रविवार, 8 मई 2016

मटरगश्ती खुली सड़क पे...

रात चैन से नहीं बीती, अभी बताता हूं क्यों, लेकिन सुबह उठा तो सोचा चलता हूं थोड़ी मटरगश्ती ही कर आऊं..

हां, तो रात में चैन न आने का कारण मच्छर नहीं थे, उन का आतंक कुछ दिनों से कम ही है...बेचैनी इसलिए रही कि मैंने कल दो समोसे खा लिये थे...रोक नहीं पाया..जब कि पता है कि कोई भी मैदे वाली चीज़ खाने के बाद मेरी हालत अगले २४ घंटे तक खराब ही रहती है...अजीब सा लगता रहता है, न कुछ करने को मन करता है, न नींद आती है...लेकिन ढीठ प्राणी हूं मैं भी ...और लोगों से यह उम्मीद करता हूं कि मेरा घिसा-पिटा पका हुआ भाषण सुनने के बाद वे तुरंत मेरी जुबलेबाजी के आगे सरेंडर कर दें..पानमसाला, गुटखा थूक दें, सिगरेट बीड़ी बुझा दें और सुरती की सूरत न देखने की कसम ले लें.....ऐसा कभी होता है क्या!...मेरा फ़र्ज़ है लोगों को सही-गलत से रू-ब-रू करवाते रहना...आगे इन लोगों की अपनी मनमर्जियां...कोई किसी की परिस्थितियां नहीं बदल सकता, बस हम कोशिश कर सकते हैं...

हां, कल रात वाले सपने की बात तो आप को सुना दूं...मुझे सपना यह आया कि हमारे मुख्यालय के बाबू मुझे कह रहे हैं कि आप ने जो २००५-०६ में नियुक्तियां की थीं...उन में से एक पद तो था ही ही नहीं, लेकिन आप ने नियुक्ति कर दी थी...पंगा पड़ा हुआ है ..चिट्ठी भिजवा रहे हैं....उन्होंने सीधा सीधा कहा कि अब इतने सालों में उस कर्मचारी को जितनी तनख्वाह दी जा चुकी है, वह सारी राशि मेरी तनख्वाह से ही कटेगी।

मैं हैरान-परेशान ...मुझे इतना इत्मीनान तो था कि मैं कौन होता हूं यह नियुक्ति करने वाला...ठीक है, सेलेक्शन कमेटी का एक सदस्य होता हूं ...लेकिन वहां भी सब कुछ पारदर्शी तरीके से करने में विश्वास रखता हूं ...अब इतना पैसा कैसे भरूंगा...क्योंकि बाबू तो बाबू होता है, जो उसने कह दिया वह तो हो कर ही रहेगा...यह वसूली तो होगी ही..वैसे दफ्तर से आते आते मुझे एक बाबू ने धीमे से यह भी कह दिया कि हम आप को इस वसूली से बचने की कोई तरकीब बता देंगे....लेकिन पता नहीं मैं उस समय उस की तरकीब या जुगाड़ सुनने के मूड में ज़रा भी नहीं था...मैं बाहर चला आया..

रात भर मैं टोटल करता रहा कि यह वसूली कमबख्त कितनी बनेगी....५ हज़ार रूपया महीना भी उसे अगर तनख्वाह मिली होगी तो भी बहुत हो जायेगा...वैसे तो इस से कहीं ज़्यादा ही उसने वेतन पा लिया होगा...क्योंकि २००६ के बाद से तो वेतन आयोग की वजह से सेलरी बढ़ गई थी....बस, यही कुछ चलता रहा सपने में .....बीच में यही ध्यान भी आता रहा सोते सोते कि अच्छा होता वलेंटरी रिटायरमेंटी ले ली होती ...यह सब कहां मुझे कोयलों की दलाली में फंसना पड़ेगा... न कुछ किया न कराया...बिना वजह झंझट...

सुबह जब नींद से उठा तो शुक्र किया कि यह सब सपना था...

मुझे लगता है मुझे इसलिए सपना आया क्योंकि आज कल ८०० करोड़ मार्का आईएएस लोगों की खबरें बहुत दिखने लगी हैं...और मामूली अफसरी से रिटायर लोगों की जब मैं आते जाते कोठियां देखता हूं तो अपने आप से यह प्रश्न करता हूं कि यार, मैं तो रिटायरमैंट पहुंचते पहुंचते किसी मेट्रो शहर में एक बंगला तो छोड़िए, एक अच्छे फ्लैट का जुगाड़ तक न कर पाया....और ये इतने इतने भव्य भवन कैसे बन गये...

