मैं ऐसे बहुत से लोगों से मिलता हूं जिन्हें लगता है कि अगर वे धूम्रपान नहीं कर रहे हैं, बीड़ी-सिगरेट को छू नहीं रहे हैं तो एक पुण्य का काम कर रहे हैं...फिर वे उसी वक्त यह कह देते हैं कि बस थोड़ा गुटखा, तंबाकू-चूना मुंह में रख लेते हैं...और उसे भी थूक देते हैं, अंदर नहीं लेते।
यही सब से बड़ी भ्रांति है तंबाकू-गुटखा चबाने वालों में.. लेकिन वास्तविकता यह है कि तंबाकू किसी भी रूप में कहर तो बरपाएगा ही। जो तंबाकू-गुटखा लोग मुंह में होठों या गाल के अंदर दबा कर रख लेते हैं और धीरे धीरे चूसते रहते हैं, इस माध्यम से भी तंबाकू में मौजूद निकोटीन एवं अन्य हानिकारक तत्व मुंह की झिल्ली के रास्ते (through oral mucous membrane)शरीर में निरंतर प्रवेश करते ही रहते हैं।
और शरीर में जो निकोटीन अंदर जाता है, वह चाहे किसी भी रूट से जाए, वह दिल, दिमाग एवं नाड़ियों की सेहत के लिए बराबर ही खतरनाक है। यह बात समझनी बेहद ज़रूरी है।
शायद ही शरीर का कोई अंग हो जो इस हत्यारे की मार से बच पाता हो। शरीर में पहुंच कर तो यह उत्पात मचाता ही है, शरीर के िजस रास्ते से यह बाहर निकलता है (एक्सक्रिशन - excretion) उन को भी अपनी चपेट में ले लेता है।
ज़ाहिर सी बात है कि तंबाकू शरीर के अंदर गया है तो इस के विषैले तत्व बाहर तो निकलेगें ही ही... और पेशाब के रास्ते से भी ये बाहर निकलते हैं। यह तो एक उदाहरण है... तंबाकू का बुरा प्रभाव शरीर के हर अंग पर होता ही है। मेरी नानी के दांतों में दर्द रहता था...किसी ने नसवार लगाने की सलाह दे दी.....नसवार (creamy snuff, पेस्ट जैसे रूप में मिलने वाला तंबाकू)....इस की उन्हें लत लग गई....नियमित इस्तेमाल करने लगीं....अचानक पेशाब में खून आने लगा..जांच होने पर पता चला कि मसाने (पेशाब की थैली - urinary bladder) का कैंसर हो गया है, आप्रेशन भी करवाया, बिजली (radiotherapy) भी लगवाई लेकिन कुछ ही महीनों में चल बसीं। पीजीआई के डाक्टरों ने बताया कि तंबाकू का कोई भी रूप इस तरह की बीमारियों भी पैदा कर देता है।
बस यह पोस्ट तो बस इसी बात को याद दिलाने के लिए ही थी कि तंबाकू किसी भी रूप में जानलेवा ही है........अब जान किस की जायेगी और किस की बच जाएगी, यह पहले से पता लगा पाना दुर्गम सा काम है.....वही बात है जैसे कोई कहे कि असुरक्षित संभोग करने वाले, बहुत से पार्टनर के साथ सेक्स करने वाले सभी लोगों को थोड़े ना एचआईव्ही संक्रमण हो जाता है, बहुत से बच भी जाते होंगे......ठीक है, शायद बच जाते होंगे कुछ.......लेकिन मुझे दुःख इस बात का होता है कि पता है कि तंबाकू ने अगर एक बार शरीर के किसी अंग में उत्पात मचा दिया तो फिर अकसर बहुत देर हो चुकी होती है....ऐसे में भला क्यों किसी लफड़े का ही इंतज़ार किया जाए।
यही बातें रोज़ाना पता नहीं कितनी बार ओपीडी में बैठ कर रिपीट की जाती हैं, लेकिन कोई सुनता है क्या?.... शायद, लेकिन तभी जब कोई न कोई लक्षण शरीर में दिखने लगते हैं।
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