शनिवार, 27 सितंबर 2014

सिंघाडे और कुट्टू के आटे के बारे में चंद बातें...

सूखे हुए सिंघाडे 
आज हम एक किरयाना स्टोर पर गये तो वहां एक आदमी सूखे हुए सिंघाडे उठा रहा था..मैंने सूखे हुए सिंघाडे पहले नहीं देखे थे...बताने पर कहने लगा कि इस को पीस कर आटा तैयार किया जाता है जो व्रत में इस्तेमाल होता है। यह सिंघाडे १५० रूपये किलो बिक रहे थे जब कि सिंघाडे का आटा १४० रूपये किलो बिक रहा था। उस का और दुकानदार का वार्तालाप मैं सुन रहा था कि आज कल कुछ लोग इस तरह से सूखे सिंघाडे ले जा कर घर में उस को पीस कर उस का आटा बनाते हैं।

उस बंदे ने पूछा कि आटा आप सस्ता बेच रहे हो और सिंघाडे महंगे तो दुकानदार ने बड़ी साफ़गोई से उसे कहा कि यह जो आटा हम लोग बेच रहे हैं यह इस तरह के साबुत सिंघाडे से तो तैयार होता नहीं है, इस में सिंघाडे के टुकड़े इस्तेमाल होते हैं.....ज़ाहिर सी बात है अगर दुकानदार स्वयं ही यही कह रहा तो सिंघाडे के टुकड़े ही नहीं बल्कि उन की गुणवत्ता पर भी सवालिया निशान तो थोड़ा सा लग ही जाता है।

कुट्टू के आटे के पैकेट भी सामने ही पड़े हुए थे... यह एक सौ रूपये किलो के हिसाब से बिकता है ...और कुट्टू जिस का आटा बनता है, वह भी उस ने साबुत रखे हुए थे...८० रूपये किलो।

कुट्टू जिस का आटा बनता है... 
सिंघाडे और कुट्टू के आटे से तैयार व्यंजन हम लोगों ने भी खूब खाए....व्रत के नाम पर इस के तरह तरह के तेल और घी से तैरते हुए व्यंजन तैयार किए जाते हैं। हिंदी के समाचार पत्रों वाले भी बड़ा योगदान कर रहे हैं लोगों को जागरूक करने के लिए। दो दिन पहले ही मैंने हिन्दुस्तान अखबार में एक डॉयटीशियन का बहुत अच्छा लेख लिखा जिस में उसने बडे़ सुंदर ढंग से लिखा हुआ था कि लोग व्रत में सिंघाडे और कुट्टू के आटे से तेल से लैस पूरियां, पकौड़े, टिक्कीयां तो खूब खाते रहते हैं और इस तरह से वसा से युक्त पदार्थ सेहत के साथ खिलवाड़ है.....उन्होंने बड़ी अच्छी सलाह दी कि लोगों को चाहिए व्रत के दिनों में इन आटों से चपातियां बना कर खाया करें..........अच्छा लगा उन का यह सुझाव।

कुछ साल पहले जब मीडिया में खबरें छपती थीं कि कुट्टू का आटा व्रत के दिनों में खाने से इतने लोग बीमार हो गये, इतने लोग बहुत बीमार हो गये और इतने लोगों की मौत हो गई। बहुत बुरा लगता था.......लेकिन फिर सरकार ने इस तरफ़ बहुत ध्यान देना शुरू किया और इस तरह के आटे की बिक्री पर पैनी निगाह रखी कि इस की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं हो।

लेकिन आज कल आप देखिए कि पहले ज़माने के दिनों की तरह शायद कुट्टू और सिंघाडे के आटे के खुले में बिकने वाले ढेर तो होते ही होंगे ... हर आदमी का अपना बजट है, लेकिन फिर भी इस तरह के पैकेट सिंघाडे और कुट्टू के आटे के बिकने लगे हैं... और यहां तक कि सूखे सिंघाडे और कुट्टू भी बिकते हैं।

वैसे कुट्टू के आटे में इतनी जल्दी खराबी आती क्यों है, मैंने अभी गूगल सर्च किया तो पता चला. आप भी इस लिकं पर जाकर पढ़ सकते हैं...

मैं इस लेख को लिखने लगा तो मैंने कुट्टू का आटा लिख कर गूगल सर्च किया...तो बहुत से अच्छे लिंक मिल गये। मैं सोच रहा था कि बस कुट्टू को हिंदी में लिखने की देर है, सब कुछ मिल जाता है लेकिन हिंदी में लिखना आना चाहिए।

आखिर कुट्टू क्या होता है?
कुट्टू के आटे के फायदे..
क्यों बदनाम हुआ कुट्टू का आटा...

हां, सिंघाडे से याद आया......मैंने भी बचपन में सिंघाडे और शकरकंदी ( sweet potato) खूब खाए, अकसर यह दोनों घर ही में तैयार किए जाते थे......और जितने मेरे बच्चों को नूडल्स और पिज़ा पसंद है, मुझे सिंघाडे और शकरकंदी भी उतने ही पसंद थे और आज भी हैं.......लेकिन अब मुझे सिंघाडे खाने में कुछ ज़्यादा रूचि नहीं रही... पिछले कुछ वर्षों से हरे रंग के छिलके वाले सिंघाडे मिलते हैं (हम लोग काले रंग के सिंघाडे खाया करते थे...पता नहीं क्या डालते थे उस में उन के छिलके को काला करने के लिए......लेिकन फिर पता चला कि कुछ डाई वाई का इस्तेमाल किया जाता है तो इन्हें खाने में रूचि न रही)...


