शनिवार, 27 फ़रवरी 2016

नीरजा, आप की महानता को सलाम!

दो दिन पहले मल्टीप्लेक्स में नीरजा फिल्म देखने का मौका मिला...मल्टीप्लेक्स इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि थियेटर में जा कर फिल्म देखने का एक अलग ही अनुभव होता है। 
बहन, आप की बहादुरी को कोटि कोटि नमन...(नीरजा भनोट) 
मुझे याद है १९८६ में उन दिनों मैं कालेज से ताज़ा ताज़ा बाहर आया था जब यह खबर आई थी कि नीरजा भनोट नाम की एक साहसी एयर-होस्टैस की वजह से हाईजेक हुए यात्री विमान के ३६० के करीब यात्री बच गये थे.. याद है अच्छे ... इस बहादुर युवती की बहादुरी के चर्चे लंबे समय तक चलते रहे थे...और देश का सब से बड़ा बहादुरी का पुरस्कार अशोक चक्र इन्हें मरणोपरांत दिया गया था। इन की उम्र उस समय २३ साल की थी..

दूरदर्शन का ज़माना था...जितना अखबारें और सलमा सुल्तान या शम्मी नारंग बता-समझा दिया करते थे, अपना वही सच हुआ करता था...अब सोच कर भी हैरानगी होती है। 

समय बीतता गया...शायदा नीरजा भनोट एयरहोस्टैस की याद थोड़ी धुंधली पड़ गई होगी...लेकिन इस फिल्म ने सब कुछ अच्छे से याद दिला दिया... मुझे इस के बारे में इतनी जानकारी नहीं थी...लेिकन फिल्म बनाने से पहले इन्होंने पूरी रिसर्च की होगी...३६० लोगों को सही सलामत जहाज से बाहर निकालने में कामयाब रही थी...

फिल्म की स्टोरी मैं जानबूझ कर यहां शेयर नहीं करना चाहता...क्या घटनाक्रम हुआ..यह सब जानने के लिए मेरे विचार में आप इस वीकएंड के दौरान यह फिल्म थियेटर में जा कर देख ही आइए...

मुझे कल ही ध्यान आ रहा था कि शबाना आज़मी की फिल्म चाक एंड डस्टर तो पहले ही दिन से टैक्स फ्री हो गई थी यू.पू में ...लेिकन इस का पता नहीं कुछ ...एक सप्ताह बीत गया है ... लेकिन आज सुबह पेपर दिखा तो यह खबर दिख गई कि यू पी में नीरजा भी टैक्स फ्री हो गई है... आशा है इसे बहुत से लोग देखेंगे और इस में नीरजा की अपनी ड्यूटी के प्रति समर्पण देख कर प्रेरणा लेंगे...



भई मैं तो यह फिल्म देख कर नीरजा की हिम्मत का कायल हो गया...इसे हमेशा याद रखूंगा ...जितना तारीफ़ की जाए उतनी कम है... वैसे मैंने फिल्म देखने के बाद नीरजा भनोट लिख कर गूगल सर्च किया...और जो परिणाम आए उन के ईमेजिज एवं वीडियो भी कई घंटे देखता रहा.....क्या कहूं, वैसे तो मैं बहुत बक-बक कर ही लेता हूं लेकिन इस बहादुर, निडर वीरांगना नीरजा भनोट की तारीफ़ के लिए मेरे पास शब्दों का आज टोटा है जैसा। 

आप ज़रूर देखिएगा....एक तरफ़ देश में तरह तरह कारणों की वजह से लोग गुस्सा रहे हैं ...कुछ को तो कारण भी पता नहीं होगा....बस भेड़चाल...और दूसरी तरफ़ आज हम लोग ३० साल बाद नीरजा को याद कर रहे हैं ... 

यही समय है कि हम भी बंदा बन जाएं...यह जानवरों जैसी हरकतें छोड़ दे अब....अब मैंने क्या कहना है, बहुत कुछ लोग पहले ही समझा बुझा चुके हैं....लेकिन अब तो हम लोग समझ जाएं। 

तीस साल पहले की बातें हो रही थीं तो मुझे भी ३० साल पहले की कुछ बातें यादें आ गईं....


हां, नीरजा को भी मेरी तरह से राजेश खन्ना की फिल्मों के सभी डॉयलगा और गाने अच्छे से याद थे...यह मुझे कैसे पता चला, इसे जानने के लिए आज शाम देख कर आइए...नीरजा .... 


बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

भेड़-चाल तो हमारी USP है ही ..

भेड़चाल तो है ही देश में...कल रवीश कुमार भीड़ जुटने की साईंस समझाना चाह रहे थे..जिस तरह से इन जाट दंगों के दौरान भीड़ का पागलपन सामने आया, देख कर १९८४ के दिनों की याद ताज़ा हो आई...

लोग टूट जाते हैं इक घर बसाने में..
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में..

अब तक हिंदी फिल्मों ने अच्छी तरह से समझा दिया है कि ये सब राजनीति से प्रेरित होता है..लेिकन फिर भी भारत जैसे प्रजातंत्र में इस तरह से कुछ लोग मिल कर कुछ भी उपद्रव कर दें, सोच कर ही अजीब लगता है!

तिनका तिनका कर के लोग आज के दौर में कुछ काम धंधा सेट करने का जुगाड़ कर पाते हैं लेिकन इस तरह से क्या पता कब बेकाबू भीड़ सब कुछ मिट्टी में मिला जाए...



हिंदी फिल्मों से कुछ याद आ गया...कल रात सोने से ठीक पहले यह वाट्सएप मैसेज आया...इस विषय पर बहुत अरसे से मैं भी अपने मन की बात रखना चाह रहा था ...आज सुबह उठते ही उसी मैसेज का ध्यान आ गया...

