शनिवार, 28 मई 2016

हमारी डबलरोटी....चल बैठ जा, बैठ गई..

वैसे तो मेरी पोस्ट के आखिर में ही हिंदी फिल्मी गीत बजते हैं..लेकिन जैसे निर्मल बाबा जी को कभी कभी कुछ बातों का ध्यान आने लगता है अचानक..मुझे भी इस गीत का ध्यान बार बार आये जा रहा है..क्यों आ रहा है, बताऊंगा बाद में..पहले आप सुन लीजिएगा...रेडवे पे खूब बजा करता था हमारे बचपन के जमाने में...

कैसा लगा ...देवानंद हेमा मालिनी को हिप्नोटाइज़ करने के चक्कर में है ...चल बैठ जा, बैठ गई....भूल जा ..भूल गई...मुझे तो पहले भी अच्छा लगता था यह बालीवुड गीत और अब तो और भी लगता है ...


अब क्यों  अच्छा लगता है?...क्योंकि अब मुझे लगता है कि हम लोग इस गाने से अपने आप को आईडैंटीफाई करने लगे हैं...

एक दिन अचानक अखबार के पहले पन्ने पर आता है ...एक नामचीन गैर सरकारी संस्था CSE ने जांच करी कि देश में विभिन्न ब्रेड के सैंपलों में कुछ कैंसर पैदा करने वाले कैमीकल पाये गये हैं...

इस संस्था की विश्वसनीयता पर कोई प्रश्न उठाया नहीं जा सकता...

उस रिपोर्ट में यह भी प्रश्न उठा कि हमारी डबलरोटी में इस तरह के कैमीकल आखिर इस्तेमाल करने की इजाजत ही क्यों है, कंपनियों वाले permissible limits से कईं गुणा ज़्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं, वह अलग बात है, लेकिन अभी तक ये कैमीकल इस देश में बैन ही क्यों नहीं कर दिये गये ...जब कि बहुत से देशों में ऐसा हो चुका है।

इस का सीधा सादा जवाब यही है कि हमें इन सब चीज़ों की कोई जल्दी नहीं होती.. हो जायेगा...टाइम तो लगता ही है ना हर काम में!

हां, तो जिस दिन अखबार में इन कैमीकल्स के बारे में आया ..शायद उस के एक दो दिन बाद ही केन्द्र सरकार ने इन दोनों कैमीकल्स को बैन कर दिया....उस के बाद अगले दिन FSSAI  Food safety and standards authority of India..ने ब्रेड कंपनियों को चेता दिया कि अब इन कैमीकल्स को ब्रेडों में इस्तेमाल मत करियो....

बस, हो गई हमारी डबलरोटी की समस्या का समाधान!...But is it really as easy as it sounds?...उसने यह किया, उसने यह कहा...प्राबल्म खत्म हमेशा के लिए।

लिखते लिखते मुझे ध्यान आ रहा है कि वैसे ऐसा क्या है कि कोल्ड-ड्रिंक्स में ही गड़बड़ का हमें कोई गैर सरकारी संस्था बताती है, नूडल में भी यही हुआ...और मिनरल वाटर में भी यही कुछ हुआ..... What is FSSAI doing, I wonder!

मुझे जो प्रश्न सता रहा है वह यह है कि क्या किसी चीज़ पर प्रतिबंध लगाने से उस वस्तु का इस्तेमाल बंद हो जाता है...मुझे तो नहीं लगता... कितनी चीज़ें, कितने फ्लेवर, सैंकड़ों हज़ारों फूड-एडिटिव्ज़ हैं, कितने घटिया किस्म के कलर्ज़ - नान फूड ग्रेड तक के ... सब कुछ धड़ल्ले से िबक रहे हैं, इस्तेमाल हो रहे हैं...हम यह सब अच्छे से जानते हैं...कुछ साल पहले अजिनोमोटो के बारे में बहुत कुछ कहा जा रहा था...हर नूडल की रेहडी पर वह खोमचे वाला उसी चीनी मसाले को धड़ाधड़ इस्तेमाल कर रहा होता है....

