बुधवार, 6 मई 2009

अपने को तो ब्लॉगर ही ठीक है !!

पिछले कुछ हफ़्तों में खूब ऑन-लाइन जर्नलिज़्म पढ़ा है, देखा है ----- यह सब कुछ इतना ज़्यादा हो गया कि खेल खेल में एक सर्टिफाइड़ ऑन-लाइन जर्नलिस्ट भी बन गया ---चलिये, अब एक विकल्प तो है कि जब दांतों की डाक्टरी वाली नौकरी से थक जाऊंगा तो किसी कौने में चुपचाप लैप-टॉप ले कर बैठ जाऊंगा।

पिछले दिनों मैंने हिंदी की वेबसाइटों को भी खून छाना --इन का जायज़ा भी लिया। हिंदी की अखबारों की साइटों को भी देखा। अच्छे खासे हिंदी की अखबारों के ऑन-लाइन एडीशन कुछ अजीबो-गरीब कॉलम शुरू किये हुये हैं। मैं बड़े दिन से इन को देख रहा हूं--- अपनी प्रतिक्रिया भी भेजता रहा हूं।

लेकिन इतने weird से कॉलम मुझे दिखने लगे कि मैंने अभी से यह सोच लिया है कि इंटरनेट पर हिंदी में मैं तो केवल चिट्ठों को ही पढ़ा करूंगा और या फिर अब विकिपीडिया की तरफ़ ध्यान देना शुरू करूंगा।

मुझे अकसर अनुनाद जी प्रेरित करते रहते हैं कि हिंदी विकिपीडिया के लिये लिखा करो और मैं बार बार उस साइट पर भी गया हूं लेकिन वहां पर लेखकों के लिये दिेये गये दिशा-निर्देश इतने कठिन हैं कि मेरे तो सिर के ऊपर से ही सब कुछ निकल जाता है। पता नहीं किसी का कोई ब्लॉग इस विषय पर है कि नहीं कि हिंदी विकिपीडिया में कैसे हम लोग अपना योगदान दे सकते हैं।

मुझे कुछ हिंदी अखबारों के ऑन-लाइन एडिशन्ज़ से चिढ़ सी होने लगी है --- अभी अभी एक ऐसी ही साइट पर किसी पाठक की एक समस्या पढ़ कर यह पोस्ट लिखने लगा हूं--- पाठक ने लिखा है कि मेरी अभी अभी शादी हुई है लेकिन हम मियां-बीवी अभी कुछ साल बच्चा नहीं चाहते हैं. लेकिन पाठक लिखता है कि उस के मां-बाप को बच्चा देखने की इतनी लालसा है कि वे कह रहे हैं, कि पाठक को अपनी बीवी को पाठक के बड़े भाई के साथ सुलानी चाहिये।

सब, बेकार का कचरा भर रहे हैं इंटरनेट पर --- मुझे यह प्रश्न देख कर तो जो हैरानी होनी थी सो हुई उस से भी बड़ी हैरानगी इसलिये हुई क्योंकि उस पर बीस के करीब टिप्पणीयां लोगों ने दी हुई हैं ---- सब के सब एक्सपर्टज़ ---एक से बढ़ कर एक। मैंने भी टिप्पणी लिखने में पांच-सात मिनट लगाये ---जो मैंने टिप्पणी लिखी वह यह है ---