 मैं इस मैसेज से पूरी तरह सहमत हूं...कुछ बदलाव के साथ। सब से पहले तो मुझे यही ध्यान आया कि फिल्म पी के की रिलीज़ से पहले मैंने आमिर खान को एक ख़त लिखा था...यह ख़त आप यहां पढ़ सकते हैं... आमिर खान के नाम एक ख़त...इसे मैंने उसके बंबई के पते पर भी भेजा था।

यह जो वाट्सएप मैसेज आप देख रहे हैं ...इस में थोड़ी कमी है... ठीक है विज्ञापन में इसी तरह से ही बड़े बड़े स्टार पान मसाले गुटखे का गुणगान करते दिखते हैं...लेकिन जो हालत असल में पानमसाला गुटखा खाने वालों की यहां इस तस्वीर के माध्यम से दिखाने का प्रयास किया गया है , यह बहुत कम है।

गुटखा-पान मसाला खाने वालों के मुंह के अंदर की मेरे पास सैंकड़ों तस्वीरें हैं ...जिन्हें अकसर मैं इस ब्लॉग पर और अपने इंगलिश ब्लॉग पर शेयर कर चुका हूं...और जिन्हें दिखा दिखा कर मैं मरीज़ों को इन व्यसनों से दूर रहने के लिए शायद कभी कभी प्रेरित करने के लिए सफल भी हो जाता हूं...मेरा अनुभव है कि लोग अकसर तब मान लेते हैं जब बहुत देर हो चुकी होती है ...मुझे सब से बुरा तब लगता है जब कोई मुंह के कैंसर का मरीज़ या ओरल-सब-म्यूकसफाईब्रोसिस का मरीज़ (जो अपने मुंह में कोर भी नहीं डाल सकता)...कहता है कि पंद्रह दिन से इन चीज़ों की छुआ तक नहीं...

बात मेरी समझ में यह नहीं आती कि ये जो टॉप के फिल्मी सितारे हैं इन्हें क्या कमी है कि ये पान मसाले या गुटखे जैसी शरीर तबाह करने वाली चीज़ें खाने के लिए उकसाने लग जाते हैं... जिस जिस स्टार को भी मैं इस तरह की चीज़ें बेचता देखता हूं ..मैं उस की फिल्में ही देखना बंद कर देता हूं...

स्टार लोगों के पास पैसे की कोई कमी नहीं है..चाहें तो बैठ कर खाएं..फिर इन की भूख शांत क्यों नहीं होती?... मुझे भी नहीं पता...इन की fan following बहुत ज़्यादा रहती है, ऐसे में इन कंपनियों को पता है कि आज का युवा किस तरह से इन का दीवाना है...और मैं बहुत बार लगता है कि शायद ही इन में कोई ऐसा स्टार हो जिस ने कभी इस तरह के सेहत खराब करने वाली चीज़ें खाई-चबाई या मुंह के अंदर दबाई हों....कम से कम इन के चेहरों से तो ऐसा ही लगता है ....शायद इन के चेहरे भी झूठ बोलते हों...और यह भी पता नहीं आज से बीस बरस बाद जैसे आज माधुरी दीक्षित कहती है कि मैंने तो कभी मैगी खाई ही नहीं...ये सितारे भी कह दें कि हम ने तो पान मसाला कभी चखा तक नहीं.



आज कल अन्नू कपूर भी ऐसे एक विज्ञापन में दिखने लगा है कोई पान मसाले आदि के ...पहले तो कुछ ज्ञान बांटता है ...फिर उस पान-मसाले की तारीफ़ होती है ...बहुत बुरा लगता है ..पता नहीं मुझे यह क्यों पच नहीं रहा कि अन्नू कपूर जैसा बंदा भी यह काम कर सकता है...बिल्कुल विक्की डोनर फिल्म के डाक्टर वाली हरकतें ...वही बात है ...कुछ तो मजबूरियां रहीं होंगी!!....शायद!

जो भी हो, मुझे अधिकतर तकलीफ़ बड़े बड़े स्टारों के इस तरह के विज्ञापनों से है...ये लोग वैसे भी रईस लोगों की ब्याह शादियों में नाच-गा कर करोड़ों कमा लेते हैं....ऐसे में पान मसाले गुटखे जैसी चीज़ों को क्यों प्रमोट कर रहे हैं...छोटे मोटे कलाकार घुटने पर दर्द के लिए तेल बेचने वाले, सिर दर्द की टीकिया वाले विज्ञापन करते हैं, कोई आपत्ति नहीं हो सकती, क्या करें, जीवन यापन के लिए कुछ तो करना ही है, बाकी कुछ तो दर्शक के विवेक पर भी तो छोड़ना होगा!

मैंने ज़िंदगी से जो समझा उसे इस अंदाज़ में साझा करने का एक प्रयास शुरू किया है ...



मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

आज का चित्रहार एस मोहिन्दर जी के नाम...


परसों रविवार था...बाद दोपहर मैं रेडियो पर विविध भारती सुन रहा था..प्रोग्राम था..उजाले उन की यादों के... पता चला कि एस महिन्दर नाम के किसी संगीतकार से इंटरव्यू चल रही है ...प्रोग्राम सुनते हुए अहसास हुआ कि मुझे तो ऐसे किसी संगीतकार का ध्यान ही नहीं था...

एक घंटे तक यह इंटरव्यू चलता है .. उसी दौरान अपनी एहसान-फरामोशी के बारे में भी यह अहसास हुआ कि जिस महान शख्स के संगीत से सजे गीत बचपन में स्कूल-कॉलेज के जमाने से सुनते सुनते बड़े हो गए, उस शख्स के बारे में कभी जाना ही नहीं...

जी हां, यह महान संगीतकार हैं...एस मोहिन्दर जी...यह एक सिख जेंटलमेन हैं...यह भी कार्यक्रम के दौरान ही पता चला ...इन्होंने महान गीतकारों के साथ हिंदी और पंजाबी गीतों के लिए संगीत तैयार किया।

मोहिन्दर जी १०मई १९४७ को बंबई आ गये ...यह कैसे आए..यह मुझे इस इंटरव्यू से अभी अभी पता चला तो मैं कांप उठा...आप स्वयं सुन सकते हैं इस इंटरव्यू में...



परसों वाले जिस रेडियो प्रोग्राम की मैं बात कर रहा हूं उस दौरान इन्होंने बहुत सी हिंदी फिल्मों के गीतों के बारे में बताया...बहुत ही प्रसिद्ध गीत थे वे सब...लेकिन मेरा ही ज्ञान उस दौर के हिंदी गीतों के बारे में बहुत कम है...मैं तो इन की बातों से यह अच्छे से समझ गया कि मैं २०-२२ साल की उम्र तक जो पंजाबी फिल्में दूरदर्शन में विशेषकर देखता रहा और रोज़ाना जालंधर रेडियो स्टेशन से प्रसारित होने वाले देश पंजाब प्रोग्राम में पंजाबी फिल्मी गीत बहुत बार बजते थे ..उन में भी इन्हीं का संगीत था...