इस लिंक में कुट्टू के आटे के बहुत ही लुभावने व्यंजन दिख तो रहे हैं , .....कुट्टू के आटे की पूरी.... लेकिन तेल वेल की तऱफ़ ध्यान दीजिएगा......इसलिए मेरी तो सलाह है कि इस तरह के खान पान से दूर ही रहें.......बस, सीधी सादी चपातियां आदि बना लेनी चाहिए इन आटों से......ये तले वले के चक्कर में पड़ेगें तो इतने दिन तक खाते खाते वजन बढ़ाने का पूरा इंतजाम हो जाएगा......और फिर लोग कहते हैं कि इतने व्रत रखते हैं फिर भी वजन कम होने का नाम नहीं ले रहा।

इस कुट्टू सिंघाडे की कथा का समापन एक भेंट से करते हैं.......



स्तन रोग के बारे में कुछ काम की बातें...

इस का शीर्षक देख के बिल्कुल भी दूर न भागने की कोशिश करिएगा.....मैं भी लेक्चर टाइप की बातों से बहुत दूर भागता हूं क्योंकि सिर बहुत जल्दी भारी हो जाता है। तो हुआ यूं कि आज एक सुप्रसिद्ध कैंसर सर्जन डा विनय गर्ग को सुनने का मौका मिला.. वे स्तन रोग के बारे में अपनी प्रस्तुति देने आए थे।

मैं कईं बार लोगों से शेयर करता हूं कि जब डाक्टर लोग बोलते हैं ना उन्हें बड़े ध्यान से सुनना चाहिए.... क्योंकि ये लोग अपने बीस-तीस-चालीस वर्ष के अनुभव को एक घंटे में आप के साथ बिल्कुल निःस्वार्थ भाव से शेयर कर लौट जाते हैं।

इन डाक्टर साहब ने भी स्तन रोग के बारे में बहुत ही महत्वपूर्ण बातें शेयर कीं......जो मुझे याद रह गईं वह मैं जल्दी से आप से साझा करना चाहता हूं ताकि फिर से न भूल जाऊं...

एक बात तो उन्होंने यह बड़ा ज़ोर दे कर कही कि महिलाओं में स्तन की हर गांठ कैंसर नहीं होती....इस बात का खूब प्रचार प्रसार होना चाहिए..क्योंिक जैसे ही किसी महिला को अपने स्तन में गांठ का पता चलता है, वह और उस का परिवार इतने खौफ़जदा हो जाते हैं कि वे इलाज करवाने ही नहीं पहुंचते या डर के कारण इलाज करवाने में बहुत देरी कर देते हैं.... इसलिए स्तन की गांठ का एक क्वालीफाईड डाक्टर द्वारा निरीक्षण एवं जांच होनी चाहिए ताकि समुचित इलाज करवाया जा सके।

दूसरी बात... जो उन्होंने बताई वह यह कि शहरों में स्तन कैंसर गांवों की तुलना में ज़्यादा होता है...आंकड़े ये हैं भारत के ..शहरों में २८ केस हर एक लाख की पापुलेशन पर और गांवों में यह आंकड़ा १८ केस हर एक लाख की पापुलेशन पर पाया जाता है। इस का कारण भी उन्होंने साफ़ साफ़ बताया कि शहरों में अब महिलाएं भी पुरूषों के साथ कंधे से कंधे मिला कर काम कर रही हैं, अपने कैरियर की तरफ़ ज़्यादा ध्यान देने लगी हैं, इसलिए आम तौर पर शहरी कन्याएं शादी देर से करती हैं, इसलिए बच्चे भी देर से होते हैं, गर्भपात के केसों की संख्या भी बढ़ रही हैं, और बच्चों को स्तनपान कम करवाया जाता है ...और करवाया भी जाता है तो बहुत कम समय के लिए.... शहरी महिलाओं में इन सब के साथ साथ तनाव बहुत अधिक होने के कारण स्तन कैंसर होने का रिस्क ग्रामीण महिलाओं की तुलना में ज़्यादा होता है। गांव में तो महिलाएं बच्चों को ३ साल, ५ साल तक स्तनपान करवाती हैं, इस सब का परिणाम यही होता है कि उन में स्तन कैंसर का खतरा कम हो जाता है...।

इन्हीं कारणों की वजह से ही वे बता रहे थे कि इस बीमारी को हॉरमोनल बीमारी या लाइफ-स्टाईल डिसीज़ भी कहा जाने लगा है।

डाक्टर साहब बार बार इसी बार को रेखांकित कर रहे थे कि इस के बारे में जितनी ज़्यादा अवेयरनैस बढ़ाई जाए उतना ही अच्छा है।

वह यह भी शेयर कर रहे थे कि अब स्तन कैंसर के केस छोटी उम्र में भी पाए जाने लगे हैं....... कहने लगे कि मैं १९ वर्ष की युवती में भी स्तन कैंसर को पाया है। तभी मुझे भी ध्यान आ रहा था कि मेरे पास भी दो चार दिन पहले एक महिला अपने मुंह की किसी समस्या से आई थीं ...पहले ही उसने मुझे बता दिया था कि वह स्तन कैंसर का इलाज करवा चुकी हैं....उस की भी उम्र भी २५-२८ के करीब की ही होगी।

एक बात का उन्होंन विशेष ज़िक्र किया कि आज कर हर डेयरी में किस तरह से गाय-भैंसों को वैज़ोप्रेसिन- ऑक्सीटोसिन के इंजैक्शन लगा लगा कर ही उन का दूध निकाला जा रहा है जिस से भी महिलाओं में हार्मोनल लोचा हो जाता है...

अच्छा...थोड़ा सांस लेकर अभी बाकी बातें बाद में लिखता हूं ...इस से अगली पोस्ट में, अभी बहुत सी काम की बातें करनी हैं।