सुन, भई , पहले तो यह समस्या पढ़ कर मैं इसलिये परेशान हूं कि यह इंटरनेट पर हो क्या रहा है, किस तरह का कचरा फैलाया जा रहा है। पहले तो यह रियल सवाल हो ही नहीं सकता ---क्योंकि इस तरह का सवाल पूछने वाला किसी हिंदी वेबसाइट पर अपनी समस्या सारी दुनिया के सामने रखेगा , बात गले से नीचे नहीं उतरती। अगर यह मनघडंत प्रश्न है तो भी साइट का एडिटर बैठा क्या कर रहा है। मनघडंत इसलिये कह रहा हूं कि कुछ लोगों को इस तरह की बातें करने सुनने में थोड़ा बहुत मज़ा मिल जाती है ----बस, उन का कोटा इसी से पूरा हो जाता है। मैंने टिप्पणी में आगे लिखा कि देख भई पाठक वैसे तो हमें तेरे जैसे पोलू-पटोलू से बहुत सहानुभूति है कि तेरे मां-बाप भी किस चक्कर में हैं ? लेकिन अगर तेरी बात में रती भर भी सच्चाई है तो तू पहले अपने बूढ़े मां-बाप का दिमाग चैक करवा----लगता है उधर भी कचरा ही कचरा है। और हां, अगर मां और बापू को एक बच्चा देखने की इतनी ही ज़्यादा लालसा है तो बापू को एक पतिया लिख के कह डाल कि बापू, हमें छोटा भाई चाहिेये, ------बापू, कोई बात नहीं, कोशिश तो करो। टिप्पणी के अंत में मैंने लिखा कि बाकी बातें तो अपनी जगह हैं , लेकिन भई तू अपनी जोरू पर एक करम कर कि तू उसे उसके मायके छोड़ आ ----यह कह कर अभी बच्चा नहीं चाहिये। जब तेरे को चाहिये होगा तो ले आइयो बच्चा पैदा करने की मशीन को। तब तक तो बेचारी को चैन से रहने दे। देख भई तेरी जोरू को उस के मायके छोड़ने के लिये इसलिये कह रहा हूं कि अगर तेरे मां-बाप तेरे से खुले में यह कह रहे हैं कि तू बीवी को अपने बड़े भाई के साथ सुलवा ----इस का सीधा मतलब है कि तू भी बस ऐसा ही है ---- बंदा बन बंदा ।

मैंने जब इतनी बड़ी टिप्पणी लिख दी तो फिर मुझे ध्यान आ गया कि इसे कौन ऑन-लाइन करेगा ----इस पर कैंची चलेगी ही, सो मैंने स्वयं ही उस टिप्पणी को डिलीट कर दिया और लग गया पोस्ट लिखने।

मुझे तो बस यह खुशी है कि अपने पास ब्लॉगर है जिस पर अपने भाव लिख कर मन हल्का कर लेते हैं, ---- थैंक यू ब्लागर, थैंक-यू वेरी मच। कईं बार ध्यान आया भी है कि अपनी वेबसाइट शुरू करूं फिर ध्यान आता है कि कौन पड़े इस तरह के झंझट में ---कौन करे यह सब कंटैंट मैनेजमैंट ----ब्लॉगर है ना, ठीक है। उसी से काम चलाते हैं। इसलिये अब यही विचार पक्का है कि ब्लॉगर पर ही ज़्यादा से ज़्यादा ध्यान लगाऊंगा। फोक्सड़ रहने में ही समझदारी है ---- वैसे भी जब हम ब्लॉगर पर लिखने लगते हैं तो जब गूगल सर्च करते हुये लोग आप तक पहुंचते हैं तो यह आभास होता है कि यह इंटरनेट भी कितना जबरदस्त और ट्रांसपेरेंट मीडियम है ----- यहां पर ना तो कोई सिफारिश चले, न ही कोई फोन, न ही किसी एडिटर को फोन करने का झंझट, न ही किसी बड़े लेखक से किसी तरह की टिप्स लेने की ज़हमत, न ही किसी तरह की चमचागिरी, न ही किसी तरह की चापलूसी, न ही किसी तरह के जुगाड़ ढूंढने में समय खराब करने का झंझट, न ही एडिटर लोगों के नखरे झेलने का झंझट..............मेरा क्या है मैं तो सब पोल खोलता ही जाऊंगा एक बार शुरू हो गया तो हो गया ।

अहा , अहा !!!! इतना लिखने के बाद मुझे इतना हल्का महसूस हो रहा है कि क्या बताऊं ?