इन्होंने कार्यक्रम के दौरान मोहम्मद रफी, आशा भोंसले, लता मंगेशकर जैसे गीतकारों के साथ काम करने के अपने अनुभव साझा किए...मो.रफी के बारे में तो बता रहे थे कि महीने में एक रविवार रफी साहब उन के घर ही बिताते थे...और यह भी सुन कर बड़ा मज़ा आया कि किस तरह से एक बार एक गीत की रिकार्डिंग के दौरान मो. रफी को रफी साहब के नाम से जब संबोधित किया तो वह रिकार्डिंग छोड़ कर नीचे आ गये....उन की नाराज़गी का कारण था कि तू तो मुझे हमेशा रफी कहता है, यह रफी साहब क्यों कहा!

ऐसे ही सुनील दत्त साहब के साथ बिताए समय के बारे में भी चर्चा कर रहे थे कि किस तरह से मन जीते जगजीत में काम करने के लिए वह राजी हुए और फिर १० दिन तक शूटिंग पठानकोट में चली....पृथ्वी राज कपूर साहब के साथ काम करने के भी मधुर अनुभव इन्होंने श्रोताओं के साथ साझा किए।

१९४७ में बंबई आ गए...१९५३ में शादी हुई.. चार बच्चे हैं...सभी सेटल्ड हैं...यह अमेरिका १९८२ में गये...सब भाई बहन और माता पिता वहीं रहते थे... बार बार वापिस लौट कर भारत आते हैं ...किसी न किसी फिल्म को कर के ही जाते हैं.. बता रहे थे कि इस बार बस इंटरव्यू ही दे रहा हूं...बातचीत से आप को पता चल ही जायेगा कि कोई लाग-लपेट नहीं...जो बात दिल में है, वही जुबान पर है...दिल खोल कर बात कहने की सच्ची ईमानदारी मुझे महसूस हुई... और इस उम्र में भी बच्चों जैसा उत्साह ...काबिलेतारीफ़....और एक तरफ़ हम जैसे जीव भी हैं जो बात बात पर अभी से रिटायरमेंट लेने की सोचने लगते हैं....his zeal and enthusiasm at this age is so very much inspiring!

इन्हें नानक नाम जहाज पंजाबी फिल्म के लिए नेशनल अवार्ड भी मिल चुका है...और भी बहुत सी उपलब्धियां हैं, लेिकन इस का ज़िक्र इन्होंने अमेरिका जाने के संबंध में किया ....इस के बारे में लिखने लगूंगा तो पोस्ट बड़ी लंबी हो जायेगी ........इसलिए भी ज्यादा नहीं लिखना चाहता कि मुझे यह रेडियो कार्यक्रम अभी अभी यू-ट्यूब पर अपलोड किया हुआ मिल गया है, जिसे मैं यहां एम्बेड कर रहा हूं...सुनिए...आप की बहुत सी जिज्ञासाएं शांत हो जाएं शायद...
इस इंटरव्यू को मैं एम्बेड नहीं कर पा रहा हूं ..इस का लिंक दे रहा हूं...इसे सुनने के लिए यहां क्लिक करिए.

दरअसल जब से मुझे मेरे स्कूल कालेज के दौर की फिल्मों में इन के संगीत के योगदान का पता चला है, मैं कुछ लिखने के मूड में नहीं हूं ज़्यादा...बस, मैं उन में कुछ पंजाबी के सुपर डुपर गीत आप से शेयर करना चाहता हूं, अगर आप सुनना चाहें तो...कुछ की तो मुझे वीडियो नहीं मिली..देखूंगा कहीं से मिल जाए तो .....आज सुबह इन गीतों को सुनते सुनते चालीस साल पुराने दिनों की यादें ताज़ा हो गईं इसी बहाने....शायद ही कोई दिन ऐसा होता हो जब शाम के समय हम लोग इन में से एक गीत रोज़ न सुनते हों....इन की पापुलेरिटि का अंदाज़ आप मेरी इसी बात से लगा सकते हैं...

जिन फिल्मों के गीत मैं यहां आप को सुना रहा हूं वे सभी ऐसी फिल्में थीं जो पंजाब के डीएनए में रची बसी हुई हैं.... उस दौर यह आलम था कि ये टैक्स फ्री तो थीं ही...स्कूल कालेज के बच्चों की पूरी क्लास को बारी बारी से सुबह का शो इसे दिखाने के लिए थियेटर में ले जाया जाता था......तब यह १०० करोड़ क्लब का फितूर नहीं हुआ करता था...

जदों जदों वी बनेरे बोले कां...

सानूं बुक नाल पानी ही पिला दे घुट नी, तेरा जूठा काहनूं करिए ग्लास गोरिए..

फिल्म मन जीते जगजीत... जिस के सिर ऊपर तो स्वामी सो दुःख कैसा पावे... सुनील दत्त ने इस में बेहतरीन काम किया था..

नानक नाम जहाज फिल्म का यह सब से पापुलर गीत (प्रभ जी) ....कितना?....ब्यां करने के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं!

मो रफी ने दुःख भंजन तेरा नाम के लिए यह बेहद लोकप्रिय गीत भी गाया था... दुःखभंजन तेरा नाम जी...

दुःख भंजन तेरा नाम...बाबुल तेरे घर ... शायद दिन में एक बार तो यह सुन ही जाता था...Golden melody!

मित्तर प्यारे नूं...हाल मुरीदां दा कहना ...यह शब्द तो हमारे पंजाबी के सिलेबस में भी थी...स्कूल में ...और पता नहीं इसे पढ़ाते सयम हमारे पंजाबी के मास्साब की आंखें नम सी क्यों लगती थीं!...उम्र की उस अवस्था में हमें यह सब समझ नहीं आता था....अब आता है अच्छे से...सुबह स्कूल में पढ़ना, शाम के समय रेडियो पर बार बार सुनना...अच्छा ग्रेड तो पंजाबी में आना ही था!

 अगर आप को लग रहा है कि पंजाबी की ओवरडोज हो गई इस चित्रहार में ...कोई बात नहीं उसी दौरान के दो अन्य गीत सुना देते हैं...दिल तो है दिल का एतबार क्या चीज़ है....और दूसरा...मोहब्बत आज तिजारत बन गई है...यह आवाज़ मो रफी साहब की नहीं, गायक अनवर हुसैन साहब की  है...


