रविवार, 27 दिसंबर 2015

साहिब नज़र रखना...मौला नज़र रखना

मुझे खुद पता नहीं मैं पूरा पूरा आस्तिक हूं या थोड़ा नास्तिक हूं...न ही इस के बारे में कभी सोचने की हिम्मत हुई कि मैं पाखंडी हूं, ढोंगी हूं या नहीं हूं....प्रश्न तो मन में बहुत से घूमते फिरते ही हैं लेकिन कभी इन का जवाब ढूंढने की तमन्ना ही नहीं हुई...शायद हिम्मत न हुई या समय ही नहीं मिला...बहाने बनाने के बहुत से अंदाज़ सीख गये हैं ना हम!

जो भी है, उसे छोड़ते हैं, बस एक तो है कि जब भी मैं सुबह सवेरे अपने शहर का टूर लगा कर वापिस लौट रहा होता हूं तो मुझे यह अरदास, प्रार्थना, भजन, भक्ति गीत ...इसे आप कुछ भी कह कर पुकार लें, यह मुझे बहुत याद आता है और मैं इसी अरदास में शामिल हो जाता हूं....और इसे लिखने वाले की दाद दिए बिना रह नहीं पाता....

आप भी सुनिए...भूतनाथ फिल्म का गीत है वैसे तो यह ..लेकिन इस से बेहतर, बढ़िया मैंने कोई भजन या अरदास कहने का ढंग नहीं देखा...आप भी सुनिए....इत्मीनान से ज़रा ...और इस अरदास में अपने आप को शामिल हुआ पाएंगे...



मैं सोच रहा हूं कि कुछ फिल्मी गीत भी ऐसे होते हैं कि ये हमारी सोई पड़ी मानवीय संवेदनाओं को हिलाने-ढुलाने, जगाने और झकझोड़ने का अच्छा काम कर देते हैं...और ये हर उम्र के दौर में बदलते रहते हैं ..मुझे ऐसा लगता है....चलिए, आज आप से शेयर करते हैं इस तरह के वे कुछ गीत जो इस समय मेरे ज़हन में आ रहे हैं और जो मुझे बीते बहुत से वर्षों से बहुत अच्छे लगते हैं और जिन्हें मैं बेहतरीन भजन या भक्ति गीत या अरदास का दर्जा देता हूं...और अपनी लाइफ के विभिन्न पड़ावों में किसी न किसी तरह से इन से बहुत ज़्यादा मुतासिर भी रहा हूं।


 ओथे अमलां दे होने ने नबेड़े ..किसे न तेरी ज़ात पुछनी


इतनी शक्ति हमें देना दाता...मन का विश्वास कमज़ोर हो न


हमको मन की शक्ति देना...मन विजय करें


सरबंस दानिया वे, देना कौन दऊगा तेरा..


अल्लाह करम करना, मौला तू रहम करना..


दाता धन तेरी सिखी, धन सिखी दा नज़ारा...

और बहुत पहले तो इस तरह के गीत ही हमें काफी ज्ञान दे दिया करते थे ...अपने स्कूल के दिनों में तो इस तरह के मुकद्दस गीत ही हमें सीखने लायक कुछ कुछ तो ज़रूर सिखा दिया करते थे...कुछ कुछ सोचने पर मजबूर भी कर दिया कर दिया करते थे ज़रूर...दूरदर्शन के दौर में लगभग हर दूसरे चित्रहार में अकसर यह गीत देख कर अच्छा लगता था।


आदमी मुसाफिर है...आता है, जाता है

मुझे बहुत बार लगता है मैंने लाइन गलत चुन ली....इन गीतों-वीतों से ही जुड़ा कोई काम धंधा कर लेता तो बेहतर होता...सब के लिए .सच कह रहा हूं...(मन की बात) खैर, अब तो बहुत देर हो गई ....प्रधानमंत्री मोदी के मन की बातें भी सुननी हैं अभी मुझे ...प्रसारण शुरू हो गया है, आप भी सुनिए.