शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

चश्मा उतरवाने वाले आई-ड्रॉप्स के बारे में आपने भी पढ़ा तो होगा...


अच्छा, पढ़ लिया है ...तो फिर बाज़ार जा कर उस आई-ड्रॉप्स को खरीदने से पहले इसे भी थोड़ा देख लीजिए....

चलिए...एक पंजाबी कहावत से शुरु करते हैं....पाइए जग-भाउंदा, खाईए मन-भाउंदा ....यह कहावत हम लोग बचपन से सुनते आ रहे हैं....मतलब इस का यही है कि अपना पहरावा तो वैसा हो जो दुनिया को अच्छा लगे, और अपना खान-पान ऐसा हो जिसे खा कर मन खुश हो। मुझे हमेशा ही से इस कहावत से बड़ी चिढ़ रही है, क्यों भाई खाना अपनी पसंद का खाना है तो अपनी पसंद का पहनने में क्या दिक्कत है....इसलिए मैंने कभी इस बात को नहीं माना....हमेशा वही पहना है जिसे पहन कर मुझे खुशी होती है..दुनिया का क्या है...बस, मुझे चश्मा पहनने से दिक्कत है क्योंकि मुझे पसीना बहुत आता है तो चश्मा धुंधला हो जाता है बार बार ...खैर, इस उम्र में कंटैक्ट लेंस क्या डालें, हां, अच्छे से प्रोग्रेसिव लैंस लगवा लेता हूं...लेकिन चश्मा पहनने से बहुत खीझ जाता हूं ...

कल जैसे ही अखबार को हाथ में लिया तो पहले पन्ने पर ही खबर देख कर खुशी तो हुई एक बार कि कुछ ऐसी आई-ड्रॉप्स को सरकारी मंजूरी मिल गई है जिन्हें अगर आप अपनी आंख में डाल लेंगे तो नज़दीक के चश्मे की ज़रूरत महसूस न होगी....अच्छी भी लगी खबर, लेकिन थोडे़ समय के लिए ही ...क्योंकि इस तरह की खबरें पता नहीं क्यों आसानी से पचती नहीं ....क्योंकि वैसे भी हम एकतरफ़ा दावे ही तो सुन रहे होते हैं....

वही बात हुई ..दिन चढ़ते हमारे अस्पताल के चिकित्सकों का जो वाट्सएप ग्रुप है उसमें किसी ने इसी खबर को टैग कर के यह लिखा कि इस के बारे में नेत्र-रोग विशेषज्ञों का क्या कहना है....

ग्रुप में से ही एक सुप्रशिक्षित नेत्र रोग विशेषज्ञ ने जवाब दिया....भारत के ड्रग कंट्रोलर द्वारा पाईलोकॉरपिन नामक दवाई को मंजूरी तो दी है. लेकिन नेत्र रोग विशेषज्ञों की राय यही है कि चश्मा पहनना ही ठीक है। वैसे भी आंखों में डालने वाली दवाई नज़दीक की नज़र को ठीक करने के लिए कोई स्थायी समाधान नहीं है, इस तरह की दवाई रोज़ाना अगर आंखों में डाल रहे हैं और वह दवाई जिस के कुछ दुष्प्रभाव भी हैं, इसलिए सोच-समझ के ही कोई फैसला करने की सलाह दी।  और एक बार जब ड्राप्स डाले जाते हैं तो उन का असर 4-5 घंटे तक ही रहता है, यानि दिन में तीन तीन बार आंखों में इन को डालना पड़ेगा...

समझदार को इशारा ही काफ़ी होता .... और जब कोई विशेषज्ञ इस तरह के विषय पर अपनी राय देता है तो वह अनमोल होती है....

शाम होते होते एक अन्य बहुत अनुभवी एवं सुशिक्षित नेत्र रोग विशेषज्ञ ने ग्रुप में यह जानकारी शेयर की ऑल-इ़ंडिया ऑपथोमोलॉजी सोसाइटी के प्रधान ने इस मुद्दे पर एक विशेषज्ञ एक्सपर्ट ग्रुप बनाया है जो इस विषय पर विचार-विमर्श करेगा और अपने सुझाव देगा ....और यह भी लिखा था ...

यह एक्सपर्ट ग्रुप इस बात का भी अध्ययन करेगा कि कि जिस तरह से इस की मार्केटिंग की जा रही है (या होगी) उस में मरीज़ों की सुरक्षा कैसी होगी, अगर बिना किसी नुस्खे के लोग खुद ही कैमिस्ट से खरीद कर इस का अंधाधुंध इस्तेमाल करने लगेंगे। 

और भी कुछ बातें यह एक्सपर्ट ग्रुप तय करेगा जिस में एकदम वैज्ञानिक ज्ञान पर आधारित कुछ दिशा निर्देश दिए जाएंगे ...इस तरह की डॉप्स (के इस तरह के इस्तेमाल) से होने वाले दुष्परिणामों के बारे में और जिन लोगों को इस तरह के ड्रॉप्स बिल्कुल ही इस्तेमाल नही ंकरने हैं, उन के बारे में भी जानकारी दी जाएगी (absolute contraindications). 