जो काम दिल से हो जाए ...अच्छा लगता है...जैसे कि यह पोस्ट ...अच्छा लगा इसे महान् संगीतकार के बहाने पंजाबी गीतों के विरसे को याद करना और ब्लॉग में सहेजना का एक तुच्छ प्रयास करना...मुझे यकीन है कि कुछ मित्र भी इस पोस्ट को सहेज कर रखेंगे और बच्चों को इस का लिंक भेंजेंगे..

लो जी , एह रिहा मेरा अज्ज दा सुनेहा आप सब लई.....और सब तो पहलां अपने आप लई...हमेशा चेते रखन वाली गल... 










रविवार, 14 फ़रवरी 2016

लखनऊ के कला शिल्प मेले की एक रिपोर्ट


कला शिल्प मेले में घूमते हुए मुझे जनाब निदा फ़ाज़ली साहब की यह बात बार बार याद आ रही थी...

बच्चों के छोटे हाथों को चांद सितारे छूने दो..
चार किताबें पढ़ कर वो भी हम जैसे हो जायेंगे

शिक्षा व्यवस्था में तो लोचा है ही बेशक...हर बात से हम वाकिफ़ हैं ...ज़रूरत है थ्री-इडिएट्स जैसी फिल्मों की जो शायद बच्चों और मां-बाप का नज़रिया बदल सकें कि सिर्फ़ आईआईटी और आई आई एम की डिग्री से कुछ ज़्यादा होता नहीं है ...और वह भी कौन सा सभी पा ही लेते हैं...लेकिन इस दौड़ के चर्चे हम ने खूब सुने...कैसे बच्चों को छठी कक्षा से ही किसी आईआईटी की कोचिंग इंस्टीच्यूट में भेजा जाने लगता है..वहां से गाड़ी आती है.. उस का दोपहर में सुस्ताना..पड़ोस के बच्चों के साथ खेलना बंद...बस गजब की टेंशन ...हर तरफ़ घर में...चार साल बाद शहर के किसी स्कूल में  नाम लिखवा कर कोटा के कोचिंग इंस्टीच्यूट में रवाना कर दिया जायेगा..  बस अपने शहर में तो नाम के लिए ही दाखिला ले लिया है ..कमबख्त प्लस टू भी तो पास करना है .. अपना शहर है, ऊंची पहुंच वाला बापू लोकल स्कूल को मैनेज कर लेगा, बच्चे, तू तो बस कोटा में मन लगा. 

अब यह सब कितना हास्यास्पद लगने लगा है...छठी क्यों, नर्सरी से ही उसे आईआईटी जैसी संस्थाओं में प्रवेश के लिए थोड़ा थोड़ा करते रहना चाहिए... वैसे भी अब उस इंगलिश एक्सप्रेशन का फैशन चल रहा है... Catch them young!
स्कूल कालेजों मे केवल और केवल पीसीएम और बॉयो ही पढ़ाए जाने चाहिए...ये भाषाएं...हिस्ट्री-ज्योग्राफी, नागरिक-शास्त्र ...ये विषय हम लोगों के लिए नहीं हैं भाई, यह सब तो हम पहले ही से जानते हैं...आगे चल के कहीं काम नहीं आते, ऐसी सोच हो जाती है बच्चों की मैट्रिक कक्षाओं तक पहुंचते पहुंचते। 

हिस्ट्री के मास्टर साब ने Crops & Trees को इस तरह से चित्रित करना सिखा दिया था..बस, उन का सिखाया तो यही याद है.
दूसरों की क्या बात करें, मैं अपनी बात ही कर लूं.. अपने प्रोफैशन के अल्प ज्ञान के अलावा मुझे कुछ नहीं आता...यहां तक कि दुनियादारी की भी समझ नहीं है.... I'm not even worldly-wise! ...हिस्ट्री -ज्योग्राफी का ज्ञान बस इतना कि मैं उसे बच्चों की नोटबुक के एक पन्ने पर लिख डालूं, ज्योग्राफी सच में बिल्कुल जीरो...और तो और ललित कलाओं और भारत की प्राचीन कला-संस्कृति का ज्ञान लगभग शून्य... let me pass the buck a little...ड्राईंग टीचर ऐसे मिले जिन्होंने इतने बरसों तक सेब, केला, नाशपती, और गांव के एक झोंपड़े के आगे कुछ सिखाया ही नहीं...वह तो भला हो ज्योग्राफी के टीचर चौहान साहब का कि उस से पेड़ों और फसलों की आकृति बनानी सीख ली..उसे ही ड्राईंग में इस्तेमाल कर लिया करता हूं अभी तक...


इस तरह की विद्याएं हम लोग स्कूल कालेज में ही ग्रहण कर सकते हैं...यार, कम से कम इन विधाओं को एप्रिशिएट करना तो आना चाहिए...नहीं तो बिल्कुल गंवारों जैसी हालत हो जाती है। उस के बाद तो हम लोग बस किताबें इक्ट्ठा ही कर सकते हैं...पढ़ने-पढ़ाने की किसी फ़ुर्सत रहती है ...यह किताब मैंने पंद्रह दिन पहले खरीदी थी कि इसे रोज़ाना थोड़ा थोड़ा पढूंगा...लेकिन अभी तक इसे खोल के देखा भी नहीं...

व्यवस्था की बिल्कुल थोड़ी पोल खोलने के बाद अब आते हैं लखनऊ के कला शिल्प मेले पर...यह मेला लखनऊ यूनिवर्सिटी के आर्ट्स एंड क्राफ्ट कालेज में १३ से १७ तारीख तक लगा है...कल वहां जाने का अवसर मिला...पिछले साल भी वहां जाना अच्छा लगा था। 

बहुत कर लिया बोर आप को अपनी सब बक-बक से....अब कला मेले को देखते हैं...
 One the graffiti with a great message I ever came across

मेले के अंदर जाते ही यह graffiti दिख गई...मन खुश हो गया...जैसा कि वह मेरे मन की बात कह रहा हो... वाट्सएप पर शेयर की तुरंत और बेटों को कहा कि यह तो कोई तुम लोगों जैसा ही लग रहा है मुझे...

