रविवार, 5 अक्टूबर 2008
बच्चों में खून की कमी की तरफ़ ध्यान देना होगा ..
आज सुबह इंडियन कांउसिल ऑफ मैडीकल रिसर्च द्वारा फरवरी 2008 में बच्चों में खून की कमी ( Workshop on Child Anaemia) के विषय पर रखी एक वर्कशाप की सिफारिशें पढ़ रहा था जो मुझे बेहद महत्त्वपूर्ण लगीं औरजिन का सार प्रस्तुत कर रहा हूं।
2005-06 में जो नैशनल फैमली हैल्थ सर्वे हुआ है उस से पता चला है कि तीन साल से कम उम्र के चार में से तीनबच्चों में खून की कमी है। और जो एक बच्चा बचा है उस में भी ऑयरन की कमी हो सकती है अलबत्ता यह होसकता है कि वह एनीमिया( खून की कमी) के रूप में प्रकट न हुई हो। और जिन बच्चों में एनीमिया की समस्या हैउन तीन बच्चों में से दो बच्चों की एनीमिया की समस्या काफी विकट है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि बच्चों मेंखून की कमी कितनी विकट एवं आम समस्या है और इस कमी की वजह से उन के शारीरिक एवं मानसिकविकास पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। यही वजह है कि बच्चों में एनीमिया की रोकथाम एवं उपचार को इतनामहत्त्व दिया जा रहा है।
वर्कशाप के शुरूआत में इस समस्या के लिये आज कल चल रही स्ट्रैट्जी पर टिप्पणी करते हुये बताया गया किआज तक सिस्टम यह है कि हर बच्चे की एनीमिया के लिये क्लीनिक जांच की जाये और जिस में खून की कमीलगे उन को 100 दिनों तक ऑयरन एवं फोलिक एसिड (IFA) की टेबलेट खिलाई जायें – ऐसी एक टेबलेट में 20 मि.ग्राम एलीमैंटल ऑयरन और 100 माइक्रोग्राम फोलिक एसिड होता है। विभिन्न कारणों की वजह से इसस्ट्रैट्जी को फिर से विशेषज्ञों द्वारा जांचने की ज़रूरत महसूस हो रही थी । इस वर्कशाप में जिन विशेषज्ञों ने भागलिया उन में से न्यूट्रीशन, चाइल्ड-हैल्थ, मैटरनल हैल्थ एवं पब्लिक हैल्थ की बैक-ग्राऊंड वाले लोग शामिल थे।
तो आइये इस वर्कशाप की बेहद महत्त्वपूर्ण सिफारिशों पर एक नज़र डालते हैं –
ऑयरन एवं फोलिक एसिड सप्लीमैंटेशन एहतियात के तौर पर पांच साल से कम उम्र के सभी बच्चों को दी जानी चाहियें – ना कि केवल उन बच्चों को जिनमें क्लीनिक्ली अनिमिया पाया गया हो।
वर्कशाप में इस बात की भी सिफारिश की गई कि पांच साल तक के बच्चों को आयरन एवं फोलिक एसिड को एक सिरिप के रूप में दिया जाना चाहिये – जिसे 100मिलीलिटर की प्लास्टिक की बोतलों में सप्लाई किया जा सकताहै जिस के साथ एक ऐसा डिस्पैंसर हो जिस से एक बार में 1 मिलीलिटर सिरिप ही निकाला जा सके।
यह सिफारिश की गई कि जैसे ही बच्चे के छःमहीने का हो जाने के बाद जब बच्चे की माता का किसी स्वास्थ्य-कार्यकर्त्ता से संपर्क हो उस समय यह आयरन एवं फोलिक एसिड सप्लीमैंटेशन शुरू हो जानी चाहिये। खसरे केइंजैक्शन के समय ( measles) अकसर मातायें स्वास्थ्य कर्मीयों के संपर्क में आती हैं और यही समय इससप्लीमैंटेशन को शुरू करने के लिये बहुत उपयुक्त है। लेकिन एक बात का ध्यान रहे कि जिन बच्चों का जन्म केसमय वजन कम था उन में यह सप्लीमैंटेशन तो उन के दो महीने के होने पर ही शुरू कर देनी चाहिये – वर्ल्ड हैल्थआर्गेनाइज़ेशन की भी यही सिफारिश है।
वर्कशाप में यह भी सिफारिश की गई कि यह जानने के लिये कि किसी बच्चे को एनीमिया है कि नहीं ताकि उस को यह सिरिप दिया जाना शुरू किया जा सके ---इस के लिये उस की स्क्रीनिंग करने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन अगर हैल्थ-वर्कर को लगता है कि किसी बच्चे को अनीमिया कुछ ज़्यादा ही है तो उसे आयरन फोलिक एसिड सिरिप देने के साथ साथ मैडीकल एडवाईज़ एवं इलाज के लिये प्राइमरी हैल्थ सैंटर भी भेजा जाये।
आयरन एवं फोलिक एसिड की सप्लीमैंटेशन छः महीने से लेकर 60 महीने के बच्चों तक सभी को दी जानी चीहिये – और यह सप्लीमैंटेशन हर वर्ष 100 दिनों तक दी जानी चाहिये।
इस के इलावा वर्कशाप की कुछ ऐसी सिफारिशें हैं जो थोड़ी ज़्यादा ही टैक्नीकल होने की वजह से इस लेख में डालनेयोग्य नहीं हैं....ये ज्यादातर पालिसी-मेकर्स के लिये हैं जैसे कि ICDS सप्लीमैंटरी न्यूट्रीशन को ऑयरन एवं अन्यमाइक्रोन्यूट्रीएंटस से फार्टीफाई करने की बात की गई है, हमारे स्टैपल खाने ( staple foods) की भी ऑयरनफार्टीफिकेशन करने की तरफ़ इशारा किया गया है।
जब बच्चे को कोई बुखार वगैरह हो या कोई और बीमारी हो तो उन चंद दिनों के लिये इस सिरिप को उसे न दियाजाये और बच्चे के तंदरूस्त होते ही उसे दोबारा शुरू कर दिया जाना चाहिये।
जिन बच्चों के पेट में कीड़े हैं, उन को उपयुक्त दवाई देने की भी बात कही गई है।
अंत में एक प्वाईंट यह भी कहा गया कि चाहे किशोरावस्था में आने वाले बड़े बच्चे चाइल्ड-एनीमिया के अंतर्गतनहीं आते, लेकिन उन का भी अनीमिया से बचाव ज़रूरी है। किशोर युवकों को भी एहतियात के तौर पर ऑयरनसप्लीमैंटेशन दी जानी चाहिये।
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