शनिवार, 4 अप्रैल 2015

अब एम.पी लोगों को लेनी चाहिए डाक्टरों की क्लास

एक जमाना था जब लालू प्रसाद यादव मैनेजमेंट के टॉप संस्थानों में जा कर रेलवे के कायाकल्प का राज़ खोला करते थे...

मुझे पिछले तीन चार रोज़ से लग रहा है कि अब लोकसभा के कुछ विद्वान सदस्यों को आल इंडिया इंस्टीच्यूट या अन्य मैडीकल कालेजों में जा कर तंबाकू के प्रभावों को खारिज करने वाले लैक्चर देने चाहिए...किस तरह से पहले एक ने कहा कि तंबाकू से कैंसर नहीं होता ...आज पता लगा कि एक और सदस्य ने भी यही कुछ कहा है।

आज पता चला कि यह जो संसदीय कमेटी बनी थी संसद सदस्यों की उन में ऐसे सदस्य भी हैं जिन का अपना करोड़ों रूपये का बीड़ी का धंधा है। उन्हें बीड़ी के वर्करों से भी बहुत सहानुभूति है कि वे लोग बेरोज़गार हो जाएंगे। लेकिन जिस तरह से तिल तिल वे वर्कर ..जिन में बहुत से बच्चे और महिलाएं भी होती हैं... रोज़ मरते हैं, उन की बात कौन उठाएगा। ज़ाहिर है उन की कोई आवाज़ नहीं होती...अगर होती भी है तो इतनी दबी कुचली और शोषित कि  वह उठ ही नहीं पाती।

मुझे हैरानगी यही है आज की अखबार पढ़ कर कि सरकारी नौकरों पर तो तरह तरह के अंकुश होते हैं कि कहीं से भी कंफ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट में लिप्त न पाए जाएं......लेकिन ऐसा लोकसभा का सदस्य जिस का अपना बीड़ी का करोड़ों का धंधा हो वह कैसे ऐसी किसी कमेटी में आया जिसने यह निर्णय लिया कि सिगरेट आदि के पैकेटों पर चेतावनी के साइज को बढ़ाने के फैसले को स्थगित कर दिया जाए।

अभी अभी मैंने फेसबुक खोला तो एक पोस्ट दिखी कि एक संसद सदस्य ने यह भी कह दिया कि चीनी (शक्कर) से भी मधुमेह होता है तो फिर उस पर भी प्रतिबंध क्यों नहीं लगा दिया जाता। इस खबर का लिंक यह रहा... चीनी से डायबिटिज होता है तो क्या उस पर रोक है!

अब आप मुझे बताएं कि गुस्से में अपने ही बाल नोंचने के सिवाए इस तरह की बात का कोई क्या जवाब दे!

आज ही के पेपर में यह भी पढ़ा कि संसद सदस्य का यह भी कहना है कि बीड़ी जो है वह तो सिगरेट से कम हानिकारक है। लेकिन सच्चाई यह है कि यह एक बहुत बड़ी भ्रांति है ..बीड़ी सिगरेट दोनों ही नुकसानदायक तो हैं ही... बीड़ी सिगरेट से कम नुकसान तो किसी भी हालत में नहीं, उस से ज़्यादा भले ही हो। ये मेरे निजी विचार नहीं है, वैज्ञानिक सत्य पर आधारित बातें हैं ये।

अपने घर में ही देखा...बड़े बुज़ुर्गों को सिगरेट पीते पीते जब तकलीफ़ होने लगीं ..तो बीड़ी पीने लगे .कि इस का नुकसान कम है....अब हम कह ही सकते थे..कहते रहे.......लेकिन इसी कहने-सुनने के सिलसिले में अधिकतर तो इस संसार से कूच ही कर चुके हैं....मेरे पापा ने भी बहुत साल सिगरेट पीने के बाद बीड़ी शुरू कर दी थी..लेकिन मरते दम तक छोड़ी नहीं।

वैसे मुझे लगता है कि यार यह भी कोई मुद्दा है जिस पर मैं लिखने बैठ जाता हूं.....सारा संसार जानता है कि तंबाकू जान लेवा शौक है, यह बीमारियों का घर है, इससे कैंसर होता है, यह घर परिवार उजाड़ देता है...तिल तिल मार देता है.....मैं तो तंबाकू द्वारा मुंह के अंदर होने वाली विनाशलीला का साक्ष्य हूं...