खाने पीने के मामलों में इस तरह की बात सामने आना एक बेहद संजीदा मुद्दा है ..पता ही नहीं यार सारा भारत कितने अरसे से इस तरह की कैंसर कैमीकल्स से युक्त ब्रेड को खाता रहा...बेहद दुर्भाग्यपूर्ण....बस कंपनी वाले क्या सच में अगले दिन से अच्छे बच्चे बन जाएंगे?....इस का निर्णय आप करिए और अपने खाने पीने के फैसले इन निर्णयों के आधार पर किया करिए...वरना तो ऊपर देवानंद और हेमा मालिनी के गाने वाली बात लगती है ...एक ने कह दिया कि हमारी ब्रेड में लफड़ा है, दूसरे दिन आदेश आ गया कि नहीं, ठीक है, सब कुछ ठीक है ...

दरअसल हमारी समस्याएं तब तक यूं की यूं बनी रहेंगी जब तक शिक्षा का स्तर नहीं बदलेगा...लोग आज वैसे तो सचेत हो रहे हैं..पिछले दो तीन दिनों में मैंने आठ दस लोगों को ऐसे ही टेस्ट किया ..कुछ बात चली थी...कि ब्रेड का क्या चल रहा है, पता है ना!.... मुझे बहुत खुशी हुई कि सभी मरीज़ों को इस खबर के बारे में सब कुछ पता था...एक महिला तो इतनी सचेत थी कि उसने बताया कि डाक्टर साहब, हम लोग तो १५-२० दिन में एक बार लाते थे, अब वह भी बंद कर देंगे।

सब से बढ़िया सिचुएशन वही होती है कि अपनी सेहत के निर्णय लोगों को अपने आप लेने दिए जाएं.... we really need to empower them!

मेरे विचार में ऐसा तो कभी होता नहीं किल  बैठ जा, बैठ गई ...भूल जा ..भूल गई...हिंदी फिल्मों में होता होगा..कंपनियां कैसे इन कैमीकल्स को अचानक इस्तेमाल करना छोड़ देंगी......कितनी टैस्टिंग कर लोगो, कितनी पुलिसिंग कर लोगो....हर गली के मोड़ पर तो CSE जैसी संस्था के कार्यकर्ता तैनात नहीं किये जा सकते..ध्यान में आ रहा है कि किसी कंपनी ने तो इस NGO की कार्यक्षमता पर ही प्रश्न लगा दिया है ...

Market forces are extremely powerful....मार्कीट शक्तियां बहुत ही ताकतवर हैं, कुछ भी किसी भी कीमत पर करवाने में सक्षम हैं, करवा सकती हैं, करवा भी लेती हैं....absolutely no doubt... पहले कह दिया नूडल नहीं खाओ..फिर फरमान आ गया, कोई बात नहीं, खा लो...

लेिकन मैं CSE जैसे संस्थान की बातें मानने के पक्ष में हूं......they dont have any obvious conflict of interest... इस तरह की संस्थाओं से हमारे खाद्य पदार्थों के अच्छे-बुरे के बारे में जो भी इशारे मिलें  उसे बिना किसी किंतु-परंतु के मानने में ही हमारी भलाई है ..वैसे भी डबल रोटी कौन सा पौष्टिक आहार है जो हम इसे छोड़ नहीं पा रहे हैं...Well, that's personal choice! After all, Your Health is in your hands! व्यक्तिगत तौर पर मेरी ब्रेड के प्रति नफ़रत और भी गहरा गई है... जी हां, personally speaking!!

बैठ जा, बैठ गई ...से मुझे इस बात का भी ध्यान आ रहा है कि पहले ब्रेड को फुलाने या नर्म रखने के लिए जो कैमीकल इस्तेमाल होते थे... अब क्या इसे कह दिया जायेगा कि फूलो नहीं, बैठ जायो, पिचकी रहो, सिमट जाओ....बात गले से नीचे नहीं उतर नहीं.....बहरहाल, जो भी निर्णय अपने खानपान के बारे में आपने लेना है, सोच समझ कर के लीजिएगा...

शब्बा खैर....रब राखा...  Good night.. take care! 😉

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