  अरे भईया..ऑल इज़ वेल 

थोड़ी दूर जाने पर ही कालेज के स्कल्पटर विभाग के बाहर लॉन में यह मंजर दिखा...यह सब नारियल के कवर से बना हुआ दिखा... इसे देख कर सब लोग अपना अपना कयास लगा रहे थे, मैंने भी वही किया... पास ही गुजर रहे कालेज ने छात्रों ने भी कुछ बताया तो ...लेिकन मुद्दा वही लगा...राजनीति का ..किस्सा कुर्सी का... राजा और प्रजा के बीच की बातें...एक उत्तम कृति। 
आज की अखबार से पता चला कि यह 'सत्ता की भूख' का चित्रण है

आगे चलते चलते अन्य विभागों में भी बहुत कुछ दिखा...जिन्हें मेरे लिए समझना मुश्किल था..शायद समझने की ज़रूरत भी नहीं होती आर्टिस्ट के काम को ...इन की महानता का अहसास करना होता है बस। 
प्रिंसीपल कक्ष के बाहर एक छात्र द्वारा तैयार किया गया यह फैनूस 

कला प्रेमी छात्रों ने इस तरह के सूखे-गिरते-संभलते पेढ़ों का भी श्रृंगार कर रखा था..उत्सव में उन की भागीदारी सुनिश्चित की हो जैसे!  

  टी-पार्टी 

सूतली और बटनों से तैयार यह कृत्ति

पतझड़ का मंज़र कुछ यूं दिखा...जंगल में मंगल करने का हुनर


 वेलेंटाइन डे स्पेशल मेरी तरफ़ से ..




ग्रामीण जीवन का एक दृश्य 
शेल्फी प्वाईंट कुछ इस तरह से तैयार किया गया था छात्राओं द्वारा 

यह सफ़ेद इम्पोर्टेड गाड़ी यहां कैसे पहुंच गई?...मैंने भी ऐसा ही सोचा था... जब तक मैंने इसे हाथ से छू नहीं लिया..यह सारी गाड़ी थर्मोकोल से बनाई गई है...लाजवाब कृति...बाकी सब कुछ एक दम परफेक्ट है...स्टीयरिंग व्हील, सीटें .....बस, एक थोड़ी सी कमी खली ...आप इस में बैठ नहीं सकते.... great art work!


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अब चलते हैं उस तरफ़ जिधर जा कर मुझे चंडीगढ़ के रॉक गार्डन और उस के सृजनकर्ता नेक राम जी का ध्यान आ गया...ऐसा क्यों हुआ, अभी बताऊंगा...पहले आप इन तस्वीरों को देखिए.. 









 खिंच गई मेरी फोटू भी 

कालेज के छात्र प्रशांत तिवारी ने अपने तीन चार सहपाठियों के साथ मिल कर इसे तीन चार दिन में यह शक्ल दी है ...मैंने इस की बहुत सराहना की और विज़िटर बुक में रॉक गार्डन याद दिलाने की बात लिखी... और यह भी लिखा कि इसे देख कर बहुत से लोगों को शायद कचरे से ऐसी बेहतरीन कृतियां बनाने की प्रेरणा मिले... कचरा?...जी हां, कचरा-कबाड़ इधर उधर फैंकने से कहीं बेहतर होगा अगर ऐसा होने लगे...

बिल्कुल पास जा कर ही पता चलता है कि यह कलाकृति प्लास्टिक के छोटे गिलासों से (जो जमीन पर छोटे छोटे गुंबद दिख रहे हैं) और जो मेन कृति है (जिस के साथ प्रशांत ने मेरी फोटू खींचनी चाही) वह थर्मोकोल के गिलासों से तैयार की गई है....  really a great artwork! मैंने अभी अभी अखबार देखी है इस रिपोर्ट को लिखते हुए तो इस के बारे में और भी पता चला है..

(इसे अच्छे से पढ़ने के लिए इस पर क्लिक करिए)

इन संस्थानों के छात्र-छात्राएं बहुत ही क्रिएटिव हैं...कबाड़ की बात हो रही थी तो आगे देखिए इन बच्चों ने फ्यूज़ हुई ट्यूबों के कबाड़ से क्या बना दिया...मैंने उस के अंदर झांका तो मुझे लगा जैसे गहरा कुआं हो ...लेकिन बाद में समझ आया कि यह सब ground level पर ही है.. ट्यूबों की चहारदीवारी के अंदर ग्राउंड पर शीशे लगे हैं जिस की वजह से एक गहरे खड्ढे का भ्रम पैदा होता है... 


ट्यूब लाइटों के कबाड़ से ही कर दिया कमाल


मैं जो यहां पर इस कला मेले का वर्णन कर रहा हूं ..शायद मैं एक दो प्रतिशत ही आप तक पहुंच पा रहा हूं...definitely these art works are beyond words!  



इन सब को समझने का मेरे जैसे कला के अनपढ़ के पास हुनर नहीं है....लेिकन यह मंज़र बहुत सुंदर लग रहा था...यह जो धुआं निकल रहा है...यह ज़मीन के नीचे मिट्टी की छोटी मटकियां दबाई गई हैं...जिन में धूप जल रहा है ..उस के अंदर लगे बल्ब की वजह से यह दृश्य दिख रहा है..

इसी ग्राउंड में एक जगह शाम के समय बसंत उत्सव चल रहा था...मुंशी प्रेमचंद की कहानी ईदगाह को नृत्य के रूप में पेश किया गया.....बेहतरीन प्रस्तुति...

मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी ईदगाह को इस तरह से पेश किया गया. 

ईदगाह कहानी तो आप सब ने ज़रूर पढ़ी होगी....अगर नहीं तो कोई बात नहीं, आप को अभी लिंक दे रहे हैं...देखिएगा...must watch...


थक गया यार....आज रविवार के चार घंटे तो इस रिपोर्ट को तैयार करने में निकल गये...परवाह नहीं, अगर आप लखनऊ में रहते हैं और इसे पढ़ कर आप को भी वहां जाने की तमन्ना हो जाए...यह मेला १७ तारीख तक चलेगा।
 ओ के ...  गुड़ मार्निंग... Have fun! ..Enjoy your Sunday! आर्ट एंड क्राफ्ट कालेज बड़ी आसानी से डालीगंज ब्रिज से और हनुमान सेतु की तरफ़ से भी पहुंचा जा सकता है...Try to spend sometime there and stay chilled like the boy in the above graffiti!


शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

आई झूम के बसंत ...झूमो संग संग में

आज ऐसे ही ध्यान आ रहा था कि अब तो त्योहारों का पता-ठिकाना भी बहुत बार मीडिया वालों से ही चलता है...वैसे तो सरकारी छुट्टी से भी बहुत से त्योहारों का पता चल जाता है.. आज भी बसंत पंचमी थी...ऐसे ही पता चल तो गया था..लेकिन हमारी छुट्टी नहीं थी....बसंत कैसे मनाई?....बस, आज सुबह पीली कमीज़ पहन ली..

बचपन में बसंत पंचमी के दिन हम सब के लिए पीले कपड़े पहनना बिल्कुल ज़रूरी हुआ करता था...छुट्टी तो पक्का रहती ही थी...पता नहीं पिछले कुछ बरसों से देख रहा हूं छु्टटी नहीं हो रही ..लेकिन जहां तक मुझे ध्यान है पंजाब में हमेशा इस दिन छुट्टी रहती ही है.. शायद अलग अलग जगहों पर त्योहारों का महत्व भी कम-ज़्यादा होता होगा... यह बात तो है।

हां, बसंत पर्व की बात चल रही थी..उस दिन हम पीले रंग के मीठे चावल और कुछ खास व्यंजन खाते थे, सारा आकाश पतंगों से भरा हुआ होता था...और अपनी अपनी छतों पर सब चढ़ जाते थे...और हां, लाउडस्पीकर पर ऊंची ऊची आवाज़ में फिल्मी गीत चला करते थे..यह तो थी हमारी बसंत।


और इन पर जोर जोर से बजते वे गीत...मैं जट्ट यमला पगला दीवाना ....

 मैं इसी फोटो को ही तो ढूंढ रहा था... 
सुबह मां कुछ कह रही थीं बसंत के बारे में ...अपने जमाने की बसंत के बारे में...मां मीरपुर (जम्मू कश्मीर..POK) की रहने वाली हैं..वहीं पर जन्म हुआ, वहीं पढ़ाई हुई...१९४७ में जम्मू आ गये...बता रही थीं कि हमारे समय में तो बसंत के दिन बहुत बड़ा मेला लगता था.. पीर नाभन मेला...पहाड़ पर लगने वाला यह मेला था.. सब लड़कियां मिल कर वहां जातीं...बड़ा अच्छा लगता...बसंत पंचमी के कईं दिन पहले मां बताती हैं कि लड़कियां दुपट्टों पर गुलाबी और पीला रंग करना शुरू कर देती थीं....और एक मजेदार बात, खरबूज और तरबूज के बीज को पीला रंग कर उसे माला में पिरो कर पहना करते थे...मेले से वापिस आते समय हम मालटे खूब खाया करते थे जो अंदर से बिल्कुल लाल हुआ करते थे...मालटे का नाम सुनते मुझे भी याद आया...यह तो हम भी खाते ही थे बचपन में, अब कहां गये मालटे?....अब तो कीनू ही दिखता है हर जगह .. मां के लिए बसंत पंचमी का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इस दिन इन की सगाई हुई थी।

मीरपुर का रघुनाथ मंदिर 
अपनी अपनी यादें ...अपना अपना सरमाया....मीरपुर को याद करके वह भावुक हो जाती हैं..मीरपुर के रघुनाथ मंदिर को बहुत याद करती हैं...गूगल बाबा से देखा तो यह मंदिर दिख गया..

आज भी जब दोपहर में मैंने किसी रेडियो चैनल पर यह गीत सुना ...आई झूम के बसंत ..झूमो संग संग में... तो बहुत अच्छा लगा..ध्यान आया कि बहुत से राष्ट्रीय पर्व एवं त्योहार ऐसे हैं जिन के लिए हिंदी फिल्मी गीत सेट हैं...याद करिए रक्षा बंधन के दिन सुबह सुबह बजने वाला ...बहना ने भाई की कलाई पे प्यार बांधा है... और इसी तरह के गीत हर पर्व के लिए...हर जश्न के लिए...हम इन फिल्मी गीतकारों के हमेशा कर्ज़दार रहेंगे...

मैंने जब यह गीत सुना तो मुझे नहीं पता था कि यह उपकार फिल्म का है... मैं इसे भूल चुका था शायद....अब साल मेें एक बार ही अगर इस तरह के गीत सुनने को मिल गया तो मिल गया....मिस हो गया....तो गया... ऐसे में इन गीतों की याद कहीं धीरे धीरे धुंधली न हो जाए......वैसे ऐसा हो नहीं सकता...क्योंकि ये गीत हमारी संवेदनाएं परदे पर उकेर रहे हैं...ये केवल गीत ही नहीं है...



यह गीत सुनने के बाद मुझे ऐसा ध्यान आया कि क्या बसंत पंचमी के थीम पर केवल यही गीत है ..तभी एक और सुपरहिट गीत लगभग २० साल पुराना याद आ गया...रुत आ गई रे..रुत आ गई रे....यहां पतंगबाजी के साथ साथ इसे सिखाने की भी क्लास लगी हुई है, check this out! Another master piece from the great, versatile actor, Nandita Das.



बस, आज इस पोस्ट के लिए इतना ही....जल्दी फिर मिलते हैं... Happy Basant Panchmi...

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2016

वाट्सएप ज्ञान नशा.. 11.2.16

आज मुझे कोई ऐसी तस्वीर वाट्सएप पर नहीं मिली जिसे शेयर करने की मुझे इच्छा हुई हो ...हां, एक तस्वीर मैंने कल एक मेले में खींची थी..उसे ही यहां शेयर कर देता हूं....मुझे इसे देखते ही ध्यान आया कि हम लोग जुगाड़ करने में कितने एक्सपर्ट हैं... आप का क्या ख्याल है?

यह मैसेज तो पिछले कईं दिनों से इर्द-गिर्द चक्कर लगा रहा है.... मैंने सोचा सब से पहले इसे ही शेयर कर के छुट्टी करूं.. 

वैलेंटाइन डे पर वन विभाग का नया  मेसेज-.
पेड़ों से भी उतना ही प्यार करो,
जितना पेड़ों के नीचे करते हो!!

