऐसा नहीं है कि लेंसेट बाज़ार में सस्ते नहीं मिलते ... मिलते हैं, मैंने कईं अस्पतालों मेंंदेखा है कि जिन रक्त की जांच के लिए उन्हें अंगुली को थोड़ी सूईं चुभो कर रक्त निकालना होता है, वे लोग यह काम एक कागज़ में मिलने वाली डिस्पोज़ेबल लेंसेट से करते हैं और फिर उस को नष्ट कर देते हैं। होना भी यही चाहिए, वरना तो खतरा बना ही रहता है।

मैं सोच रहा था कि क्या ऐसा नहीं हो सकता कि जिन लोगों को बाज़ार से बार बार रक्त की इस तरह की जांच करवानी पड़ती है, वे लोग कुछ डिस्पोज़ेबल लेंसेट खरीद लें ...और अगर टैस्ट के समय देखें कि वहां पर इस तरह के उपलब्ध नहीं हैं तो अपना लेंसेट ही इस्तेमाल किए जाने का अनुरोध करें।

मामला इतना आसान है नहीं , यह काम हम डाक्टर लोग किसी लैब में जाकर नहीं कर पाते, ऐसे में आप कैसे कर पाएंगे यह आपने देखना है, क्योंकि यह आप की सेहत का मुद्दा है, किसी भी दूषित उपकरण के चुभने से आप की सेहत खतरे में पड़ सकती है।

इतना पैनिकि होने की बात भी नहीं है, बस बात तो है केवल सचेत करने के लिए।

ध्यान आ रहा है कि पिछले सरकार के कुछ दावे अखबारों में खूब छपा करते थे ..कि अब शूगर की जांच के लिए स्ट्रिप्ज़ २-२ रूपये में बिकने लगेंगी.......कहां गई ऐसी स्ट्रिप्ज़ जो आने वाली थीं।

अपनी सेहत के बारे में स्वयं भी सगज रहिए. और औरों को भी करते रहिए।

जाते जाते ध्यान यह भी आ रहा है कि क्या ये कैमिस्ट की दुकानों वाले इस तरह की रक्त की जांचें करने के लिए अधिकृत भी हैं या बस धक्कमपेल किए जा रहे हैं। विचारों का क्या है, कुछ भी मन में आ सकता है......पिछले दिनों आपने देखा कि एम्स जैसी संस्था के डाक्टरों ने अखबारों में लिखा था कि चिकित्सा व्यवसाय में कैसे कैसे गोरखधंधे चल रहे हैं...... जब मैडीकल प्रैक्टीशनर किसी के साथ सांठ-गांठ कर लेते हैं, इसलिए मुझे तो यह भी लगता है कि हो न हो, कहीं कुछ कैमिस्ट की दुकानों पर होने वाले टैस्ट भी ये दवाईयां बनाने वाले कंपनियों के सांठ-गांठ का ही तो नतीज़ा नहीं है... चलते फिरते राहगीर का खड़े खड़े ब्लड-प्रैशर मापो, ब्लड-शूगर की जांच करो और जब रिपोर्ट देख कर वह डरा हुआ इलाज के बारे में पूछे तो उसे उन्हीं कंपनियों की दवाईयां थमा दो...बस, इस चक्कर में चिकित्सक बाहर हो गया, कितने लोग तो वैसे ही इसी तरह से दवाई लेकर खाना शुरू कर देते हैं।

इन मसलों पर जागरूक किये जाने की बहुत ज़रूरत है........लेकिन अकसर मीडिया को आइटम नंबर की राजनीति और किस हीरो को किस हीरोइन के साथ किस देश के किस होटल में एक साथ देखा गया, मीडिया को ये सब चटखारे लेने से फुर्सत मिले तो ऐसी जनोपयोगी बातों को उठाने की बारी आए।

बीच साइड हैल्थ चैक अप स्टाल 
शूगर की जांच हो जायेगी बहुत सस्ती 
एक आवश्यक सूचना..
रक्त की जांच के समय ध्यान रखिए..

केवल बिस्तर से उठना ही तो मुश्किल होता है..

हम में से शायद ही कोई ऐसा हो जिसने सुबह सवेरे की खूबसूरती का कभी न कभी आनंद न लूटा हो.. है कि नहीं, कभी बचपन में गर्मी की छुट्टियों में हम लोग सुबह उठ कर जब भ्रमण के लिए निकल जाया करते थे। फिर जब बड़े हुए तो हमारी कुछ अलग यादें बन गईं......मैं बंबई में जब रहा तो कुछ बार सुबह समुद्र के किनारे मैरीन ड्राइव पर टहलने चले जाना, बहुत बार महालक्ष्मी रेस-कोर्स की तरफ़ सुबह चल पड़ना...शाहर से बाहर गये हैं तो मद्रास का मैरीना समुद्री तट........कहने का मतलब केवल यही कि ये सब यादें ही हमें कितना सुख दे देती हैं।

और एक बात यह भी है कि अब भी हम सब लोग सुबह सवेरे उठ कर टहलना, बाग की हरियाली को निहारते हुए वक्त बिताना, योगाभ्यास, प्राणायाम, प्रार्थना ...सब कुछ करना चाहते हैं, उस में नैसर्गिक आनंद है, लेकिन पता नहीं मेरे जैसे लोग सब कुछ जानते हुए क्यों इतना आलस करते रहते हैं......वैसे भी सुबह सवेरे नेट पर दोस्तों के दस स्टेट्स पढ़ने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि हम अपने आप को समय देना शुरू करें। 

