बुधवार, 2 जनवरी 2008

क्या आप बाज़ार जूस पीने जा रहे हैं ?- इसे भी पढ़िए !!

दोस्तो, कुछ न कुछ बात हम डाक्टरों की जिंदगी में रोज़ाना ऐसी घट जाती है कि वह हमें अपनी कलम उठाने के लिए उकसा ही देती है। वैसे तो कईं बार ही ऐसा हो चुका है कि लेकिन आज भी सुबह ऐसा ही हुया---एक मरीज जिसमें खून की बहुत कमी थी, मैं उसे इस के इलाज के बारे में बता रहा था, जैसे ही मैं उसे खाने-पीने में बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में बताने लगा तो उस ने झट से कहा कि मैं तो बस रोज़ अनार का जूस पी लिया करूंगा। फिर उस को यह भी बताना पड़ा कि उस अकेले अनार के जूस के साथ-साथ उसे और भी क्या क्या खाना है....क्योंकि बाज़ार में बिकते हुए अनार के जूस के ऊपर कैसे भरोसा कर लूं.....मौसंबी एवं संतरे का जूस तो बाज़ार में ढंग से लोगों को मिलता नहीं, अनार के जूस का सपना देखना तो भई मुझे बहुत बड़ी बात लगती है।
दोस्तो, आप कभी जूस की दुकान को ध्यान से देखिए, उस ने जूस निकालने की सारी प्रक्रिया आप की नज़रों से दूर ही रखी होती है। कारण यह है कि उस ने उस गिलास में बर्फ के साथ ही साथ, चीनी की चासनी, थोडा़ बहुत रंग भी डालना होता है और यह सब कुछ जितना आप की नज़रों से दूर रहेगा, उतनी ही उसको आज़ादी रहेगी। मैं भी अकसर बाजार में मिलते जूस का रंग देख कर बड़ा हैरान सा हो जाया करता था ---फिर किसी ने इस पर प्रकाश डाल ही दिया कि कुछ दुकानदार इस में रंग मिला देते हैं--नहीं तो जूस में 10अनार के दानों का जूस मिला होने से भला जूस कैसे एक दम लाल दिख सकता है। दोस्तो, अब बारी है चासनी की, अगर हम ने बाजारी जूस के साथ साथ इतनी चीनी ही खानी है तो क्या फायदा। अब , रही बात बर्फ की...तो साहब आप लोग बाज़ारी बर्फ के कारनामे तो जानते ही हैं, लेकिन इस जूस वाले का मुनाफा बर्फ की मात्रा पर भी निर्भर करता है। तो फिर क्या करें...आप यही सोच रहे हैं न..क्या अब जूस पीना भी छोड़ दें....जरूर पीजिए, लेकिन इन बातों की तरफ ध्यान भी जरूर दीजिए.....वैसे अगर आप स्वस्थ हैं तो आप किसी फळ को अगर खाते हैं तो उस से हमें उस का जूस तो मिलता ही है, साथ ही साथ उस में मौजूद रेशे भी हमारे शरीर में जाते हैं,और इस के इलावा कुछ ऐसे अद्भुत तत्व भी हमें इन फलों को खाने से मिलते हैं जिन को अभी तक हम डाक्टर लोग भी समझ नहीं पाए हैं। हां, गाजर वगैरा का जूस ठीक है, क्योंकि आदमी वैसे कच्ची गाजरें कितनी खा सकता है। हां, अगर कोई बीमार चल रहा है तो उस के लिए तो जूस ही उत्तम है और अगर वह भी साथ साथ फलों को भी खाना चालू रखे तो बढ़िया है।
जूस का क्या है....कहने को तो बंबई के स्टेशनों के बाहर 2 रूपये में बिकने वाला संतरे का जूस भी जूस ही है---जिस में केवल संतरी रंग एवं खटाई का ही प्रयोग होता है। जितने बड़े बड़े टबों में वे ये जूस बेच रहे होते हैं अगर वे संतरे लेकर उस का जूस निकालना शुरू करें तो शायद एक पूरी घोड़ा-गाडी़ (संतरों से लदी हुई ) भी कम ही होगी।
आप क्या सोचने लग गए ??