और यह जो मैसेज अभी आप देखेंगे ..इसे देखते ही आप को अपने स्कूल के दिन याद आ जायेंगे...मुझे तो आ गये..हम भी इसी तरह के जुगाड़ लगा लगा के रट्टे लगा लगा के पास हो जाया करते थे.. मुझे कभी नहीं लगा कि मैं पढ़ाई में बहुत अच्छा था.. बस घऱ आकर नियमित पढ़ने-लिखने की, क्लास से कभी भी छुट्टी न करने की और अपने गुरुजनों का हमेशा सम्मान करने के कुछ अच्छे संस्कार अपने पेरेन्ट्स से मिले जिन्होंने बहुत मदद की... हां, इस तरह के जुगाड़ बहुत करते थे..और कईं बार कुछ अजीब अजीब किस्म के जुगाड़ ताकि कुछ पाठ याद हो जाएं...यह लिखते हुए मुझे हाल ही में रिलीज़ हुई हिंदी फिल्म चॉक एंड डस्टर का ध्यान आ गया....मैंने किसी पोस्ट में लिखा भी था, इसे अवश्य देखिएगा.....इस में शबाना आज़मी भी बच्चों को रोचक ढंग से पढ़ाने के लिए इस तरह के फार्मूले का इस्तेमाल करती हैं... 
बच्चों को राज्यों के नाम याद रखने में परेशानी होती है । इसके समाधान के लिए एक छोटा सा प्रयास किया है । राज्यों के लिए एक  पंक्ति बनाई है । जिसके एक वर्ण से एक राज्य बनता है । शायद अध्यापक साथियों को ये प्रयास पसन्द आए -राज्यों के लिए पंक्ति-
"  मित्र  अतरा मुझसे कहता है मैं अपने छ: बागों में आम की उपज उगाऊ" ।
मि-मिजोरम त्र -त्रिपुरा 
अ - असम  त- तमिलनाडू रा-राजस्थान 
मु -मणिपुर झ - झारखंड से - सिक्किम
क -केरल ह -हरियाणा ते - तेलंगाना
है - हिमाचल
में - मेघालय
अ - अरूणाचल प - प. बंगाल ने - नागालैंड
छः - छत्तीसगढ
बा - बिहार गों -गोवा
में - मध्यप्रदेश 
आ - आंध्रप्रदेश म - महाराष्ट्र 
की -कर्नाटक
उ - उत्तराखंड प - पंजाब ज - जम्मू - कश्मीर
उ - उड़ीसा गा - गुजरात उ- उत्तरप्रदेश
(अपने आप से  पूछिएगा ज़रूर कि क्या आप को भारत के सभी राज्यों के नाम याद हैं...अगर नहीं, तो आप भी इस फार्मूले को याद कर लीजिए)  

  एक वाट्सएप मैसेज यह भी िमला ...आज का ज्ञान ...हंसा देगा आप को भी .. सही पकड़ा इसने कर्मचारियों को ... 
आज का ज्ञान-
जिंदगी बस 2 दिन की है...
एक तो शनिवार और एक रविवार.....
बाकी दिन तो ऐसा लगता है कि जलील होने के लिए पैदा हुए हैं।
                             -एक कर्मचारी

यदि कोई ATM CARD समेत आपका अपहरण कर ले तो विरोध मत कीजिए ।  अपहर्ता की इच्छानुसार ATM मशीन  मेँ कार्ड डालिए । आपका कोड वर्ड रिवर्स मेँ डायल कीजिए । जैसे यदि आपका कोड 1234 की जगह 4321 डायल कीजिए । ऐसा करने पर ATM खतरे को भाँपकर पैसा तो निकालेगा..लेकिन आधा ATM मशीन  में फँसा रह जायेगा । इसी बीच मेँ ATM मशीन खतरे को भाँपकर बैंक और नजदीकी पुलिस स्टेशन को सूचित कर देगा और साथ ही ATM का डोर ऑटो लॉक हो जाएगा । इस तरह बगैर अपहर्ता को भनक लगे आप सुरक्षित बच जाएँगे । ATM मेँ पहले से ही सिक्योरिटी मैकेनिजम है जिसकी जानकारी बहुत कम लोगोँ को है । 
(हम कैसे मान लेंगे कि आज के आधुनिक लुटेरे ये बातें नहीं जानते होंगे, ज़्यादातर एटीएम अब अंदर फंसने वाले हैं ही नहीं, बस स्वाईप कर के बाहर निकालने वाले हैं... और एटीएम का डोर ऑटो लॉक हो जायेगा...शायद कभी कभी लॉक होने वाला एटीएम दिख जाता है... वरना तो सब खुल्लम खुल्ला पड़ा रहता है.....वैसे भी ऐसे किस्से कम ही होते हैं कि पहले किसी का कोई अपहरण कर के उसे एटीएम में लेकर जायेगा....चलिए, फिर भी देख लिया, पढ़ लिया...आगे शेयर क्या करें इसे?....  इस सारे प्रकरण में अपहरणकर्त्ता को बड़ा अनाड़ी सा बताया गया है... वे तो तमंचे से नीचे बात नहीं करते और आप इतने मीठे मीठे जुगाड़ लगा रहे हैं उसे फंसाने के लिए!) 

आज सुरेश बाबू ने भी यह ज्ञान बांट दिया .....बढ़िया लगा... आज की पोस्ट का शीर्षक भी इस में दर्ज वाट्सएप नशे वाली बात से प्रेरित है.. 
गुजरी हुई ज़िंदगी को कभी याद न कर, तकदीर में जो लिखा है उसकी फरियाद न कर 
जो होगा वो होकर रहेगा तू कल की फिक्र में अपनी आज की हंसी बरबाद न कर.. 
हंस मरते हुए भी गाता है मोर नाचते हुए भी रोता है 
यह ज़िंदगी का फंडा है बॉस,  दुःखों वाली रात नींद नहीं आती और खुशी वाली रात कौन सोता है!
लफ्ज़ ही एक ऐसी चीज़ है जिस की वजह से इंसान  
या तो दिल में उतर जाता है या दिल से उतर जाता है.. 
ज़िंदगी की कशमकश में वैसे तो मैं काफ़ी बिज़ी हूं लेकिन 
वक्त का बहाना बना कर अपनों को भूल जाना मुझे आज भी नहीं आता.
जहां यार न याद आए वो तन्हाई किस काम की..बिगड़े रिश्ते न बनें तो खुदाई किस काम की  
बेशक अपनी मंज़िल तक जाना है..पर जहां से अपना दोस्त न दिखे वो ऊंचाई किस काम की.. 
नशा मोहब्बत का हो, शराब का हो या वाट्सएप का हो, होश तो तीनों में खो जाते हैं... 
फ़र्क सिर्फ इतना है .. 
शराब सुला देती है .. मोहब्बत रुला देती है और वाट्सएप यारों की याद दिला देती है...