मैंने कुछ दिन पहले निहाल सिंह के बारे में बात की थी कि वे किस तरह से मिलने वाले लोगों को योगाभ्यास के लिए प्रेरित करते रहते हैं। आज सुबह मैं अपने एक मित्र को लेकर उसी पार्क में पहुंच गया जहां उन का ग्रुप योगाभ्यास करता है। 

योगाभ्यास तो कितना हुआ या नहीं हुआ, किस से नीचे बैठा गया और किस से नहंीं, कौन प्राणायाम की बारीकी समझ पाया, कौन नहीं........यह तो बिल्कुल भी मुद्दा है ही नहीं.......अहम् बात तो यह है कि सुबह सवेरे घर से बाहर निकल कर खुली फ़िज़ाओं में रहना एक अजीब सी तरोताज़गी देता है। मैं अपने मित्र से कह रहा था कि योगाभ्यास तो हम ने पांच-छः मिनट ही किया होगा, लेकिन उस से भी हम कितना हल्का महसूस कर रहे हैं। उन का भी यही मानना था कि केवल से बिस्तर से उठना ही मुश्किल होता है, बाकी तो फिर बस एक आदत बनने की बात होती है। 

हम लोग अकसर यही सोचते हैं ना कि हम से न  हो पायेगा यह योग वोग..हम नहीं कर पाएंगे प्राणायाम् ....कोई बात नहीं, सुबह सवेरे बिस्तर से उठ कर बैठ गये, इस से ही लाभ मिलने शुरू हो गये.......और घर से टहलते हुए पास के किसी पार्क में पहुंच गये, लाभ बढ़ गया.........वहां जाकर थोड़ा बहुत भ्रमण किया, हरियाली देख, फूल-पत्ते देख कर मन हर्षित हुआ......(एक आदमी को सुबह सुबह फूल तोड़ते देख कर मन थोड़ा दुःखी हुआ).... और उस के बाद जितना भई हो सका, योगाभ्यास किया, प्राणायाम् किया......ध्यान किया............ये सब लाभ जुड़ते जुड़ते आप अनुमान लगाईए कि लाभ की गठड़ी कितनी भारी भरकम हो जाएगी। 

आज उस योगाभ्यास की पाठशाला में भी यही बात कह रहे थे कि बस, योग का आनंद लो, सहजता लाओ, अपने आप पर दबाव डाल कर कुछ करने की कोशिश न करो...... सब कुछ अपने आप होने लगा, कुछ लोग पालथी मार नहीं बैठ पाते थे वे अब पद्मासन करने लगे हैं, जिन के घुटनों में तकलीफ़ थी और घुटने बदलवाने की कगार पर थे, वे अब पांच किलोमीटर तक सैर करते दिखते हैं........लोग कुछ न कुछ अनुभव बांट रहे थे। 

आदमी जैसी संगति में रहता है, उन की कुछ न कुछ बातें ग्रहण भी करने लगता है.......आज उन्होंने ने हमें आंखों की सफ़ाई करने वाले कप दिए------और कहा कि रात को सोते वक्त उन में पानी भर कर आंखों पर लगाकर आईलिड्स को हिलाएं कुछ समय ...फिर पानी को फैंक दें। अच्छा लगा जब अभी अभी घर आकर यह किया। 

संगति की बात हो रही थी तो कल की ही बात याद आ गई......कुछ दिन पहले मेरे पास एक लगभग १८-२० वर्ष का लड़का आया अपनी मां के साथ....गुटखे पान मसाले का व्यसन लग चुका था, मुंह में छोटे मोटे घाव........ऐसे युवाओं को इस गुटखे रूपी कोढ़ से मुक्ति दिलाना मैं अपनी सब से अहम् ड्यूटी समझता हूं.....उस दिन मैंने उस के साथ १०-१५ मिनट बिताए....उसे अच्छे से समझाया....डरा भी दिया कि नहीं छोड़ोगे तो क्या हो जाएगा। 

आज जब आया तो बताने लगा कि उस दिन के बाद मैंने गुटखा पान मसाला छुआ तक नहीं......उस की सच्चाई का उस के मुंह ही से पता चल रहा था। मैंने कहा कि जो यार दोस्त थोड़ा बहुत देने की कोशिश करते हैं, उन का क्या करते हो। तो उसने बताया कि अब उस ने उन दोस्तों को ही इग्नोर करना शुरू कर दिया है। मैंने पूछा कि छोड़ने में दिक्कत तो नहीं हुई, कहने लगा कि दो-तीन दिन थोड़ा सिर भारी रहा, लेकिन आप के बताए अनुसार मैं कोई दर्दनिवारक टिकिया ले लिया करता था --बस दो तीन दिन....... और फिर तो पता ही नहीं चला कि कब तलब ही लगनी बंद हो गई। 

और खुशी की बात तो यह कि ३-४ दोस्तों ने भी उस के कहने पर यह गुटखा-वुटखा खाना-चबाना छोड़ दिया है। मैंने जब खुश हो कर उस की पीठ थपथपाई तो मुझे यही लगा कि जैसे मैंने अपने बेटे को इस ज़हर से बचा लिया हो। 
अच्छा लगता है जब आप की वजह से कोई सीधे रास्ते पर आ जाए........ यह प्रयास बार बार करने योग्य है। 

बचपन से ही अपनी मां के मुंह को यह गीत गुनगुनाते पाया है, इसलिए इस समय याद आ गया....