ऐसा कैसे हो सकता है कि दो चार एम.पी घोषणा कर दें कि तंबाकू से कैंसर नहीं होता, बीड़ी इतनी खराब नहीं है जितना सिगरेट......और चेतावनी के साइज को बढ़ाने के निर्णय को स्थगित कर दिया जाए...

म समझते हैं कि इस से और कुछ नहीं होगा.....बस वह जो सिगरेट बीड़ी के पैकेटों पर चेतावनी के साइज को बढ़ाने का मुद्दा है वह ऐसा एक बार कोल्ड-स्टोर में पड़ेगा कि शायद ही फिर कभी बाहर निकल पाए..... अगर आपने इस मुद्दे को नजदीक से मीडिया में फॉलो किया हो तो आप को याद होना चाहिए कि इस तरह की डरावनी चेतावनियां तंबाकू-गुटखे-सिगरेट-बीडी के पैकेटों पर छपवाने का कानून बनाते बनाते सरकार की सांसे फूल गई थीं.....यह कोर्ट यह कचहरी ..केस पे केस ..सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट ..फिर आखिर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद ही यह सब छपना शुरू हुआ....लेकिन अब संसदीय कमेटी की सिफारिश के बाद तो लगता है कि जैसे यू-टर्न लिया जाना लगभग तय ही है.

मेरे जैसों का क्या है, हमारी सुनता कौन है, हमारा काम ही है भौंकते रहना, भौंक कर थक जाएंगे तो चुप हो जाएंगे.....लेकिन एक बात है कि मैं तंबाकू विरोधी अभियान में और भी तन-मन-धन से सतत जुड़ा रहूंगा....यह मेरा अपने आप से वायदा रहा।

मुझे कईं बार लगता है कि इस तरह के फिल्मी गीतों ने भी तंबाकू की लत को बहुत बढ़ावा दिया होगा.....खाई के पान बनारस वाला......या फिर पान खाए सैयां हमारो.... दोस्तो, ये गीत सुनने तक ही ठीक हैं...

AIIMS Doctors Trash Tobacco Report



ट्रायल रूम में कैमरा...फैबइंडिया की करतूत

कल नेट पर तो शाम को आ गया था कि स्मृति इरानी ने ट्रायल रूम में खुफिया कैमरा पकड़ा है लेकिन उस की पूरी जानकारी अभी हिन्दुस्तान पेपर के पहले पन्ने पर छपी पहली खबर से हासिल हुई कि स्मृति वहां कपड़े खरीदने गई थी। तभी उस की नज़र ट्रायल रूम के बाहर लगे खुफिया कैमरे पर पड़ी और उस ने इस का विरोध किया।

इस तरह की खबरें आती रहती हैं ..लेकिन इस तरह के काम करने वालों के मन में खौफ़ नाम की चीज़ नहीं है, ऐसा लगता है।

अगले पन्नों पर कुछ सावधानियां बरतने को कहा गया था... बड़ी रोचक सी लगीं, इसलिए यहां शेयर करने आ गया।

खुफिया कैमरों से बचें

इन खास जगहों पर छिपाए जाते हैं खुफिया कैमरे..
ट्रायल रूम की छत या दीवार में
होटल के कमरे में रखे फूलदान में
फोटो फ्रेम में, पंखे में
टॉयलेट या बाथरूम के शॉवर में

जब भी किसी ट्रायल रूम में जाएं तो सब से पहले ऊपर के कोनों और शीशों को चेक करें।

मोबाइल की फ्लेश लाइट जलाएं और उसे शीशे की तरफ करें। यदि लाइट प्रतिबिंबित होकर वापस लौट रही है तो निश्चिंत रहें। लेकिन लाइट शीशे के पार जा रही है तो सावधान हो जाएं वहां कैमरा हो सकता है। 

मोबाइल फोन के जरिए कीजिए जांच 

ट्रॉयल रूम में घुसने से पहले अपने मोबाइल से कॉल करें। जांचें सिग्नल हैं या नहीं। ट्रायल रूम में घुसने के बाद फिर से कॉल करे। यदि कॉल नहीं लग पा रहा है तो सतर्क हो जाएं। वहां छिपा कैमरा हो सकता है। कारण, कैमरा में लगा फाइबर ऑप्टिकल केबल मोबाइल के सिग्नल को बाधित करता है, जिससे कॉल नहीं हो पाती।

ट्रायल रूम में जाने के बाद वहां की सभी लाइट बंद कर दें। देखें कहीं लाल या हरी रंग की बत्ती तो नहीं जल रही। यदि दिख रही है तो वह किसे छिपे हुए कैमरे की हो सकती है।

