एक साल से ज़्यादा हो गया है इस ब्लॉगिंग के चक्कर में पड़े हुये ---लेकिन बहुत बार बहुत कुछ लिखना चाहते हुये भी आलस्य कर जाता हूं- इस के कारण आज आप के समक्ष बैठ कर ढूंढने का प्रयास कर रहा हूं ---
1. एक कारण इस आलस्य का यह है कि मुझे मोबाइल फोन से कंप्यूटर में या लैपटाप में तस्वीरें ट्रांस्फर करने का ज्ञान नहीं है। और पिछले एक साल से ही सोच रहा हूं कि यह काम सीखना है --- लेकिन बस सोचता ही रहता हूं। मेरे पास इतनी इतनी बढ़िया तस्वीरों का संग्रह है कि क्या बतलाऊं ---- मुझे पता है कि यह सीखना 10-15 मिनट का काम है । लेकिन पता नहीं कभी इच्छा ही नहीं होती --- लेकिन इस चक्कर में मेरे लेखन पर बहुत ही ज़्यादा असर पड़ रहा है, इसलिये अब सोचता हूं कि इस काम को गंभीरता से लेकर इन तस्वीरों को लैपटाप पर ट्रांसफर करना भी सीख ही लूंगा।
इस आलस्य का एक कारण यह भी है कि हमारे घर में इतनी ज़्यादा तारें हैं कि मैं उन्हें देख देख कर कंफ्यूज़ ही रहता हूं। बस, मेरा तो नेट लग जाये तो मैं इत्मीनान कर लेता हूं। इतनी ज़्यादा तारें होने की वजह से जिस वक्त जिस केबल की ज़रूरत होती है वही नहीं मिलती, बस सब कुछ मिल जाता है। इस अव्यवस्था में मेरे बेटों की भी काफ़ी भूमिका है ---- कभी इन उपकरणों को व्यवस्थित करने की उन्होंने भी कोशिश नहीं की।
2. दूसरा कारण भी वैसे तो इस से मिलता जुलता ही है कि एक अच्छे खासे डिजीटल कैमरे से तस्वीरें लैप-टाप में ट्रांस्फर करना अभी मैंने सीखा नहीं है और छोटी छोटी बात के लिये मुझे किसी के ऊपर निर्भर रहना कुछ ठीक नहीं लगता। इसलिये बस उस में बंद तस्वीरें उस में ही बंद रहती हैं जब तक कि कोई उन को लैपटाप में या कंप्यूटर में ट्रांस्फर न कर दे।
लेकिन अब सोचता हूं कि अगर चिट्ठाकारी करनी है तो इन सब बातों का कार्यसाधक ज्ञान तो होना बहुत ही ज़रूरी है और विशेषकर अगर आप किसी विज्ञान से संबंधित विषय पर लिख रहे हैं तो इन उपकरणों की ज़रूरत तो और भी बढ़ जाती है।
3. तीसरा कारण है कि मैं बड़ा परफैक्शनिस्ट किस्म का इंसान हूं ---जब तक मैं किसी बात के बारे में स्वयं पूरी तरह से आश्वस्त न हो लूं, मैं उसे पब्लिक डोमेन पर डालना उचित नहीं समझता हूं। वैसे चिकित्सा जैसे विषय में अगर कोई लिख रहा है तो यह विश्वसनीयता बेहद आवश्यक है ---वरना लिखने के नाम तो बहुत कुछ लिखा जा ही रहा है। तो, इस लिये सब तथ्य जुटाने के चक्कर में कईं बार थोड़ी ऊब सी होने लगती है।
लेकिन पता नहीं यही कारण है कि मैंने अपनी कुछ पोस्टों में अपने व्यक्तिगत जीवन, प्रोफैशनल जीवन से उठाकर इतनी गहरी बातें इन चिट्ठों पर डाल दी हैं कि मैं अपने आप को बिल्कुल खाली समझने लगा हूं --- एकदम हल्का। इतना हल्का कि जिन जिन विषयों पर मैं लिख चुका हूं उन के बारे में मेरे द्वारा कुछ भी और कहना बचा नहीं है ।
और इतना भी जानता हूं कि जब कभी इस चिट्ठा पर कोई किताब छापने की खुराफ़ात सवार होगी (मुझे पता है कि देर-सवेर यह होगी ही !!) तो बिना किसी संपादन के ही इसे छपवा दूंगा और सारी टिप्पणीयां भी साथ ही लगी रहने दूंगा ---यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि चिट्ठाकारी पर छपने वाली किताब की महक इसी तरह ही कायम रह सकती है।
