रविवार, 25 सितंबर 2022

गुलज़ार साहब के गीतों की झमाझम बरसात ...

 मुंबई 

25.9.22 (रविवार) 


परसों शुक्रवार शाम रविन्द्र नाट्य मंदिर में गुलज़ार साहब के गीतों की झमाझम बरसात हुई...अवसर था सिद्धार्थ एंटरटेनर्ज़ द्वारा आयोजित एक प्रोग्राम....इतने बरस हो गए मुंबई में रहते हुए लेकिन पिछले तीस सालों से बस आते जाते रविन्द्र नाट्य मंदिर के सामने से गुज़रते वक्त इस की तरफ़ हसरत भरी निगाहों से तकता ही रह गया...कभी मौका ही नहीं मिला...इस जगह की अहमियत से तो अच्छे से वाकिफ़ था ही ...यह मराठी नाट्य जगत में बहुत ऊंचा स्थान रखता है ...कईं बार तो आते जाते वक्त दर्शकों को भी इस के आंगन में खड़े देखा ...कल एक बोर्ड देखा तो पता चला कि 2003 में इस का रिनोवेशन हुआ था ...



Compered by Ms Mangala Khadilkar 

खैर, मैं भी कैसी भूमिका बांधने के चक्कर में पड़ गया...सब से पहले तो यहां यह दर्ज करना चाहूंगा कि इस प्रोग्राम की कंपियर थीं - मंगला खादिलकर ..और एक बात...मैंने लखनऊ में रहते हुए और यहां मुंबई में ऐसे ही सुरमयी संगीत से सरोबार प्रोग्राम काफी देखे हैं लेकिन मंगला खादिलकर जैसी कंपियरिंग अभी तक नहीं देखी....जैसे सारे सभागार को मंत्रमुग्ध कर देने का फ़न होता है कुछ कंपियर्ज़ के पास ...यही बात थी उन की कंपियरिंग में भी ...हर बात सधी हुई, संगीत का, रागों का, गीतों की परदे के पीछे की बातें ..क्या कहें...वह गीतो ं के बीच जब बात करती थीं तो ऐसे लगता था कि जैसे किसी संगीत की यूनिवर्सिटी की प्रोफैसर आज बहुत चुटीले अंदाज़ में सब कुछ कह रही हों....कुछ लोगों की बोलचाल और विषय पर पकड़ ही ऐसी रहती है कि सामने बैठे लोगों को लगता है कि हो न हो यह तो संगीत कला में पीचीएड तो होंगी ही ......और अगर नहीं भी हों तो कोई बात नहीं, ऐसे महान् लोगों को तो मानद उपाधि दे देनी चाहिए..। क्या कोई सुन रहा है मेरी बात....










कोरस में गाने वाले कलाकारों ने भी अपने फ़न को बेहतरीन ढंग से पेश किया ... 
और इन गायकों एवं 35 संगीतकारों की तो तारीफ़ क्या करें (एक से बढ़ कर एक धुरंधर), पूरा एक दिन चाहिए उसे लिखने के लिए भी और अल्फ़ाज़ भी तो चुन चुन इस्तेमाल करने होंगे 👏🙏 ...

इस पोस्ट में जितने भी गीतों के लिंक लगे हुए आप को मिलेंगे ये सभी गुलज़ार साहब ने ही लिखे हुए हैं...बीच में एक बात याद आ गई...सोचा वह भी लिख दूं...एक बहुत मशहूर किताब है ...परस्यूट ऑफ हैपीनेस ...इस किताब पर फिल्म भी बन चुकी है ...उस में लेखक दो एक वाक्या लिखता है जिन्होंने उस की ज़िंदगी बदल दी ...उस के बारे में बाद में कभी बात करेंगे...मैंने परसों ही उसे पढ़ना शुरू किया है .. वैसे भी हम सब जानते हैं कि हम दिनों को भूल जाते हैं, लम्हों को संजो कर रख लेते हैं...ऐसा ही एक लम्हा था कुछ महीने पहले जब मैं गुलज़ार साहब के बंगले के सामने से गुज़र रहा था तो मैं तो आते जाते वक्त उन की बालकनी की तरफ़ अनायास देख ही लेता हूं ...उस दिन गुलज़ार साहब बॉलकनी में खड़े थे...मैंने दूर ही से उन्हें प्रणाम किया जिस का उन्होंने बड़ी अच्छी तरह से जवाब दिया....

अच्छा, एक बात जो मुझे वहां प्रोग्राम में जा कर बहुत अखर रही थी वह यही थी कि इतने सारे जिन गीतों का मैं दीवाना तो था लेकिन मुझे यही न पता था कि ये गुलज़ार साहब ने लिखे हुए हैं....सच में मुझे सारे प्रोग्राम के वक्त यह बात बहुत चुभती रही कि यह कैसे मुमिकन है कि मेरे जैसा बंदा जो फिल्मी गीतों का अपने आप को बहुत बड़ा दीवाना कहता हो, वह यह ही न जानता हो कि वह जो गीत सुन रहा है बरसों से वह गुलज़ार साहब की कलम की देन है...मंगला जी ने सही कहा कि गुलज़ार साहब के लिखे अल्फ़ाज़ के चक्कर में उलझने की कोशिश न करिेेए...क्योंकि वह तो खुद कहते हैं कि मैं तो अहसास लिखता हूं ...और वह लिखते भी कैसा कोमल हैं जैसे तितली के पंखों को छू रहे हों...