क्या आप बाज़ार जूस पीने जा रहे हैं ?- इसे भी पढ़िए !!


दोस्तो, कुछ न कुछ बात हम डाक्टरों की जिंदगी में रोज़ाना ऐसी घट जाती है कि वह हमें अपनी कलम उठाने के लिए उकसा ही देती है। वैसे तो कईं बार ही ऐसा हो चुका है कि लेकिन आज भी सुबह ऐसा ही हुया---एक मरीज जिसमें खून की बहुत कमी थी, मैं उसे इस के इलाज के बारे में बता रहा था, जैसे ही मैं उसे खाने-पीने में बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में बताने लगा तो उस ने झट से कहा कि मैं तो बस रोज़ अनार का जूस पी लिया करूंगा। फिर उस को यह भी बताना पड़ा कि उस अकेले अनार के जूस के साथ-साथ उसे और भी क्या क्या खाना है....क्योंकि बाज़ार में बिकते हुए अनार के जूस के ऊपर कैसे भरोसा कर लूं.....मौसंबी एवं संतरे का जूस तो बाज़ार में ढंग से लोगों को मिलता नहीं, अनार के जूस का सपना देखना तो भई मुझे बहुत बड़ी बात लगती है।
दोस्तो, आप कभी जूस की दुकान को ध्यान से देखिए, उस ने जूस निकालने की सारी प्रक्रिया आप की नज़रों से दूर ही रखी होती है। कारण यह है कि उस ने उस गिलास में बर्फ के साथ ही साथ, चीनी की चासनी, थोडा़ बहुत रंग भी डालना होता है और यह सब कुछ जितना आप की नज़रों से दूर रहेगा, उतनी ही उसको आज़ादी रहेगी। मैं भी अकसर बाजार में मिलते जूस का रंग देख कर बड़ा हैरान सा हो जाया करता था ---फिर किसी ने इस पर प्रकाश डाल ही दिया कि कुछ दुकानदार इस में रंग मिला देते हैं--नहीं तो जूस में 10अनार के दानों का जूस मिला होने से भला जूस कैसे एक दम लाल दिख सकता है। दोस्तो, अब बारी है चासनी की, अगर हम ने बाजारी जूस के साथ साथ इतनी चीनी ही खानी है तो क्या फायदा। अब , रही बात बर्फ की...तो साहब आप लोग बाज़ारी बर्फ के कारनामे तो जानते ही हैं, लेकिन इस जूस वाले का मुनाफा बर्फ की मात्रा पर भी निर्भर करता है। तो फिर क्या करें...आप यही सोच रहे हैं न..क्या अब जूस पीना भी छोड़ दें....जरूर पीजिए, लेकिन इन बातों की तरफ ध्यान भी जरूर दीजिए.....वैसे अगर आप स्वस्थ हैं तो आप किसी फळ को अगर खाते हैं तो उस से हमें उस का जूस तो मिलता ही है, साथ ही साथ उस में मौजूद रेशे भी हमारे शरीर में जाते हैं,और इस के इलावा कुछ ऐसे अद्भुत तत्व भी हमें इन फलों को खाने से मिलते हैं जिन को अभी तक हम डाक्टर लोग भी समझ नहीं पाए हैं। हां, गाजर वगैरा का जूस ठीक है, क्योंकि आदमी वैसे कच्ची गाजरें कितनी खा सकता है। हां, अगर कोई बीमार चल रहा है तो उस के लिए तो जूस ही उत्तम है और अगर वह भी साथ साथ फलों को भी खाना चालू रखे तो बढ़िया है।
जूस का क्या है....कहने को तो बंबई के स्टेशनों के बाहर 2 रूपये में बिकने वाला संतरे का जूस भी जूस ही है---जिस में केवल संतरी रंग एवं खटाई का ही प्रयोग होता है। जितने बड़े बड़े टबों में वे ये जूस बेच रहे होते हैं अगर वे संतरे लेकर उस का जूस निकालना शुरू करें तो शायद एक पूरी घोड़ा-गाडी़ (संतरों से लदी हुई ) भी कम ही होगी।
आप क्या सोचने लग गए ??

1 comments:

शास्त्री जे सी फिलिप् said...