शीशे के पीछे छिपा कैमरा जांचने के लिए शीशे की उंगली रखें

अगर शीशे पर रखी गई उंगली और शीशे में दिख रही उंगली के बीच जगह रहती है तो डरने की जरूरत नहीं। लेकिन अगर शीशे पर रखी गई उंगली के बीच में जगह नहीं रहती है तो और वे जुड़ी रहती हैं तो मतलब शीशे के पीछे कुछ है। वह खुफिया कैमरा हो सकता है या कोई अनजान शख्स भी। रहती है तो मतलब शीशे के पीछे कुछ है। वह खुफिया कैमरा हो सकता है या कोई अनजान शख्स भी।

यह ऊपर लिखी बातें पढ़ कर आप को कैसा लगा?.....मुझे तो बहुत अजीब लगा... स्मृति इरानी अलर्ट हैं...उसने यह सब ढूंढ निकाला... हिंदोस्तान की आम गृहिणियां कहां इस तरह की चीज़ें जानती-पहचानती हैं।

और ऊपर जो सुझाव लिखें...वे भी समझने के लिए इंटर में कम से कम साईंस का होना ज़रूरी लगता है ...ऐसा मुझे लगा। मुझे खुद कईं बातें समझ नहीं आईं....

लेिकन एक बात तो है कि अगर फैबइंडिया जैसे शोरूम में यह सब हो रहा था तो बहुत अफसोसजनक बात है...मैंने भी पिछले दो सालों में इन के बंबई और लखनऊ शोरूमों से कुछ कमीज़ें खरीदी हैं..रेट इन के काफी ज़यादा होते हैं.....कहते तो यही हैं कि इन का फायदा उन कपड़ों को तैयार करने वालों तक पहुंचता है.........लेकिन इन के शोरूमों की शानो-शौकत ..ए.सी की ठंडक और सामान्य एंबिऐंस देख कर मुझे कुछ हाई-प्रोफाइल महिलाओं की समाज सेवा की याद आ जाती हैं। अगर ये लोग गोवा जैसी हाई-प्रोफाइल जगह में अपने करिंदों पर नज़र नहीं रख पाते तो इस की साख पर तो आंच पहुंचनी तय ही है।

अगर कोई यह सोच रहा हो कि इस तरह के खुफिया कैमरे औरतों के लिए ही इस्तेमाल किये जाते होेंगे........उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि गोवा जैसी जगहों पर सभी तरह की रूचि वाले रोग घूमने आते हैं......पुरूष, बच्चे, छोटे शिशु ...उन्हें कुछ भी चलता है।

एक बात का ध्यान आया...दो साल पहले हमारे एक डाक्टर को अकेले में बंद कमरे में अंदर से सिटकनी लगा कर भीड़ पीट कर चली गई.. उसकी एक यूनियन नेता से कुछ कहा-सुनी हो गई थी...बाद में लोग उसे यही सलाह दे रहे थे कि तू भी यार थोड़ी तो भड़ास निकाल लेता..दो चार को तो हाथ जमा ही देता......ऐसे ही इस तरह की खुफिया कैमरों की हरकतें दिख जाने पर पुलिस के आने से पहले थोड़ी सी (बिल्कुल ह्लकी-फुल्की) भड़ास निकालने के बारे में आप क्या कहते हैं?...इन सिरफिरे, विक्षिप्त मानसिकता वाले लुच्चों की ऐसी की तैसी......कैमरे लगाने का इतना ही शौक है तो कमबख्तों अपने ही घर में लगाओ...

सुबह सुबह मुझे इतनी जासूसी की बातें सुन कर दो जासूस फिल्म का ध्यान आ गया तो मैंने यह गीत सुन लिया...बेटा का आज एग्ज़ाम है....इस गीत की आवाज़ सुन कर वह भी पढ़ाई छोड़ कर मेरे साथ बैठ गया...पहली बार इस गीत को सुन रहा था....राजकपूर को इस अंदाज़ में देख कर वाह-वाह करते हुए ठहाके लगा रहा है.....मैं उसे कह रहा हूं..पढ़ ले यार, पढ़ ले......जे ई ई का पेपर है, मज़ाक नहीं....फिर मैंने कहा कि अच्छा १० मिनट मेडीटेट कर लो.....दो मिनट के बाद ही उठ गया ..कहने लगा है कि पापा, इस से तो मेरा सिर और दुखने लग गया है..

चलिए आप तो इसे सुनिए...