पूछा था जी एक बार किसी से .... अचानक पता चला कि उस का ससुरा बहुत रईस था, वह दे गया बहुत कुछ उसे.....किसी दूसरे के बापू के पास गांव में बड़ी ज़मीन जायदाद थी िजसे बेच दिया गया....अब हम इन चीज़ों में पड़ते नहीं हैं तो क्या हम असलियत जानते नहीं है, कोई रईस-वईस नहीं...कोई ज़मीन जायदाद नहीं, अधिकतर लोग -९९प्रतिशत लिखते डर लगता है ...जो नौकरी में आते हैं वे सब के सब शुद्ध मिडिल क्लास बैकग्राउंड के होते हैं ...जितने मर्जी नखरे कर ले कोई भी ...सच तो सच ही होता है ...जो थोड़े से भी खाते-पीते होते हैं वे नौकरी में आते ही नहीं है, ऐसा मुझे लगता है ...




मेरा सपना टूटा तो मेरी जान में जान आई..थोड़ी मटरगश्ती करने निकल पड़ा....बाज़ार में आज देखा कि मटके खूब बिक रहे हैं और वे भी टोटी वाले ...अच्छी बात है लोटे का झंझट ही खत्म ..वरना उसे भी संभालना पड़ता है ...मैंने पंडित जी से कहा कि आप ने यह काम बहुत पुण्य वाला कर दिया है ...हंसने लगे...

लौटते समय देखा कि यह भीमकाय टंकी रिक्शा वाला कहां ले जा रहा है....उसने बताया कि ५००० लिटर की है ..लगभग डेढ़ टन का वजन है ...लगभग २० किलोमीटर दूरी पर बिजनौर ले कर जा रहा हूं...तनख्वाह पर हूं दुकानदार के पास....रिक्शेवाले से भी चिकचिक....उसे अगर हर फेरे के पैसे देने पड़ेंगे तो वह महंगा पड़ेगा...इसलिए पांच छः हज़ार दे देते होंगे, और क्या! पसीने से लथपथ दिखा वह रिक्शावाला...लेकिन मस्ती में चला जा रहा था खुशी खुशी...


हां, बाज़ार में एक जगह मैं फ्रूट खरीद रहा था तो साथ वाली रेहड़ी पर ये तीन चीज़ें बिक रही थीं.... मुझे एक का तो नाम पता है फालसे...हम लोग खूब खाया करते थे, अब शहर में दो तीन जगहों पर दिख जाते हैं इस मौसम में ...बाकी दो फलों का नाम मुझे पता नहीं था...खरबूजे वाले ने बताया कि यह पीले वाला फल है किन्नी और दूसरे फल का नाम है सिंगड़ी ...घर आकर गूगल किया तो कुछ पता नहीं चला, अगर आप में से इन के बारे में किसी को पता हो तो लिखिएगा..मैं सोच रहा था कि मेरी उम्र के लोगों को अब इन तीन में से एक का ही नाम पता है, और स्वाद पता है....और कुछ सालों में तो ये फल विलुप्त ही हो जाएंगे जब किसी को इन का नाम तक पता नहीं होगा, तो खरीदेगा कौन......वैसे खरबूजे वाले ने आते आते सीख दे डाली कि हर मौसम के फल का स्वाद ज़रूर चखना चाहिए....

घर आकर नवभारत टाइम्स पर नज़र गई तो वहां पर पहली बात दिखा कि एक ट्रक में इतने सारे मटके लदे हुए हैं...एकदम ध्यान आया कि ५००० लिटर की टंकी रिक्शे पे और पांच लिटर की सुराही ट्रक पे..

सुबह सुबह और वह भी रविवार के दिन इतनी सीरियस बातें करना ठीक नहीं ...चलिए, इस मटरगश्ती सांग को ही सुन लेते हैं... कहते हैं फिल्म इतनी चली नहीं थी, नहीं चली तो न सही, लेकिन गाना तो मस्त है ही, काम भी अच्छा ही किया लगता है ....लोगों ने नहीं अच्छी लगी तो कोई बात नहीं ...वैसे भी पब्लिक अभी अच्छे दिनों की इंतज़ार में है, उन्हें और कुछ भी अच्छा नहीं लगता.... क्या ख्याल है?