कल सुबह मैं वैशाली मैट्रो स्टेशन के बाहर अखबार खरीदने लगा ..दस रूपये दिए..उसने ये तंबाकू के पाउच भी रखे हुए थे..अब ये पेपर पैकिंग में आने लगे हैं..मैंने कहा कि बाकी के ये पाउच दे दो ..उसने मेरी तरफ़ गौर से देखा...
मैंने इन्हें खरीदा क्योंकि मुझे इतनी बड़ी बड़ी चेतावनी फोटो सहित देख कर अचानक याद आया कि सरकार की कुछ नीति में बदलाव हुआ है कि शायद पैकेट के ८५प्रतिशत हिस्से में अब इस तरह की भयानक तस्वीरें छपा करेंगी..
ठीक है ...बिल्कुल ठीक है ..मैं इन पैकेटों को देख कर यही सोच रहा था कि सरकार इस से ज़्यादा और क्या करे...फिर ध्यान आता है कि क्यों न करे....क्यों न इस का उत्पादन ही खत्म करवा दे...रही बात प्रतिबंध की, वह हमने देख लिया है, जगह जगह प्रतिबंधित है गुटखे आदि लेकिन धड़ल्ले से बिकते हैं.. धूम्रपान सरेआम लोग प्रतिबंधित स्थानों पर भी करते हैं...कितनी पर्चियां कटेंगीं ज़ुर्माने की, पहले पर्ची काटने वाला गुटखे थूकेगा तो ही सामने वाले को बीड़ी मारने के लिए ज़ुर्माना देने को कहेगा! ...लोग इतने दबंग पहले नहीं थे कि चिकित्सक के पास और वह भी दंत चिकित्सक के पास मुंह में मसाला-गुटखा दबाए पहुंच जाते हैं...
मैं भी गुटखे-मसाले-तंबाकू की जंग पिछले तीस सालों से लड़ रहा हूं...रेडियो, टीवी, मैगजीन, न्यूज़-पेपर...ऑनलाईन राईटिंग ...कुछ भी नहीं छोड़ा लेकिन फिर भी फ्रस्ट्रेशन ही होती है ...इतना व्यापक इस्तेमाल और हम लोग इतने कम...
मेरे पास एक कटिंग है ..यह १९९० की एक अखबार की है ...इसे देख कर मुझे लगा था कि इस पर काम किया जाना चाहिए..और किया भी ...अपने क्षमता से बढ़ कर किया शायद...सैंकड़ों लेख लिख डाले...किसी में भी किसी बात को बढ़ा चढ़ा कर नहीं लिखा...जो देखा वही लिखा...जो लिखने वाले दिन मुझे सच नज़र आया वही दर्ज किया...और फिल लिखने के बाद उस के साथ कुछ भी कांट-छांट नहीं की...
बस इतना इत्मीनान है कि जो भी लिखा है सच लिखा है, मैं पाठक के साथ झूठ बोलने को बहुत बड़ा द्रोह मानता हूं...जो मन में है, वही लिखा ...कुछ वर्षों बाद कुछ लेखों को पढ़ते समय एम्बेरेसमैंट भी हुई लेकिन उसे बदला नहीं...जैसा था, वैसा ही रखा पड़ा है।
हां, तो मैंने जब ये तंबाकू वाले पाउच इतनी भयंकर चेतावनियों वाले देखे तो मैं यही सोचता रहा कि यार, जो लोग इन्हें देख कर नहीं डरते, उन्हें डाक्टर कैसे डरा पाएंगे!
सरकारों से तो इस से आगे उम्मीद की नहीं जा सकती... और अब लगने लगा कि डाक्टरों के पास भी कहां इतना टाइम है कि हर बीड़ी-तंबाकू-गुटखे वाले के साथ बीस बीस मिनट तक मगजमारी करते फिरें... सच्चाई तो यह है कि बहुत बार यह संभव हो ही नहीं पाता ..बस इतना ही कह दिया जाता है कि ...छोड़ दो भई बीड़ी पीना, फेफड़ें खराब हो रहे हैं, दिल का रोग पनप रहा है.....लेकिन जो मैं समझा हूं लोग सुनते कम ही हैं, तब ही सुनते हैं जब कोई झटका लगता है..