प्रिय डॉक्टर इस चिट्ठे के लिये एवं इस लेख के लिये शत शत आभार. लिखते रहें बहुत लोगों को फायदा होगा.

नो, नो, किड्स.......नो हिंदी, नो पंजाबी, ओनली इंगलिस, डियर गोलू

दोस्तो, आधी बात तो आप ऊपर लिखे शीर्षक से ही समझ चुके हैं---जी हां, उन लोगों की बात जो बच्चों के नाम तो हिंदी की डिक्शनरी देख-देख कर रखते हैं, और हां, कईं बार तो नाम भी ऐसे कि उन्हें हिंदी अंदाज़ में ही कहने से आनंद मिलता है। लेकन जैसे ही वह बच्चा होश संभालता है उसे उस की राष्ट्र-भाषा से तो अलग करने की कोशिश की जाती है...लेकिन अफसोस तो इस बात का है, मेरे दोस्तो, कि उसे उस की मातृ-भाषा से भी तोड़ने की कोशिश की जाती है। जिन बच्चों को उस की माटी की खुशबू से ही अलग कर दिया जाए----दोस्तो, वह आग चल कर गुलाब बन भी गया, तो खुशबू कहां से लाएगा। बिल्कुल कागजी, बनावटी फूल की तरह ही बन कर रहेगा। दोस्तो, हम लोगों ने इंगलिश तो सारी उम्र सीखनी है, उस भाषा में कईं काम करने होते हैं, लेकिन घर -- मां-बाप, भाई-बहन बच्चे जब अपनी ही भाषा में बात करते हैं तो पता है न कितना मज़ा आता है, कितना खुलापन झलकता है। क्यों कि किसी भी व्याकरण का ध्यान रखने की जरूरत ही नहीं होती। मैंने भी ऐसे बहुत से मध्यमवर्गीय मां-बाप को देखा है जो इस बात का बेहद गर्व महसूस करते हैं कि हमारे पिंचू के स्कूल में तो जैसे ही हिंदी बोलो, दस रूपये का फाइन ठुक जाता है, इसलिए तो हम सब घर में भी इंगलिश बोलना चाहते हैं, लेकिन इस के दादा-दादी का क्या करें---वे गांव के हैं न, बस वही प्राब्लम है। जीहां, सब से बड़ी प्राबल्म हो आप ही हो, आप भी गांव के ही हो, लेकिन बड़े शहर ने थोड़ी एक्टिंग करनी सिखा दी है। बस, इस से ज्यादा असलियत कुछ और नहीं।...
तो क्या, बच्चों को इंगलिश से दूर रखें। दोस्तो, ऐसा मैंने कब कहा है ??-- इंगलिश तो एक इंटरनैशनल भाषा है, उस पर पकड़ एकदम सरिये जैसी मजबूत होनी चाहिए। हम उसे काम-काज में इस्तेमाल करें....टैक्नीकल विषयों से संबंधित जानकारी के प्रसार प्रचार में इस्तेमाल करे.......बिना वजह अपने से कम पढ़े लिखे बंदे को या कम भाग्यवान बंदे के ऊपर अपनी अंग्रजी की धाक जमा कर आखिर हम क्या सिद्ध कर लेंगे ? कुछ नहीं। और जहां तक छोटे बच्चों की बात है, उन्हें हम अपने देश की ,अपने प्रदेश की , अपने गांव की, अपनी चौपाल की मीठी बोली रूपी मिट्रटी में पनपने का मौका तो दें..........इस पौधे को पल्लवित-पुष्पित होने की सही खुराक तो वहीं से मिलनी है। एक बार अगर इस पौधे की बस जड़ें मजबूत होने दीजिए--फिर देखिए, आप को यह एक सच्चा अंतराष्ट्रीय मानस बन कर दिखायेगा-----जात-पात, धर्म,नस्ल के भेदों से कोसों दूर-----फिर चाहे आप उस से दुनिया की कोई भी भाषा बुलवा लीजिएगा।

शादी से पहले आखिर एचआईव्ही टैस्टिंग क्यों नहीं ??-- प्लीज़, सोचिए !!