आने वाला पल ...जाने वाला है ..हो सके तो इस में ज़िंदगी बिता दो ..पल जो यह जाने वाला है ...
हर गीत के साथ हमारी कुछ न कुछ यादें जुड़ी होती हैं....आज के प्रोग्राम में गुलज़ार साहब के लिखे 30 गीत पेश किए गए ...इन में से यह एक भी था...मेरा बहुत ही मनपसंद गीत ...चालीस बरस से सुनते सुनते भी अगर किसी की भूख-प्यास शांत न हो तो लेखक भी क्या करे ...कोरोना से पहले लखनऊ में एक मेडीकल कांफ्रेंस थी ...वहां पर एक प्रोग्राम था कि संगीत बजेगा किसी गीत का ...और गीत शुरू होने से पहले यह बताना था कि कौन सा गीत है ....मैंने तो शायद इस का म्यूज़िक शुरु होने के 2-4 सैकेंड के अंदर ही बता दिया इस का ठीक जवाब और मुझे इनाम में एक लैदर का हैट टाइप मिला था ...अच्छा हुआ याद आ गया...उसे भी मुझे ढूंढना है कहां रखा होगा ...उसे पहन कर मुझे फोटो खिंचवाना अच्छा तो लगता है लेकिन बाहर कहीं उसे पहन कर जाने में बड़ी हिचक होती है ..करते हैं इस हिचकिचाहट का भी कुछ इलाज ...
एक काम करता हूं ...गुलज़ार साहब के जिन गीतों की बरसात उस नाट्य मंदिर में हुई उस की एक फेहरिस्त ही आप तक पहुंचा दूं तो कैसा रहेगा ......कैसा क्या, बहुत बढ़िया रहेगा ...वैसे भी यह काम करने के पीछे मेरा भी एक स्वार्थ है कि मुझे भी एक लिस्ट मिल जाएगी और मैं आगे कभी ऐसी बेवकूफ़ी वाली बात न करूंगा कि मुझे यही न पता था कि अच्छा, यह सुपरहिट गीत भी गुलज़ार साहब के अल्फ़ाज़ में पिरोया हुआ है ... खैर..!!
  • मुसाफिर हूं यारो, न घर है न ठिकाना ...(फिल्म परिचय, 1972) 
  • तेरे बिना जिया जाए न...बिन तेरे तेरे बिन साजना सांस में सांस आए न ...(फिल्म - घर) 
  • हुज़ूर इस कद्र भी न इतरा के चलिए...(फिल्म मासूम-1983)
  • आप की आंखों में महके हुए से राज़ हैं...(फिल्म घर)
  • इक चांद की कश्ती पे (गुरू 2007)
  • ओ माझी रे ... साहिलों पे बहने वालो कभी सुना तो होगा कहीं ..
  • ओ बबुआ...यह क्या हुआ... (फिल्म - सदमा- 1983)
  • चल छैयां छैयां ...चल छैयां छैयां ..(फिल्म- दिल से - 1998)
  • ऐ ज़िंदगी गले लगा ले ... (फिल्म- सदमा)
  • दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन .. (फिल्म- आंधी)
  • ए वतन, मेरे वतन ..आबाद रहे तू (फिल्म राज़ी) 
  • तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा तो नहीं ..(फिल्म आंधी) 
  • वो शाम कुछ अजीब थी ... (फिल्म- खामोशी) 
  • जिहाल ए मस्कीं मकुन ब रंजिश...बहाल ए हिजरा बेचारा दिल है ...(फिल्म - गुलामी)
  • हम ने देखी है इन आंखों की महकती खुशबू (खामोशी) 
  • छोड़ आए हम वो गलियां (माचिस) 
  • बीड़ी जलाई ले जिगर से पिया ..जिगर मा बड़ी आग है (ओंकारा)
  • चप्पा चप्पा चरखा चले ...चप्पा चप्पा चरखा चले (माचिस) 
इन गीतों के बाद हो गया था ...इंटरवल....बढ़िया बढ़िया एक दम गर्मागर्म बटाटा वड़ा, समोसा, सैंडविच के साथ चाय पीने के लिए ... 😎
जैसे आज से पचास बरस पहले इंटरवल खत्म होने के बाद सिनेमा घरों में लंबी सी घंटी बजा करती थी, जब यहां भी यह घंटी बजी तो लोग भागे अंदर ....
  • थोड़ा है थोड़े की ज़रूरत है ..ज़िंदगी यहां कितनी खूबसूरत है ...(फिल्म- खट्टा मीठा) 
  • आने वाला पल ...जाने वाला है ...हो सके तो इस में ज़िंदगी बिता दो, पल जो यह जाने वाला है ..(गोलमाल)
  • तुझ से नाराज़ नहीं ज़िंदगी हैरान हूं मैं.... (फिल्म- मासूम) 
  • तू ही तू सतरंगी रे ...मनरंगी रे ...
  • मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है .... (इजाज़त)
  • दो दीवाने शहर में (फिल्म- घरौंदा) 
  • कोई होता जिस को अपना कह लेते यारो (फिल्म -मेरे अपने) 
  • नाम गुम जाएगा, चेहरा यह बदल जाएगा..मेरा आवाज़ ही पहचान है ..गर याद रहे ...(किनारा) 
  • कजरारे कजरारे ..तेरे नैनां (फिल्म- बंटी बबली) 
  • धागे तोड़़ लाऊं चांदनी से नूर के ...घूंघट ही बना लो रोशनी से नूर के .. बोल न हल्के हल्के ... 
  • कोरी है ...कुंवारी है ... कुड़ी मेरी सपने में मिलती है ... (फिल्म- सत्या) 

