मंगलवार, 21 जुलाई 2015

मांवां ठंडीयां छावां....

अभी खाना खाने के बाद टीवी के सामने बैठा ही था कि अपने एक मित्र प्यारे का व्हाट्सएप पर एक स्टेट्स दिखा...आप से शेयर कर रहा हूं...

वृद्ध आश्रम के दरवाजे पर मां को छोड़ कर बेटा जब वापिस जाने लगा तो मैं ने पीछे से आवाज़ लगा कर उसे रोक लिया..फिर रूआंसी हो कर कांपती हुई आवाज़ में कहा...बेटा, तू अपने मन पर कोई बोझ मत रखना...पांच बेटियों को अपने गर्भ में कत्ल करने के बाद बेटा पैदा करने के गुनाह की सजा तो मुझे मिलनी ही थी..

मैंने उस पर यही टिप्पणी की ...बेबे ने बहुत बढ़िया थप्पड़ जड़ दिया...और अपनी तरफ से मैंने जोड़ दिया कि इस तरह के कमबख्त की तो छित्तर परेड़ होनी चाहिए..हर बार ९९ पर आकर गिनती भूल जानी चाहिए...ताकि उसे फिर से शुरू किया जा सके।

सच्चाई तो यही है कि समाज में जो कुछ हम लोग आज आस पास देख रहे हैं वह बेहद शर्मनाक है, दुःखद है। चूंकि हमारा प्रोफैशन ऐसा है कि हमें बहुत से लोगों से अकेले में मिलने का अवसर मिलता है...इसलिए दुःखी बंदा अपना दुःख फरोलने में समय नहीं लगाता....जितना बुज़ुर्गों की हालत मैंने पिछले बीस पच्चीस सालों में बुरी देखी है...उस को शायद कलमबद्ध भी नहीं किया जा सकता। बूढ़े लाचार मां बाप को या मां को उसी के बेटे द्वारा पीटे जाना....बागबां फिल्म बनाने वाले ने बना ली, अमिताभ ने कमाई कर ली....लेकिन यहां तो घर घर में बागवां बना हुआ है।

मैं बहुत बार सोचता हूं कि हम लोग जितने सफेदपोश बनते हैं, उतने है नहीं....और किसी भी बुज़ुर्ग का उत्पीड़न शारीरिक ही नहीं होता, उसे उत्पीड़ित करने के सैंकड़ों तरीके हैं....जो अकसर हम देखते-सुनते रहते हैं....अहसास करते रहते हैं। कभी लिखेंगे इन पर डिटेल में....

मेरे पास एक बहुत ही पढ़ी लिखी मरीज आती है....यही कोई ६०-६२ के करीब की होगी....बहुत अच्छा परिवार है...एक दिन वह बात करने लगी कि हम तो अभी से कुछ पचता नहीं, और हमारी सासू जी हैं जो ८० के ऊपर हैं, लेकिन खूब खाती हैं और सब कुछ पचा भी लेती हैं। मुझे उस की इस बात से इतना दुःख हुआ कि मैं ब्यां नहीं कर सकता...अब जिस बहू के अपनी सास के बारे में इतने नेक विचार हैं, बाकी बातों की हम कल्पना कर सकते हैं। मुझे इस तरह की किसी की भी पर्सनल बातें सुनने में रती भर भी रूचि नहीं होती..लेकिन उसने दो तीन और बातें भी शेयर करीं, जिसे मैं यहां लिखना समय की बरबादी समझता हूं......जहां तक इस मोहतरमा के विचार हैं, उन से आप वाकिफ़ हो ही गये हैं।

अभी इस विषय पर चर्चा चल ही रही थी कि एक दूसरे साथी मनोज ने यह फोटो शेयर कर दी...

दोस्त ने फिर स्टेट्स डाला कि अगर बेटे अपने मां-बाप की स्वयं इज्जत करेंगे तो ही बाकी परिवार भी उन की इज्जत करेगा। बिल्कुल दुरूस्त बात करी उसने.....यह पढ़ते ही मुझे अपनी नानी मां की याद आ गई....मेरा एक मामा मेरी नानी को कभी कभी कुछ पैसे दिया करता था....लेिकन मेरी नानी को यह बहुत बुरा लगता था कि वह पैसे स्वयं उसे देने की बजाए अपनी बीवी के हाथों उन्हें दिलवाता था.....अब इसमें नहीं पड़ते कि इस में बुराई क्या है, लेकिन मैं समझता हूं अगर बुज़ुर्ग मां को इस तरह के बहू से पैसे लेने में कुछ अलग अहसास होता है तो फिर क्यों न उन्हें स्वयं ही सम्मान पूर्वक भेंट दी जाए...

अनेकों तरह के उत्पीड़न बुज़ुर्गों का हो रहा है, होता रहा है, और होता रहेगा ....दामाद और बहू के हाथों तो यह सब होता ही रहा है....अब तो अपने बेटे भी यह सब करने से नहीं चूकते।

कहां से बात शुरू हुई ...कहां निकल गई......बस, बात इतनी सी है कि हमें अपने बुज़ुर्गों का सत्कार करना चाहिए....यह किसी के कहने से नहीं होता, जैसे जैसे हम लोगों के संस्कार होते हैं, हमारा बर्ताव, बोल वाणी वैसी ही होती है.

मेरा आग्रह है कि आप इस लेख को भी ज़रूर देखिएगा.... जनगणना करने वाले की आपबीती 

अब इस तरह की पोस्ट को बंद करने का एक तरीका यही है कि कुलदीप मानक साहब का एक सुंदर सा गीत बजा दिया जाए........इसे पूरा सुनिएगा......मां कसम इतना सुंदर गीत मां के ऊपर कभी किसी ने नहीं कहा....