4. ब्लागिंग को सुंदर बनाना नहीं आता ---सुंदर से मेरा भाव है कि कुछ एचटीएमएल नुस्खों के द्वारा किस तरह से ब्लाग को सुंदर बनाया जा सकता है इसे सीखने की मेरी इच्छा तो बहुत है लेकिन पता नहीं कुछ बात बन ही नहीं रही । अब मैं समझता हूं कि पोस्ट में हाइलाइटिंग होनी बहुत ज़रूरी है लेकिन पता नहीं बार बार भूल जाता हूं । अब सोचता हूं कि ये सब बातें जब सीखूंगा तो किसी नोटबुक में नोट कर लिया करूंगा।
5. बहुत बार अतीत में चला जाता हूं --- सब से पहले मैंने 9-10 साल सर्विस बंबई में की ---बहुत अच्छा था ---बंबई सैंट्रल में ही हम लोग रहते थे ---शाम को कभी चौपाटी, कभी मैरीन ड्राइव, कभी नरीमन प्वाईंट और कुछ नहीं तो बंबई सैंट्रल स्टेशन का पांच नंबर प्लेटफार्म ही इतना लंबा था कि अपनी बिल्डिंग से नीचे उतर कर वहां पर ही पंद्रह बीस मिनट टहल लिया करते थे। बंबई में मैंने बहुत कुछ सीखा --- इस नगरी में भी ऐसी बात है कि जब आदमी वहां पर रह रहा होता है तो लगता है कि कैसे भी हो, बस यहां से भाग लिया जाये लेकिन जब यह नगरी छूट जाती है तो इस की बहुत ही ज़्यादा याद आती है --- और अब जहां पर हूं वहां पर किसी जगह घूमने जाने का आलस्य ही लगा रहता है ---- अजीब सी सड़के, ट्रैफिक की कोई इतनी व्यवस्था नहीं, सड़कों पर स्ट्रीट लाइटें कभी जल पड़ी कभी बंद रहीं ----- बस, यूं कह लीजिये कि जैसे तैसे कट रही है। इसलिये ये सब बातें जब सोचने लग जाता हूं तो कुछ भी लिखने की इच्छा नहीं होती।
लेकिन यह कोई मेरी ब्लागिंग के लिये इतनी बड़ी रूकावट नहीं है ---- यह बहानेबाजी ज़्यादा है ।
वैसे इतना लंबी चौड़ी पोस्ट लिखने के बाद लग रहा है कि यार, ये रूकावटें भी क्या कोई रूकावटें हैं ---- अपने आप से कह रहा हूं कि बहाने बनाने छोड़ और ब्लागिंग को गंभीरता से लेना शुरू कर ---- और ध्यान आ रहा है कि मुझे तो इस प्रभु का बार बार शुक्रिया अदा करना चाहिये कि मैं एक ऐसे प्रोफैशन में हूं जिस में जनता-जनार्दन की सेवा कर सकता हूं, कंप्यूटर है, इंटरनैट है, अच्छी भली सोच है और अंगुलियां दुरूस्त हैं लिखने के लिये तो इस के इलावा तो जो भी रूकावटें गिना डाली हैं वे तो वास्तव में कोई रूकावट न हुईं।
देखिये, जब हम लोग कलम उठा लेते हैं तो हमें बहुत सी बातें अपने आप ही समझ आने लगती हैं ---जैसे मुझे आज यह आभास हो गया है कि मैं अपनी ब्लागिंग की डगर पर आने वाली जिन रूकावटों की बात कर रहा हूं वे तो बहुत ही तुच्छ हैं । तो इसलिये यह निश्चय किया है कि अगले तीन-चार दिनों में ही ऊपर लिखी सभी रूकावटों को दूर करने की पूरी पूरी कोशिश करूंगा ---ताकि पहली जनवरी 2009 से जो पोस्टें लिखूं उन को अपने ढंग से लिखूं ----- न तो फोटो डालने के लिये कोई आलस्य हो और न ही हाइलाइटिंग के नाम से ही घबराना पड़े