दोस्तो, पिछले काफी अरसे से यह विचार परेशान किए जा रहा है कि आखिर शादी से पहले कब हम लोग एचआईव्ही टैस्टिंग के बारे में सोचने लगेंगे। दोस्तो, मुझे खुद नहीं पता जो मैं कह रहा हूं यह कितना प्रैक्टीकल है, लेकिन दोस्तो यह बात मेरी दिल की गहराईयों से निकलती रहती है कि शादी से पहले लड़के एवं लड़की का एच.आई.व्ही टैस्ट तो होना ही चाहिए। दोस्तो, इस बात से तो आप भी सहमत हैं न कि एड्स जैसी भयंकर बीमारी ने विकराल रूप धारण किया हुया है। ऐसे में हम लोगों की इस के बारे में टैस्टिंग की झिझक आखिर कब जाएगी, दोस्तो। नये साल के संबंध में कुछ लोगों के नए-नए सैक्सुअल एडवेंचरस की बातें आप और हम मीडिया में देखते-सुनते रहते हैं। लेकिन इन संबंधों के संभावित खौफनाक नतीजों की चर्चा क्यों नहीं होती???--वैसे एक बात यह भी है न कि इस संबंध में हमारे अपने ही देश में अपने ही लोगों के साथ चर्चा छेड़ने के लिए कोई फिरंगी तो आने से रहा--- यह चर्चा तो हम सब को देर-सवेर छेड़नी ही है, तो क्यों न अभी से छेड़ ली जाए। बाहर के देशों वाले तो दोस्तो इन सब एडवेंचरस को पहले से भुगतने के आदि से जान पड़ते हैं--- मुझे कईं बार लगता है कि हमारे सीधे-सादे लोगों को भी यह रास्ता दिखाने में उन के मीडिया की अच्छी खासी भूमिका रही है। तो फिर करें क्या ??
जी हां, मैं अपनी बात पर ही आ रहा हूं , हम क्यों शादी से पहले एचआईव्ही टैस्ट जरूरी नहीं कर देते---- नहीं, नहीं, बिल्कुल नहीं.....कृपया इसे सरकारी तौर पर अनिवार्य करने की बात मैं बिल्कुल नहीं कर रहा हूं, क्योंकि फिर तो ड्राईविंग लाइसेंस लेने की तरह यह भी इतना आसान हो जाएगा कि कोई भी दलाल यह बिना किसी टैस्ट के ओके रिपोर्ट के साथ दिला दिया करेगा। काश , हमारे समाज में ही इतनी जागरूकता सी आ जाए कि अनपढ़ लोग भी इस संबंध में बातें करनें लगें.......प्लीजृ आमीन कह दीजिए। मुझे तसल्ली हो जायेगी।
दोस्तो, ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं कि आज कल के युवा कुछ पाश्चात्य प्रभाव के कारण ज्यादा उन्मु्क्त से होते जा रहे हैं, लेकिन इस संबंध में हम उन की कितनी लगाम कस सकते हैं,मैं नहीं जानता। लेकिन हम इतना तो कर ही सकते हैं कि विवाह से पूर्व इस टैस्टिंग के द्वारा एक बिल्कुल भोली भाली अल्हड़ सी गुड़िया की अथवा एक सीधे-सादे नौजवान की जिंदगी ही बचा लें। दोस्तो, बात यह बहुत गहरी है,पता नहीं मैंने भावावेश में कैसे लिख दी है, पता नहीं आप सब का क्या रिएक्शन होगा। लेकिन मैंने बीज डालने का अपना काम कर दिया है। और वह भी उस समाज में,दोस्तो, जहां पर अभी तक यौन-शिक्षा के ऊपर ही सहमति नहीं बन पा रही है..........कारण??---कहीं, यह हमारे बच्चों को गंदा न कर दे। ऐसे विचार रखने वालों से क्या आप को घिन्न नहीं आती ??---भई, मुझे तो बहुत ज्यादा आ रही है, तभी तो बेटे को आवाज़ लगा कर नाक ढंकने के लिए एक बड़ा रूमाल (रूमाल से क्या बनेगा, तौलिया ही मंगवा लेता हूं ) मंगवा रहा हूं।
Very Good morning, friends!!