शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

धोना या पोंछना ? - हिंदोस्तानी ठीक ठाक कर लेते हैं...

स्वच्छता अभियान...टायलेट एक प्रेम कथा फिल्म ही बन गई... दरवाज़ा बंद करो अभियान...हर घर में टायलेट बनाएं...पिछले तीन साल से ऐसे बहुत से अभियान चल रहे हैं..अच्छी बात है ..



बड़ा अहम् मुद्दा है जिस तरफ़ लोगों का ध्यान अब जा रहा है...पहले कहां लोग ध्यान करते थे कि स्कूलों में टॉयलेट की सुविधा है भी कि नहीं! विषय तो काफ़ी बडा़ है यह कि हिंदोस्तानी टाइप की नीचे बैठ कर हल्का होने वाले टायलेट ठीक हैं या वेस्टर्न तरह के टायलेट (वेस्टर्न कमोड- WC)

लेकिन हल्का हो जाने के बाद अपनी पर्सनल साफ़-सफ़ाई की बात अकसर कम होती दिखी है ... आज के पेपर में ऐसी एक खबर दिखी तो सोचा कि इस के बारे में थोडा़ ब्लॉग पर लिखा जाए..

आज से १५ साल पहले की बात है ...मैं ४-५ साल के बेटे की पीटीए मीटिंग के लिए गया हुआ था .. एक बच्चे की मां टीचर को कह रही थीं कि उस के बेटे को टॉयलेट में जेट इस्तेमाल करने की आदत है ...इसलिए स्कूल में उसे कईं बार बड़ी परेशानी होती है ...

मुझे उस दिन बड़ी हैरानी हुई थी..कि कैसे कैसे मुद्दे पीटीए मीटिंग में उठ जाते हैं..

मुझे याद नहीं है कि मैंने कहां पढ़ा था कि ये जो जेट हैं इन से भी एनल-फिशर जैसी तकलीफ़ें होने का अंदेशा बना रहता है ...
अब तो कईं तरह के इंतजाम हो गये हैं... जेट भी, शॉवर जैसा उपकरण भी ....और रेल में लोटे की सुविधा अभी भी है ...
एक वाकया याद आ गया ...एक रेलयात्री ने शिकायत भेजी मंत्रालय को कि रेल के टायलेट में रखे लोटे को जिस जंजीर से बांधा गया है वह छोटी होती है जिस से दिक्कत हो जाती है। रेलमंत्रालय से जवाब आया कि लोटा बंधा हुआ है, आप तो नहीं!!

एक किस्सा और याद आ गया ...एक ऐतिहासिक चिट्ठी है .. जिस के बाद रेलों ने डिब्बों में टॉयलेट बनाने शुरू कर दिये थे...आप भी पढ़िए उस चिट्ठी को ...


(इस लिंक पर क्लिक कर के आज की टाइम्स ऑफ इंडिया की यह रिपोर्ट भी ज़रूर देखिए) 

हां, तो इस रिपोर्ट की शुरूआत में ही बताया गया था कि टॉयलेट पेपर से हम अपनी सफ़ाई ठीक से नहीं कर पाते जिस से कुछ सेहत की समस्याएं हो सकती हैं....मैं इस से पूर्णतया सहमत हूं...

हिंदोस्तानियों ने तो हमेशा धोने में ही विश्वास रखा है जब कि जापान, इटली और ग्रीस जैसे देशों में लोग अाम तौर पर बिडेट्स (bidets) इस्तेमाल करते हैं... ब्रिटेन, यूएसए और आस्ट्रेलिया में लोग अाम तौर पर टॉयलेट पेपर से ही काम चला लेते हैं....

यह सब मेरा ज्ञान नहीं है ...मैं तो भई हिंदोस्तान की सरहद के आगे कभी नहीं गया...ऐसे में मुझे इन देशों के तौर-तरीकों के बारे में कुछ पता नहीं है...बस जो टाइम्स आफ इंडिया में लिखा है वही लिख रहा हूं....

डाक्टरों ने अब सचेत करना शुरू कर दिया है कि टॉयलेट पेपर से केवल पोंछ देने से पूरी तरह से आप साफ़ नहीं कर पाते हो और टॉयलेट पेपर के ज़्यादा इस्तेमाल से मतलब कि जोर-जोर से घिसने के कारण एनल-फिशल (Anal fissure)  और मूत्र-नली के संक्रमण (यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन-UTI) जैसी दिक्कतें आ सकती हैं....सही कह रहे हैं डाक्टर लोग ! 
डाक्टर सही कहते हैं कि टॉयलेट पेपर मल को मूव कर देता है रिमूव नहीं करता .. मतलब उसे इधर उधर सरका देता है बस... Toilet paper moves s***, but it doesn't remove it. 

इस के अलावा चंद बातें आप ऊपर दिये गये टाइम्स ऑफ इंडिया के लिंक पर जा कर पढ़ ही लेंगे ...

मुझे तो टॉयलेट पेपर से यह याद आ गया कि दो तीन साल पहले की बात है ...मीडिया में खूब उछला था यह किस्सा...एक बहुत बड़े रेल अधिकारी की बीवी ने एक जूनियर अधिकारी को बंगले पर टॉयलेट पेपर भिजवाने को कहना ...उसने मना कर दिया....फिर क्या था, उस का शायद तबादला-वादला हो गया था ....मीडिया को तो ऐसी खबरों की भूख रहती ही है....मुझे याद है मीडिया में यह ब्यान दे कर रेलवे के उस आला अधिकारी ने अपनी जान छुड़ाई कि हम लोग टॉयलेट पेपर इस्तेमाल करते ही नहीं....

हां, अपना अनाड़ीपन भी ज़ाहिर कर ही दूं...टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर दिखी तो मुझे उत्सुकता हुई कि यह Bidet क्या होता है, यह भी पता कर ही लिया जाए....मुझे ऐसे लग रहा था कि यह भी कोई हाई-टैक शॉवर, जेट-वेट ही होगा ..लेकिन यह तो कुछ ज़्यादा ही हाई-फाई गैजेट सा लगा ...मैंने Wikihow पर सर्च किया तो जो रिजल्ट आया उस का लिंक यहां लगा रहा हूं आप भी देख लीजिएगा....क्या पता कभी काम ही आ जाए!

बिडेट (Bidet) किस चिड़िया का नाम है और इस का इस्तेमाल कैसे करें (इस लिंक पर आप क्लिक करें इसे पढ़ने के लिए)  जो मैं समझ पाया हूं वह यह है कि वेस्टर्न कमोड के साथ ही एक और उपकरण जिस पर बैठ कर स्वयं ही (Automatic) साफ़-सफ़ाई हो जाती है ... एक बटन पर ड्राई लिखा हुआ था, मैं हंसी यह सोच कर रोक न पाया कि यह तो कपड़े धोने वाली ऑटोमैटिक मशीन से भी आधुनिक मशीन है!! हर जगह पर रहने वाले लोगों के अपने तौर-तरीके हैं...कोई मज़ाक नहीं है किसी का, न ही किसी की खिल्ली उड़ाना मंशा ही है!