सोमवार, 4 फ़रवरी 2008

संडे हो या मंडे--रोज़ खाओ अंडे.....लेकिन इसे पढ़ने के बाद !


मुझे पता है कि आप ने वह संडे हो या मंडे- रोज़ खाओ अंडे वाला विज्ञापन बहुत बार देखा है, लेकिन आज कल चूंकि देश के कुछ हिस्सों में बर्ड-फ्लू के नाम से थोड़े भयभीत से हैं, इसलिए कुछ बातों की तरफ ध्यान देना बहुत ज़रूरी है।

· विशेषज्ञों ने कच्चे एवं हॉफ-ब्वायलड ( raw and soft boiled eggs) अंडो से परहेज़ करने की सलाह दी है। जिन अंड़ों को उच्च तापमान पर पकाया नहीं जाता, उन के खाने से बर्ड-फ्लू के जीवाणु के इलावा टॉयफाड एवं अन्य जीवाणुओं से होने वाली बीमारियों का खतरा मंडराता रहता है।

· बर्ड-फ्लू से बचने के लिए केवल पूरी तरह उबले अंडों (full boiled eggs) का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

· दूध में कच्चे अंडे डाल कर नहीं पीना चाहिए । आधे उबले अंडों ( half- boiled eggs) एवं ऐसे अंडे जिन का योक- अर्थात् वही पीला भाग- तरल सी अवस्था में बह रहा हो ( runny yolk) ,इन का भी सेवन नहीं करना चाहिए।

· जो लोग बाहर खाते हैं उन्हें भी इस बात को सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि अंडे से बनी सभी पकवानों को उच्च तापमान पर ही तैयार किया गया है। सामान्यतः एक हॉफ-ब्वायलड अंडे को तैयार होने में तीन मिनट, मीडियम ब्वायलड को पांच मिनट और फुल-ब्वायलड अंडे को तैयार होने में दस मिनट का समय लगता है।

· विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि केक खाना सुरक्षित है ...चूंकि उस में अंडा पड़ा होता है, लेकिन केक की बेकिंग के लिए 200डिग्री सैल्सियस का तापमान चाहिए होता है, जिस के परिणामस्वरूप अंडे में मौजूद बैक्टीरिया एवं अन्य जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। यह ध्यान रहे कि हॉफ-ब्वायलड अंडे आम तौर पर रशियन सलाद जैसी प्रैपरेशन्स में डलते हैं।

· एक बात जो बहुत ही ज़रूरी है लेकिन कभी कोई इस तरफ कम ही ध्यान देता है ..वह यह है कि अंडों को इस्तेमाल करने से पहले धो लेना निहायत ही ज़रूरी है क्योंकि जीवाणु केवल अंडे के शैल ( shell of egg) के अंदर ही नहीं होते, ये शैल के बाहर भी मौजूद हो सकते हैं। और एक बात और भी इतनी ही ज़रूरी है कि कच्चे अंडों को हाथ लगाने के बाद भी हाथ धोना ज़रूरी है।

So, take care !!

संडे हो या मंडे--रोज़ खाओ अंडे.....लेकिन इसे पढ़ने के बाद !



मुझे पता है कि आप ने वह संडे हो या मंडे- रोज़ खाओ अंडे वाला विज्ञापन बहुत बार देखा है, लेकिन आज कल चूंकि देश के कुछ हिस्सों में बर्ड-फ्लू के नाम से थोड़े भयभीत से हैं, इसलिए कुछ बातों की तरफ ध्यान देना बहुत ज़रूरी है।

· विशेषज्ञों ने कच्चे एवं हॉफ-ब्वायलड ( raw and soft boiled eggs) अंडो से परहेज़ करने की सलाह दी है। जिन अंड़ों को उच्च तापमान पर पकाया नहीं जाता, उन के खाने से बर्ड-फ्लू के जीवाणु के इलावा टॉयफाड एवं अन्य जीवाणुओं से होने वाली बीमारियों का खतरा मंडराता रहता है।

· बर्ड-फ्लू से बचने के लिए केवल पूरी तरह उबले अंडों (full boiled eggs) का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

· दूध में कच्चे अंडे डाल कर नहीं पीना चाहिए । आधे उबले अंडों ( half- boiled eggs) एवं ऐसे अंडे जिन का योक- अर्थात् वही पीला भाग- तरल सी अवस्था में बह रहा हो ( runny yolk) ,इन का भी सेवन नहीं करना चाहिए।

