उस दिन उन के लिखे गीतों को कुछ कलाकार गा भी रहे थे...मुझे याद है मैं भी दूसरी या तीसरी कतार में था...कुछ बात हुई ...उत्तराखंड के राज्यपाल जनाब अज़ीज़ कुरैशी साहब ने एक कलाकार को आवाज़ दे कर कहा कि वह सुनाओ...शोखियों में घोला जाए, फूलों का शबाब...यह गीत भी इस महान कवि का ही लिखा हुआ है... a wonderful song indeed!
मुझे अच्छे से याद है ..किस तरह से वह राज्यपाल महोदय इस गीत को सुनते हुए झूम रहे थे...वैसे तो वह ही नहीं, सारा ऑडीटोरियम ही मंत्रमुग्ध सा बैठा हुआ था..
ये गीत भी इन्हीं के ही हैं...सुनिएगा..ऐ भाई ज़रा देख के चलो...और खिलते हैं गुल यहां...
मैं उस दिन पहली बार इस महान हस्ती से मिला था...ये बहुत लिटरेट हैं..पहले कहीं प्रोफैसर रह चुके हैं...बहुत सहज स्वभाव के हैं...मैंने उस दिन इन से बात की और इन से ऑटोग्राफ भी लिए...जब यह एक कविता कह रहे थे तो यह वीडियो क्लिप भी बनाई ...आप भी सुनिएगा..कितना बेहतरीन अंदाज़े-ब्यां है इन का...
उस के बाद भी इन को दो-तीन प्रोग्रामों में देखने का मौका मिला... हर बार बहुत ही बढ़िया अनुभव रहा..
इन के बारे में मैंने लिखने की सोच तो ली, लेकिन सूर्य को दिया तो क्या एक चिंगारी दिखाने जैसी बात भी नहीं है...इस हस्ती ने हमें सैंकड़ों बेहतरीन हिंदी फिल्म गीत दिए हैं...एक से बढ़ कर एक...जीवन की सभी संवेदनाओं से जुड़े हुए लगभग ...
अच्छा एक काम करिए...इंटरनेट पर इन के बहुत से इंटरव्यू तो हैं ही, इन के ऐसे वीडियो भी सैंकड़ों होंगे जिन में ये कवि सम्मेलनों में शिरकत करते नज़र आते हैं...मेरे लिए इतना सब कुछ समेटना इस छोटी सी पोस्ट में नामुमकिन है ... मैंने एक कार्यक्रम में इन की लिखी कुछ किताबें भी खरीदी थीं, कभी कभी ज़रूर पढ़ता हूं ... लाजवाब लेखन.
हां, यह पोस्ट अचानक कैसे?...दरअसल पिछले दिनों इन की तबीयत नासाज़ थी...ये अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के भी बहुत करीबी हैं, वे इन का भरपूर सम्मान करते हैं..मुलायम सिंह इन का पता लेने यहां अस्पताल में गये हुए थे...अब सेहतमंद हैं. अस्पताल से छुट्टी हो गई है..९२ साल के हैं और आज की अखबार में इन की एक खबर दिखी ...कहते हैं मैं १०० साल पूरे करूंगा.....जनाब, नीरज जी, आप जैसी विभूतियां करोड़ों दिलों पर राज करती हैं, इन सब की दुआओं में आप शामिल हैं, ईश्वर करे आप कम से कम १५० साल जी कर लोगों को अपने शब्दों के जादू से मंत्रमुग्ध करते रहें.....आमीन!!
इन की कुछ पंक्तियां ये भी हैं....
यह वहशी ज़माना है..
हर हाथ में पत्थर है..
कि बच जाए 'गर शीशा.
यह उस का मुकद्दर है...
अब सोच रहा हूं कहां लिखने बैठूं...अपनी डायरी से फोटो खींच कर ही यहां चस्पा किए दे रहा हूं....अगर ठीक से न पढ़ा जाए, तो इस पर क्लिक कर के आप अच्छे से पढ़ सकते हैं....मुझे भी लिखने में आलस आने लगा है ...बुढ़ापा घेरने लगा है ऐसा लगता है....
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