सोमवार, 22 सितंबर 2014

ज़हरखुरानी से भी बचना होगा...

सुनने में आया है कि अब तो ज़हरखुरानी की घटनाएं स्प्रे से भी होने लगी हैं......बहुत चिंताजनक बात है। पहले तो सफर के दौरान बिस्कुट, खाने या मिठाई में कुछ मिला कर ज़हरखुरानी की घटनाएं की जाती थीं लेकिन यह स्प्रे का अब नया लफड़ा शुरू हो गया लगता है। लोग मास्टर माईंड से हो गये हैं....ऐसे ही थोड़ा कहा जा रहा है कि अब सपेरे ने सांपों को पिटारे में यह कह कर बंद कर दिया है कि अब इंसान को काटने के लिए इंसान ही काफ़ी हैं।

अब रेलवे भी इस तरह की ज़हरखुरानी के बारे में यात्रियों को सचते करने के लिए एक अभियान चलाएगी।

अभी मैं जब पोस्ट लिखने लगा तो मुझे ध्यान आया कि रेल मंत्रालय ने एक वीडियो भी तो जारी किया था ...जिस पर मैंने एक टिप्पणी भी दी थी......पता नहीं उस लंबी चौड़ी टिप्पणी को वहां तो किसी ने देखा या नहीं, आप इसे यहां ज़रूर पढ़ सकते हैं........पहले तो वह वीडियो ही देखिए... 


संदेश अच्छा लगा लेकिन यह बहुत ही संक्षिप्त सा लगा। बात समझ में आ जाती है कि किस तरह से अपटुडेट लोग भी इस तरह के धंधों में संलिप्त होते हैं। 
देश में कुछ जगहें विशेष तौर पर कुख्यात हैं जहां पर इस तरह की ज़हरखुरानी की घटनाएं बहुत आम हैं। उदाहरण के तौर पर मैं हरियाणा के अंबाला का नाम जानता हूं। यहां पर अप्रवासी श्रमिक या फिर फौजी जो अपने घरों की तरफ़ लौट रहे होते हैं तो उन की चाय, काफ़ी आदि में भी कुछ बेहोशी का कुछ मिला कर उन से लूटपाट कर ली जाती है।  
मुझे कईं बार बहुत हैरानगी इसलिए भी होती है कि किसी दूसरे की तो बात मान भी ली जाए कि वे किसी की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गए... लेकिन फौजी भाई जो देश के दुश्मनों के दांत खट्टे किए रहते हैं अपने ही लोगों के अपनेपन के बहकावे में आ जाते हैं।  
एक ध्यान आ रहा है कि किस तरह से ये शातिर लोग विभिन्न हथकंडे अपनाते हैं ..दूषित बिस्कुट, चाय को देते समय अपनी उंगली को चाय में डुबो देना जिस पर पहले ही से कुछ लगा रहता है, यह सब मैंने सुना है और अकसर मीडिया मेें भी देखते सुनते ही रहते हैं।  इस तरह के प्रामाणिक हथकंड़ों से भी जनता को आगाह किया जाना चाहिए। बाकी सुझाव बाद में कभी भेजेंगे...
मुझे अच्छे से याद है कि कुछ रेल स्टेशनों पर या यहां तक की गाडि़यों में जनता को सचेत करने के लिए नोटिस भी चसपा किये जाते हैं...........अंबाला छावनी स्टेशन पर तो मैंने स्वयं देखा है कि गाड़ी रूकने के बाद आरपीएफ के जवान इस तरह की ज़हरखुरानी से आगाह करने वाली एनाउंसमैंट्स प्लेटफार्मों पर कर रहे होते हैं।  
अब सोचने की बात है कि अब सरकार इस से बढ़ कर क्या करें, थोड़ी जिम्मेवारी तो पब्लिक की भी बनती है कि नहीं।
बहरहाल, आज रेल विभाग का यू-ट्यूब चैनल देख कर अच्छा लग रहा है कि देश की जनता तक जनोपयोगी संदेश पहुंचाने के लिेए इसे कितने कारगर ढंग से इस्तेमाल किया जाना प्रारंभ हुआ है।  
शुभकामनाएं भविष्य के लिए भी.........यह जनमानस के कल्याण का काम यूं ही चलता रहे। आमीन। 

मुंह से बोतल खोलना मर्दानगी की निशानी तो नहीं लेकिन......

