आज दोपहर मैं जब लोकसभा टीवी पर प्रश्न-काल के दौरान एक प्रश्न को सुन रहा था तो मुझे उस समय तो समझ नहीं आया कि यह किस संदर्भ में है .. प्रश्न यही था कि अगर ग्लूकोज़ चढ़ाए जाने से ही जान चली जाए तो यह एक गंभीर मामला है ... संसद सदस्य ने यह भी कहा कि अगर किसी की जान किसी दवाई से होने वाले रिएक्शन की वजह से जाती है तो वह बात तो समझ में आती है लेकिन अगर ग्लूकोज़ चढ़ाये जाने से मौतें हो जाती हैं तो यह एक गंभीर मसला है। स्वास्थ्य राज्य मंत्री ने प्रश्न रखने वाले सदस्य को विस्तृत जानकारी देने को कहा।
मैं तब से यही सोच रहा था कि आखिर यह मामला है क्या ....लेकिन सारा मामला मेरी समझ में तब आया जब मैंने अभी अभी बीबीसी की यह न्यूज़ स्टोरी देखी...Tainted IV Fluid kills 13 pregnant women in India. राजस्थान के जोधपुर में पिछले दस दिनों में तेरह गर्भवती महिलायें दूषित ग्लूकोज़ ड्रिप की बलि चढ़ गईं।
इस तरह का केस तो मैंने भी पहली बार ही सुना है कि दूषित ग्लूकोज़ चढ़ने से इतने लोगों की मौत हो गई। यह एक बेहद दुःखद घटना तो है ही लेकिन इस दुर्घटना से सबक इस तरह के सीखने की ज़रूरत है कि इस तरह की घटना फिर से न घटे।
इतना तो आप सब भी सुनते ही होंगे कि ग्लूकोज़ या कोई भी इंट्रा-विनस फ्लूयड़ (intravenous fluid) लगने से किसी को कोई रिएक्शन-सा हो गया ...कंपकंपी छिड़ गई लेकिन उस तरह के केसों पर डाक्टर तुरंत काबू पा लेते हैं।
मौतें तो हो गईं ... अब कारण का पता भी लगा ही लिया जाएगा कि ऐसा क्या था उस “लोकल” ग्लूकोज़ की बोतलों में जिस से कि बहुत ज़्यादा रक्त बह जाने से इतनी महिलाओं की मौत हो गई ...लेकिन मुझे लगता है कि इस दुर्घटना से उस तबके को भी सीख लेने की ज़रूरत है जो समझते हैं अपनी मरजी से कभी भी किसी तरह की शारीरिक दुर्बलता दूर करने के लिये ग्लूकोज़ चढ़ाने से सब कुछ ठीक हो जायेगा।
और आम आदमी के इस भ्रम को गांवों, कसबों के झोलाछाप डाक्टर भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। पहले तो खबरे देखते-सुनते थे कि ग्लूकोज़ आदि आई-व्ही फ्लूयड़ लगाने के लिये इस्तेमाल की जाने वाले आई-व्ही सैट (कैनुला आदि) की बढ़े स्तर पर री-साईक्लिंग होती है, कोई पता नहीं नीम-हकीम इस तरह की दवाईयां चढ़ाने के नाम पर कौन कौन सी लाइलाज बीमारियां भोली भाली जनता को चढ़ा देते हैं।
आमजन के इस बात पर विचार करना चाहिये कि अगर एक बड़े अस्पताल में इस तरह की दूषित ग्लूकोज़ की बोतलें पहुंच गईं तो इस तरह की क्वालिटी वाली बोतलों अथवा अन्य दवाईयों को अन्य छोटी जगहों पर पहुंचते कहां देर लगती होगी !
इस बात का बेहद दुःख है कि इतनी महिलाएं जो अपने नवजात शिशुओं को लेकर खुशी खुशी घर आतीं वे कहीं और हमेशा के लिये चली गईं.... आखिर किसी का तो दोष है, देखियेगा अगले कितने दिन यही दोषारोपण- प्रत्यारोपण चलता रहेगा, कुछ ही दिनों में मामला ठंडा भी पड़ ही जायेगा लेकिन दिवंगत महिलाएं जिन परिवारों से जुड़ी हुई थीं उन का यह घाव हमेशा हरा रहेगा।
मैं तब से यही सोच रहा था कि आखिर यह मामला है क्या ....लेकिन सारा मामला मेरी समझ में तब आया जब मैंने अभी अभी बीबीसी की यह न्यूज़ स्टोरी देखी...Tainted IV Fluid kills 13 pregnant women in India. राजस्थान के जोधपुर में पिछले दस दिनों में तेरह गर्भवती महिलायें दूषित ग्लूकोज़ ड्रिप की बलि चढ़ गईं।
इस तरह का केस तो मैंने भी पहली बार ही सुना है कि दूषित ग्लूकोज़ चढ़ने से इतने लोगों की मौत हो गई। यह एक बेहद दुःखद घटना तो है ही लेकिन इस दुर्घटना से सबक इस तरह के सीखने की ज़रूरत है कि इस तरह की घटना फिर से न घटे।
इतना तो आप सब भी सुनते ही होंगे कि ग्लूकोज़ या कोई भी इंट्रा-विनस फ्लूयड़ (intravenous fluid) लगने से किसी को कोई रिएक्शन-सा हो गया ...कंपकंपी छिड़ गई लेकिन उस तरह के केसों पर डाक्टर तुरंत काबू पा लेते हैं।
मौतें तो हो गईं ... अब कारण का पता भी लगा ही लिया जाएगा कि ऐसा क्या था उस “लोकल” ग्लूकोज़ की बोतलों में जिस से कि बहुत ज़्यादा रक्त बह जाने से इतनी महिलाओं की मौत हो गई ...लेकिन मुझे लगता है कि इस दुर्घटना से उस तबके को भी सीख लेने की ज़रूरत है जो समझते हैं अपनी मरजी से कभी भी किसी तरह की शारीरिक दुर्बलता दूर करने के लिये ग्लूकोज़ चढ़ाने से सब कुछ ठीक हो जायेगा।
और आम आदमी के इस भ्रम को गांवों, कसबों के झोलाछाप डाक्टर भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। पहले तो खबरे देखते-सुनते थे कि ग्लूकोज़ आदि आई-व्ही फ्लूयड़ लगाने के लिये इस्तेमाल की जाने वाले आई-व्ही सैट (कैनुला आदि) की बढ़े स्तर पर री-साईक्लिंग होती है, कोई पता नहीं नीम-हकीम इस तरह की दवाईयां चढ़ाने के नाम पर कौन कौन सी लाइलाज बीमारियां भोली भाली जनता को चढ़ा देते हैं।
आमजन के इस बात पर विचार करना चाहिये कि अगर एक बड़े अस्पताल में इस तरह की दूषित ग्लूकोज़ की बोतलें पहुंच गईं तो इस तरह की क्वालिटी वाली बोतलों अथवा अन्य दवाईयों को अन्य छोटी जगहों पर पहुंचते कहां देर लगती होगी !
इस बात का बेहद दुःख है कि इतनी महिलाएं जो अपने नवजात शिशुओं को लेकर खुशी खुशी घर आतीं वे कहीं और हमेशा के लिये चली गईं.... आखिर किसी का तो दोष है, देखियेगा अगले कितने दिन यही दोषारोपण- प्रत्यारोपण चलता रहेगा, कुछ ही दिनों में मामला ठंडा भी पड़ ही जायेगा लेकिन दिवंगत महिलाएं जिन परिवारों से जुड़ी हुई थीं उन का यह घाव हमेशा हरा रहेगा।