और हां, यह एक्सपर्ट ग्रुप इस बात की भी सिफारिश करेगा कि नेत्र रोग विशेषज्ञों की यह सोसायटी अपने सदस्यों और जनता जनार्दन की इस मामले में जागरुकता बढ़ाने के लिए क्या कदम उठाए।

तो, कहने की बात यह है कि रात होते होते यह बात तो समझ में आ चुकी थी कि बेटा, इतना मत उछल, तुझे चश्मा पहनना ही है....यह जो तू ख्वाब देख रहा था कि रोज़ाना यह ड्राप्स डाल कर ऊपर से रे-बैन के गागल्स लगा लिया करेगा ...और वह भी दूर के नंबर के साथ, अभी अपनी इस प्लॉनिंग को ठंडे बस्ते में डाल के रख...जैसे एक्सपर्ट लोग बताएंगे, वैसे ही करना होगा ...और करना भी वही चाहिए....आंखों का मामला है, आंखें हैं तो जहां है, किसी भी तरह की छोटी से छोटी बेवकूफी सारी ज़िंदगी के लिए भारी पड़ सकती है....यह किसी सयाने की झाड़-फूंक से रोग दूर करने वाली बात नहीं है, अगर बिना किसी नेत्र रोग विशेषज्ञ की सलाह के कुछ भी आंखों में डाल दिया जाता है तो उस के ऐसे-वैसे नतीजे के लिए भी तैयार रहना होगा...

अभी भी वाट्सएप पर एक तीन पन्ने का पीडीएफ घूम रहा है जिस में ड्रग कंट्रोलर के नाम कोई चिट्ठी लिखी है .....उसमें यही लिखा है कि अगर यह दवाई लोग अपने आप खरीद कर अंधाधुंथ इस्तेमाल करने लगेंगे तो इस से आंख के परदा भी फट सकता है ...(रेटिनल डिटेचमेंट) ..उस पत्र में यह भी लिखा गया है कि किन कारणों से भारतीय लोगों में इस तरह की दवाई आंखों में अपनी मर्ज़ी से इस्तेमाल करने में क्या क्या नुकसान हो सकते हैं, इस के साथ साथ उन्होंने यह भी अनुरोध किया है कि इस दवाई पर कुछ समय तक रोक लगा दी जाए....और एम्स जैसे शीर्ष संस्थानों के विशेषज्ञों, नेत्र रोग विशेषज्ञों की प्रोफैशनल बॉडी (सोसाएटी), रेटिना (आंख के पर्दे) और काले मोतिये के विशेषज्ञों से राय मशविरा कर के ही इस के आम इस्तेमाल की मंजूरी दी जाए....

और एक बात यह भी है कि इस पत्र में कोई भी बात ऐसे ही हवा में नहीं की गई है...अच्छे से पहले तो उन्होंने सारी अखबारों की इस न्यूज़-स्टोरी के लिंक दिए हैं और फिर जो अपनी बात कही है उस के समर्थन में मेडीकल लिटरेचर के रेफरेंस भी दिए हैं.....कुछ कुछ बातें बहुत टैक्नीकल भी हैं, लेकिन उस से आप को इतना मतलब भी नहीं है, मुद्दे की बात यही है कि अभी इस तरह की ़्ड्राप्स को खुद ही खरीद कर अपने आप मत डालने न लग जाइए, जैसा मैंने भी कल सुबह एक बार तो मंसूबा बना लिया था ....बस, आप को यही करना है...बाकी, विशेषज्ञ करेंगे जो भी करना होगा, आप की आंखों की हिफ़ाज़त के लिए ....विशेषज्ञ करेंगे, सरकारी व्यवस्था सब देखेगी, पड़ताल करेगी ...ऐसी उम्मीद हम कर सकते हैं।

इस विषय पर आज ही लिखना ज़रूरी इसलिए था कि जैसे हम लोग तुरंत खाना या दूसरी चीज़ें आर्डर कर देते हैं, कईं बार दवाईयां भी ...पांच दस मिनट में हमारे द्वार पर पहुंच जाती हैं, इतनी बात करने का मकसद यही है ताकि जल्दबाजी में अपने आप आर्डर न करें, अपने नेत्र रोग विशेषज्ञ से मिलें, जैसा वह कहें, वैसा ही करें.....बड़ी मेहनत करते हैं ये विशेषज्ञ इतनी इतनी बारीक पढ़ाई करने के लिए....

अखबार में छपी हर ख़बर को थोड़े से नमक के साथ लेने की आदत डालें.....

पंजाबी की एक और मशहूर कहावत ....आंखें गईं जहान गया, दंद गए स्वाद गया...(इतनी पंजाबी तो आप समझते ही होंगे ..पंजाबी गीत समझ लेते हैं और उन की धुन पर नाच भी लेते हैं अगर ...) 😎 Stay safe, stay healthy...take care ....

पोस्ट का लिफाफा बंद करते वक्त मैंने जब आंखों पर फिल्मी नगमों के बारे में सोचा तो दर्जनों दिख गए...मैंने सोचा एक फिल्म भी तो थी..'अखियों के झरोखों से' ....उसी फिल्म का एक गीत सुनते हैं....हम भी बॉलीवुड के गोल्डन दौर के साक्षी रहे हैं....बहुत किस्मत वाला मानते हैं खुद को इस मामले में ....😎