आज सुबह यह बंदा आया था....कि एक दांत में दस दिनों से असहाय दर्द है.....तुरंत कहने लगा कि चाउमीन बच्चे खाने लगे तो पास में रखी सॉस की बोतल को जल्दी जल्दी में दांतों से खोलने के चक्कर में दांत पर दबाव पड़ा और बस दर्द शुरू हो गया।

मैं उस की बात से ही समझ गया था कि लफड़ा क्या है, बाद में मुंह का चैक-अप करना तो बस एक फार्मेलिटि सी ही लग रही थी। दस दिन से इसे दांत में भयंकर दर्द है और पहले तो सूजन भी आ गई थी, अब सूजन तो नहीं है लेकिन कह रहा था कि खाने का एक कोर भी उस दांत के नीचे चले जाने से जान निकल जाती है, बहुत ज़्यादा ठंडा लगने लग गया है, यहां तक कि हवा भी लगती है तो दांत में दर्द होने लगता है।

जैसा कि इस तरह के पंगे लेने से अकसर होता है, इस का दांत क्रैक हो गया है......क्रैक होने की एक लाइन दांत दिख रही है, शायद आप इस तस्वीर में देख नहीं पा रहे होंगे, नीचे की तस्वीर में जिस जगह पर यह औज़ार टिका हुआ है, वह क्रैक लाइन ही है।

अकसर इस तरह के दांत कुछ ही दिनों में चटक जाते हैं.....यह दांत भी कुछ दिनों में ही ..या फिर दो एक हफ़्ते में ही अंदर से टूट जायेगा। और इस का कोई इलाज नही होता....सारा दांत तो नहीं टूटेगा.....लेकिन एक हिस्सा अवश्य अलग हो जायेगा......बाद में बचे हुए भाग की रिपेयर हो जाती है।

अब बात यह उठती है कि क्या इस क्रैक दांत के क्रैक हिस्से को अभी ही क्यों न अलग कर दिया जाए। मैं ऐसा करना ठीक नहीं समझता क्योंकि दांत क्रैक होते हुए भी मन में यही सोचता है कि यह क्रैक तो ठीक हो ही जाएगा.....ऐसे में अगर दांत के एक हिस्से को अलग कर भी दिया जाए तो मरीज़ को हमेशा यही लगता है कि यह बस सकता है, यह ठीक हो सकता था। इसलिए थोड़े दिन का इंतज़ार करना ठीक रहता है.......जैसे ही दांत का चटका हुआ हिस्सा बिल्कुल पूरी तरह से हिलने लगेगा तो मरीज़ इसे निकलवाने के लिए और पूरे इलाज करवाने के लिए तैयार होता है।

इस तरह के दांत के चटकने के केस अकसर आते ही रहते हैं......बहुत से केस तो इस तरह के ही होते हैं जिसमें किसी ने कोल्ड-ड्रिंक या कोई भी बोतल को दांत से खोलने की कोशिश की, या फिर खाना खाते खाते अचानक दांत के नीचे कोई कंकड़ आ जाए तो भी दांत का ऐसा हाल हो सकता है.....या फिर जो लोग सुपारी चबाने के शौकीन होते हैं, उन में भी कईं बार सख्त किस्म की सुपारी को चबाने से ऐसी आफ़त हो जाती है।

बेहतर यही है कि हम इस तरह की आदतें न ही डालें..... कब यह सब परेशानी हो जाए कोई कह नहीं सकता, यही बंदा जो मेरे पास आया था जिस के दांतों की आप तस्वीर देख रहे हैं, वह बता रहा था कि वैसे तो वह बीयर की बोतल भी दांतों से ही खोल लेता है लेकिन सॉस की बोतल पर ज़रूर कुछ मजबूर सा ढक्कन फिक्स हुआ रहा होगा। मैं सोच रहा था कि जब तुमने पहली बार ही ढक्कन को इस तरह के दांतों से खोला होगा, उसी दिन ही तुम्हें कोई अच्छी नसीहत दे देता तो तुम्हारा अच्छा भला दांत बच सकता था।

तो आपने इस पोस्ट से क्या सीख ली?........ मुझे पता है कि आप जवाब में कुछ नहीं कहेंगे, कोई बात नहीं।