---------------इसे आप मेरा नव-वर्ष का अग्रिम संकल्प जान लीजिये या कुछ और, लेकिन नये वर्ष में मैं अपने चिट्ठे को नय रूप, नया स्वरूप देने का वायदा अपने आप से कर रहा हूं।
1. एक कारण इस आलस्य का यह है कि मुझे मोबाइल फोन से कंप्यूटर में या लैपटाप में तस्वीरें ट्रांस्फर करने का ज्ञान नहीं है। और पिछले एक साल से ही सोच रहा हूं कि यह काम सीखना है --- लेकिन बस सोचता ही रहता हूं। मेरे पास इतनी इतनी बढ़िया तस्वीरों का संग्रह है कि क्या बतलाऊं ---- मुझे पता है कि यह सीखना 10-15 मिनट का काम है । लेकिन पता नहीं कभी इच्छा ही नहीं होती --- लेकिन इस चक्कर में मेरे लेखन पर बहुत ही ज़्यादा असर पड़ रहा है, इसलिये अब सोचता हूं कि इस काम को गंभीरता से लेकर इन तस्वीरों को लैपटाप पर ट्रांसफर करना भी सीख ही लूंगा।
इस आलस्य का एक कारण यह भी है कि हमारे घर में इतनी ज़्यादा तारें हैं कि मैं उन्हें देख देख कर कंफ्यूज़ ही रहता हूं। बस, मेरा तो नेट लग जाये तो मैं इत्मीनान कर लेता हूं। इतनी ज़्यादा तारें होने की वजह से जिस वक्त जिस केबल की ज़रूरत होती है वही नहीं मिलती, बस सब कुछ मिल जाता है। इस अव्यवस्था में मेरे बेटों की भी काफ़ी भूमिका है ---- कभी इन उपकरणों को व्यवस्थित करने की उन्होंने भी कोशिश नहीं की।
2. दूसरा कारण भी वैसे तो इस से मिलता जुलता ही है कि एक अच्छे खासे डिजीटल कैमरे से तस्वीरें लैप-टाप में ट्रांस्फर करना अभी मैंने सीखा नहीं है और छोटी छोटी बात के लिये मुझे किसी के ऊपर निर्भर रहना कुछ ठीक नहीं लगता। इसलिये बस उस में बंद तस्वीरें उस में ही बंद रहती हैं जब तक कि कोई उन को लैपटाप में या कंप्यूटर में ट्रांस्फर न कर दे।
लेकिन अब सोचता हूं कि अगर चिट्ठाकारी करनी है तो इन सब बातों का कार्यसाधक ज्ञान तो होना बहुत ही ज़रूरी है और विशेषकर अगर आप किसी विज्ञान से संबंधित विषय पर लिख रहे हैं तो इन उपकरणों की ज़रूरत तो और भी बढ़ जाती है।
3. तीसरा कारण है कि मैं बड़ा परफैक्शनिस्ट किस्म का इंसान हूं ---जब तक मैं किसी बात के बारे में स्वयं पूरी तरह से आश्वस्त न हो लूं, मैं उसे पब्लिक डोमेन पर डालना उचित नहीं समझता हूं। वैसे चिकित्सा जैसे विषय में अगर कोई लिख रहा है तो यह विश्वसनीयता बेहद आवश्यक है ---वरना लिखने के नाम तो बहुत कुछ लिखा जा ही रहा है। तो, इस लिये सब तथ्य जुटाने के चक्कर में कईं बार थोड़ी ऊब सी होने लगती है।
लेकिन पता नहीं यही कारण है कि मैंने अपनी कुछ पोस्टों में अपने व्यक्तिगत जीवन, प्रोफैशनल जीवन से उठाकर इतनी गहरी बातें इन चिट्ठों पर डाल दी हैं कि मैं अपने आप को बिल्कुल खाली समझने लगा हूं --- एकदम हल्का। इतना हल्का कि जिन जिन विषयों पर मैं लिख चुका हूं उन के बारे में मेरे द्वारा कुछ भी और कहना बचा नहीं है ।
और इतना भी जानता हूं कि जब कभी इस चिट्ठा पर कोई किताब छापने की खुराफ़ात सवार होगी (मुझे पता है कि देर-सवेर यह होगी ही !!) तो बिना किसी संपादन के ही इसे छपवा दूंगा और सारी टिप्पणीयां भी साथ ही लगी रहने दूंगा ---यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि चिट्ठाकारी पर छपने वाली किताब की महक इसी तरह ही कायम रह सकती है।