· जो लोग बाहर खाते हैं उन्हें भी इस बात को सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि अंडे से बनी सभी पकवानों को उच्च तापमान पर ही तैयार किया गया है। सामान्यतः एक हॉफ-ब्वायलड अंडे को तैयार होने में तीन मिनट, मीडियम ब्वायलड को पांच मिनट और फुल-ब्वायलड अंडे को तैयार होने में दस मिनट का समय लगता है।

· विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि केक खाना सुरक्षित है ...चूंकि उस में अंडा पड़ा होता है, लेकिन केक की बेकिंग के लिए 200डिग्री सैल्सियस का तापमान चाहिए होता है, जिस के परिणामस्वरूप अंडे में मौजूद बैक्टीरिया एवं अन्य जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। यह ध्यान रहे कि हॉफ-ब्वायलड अंडे आम तौर पर रशियन सलाद जैसी प्रैपरेशन्स में डलते हैं।

· एक बात जो बहुत ही ज़रूरी है लेकिन कभी कोई इस तरफ कम ही ध्यान देता है ..वह यह है कि अंडों को इस्तेमाल करने से पहले धो लेना निहायत ही ज़रूरी है क्योंकि जीवाणु केवल अंडे के शैल ( shell of egg) के अंदर ही नहीं होते, ये शैल के बाहर भी मौजूद हो सकते हैं। और एक बात और भी इतनी ही ज़रूरी है कि कच्चे अंडों को हाथ लगाने के बाद भी हाथ धोना ज़रूरी है।

So, take care !!

2 comments:

Gyandutt Pandey said...

डाक्टर साहब, मैं तो अण्डा नहीं खाता पर पोस्ट में निहित खाद्य सामग्री को उच्च ताप पर जीवाणु रहित करना समझ में आया।
कुछ लोग बर्ड फ्लू के कारण सस्ते चिकन का इस आधार पर अधिक सेवन कर रहे हैं कि उसे कस कर कूकर में कुक कर लेते हैं। कितना उचित है उनका यह करना?

Dr.Parveen Chopra said...

लेकिन यह जानकारी तो केवल अंडो तक ही सीमित है। सस्ते चिकन से तो मेरी समझ से बच कर रहने में ही समझदारी है।

पंक्षियों के फ्लू से आखिर हम क्यों हैं इतने आतंकित ?


बर्ड-फ्लू अर्थात् पक्षियों का फ्लू आज कल काफी चर्चा में है। लेकिन जन मानस को इस रोग के बारे में कुछ ढंग की जानकारी नहीं है। चलिए सब से पहले शुरू यहां ही से करते हैं कि बर्ड-फ्लू को चिकित्सा भाषा में एवियन इनफ्लूऐंज़ा कहते हैं। दूसरी बात यह है कि जब हम पक्षियों की बात करते हैं तो इस में मुर्गे, मुर्गियां, बत्तखें इत्यादि भी शामिल हैं।

एवियन इनफ्लूऐंज़ा पक्षियों में इनफ्लूऐँज़ा वॉयरस की ए श्रेणी के द्वारा होने वाली एक इंफैक्शन (छूत) की बीमारी है। इस बीमारी को सर्वप्रथम 100वर्ष पूर्व इटली में पाया गया था, लेकिन यह महामारी के रूप में तो कहीं भी फूट सकती है।

एवियन इनफ्लूऐंज़ा किसी भी पक्षी को अपना शिकार बना सकती है। यह इंफैक्शन होने से पक्षियों में विविध रोग-लक्षण पैदा हो सकते हैं जो कि एक मामूली बीमारी से लेकर एक अत्यन्त संक्रामक जानलेवा रोग का रूप ले सकता है, तथा यह महामारी का रूप धारण कर लेती है। अत्यन्त उग्र एवियन इनफ्लूऐंज़ा में पक्षी अचानक ही बहुत बीमार हो जाते हैं और शीघ्र ही मर जाते हैं, शत-प्रतिशत केसों में यह जानलेवा सिद्ध हो सकती है।

सामान्य तौर पर एवियन इनफ्लूऐँजा वॉयरस पक्षियों एवं सूअरों के अतिरिक्त अन्य किसी प्राणी में बीमारी पैदा नहीं करते। सबसे पहले 1977 में हांग-कांग में इस वॉयरस ने मनुष्यों को अपनी चपेट में लिया। वैज्ञानिक जांच ने बताया है कि मनुष्यों में यह बीमारी बर्ड-फ्लू से ग्रस्त जीवित मुर्गे-मुर्गियों के नज़दीकी संपर्क के कारण हुई। जिन 18व्यक्तियों का यह बीमारी हुई उन में से 6की मौत हो गई। इस के परिणाम स्वरूप हांग-कांग के सारे मुर्गे-मुर्गियों का , जो उस समय लगभग 15 लाख के करीब थे, सफाया कर दिया गया। उस के बाद सन 1999 में फिर हांग-कांग में तथा सन 2003 में यह हांग-कांग एवं नैदरलैंड में फैली।