प्रोग्राम के आखिर में गुलज़ार साहब का लिखा हुआ यह गीत ....जय हो ...जय हो ...पेश किया गया..खूब तालियां बजीं ..और इस तरह यह प्रोग्राम भी अपने अंजाम तक पहुंच गया ...उस के हमें कलाकारों के साथ, म्यूज़िशियन्ज़ के साथ शेल्फी लेने का मौका भी मिल गया...क्या करें कहीं भी चले जाएं यह हमारा शेल्फी लेने का फितूर पीछा ही नहीं छोड़ता ...पहले हम लोग ऑटोग्राफ लेने की फ़िराक में रहते थे ..अब शेल्फी का ट्रेंड है ....चलिए, बहुत अच्छा है, कुछ सुनहरे पल दिल में संजो कर रखने के साथ साथ मोबाइल में भी ठूंस देने चाहिए...दोस्तों के साथ शेयर करने के बहुत काम आता है ! 

इतवार के दिन सुबह सुबह गुलज़ार साहब के बारे में और कितनी बातें करें.... इतनी बातें हैं कि लिखते लिखते बंदे का दम निकल जाए लेकिन वे बातें खत्म न होंगी...लेकिन जो डिप्रेशन मुझे पिछले दो दिनों से है वह अभी भी जस की तस है कि मैं गुलजार साहब की गीतों के प्रोग्राम में गया और मुझे वहां जा कर पता चला कि अच्छा, यह सुपर हिट गीत, और हां, यह मेरा बेहद पसंदीदा गीत, और हां, यह गीत जो मेरे दिल के बहुत करीब है ये सब गुलज़ार साहब के ही कलमबद्ध किए हुए हैं...और मैं सोचता रहा गुलज़ार साहब की कुछ किताबें खरीद कर कि मैं उन्हें ठीक ठाक पढ़ लिया है ...नहीं, अभी तक मैं खुद को ही न पढ़ सका, गुलज़ार साहब जैसी हस्ती को क्या पढ़ पाऊंगा....



लेकिन आज सुबह सुबह मैंने एक काम किया ...मैंने उन पर लिखी एक किताब उठा ली ...और देखा कि उस किताब में उन के द्वारा लिखे गए दो ही गीत दर्ज हैं....दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन और दूसरा ... इस मोड़ से जाते हैं ..कुछ सुस्त -क़दम रस्ते, कुछ तेज़-कदम राहें ... और फिर मैंने यही सोचा कि गुलज़ार साहब ने फिल्मी गीतों के अलावा भी इतना कुछ लिखा है, इसलिए मेरे जैसे लोग उन के लिखे गीतों से लुत्फ़अंदोज़ ही होते रहे ...बिना सोचे समझे कि ये किस ने लिखे हैं....लेकिन गुलज़ार का लिखा कुछ भी पढ़ कर बहुत अच्छा लगता है ... सब से पहले मैंने 20-22 बरस पहले या इस से भी पहले उन की एक किताब पढ़ी थी ..बोस्की...यह बच्चों के लिए लिखी एक किताब थी जो उन्होंने अपनी बेटी के लिए लिखी थी .. फिर तो अकसर कुछ न कुछ उन का लिखा हुआ पढ़ने का मौका मिलता ही रहा ... और अब वाट्सएप से तो जैसे कंटैंट की बहार ही आ गई हो ...बस, यही संशय कईं बार मन में रहता है कि यह किसी लेखक का ही लिखा हुआ है या मेरे जैसे किसी नौसीखिया लिक्खाड़ ने तो उन के नाम से कुछ नहीं छाप दिया ..आज की तारीख में कुछ भी मुमकिन है ... अच्छा जी, कुछ बातें रह गई हैं, फिर जब कभी मौका मिलेगा, साझा करेंगे .. 

अगर लगता है कि कुछ छूट गया है तो इंडियन आयडल की इस बेहतरीन पेशकश को भी देख लीजिए....इस मनमोहक गीत के रचनाकार भी गुलज़ार साहब ही हैं …