ब्लॉग की पोस्ट लिखने में खासा समय लगता है...कर लेता हूं यह काम क्योंकि अच्छा लगता है...वैसे अकसर मुझे प्रतिक्रिया ९९ प्रतिशत लोगों से मिलती नहीं, न ही मैं इस की कभी अपेक्षा ही करता हूं...अपनी डायरी लिख लेता हूं बस, और है क्या...बस, पोस्ट शेयर करने का चस्का २००७ के दिनों से ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत के दिनों से लगा हुआ है ...जहां पर बलॉग्स की पोस्ट तुरंत शेयर हो जाया करती थी। 

और शायद जिन्हें यह पोस्ट वाट्सएप पर मिलती हो उन्हें कभी लगता हो कि मैं एक एक को अलग से इस का लिंक भेजता हूं...नहीं, नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता ...भयंकर बोरिंग काम... मैंने तो एक ब्रॉडकास्ट लिस्ट बनाई है वाट्सएप पर .. मेरे फोन में जितने भी नंबर स्टोर हैं, सब को अपने आप इस ब्लॉग-पोस्ट का लिंक चला जाता है, इतनी सी बात है.....रही प्रतिक्रिया की बात, कुछ पुराने दोस्त कभी कभी कुछ कह देते हैं ...वह मेरे लिए काफ़ी है... और कभी कभी कहीं से जब कोई सुधि पाठक वाट्सएप पर इस तरह का संदेश भेज देता है तो लगता है जैसे कोई बड़ा अवार्ड मिल गया हो...शायद उस से भी ज़्यादा... फिर पहले से बेहतर करने की इच्छा जाग जाती है....यह साधना है ...जैसे कोई भी काम है...वैसे यह भी है ...

इसी बात पर कल एक सुधि पाठक से यह संदेश मिला....अच्छा लगा... 


यह स्क्रीन-शॉट है, आप से शायद पढ़ा नहीं जायेगा...मैं उस पाठक के संदेश को यहां लिख देता हूं... 

"आपका ब्लॉग बेहतरीन है कंटेंट के नजरिये से   …. हिंदी में  ऐसा कंटेंट कहीं और उपलब्ध नहीं है  … शायद 2011 से आपका ब्लॉग पढ़ रहा हूँ  …. निशांत मिश्रा जी के ब्लॉग hindizen से आपके ब्लॉग का लिंक मिला था  …. फिर तो आपको पढ़ कर कुछ ही दिनों में स्वयं आधा डेंटिस्ट हो गया था  … अपने घर पर , दोस्तों सबको आपकी पोस्ट प्रिंट आउट निकलवा कर पढवाई थी   … आपकी पोस्ट्स ने मुझे दांतों को लेकर काफी सजग कर दिया था  …. आपको ढेर सारी शुभ कामनायें डॉक्टर साहेब  …. बस आप ऐसे मुस्कराहट बांटते रहे   … आप एक बार गुडगाँव भी आये थे गूगल के इवेंट में  …. उस में मैं भी आया था   … आप से मिलना मिस हो गया " .....

अब आगे क्या लिखूं... लिखने विखने को थोड़ा विराम दूं.. एक वीडियो दिखाता हूं जो मेरे पुराने अजीज दोस्त डा बेदी जी ने सुबह भेजा था... अच्छा लगा ..यहां देखिए... just for a short duration!  


मुझे भी नहीं पता ये कौन भक्त लोग हैं..लेकिन लगता है कि जैसे ISKCON संस्था के श्रद्धालु हैं ... ठीक है, सभी अपने अपने तरीके से भक्ति कर रहे हैं, इन की भी भक्ति की परवाज़ देख कर बहुत अच्छा लगा... इच्छा हुई कि मैं भी इन के जश्न में शामिल हो जाऊं.......but then, who is stopping me? वैसे इन का जोश देख कर मुझे आज पता चल गया कि बाबा रामदेव के Acrobatics की टक्कर में भी कुछ भक्त हैं अभी इस देश में...

 लेकिन आज का दिन अच्छा धार्मिक आध्यात्मिक रंग में रंगा रहा.. सुबह यह वीडियो देखी... और दिन में हमारे अस्पताल के कुछ साथी जो द्वारकाधीश और सोमनाथ मंदिर हो कर आए हैं...उन्होंने अपना यात्रावर्णन सुनाया और वहां का प्रसाद दिया.. सोमनाथ का नाम आते ही मुझे सब से पहले इतिहास पढ़ने के वे दिन याद आ गये ....सोमनाथ पर कब,कितनी बार... और किस ने हमला किया ... यह सब रट रट के फिर कहीं जाकर इतिहास-भूगोल से पीछा छूटा था....इन श्रद्धालुओं का वर्णऩ सुन कर मेरे मन में भी इन जगहों पर जाने की इच्छा प्रबल हो गई है...देखते हैं, कब जाएंगे...शायद रिटायरमैंट का इंतज़ार करेंगे ...  अगर तब तक  घुटनों ने  जवाब नहीं दिया तो ......वैसे थोड़ी थोड़ी शुरूआत तो हो चुकी है... i know! How foolishly do we keep on postponing our little pleasures of life!

जाते जाते अभी अभी मुझे गाना भी तो आप तक पहुंचाना है...तो आज का गीत यह है .. आज दोपहर में विविध भारती पर जब यह गीत बज रहा था तो मुझे अचानक ध्यान आया कि यह गीत तो पता नहीं जैसे मैंने बहुत ही बरसों बाद सुना हो... आज उसे ही लगा देते हैं... मुझे नहीं पता था कि यह किस फिल्म का है, गाने का मूड क्या है, और कौन से सिनेस्टार हैं इसमें ...लेिकन अपना यू-ट्यूब ताऊ है न....हमारा काम आसान करने वाला .. भूल भुलईयां तेरी अक्खियां सईंयां रस्ता भूल गई मैं....आज से बीस साल पहले यह गीत रेडियो-दूरदर्शन पर खूब बजा करता था..