अकसर मरीज हम से पूछते हैं कि इस बीमारी के रहते कुछ अरसा पहले चीन में 14000 बत्तखों को क्यों मार दिया गया ?—उस का कारण यही है कि जंगली बत्तखों में एवियन इनफ्लूऐँज़ा वायरसों का प्राकृतिक भंडार होते हुए भी, उन में इस बीमारी से इंफैक्शन होने की संभावना बहुत कम होती है। मुरगी-खाने के जीवों – मुर्गों, मुर्गियों, पीरू( अमेरिकी गीध) में इस उग्र रूप वाले घातक एवियन इनफ्लूऐंज़ा का रोग होने की आशंका बनी रहती है। इन मुर्गे, मुर्गियों का जंगली बत्तखों से सीधा संपर्क एवं अप्रत्यक्ष संपर्क महामारी का कारण बनता है। जिंदा पंक्षियों की मार्कीट भी इस महामारी को फैलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जब कभी इस रोग के केस दिखने शुरू होते हैं तो विभिन्न देशों में दूसरे देशों से मुर्गों के आयात पर प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया जाता है।

कुछ देश दूसरे देशों से आने वाले चिकन का निरीक्षण करते तो हैं लिकन विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस बात का हमें विशेष रूप से ध्यान रखना होगा जिस के अनुसार जिन पक्षियों ( मुर्गे, मुर्गियों इत्यादि) में यह इंफैक्शन होती है और वे बच जाते हैं, वे कम से कम दस दिन तक मुंह से एवं मल द्वारा वॉयरस फैलाते रहते हैं, जिस से ज़िंदा मुर्गे-मुर्गियों के बाज़ारों में तथा प्रवासी पंक्षियों में यह बीमारी बड़ी आसानी से फैल सकती है।

एक बात और हमें समझनी जरूरी है कि इस बीमारी से संबद्ध जो वॉयरस होते हैं वे बड़ी शीघ्र गति से बदलते रहते हैं और इन विषाणुओं में एक और विशेषता यह रहती है कि आम तौर पर पक्षियों में एवियन इनफ्लूऐँज़ा पैदा करने वाले वॉयरस तथा मनुष्यों में इनफ्लूऐँज़ा फैलाने वाले वॉयरस कुछ इस तरह से मिल जाते हैं जिस से फिर कुछ ऐसे वॉयरस विकसित होते हैं जिन के अभी टीके का भी विकास नहीं हुया होता और यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलना शुरू हो जाता है, जिस से कि एक बहुत ही विषम स्थिति पैदा हो जाती है।

आप भी यही सोच रहे होंगे कि इस तरह का मेल-मिलाप संभव कहां है ?--- यह संभव है उन मनुष्यों में जो कि घरेलू मुर्गी एवं मुर्गों के नज़दीक रहते हैं और सूअर भी इस मिलाप को संभव बनाते हैं। सूअर दोनों तरह की ही अर्थात् मनुष्य एवं पक्षियों को बीमारी फैलाने वाली वॉयरसों से ही ग्रस्त होने के कारण उन वॉयरसों को मिलाने एवं नए उग्र वॉयरस उत्पन्न करने का काम भी करते हैं , जिन का अभी कोई टीका भी नहीं आया होता।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों को सचेत किया है कि वे जब ऐसे क्षेत्रों में जायें जहां के मुर्गे, मुर्गियों में यह महामारी फैली हुई है , तो वे ज़िंदा पशुओं की मार्कीट एवं मुरगी –खानों के संपर्क में बिल्कुल न आएं। ऐसे पक्षियों की ड्रापिंग्स ( मल, बीट) भी इस बीमारी की वॉयरसों से लैस होती हैं।

एक महत्त्वपूर्ण यह भी है कि एवियन इनफ्लूऐंज़ा वॉयरस ताप से नष्ट हो जाती है। अतः उपभोक्ताओं को अच्छी तरह से सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि पोल्ट्री से प्राप्त खाने की चीज़ों ( अंडे आदि भी) को अच्छी तरह से पकाया गया है।