मुझे तो इन पाउचों को देख कर कल से यही लग रहा है कि अब मुझे तंबाकू के बारे में ज़्यादा बातें करना बंद कर देना चाहिए...इन तस्वीरों के बावजूद भी जो यह सब लफड़ा कर रहा है वह अपने पैरों पर आप ही कुल्हाड़ी मार रहा है, उसे कौन रोक पाएगा! ..हां, कुछ कुछ केसों में िवशेषकर छोटी उम्र के बच्चों एवं युवाओं की तरफ़ ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत होती है ताकि वे इन सब घातक पदार्थों से दूर रह पाएं।
आज फिर इस विषय पर इसलिए लिखने का मन इसलिए हो आया कि दो दिन के बाद हम लोग विश्व तंबाकू निषेध दिवस मनाएंगे...मैंने सोचा दो दिन पहले ही कुछ शुरूआत तो करूं...
समझ में नहीं आता कि इस टॉपिक पर कितना लिखना होगा ताकि लोगों को इन चीज़ों से डर लगने लगा...अभी तक तो मुझे नहीं लगता कि ऐसा कुछ हुआ है... सब कुछ धड़ल्ले से खाया पिया जा रहा है...मेरे विभिन्न ब्लॉगों में सैंकड़ों लेख हैं ...हिंदी और इंगलिश में...इन की पैकिंग से लेकर ...इन की विनाशलीला को दिखाते।
लोग पीछे पड़े हुए हैं...किताबें छपवा....ईनाम के लिए भेज...मेरी ऐसी कोई तमन्ना नहीं है, ईनाम-वाम के जुगाड़ न ही पसंद हैं, न ही शौक है, न ही कभी इन के बारे में सोचा है...चुपचाप काम करने में आनंद है...सब जगह राजनीति घुसी हुई है...हम लोगों की ऐसी कोई प्रवृत्ति है नहीं...
सिनेरियो इतना निराशाजनक भी नहीं है, कभी कभी जब मेरी बातें सुन कर कोई बंदा अपनी जेब से बीड़ी का बंडल या तंबाकू का पाउच मेरी टेबल पर टिका देता है कि आज के बाद नहीं इस्तेमाल करूंगा ...तो बहुत खुशी होती है ..मेरी मेज़ की दराज़ में हर समय दो तीन बीड़ी के बंडल पड़े होते हैं...इन में से बहुत से लोग सच में छोड़ देते हैं...इन्हें मैं पंद्रह -पंद्रह दिन बाद पाठ को दोहराने के लिए बुला लिया करता हूं...और क्या करें यार!
कभी कभी कहीं से जब कोई फीडबैक आती है तो भी अच्छा लगता है ..बहुत से ऐसे संदेश आते हैं...एक इस समय याद आ रहा है...ओर्डिनेंस फैक्टरी के एक बहुत बड़े अफसर लिखते हैं कि हमारी फैक्टरी में यह पान, मसाले, गुटखे की बड़ी समस्या थी, हम लोगों ने तुम्हारे लेखों के प्रिंट आउट फोटो सहित प्रिंट करवा कर के फ्रेम करवा दिये हैं....बहुत फर्क पड़ा है ...वे अकसर इस बात को बहुत जगहों पर शेयर कर चुके हैं। अच्छा लगता है सुन कर।
बंद करता हूं ...it is never-ending discussion!
और हां, आप के मन में यह प्रश्न तो नहीं आ रहा कि यार, तूने इतने सारे तंबाकू के पाउच by the way खरीदे क्यों?.. मैंने इन की फोटो खींचने के लिये ही खरीदा था..और फोटो खींचते ही डस्टबिन में फैंक दिया है।
बीड़ी की बात याद आई...हर फिल्म में कोई भी किरदार सिगरेट जब भी सुलगाता है तो तुरंत चेतावनी आ जाती है कि धूम्रपान सेहत के लिए हानिकारक है ....लेकिन गुलजार साहब ने बीड़ी को आग लगे जिगर से जला कर दिखा दिया.... लेकिन कभी आपने इस गीत के दौरान कभी कोई चेतावनी देखी?
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