4. ब्लागिंग को सुंदर बनाना नहीं आता ---सुंदर से मेरा भाव है कि कुछ एचटीएमएल नुस्खों के द्वारा किस तरह से ब्लाग को सुंदर बनाया जा सकता है इसे सीखने की मेरी इच्छा तो बहुत है लेकिन पता नहीं कुछ बात बन ही नहीं रही । अब मैं समझता हूं कि पोस्ट में हाइलाइटिंग होनी बहुत ज़रूरी है लेकिन पता नहीं बार बार भूल जाता हूं । अब सोचता हूं कि ये सब बातें जब सीखूंगा तो किसी नोटबुक में नोट कर लिया करूंगा।
5. बहुत बार अतीत में चला जाता हूं --- सब से पहले मैंने 9-10 साल सर्विस बंबई में की ---बहुत अच्छा था ---बंबई सैंट्रल में ही हम लोग रहते थे ---शाम को कभी चौपाटी, कभी मैरीन ड्राइव, कभी नरीमन प्वाईंट और कुछ नहीं तो बंबई सैंट्रल स्टेशन का पांच नंबर प्लेटफार्म ही इतना लंबा था कि अपनी बिल्डिंग से नीचे उतर कर वहां पर ही पंद्रह बीस मिनट टहल लिया करते थे। बंबई में मैंने बहुत कुछ सीखा --- इस नगरी में भी ऐसी बात है कि जब आदमी वहां पर रह रहा होता है तो लगता है कि कैसे भी हो, बस यहां से भाग लिया जाये लेकिन जब यह नगरी छूट जाती है तो इस की बहुत ही ज़्यादा याद आती है --- और अब जहां पर हूं वहां पर किसी जगह घूमने जाने का आलस्य ही लगा रहता है ---- अजीब सी सड़के, ट्रैफिक की कोई इतनी व्यवस्था नहीं, सड़कों पर स्ट्रीट लाइटें कभी जल पड़ी कभी बंद रहीं ----- बस, यूं कह लीजिये कि जैसे तैसे कट रही है। इसलिये ये सब बातें जब सोचने लग जाता हूं तो कुछ भी लिखने की इच्छा नहीं होती।
लेकिन यह कोई मेरी ब्लागिंग के लिये इतनी बड़ी रूकावट नहीं है ---- यह बहानेबाजी ज़्यादा है ।
वैसे इतना लंबी चौड़ी पोस्ट लिखने के बाद लग रहा है कि यार, ये रूकावटें भी क्या कोई रूकावटें हैं ---- अपने आप से कह रहा हूं कि बहाने बनाने छोड़ और ब्लागिंग को गंभीरता से लेना शुरू कर ---- और ध्यान आ रहा है कि मुझे तो इस प्रभु का बार बार शुक्रिया अदा करना चाहिये कि मैं एक ऐसे प्रोफैशन में हूं जिस में जनता-जनार्दन की सेवा कर सकता हूं, कंप्यूटर है, इंटरनैट है, अच्छी भली सोच है और अंगुलियां दुरूस्त हैं लिखने के लिये तो इस के इलावा तो जो भी रूकावटें गिना डाली हैं वे तो वास्तव में कोई रूकावट न हुईं।
देखिये, जब हम लोग कलम उठा लेते हैं तो हमें बहुत सी बातें अपने आप ही समझ आने लगती हैं ---जैसे मुझे आज यह आभास हो गया है कि मैं अपनी ब्लागिंग की डगर पर आने वाली जिन रूकावटों की बात कर रहा हूं वे तो बहुत ही तुच्छ हैं । तो इसलिये यह निश्चय किया है कि अगले तीन-चार दिनों में ही ऊपर लिखी सभी रूकावटों को दूर करने की पूरी पूरी कोशिश करूंगा ---ताकि पहली जनवरी 2009 से जो पोस्टें लिखूं उन को अपने ढंग से लिखूं ----- न तो फोटो डालने के लिये कोई आलस्य हो और न ही हाइलाइटिंग के नाम से ही घबराना पड़े
---------------इसे आप मेरा नव-वर्ष का अग्रिम संकल्प जान लीजिये या कुछ और, लेकिन नये वर्ष में मैं अपने चिट्ठे को नय रूप, नया स्वरूप देने का वायदा अपने आप से कर रहा हूं।