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रविवार, 21 दिसंबर 2014

सिगरेट छोड़ने का एक प्राकृतिक उपाय

मुझे अभी अभी पता चला कि सिगरेट छुड़वाने के लिए यूरोप में एक प्राकृतिक कंपाउंड भी है जिस का नाम है साईटीसीन जो वहां पर उगने वाले एक गोल्डन-रेन नामक पौधे में पाए जाता है।

वैज्ञानिकों ने अध्ययन में यह पाया है कि इस का इस्तेमाल सिगरेट छुड़वाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाले निकोटीन पैच, गम आदि से भी ज़्यादा कारगर है....अगर इस तरह के इलाज के बारे में ज़्यादा जानकारी चाहिए तो आप इसे स्वयं इस लिंक पर जा कर पढ़ सकते हैं...... Cheap Natural Product May Help Smokers Quit. 

 मैंने भी इस अच्छे से पढ़ तो लिया...लेकिन जब पता चला कि यह नेचुरल कंपाउंड तो वहां योरूप में भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है तो फिर यहां तक कैसे पहुंच पाएगा, यही सोच कर मैंने इस के बारे में और जानकारी हासिल करना ज़रूरी न समझा....और अगर कहीं यहां आ भी पहुंचा तो कितना महंगा मिलेगा, कौन जाने। लेकिन एक बात तो है इस कंपाउंड का विवरण पढ़ कर अच्छा तो लगा कि ऐसा भी कोई कुदरती जुगाड़ है।

मेरे अनुभव कैसे रहे हैं.......मैंने तो दो-तीन दशकों में देखा है जिसने भी धूम्रपान छोड़ा है, अपनी विल-पावर के बलबूत ही छोड़ा, उन लोगों की इच्छाशक्ति ही इतनी प्रबल थी कि उन्होंने इस जानलेवा लत को लत मार दी।
वैसे मैंने कब किसी को देखा जिस ने निकोटीन च्यूईंग गम या फिर पैच आदि का इस्तेमाल कर के धूम्रपान छोडा हो, मुझे तो याद भी नहीं। मैंने कभी इस तरफ़ इतना ध्यान भी नहीं दिया....

ध्यान इसलिए नहीं दिया क्योंिक यहां पर रोना सिर्फ़ सिगरेट पीने वालों का ही तो नहीं है, बीड़ी, चिलम, हुक्का, ज़र्दा-पानमसाला, गुटखा, खैनी, तंबाकू वाले मंजन, तंबाकू वाले पान........सारा िदन इन्हीं के चक्कर में गायब हो जाता है कि सिगरेट वालों तक तो पहुंचने को मिलता ही नहीं....अब बीड़ी वाले को कहूं कि निकोटीन च्यूईंग गम चबाया कर, तो इस के परिणाम आप जानते ही हैं...इसलिए दस पंद्रह मिनट तक हर ऐसे आदमी में इन चीज़ों के प्रति नफ़रत पैदा करना ज़्यादा मुनासिब लगता है, वही करता हूं......बाकी इन का मुकद्दर, मानें ना मानें।

वैसे मैंने इस तरह के जानलेवा उत्पादों को लोगों को छोड़ते देखा है, जानना चाहेंगे कब........जब कोई गले के कैंसर का मरीज़ मिलता है तो अकसर बताता है पिछले दो महीने से तंबाकू बंद कर दिया है, मुंह के कैंसर का मरीज़ कहता है कि पिछले १५ दिनों से तंबाकू छुआ नहीं....मुझे गुस्से और रहम की बड़ी मिक्स सी फीलिंग आती है।

सीधी सीधी बात है.....चाहे चिकित्सक कितनी भी मीठी मीठी बातें कर लें.....मरीज़ का हौंसला रखने के लिए, उस के परिवारजनों का दिल रखने के लिए...गले के, फेफड़े और मुंह के कैंसर के मरीज़ के हश्र के बारे में क्या उसे पता नहीं होता.........मेरा तो कईं बार ऐसे मरीज़ की इस बात की तरफ़ गौर करने की भी इच्छा नहीं होती कि तूने क्या छोड़ दिया, क्या नहीं छोड़ा..........लेकिन नाटकीय अंदाज़ में कहना तो पड़ता है ...बहुत अच्छा किया।

मैंने तो हिंदोस्तान में तंबाकू छोड़ते लोग तभी देखे हैं जब एक ज़ोर का झटका लग जाए......चाहे तो दिल पर जब कोई आंच जा जाए और अचानक जान बच जाए, या फिर कोई भयंकर बीमारी लगने के बाद ही समझ ठिकाने आती है.....मुंह के कैंसर से पहले भी कुछ लोगों की होश ठिकाने तब आती है जब मुंह खुलना ही बंद हो जाता है और वे एक कौर तक मुंह में नहीं डाल पाते........मुंह के कैंसर की इस पूर्वावस्था (ओरल-सबम्यूकोसिस नामक बीमारी) का इलाज ही कितना पेचीदा, सिरदुखाऊ, महंगा है, इसकी आप कल्पना न ही करें तो बेहतर होगा। हर जगह यह हो भी नहीं पाता।

अब मुझे जगह जगह मुंह में गुटखे के पैकेट मुंह में उंडेलते लोगों से कोई विशेष सहानुभूति नहीं रही.......क्या करें, मानने का नाम ही नहीं लेते, जब पैकेट पर उसे बनाने वाली कंपनी ने ही ज़ाहिर कर दिया कि इस से कैंसर हो सकता है तो फिर इस से बड़ा क्या प्रूफ़ चाहिए भाई। अब यह किसे होगा किसे नहीं होगा, यह तो जुआ है, फैसला केवल आपका है कि आप क्या जिंदगी को एक जुअे की तरह दाव पर लगा दोगे?

मुझे मुन्नाभाई का वह गीत अकसर ध्यान में आ जाता है जब एक मृत्यु-शैया पर मरीज़ की फरमाईश पर डा मुन्नाभाई एक नाचने वाली का इंतज़ाम करता है........सीख ले, आंखों में आंख डाल, सीख ले, हर पल में जीना यार सीख ले.......
मरने से पहले जीना सीख ले...




सोमवार, 24 नवंबर 2014

मुंह में रखा गुटखा, तंबाकू कहां गायब हो जाता है?

मैं ऐसे बहुत से लोगों से मिलता हूं जिन्हें लगता है कि अगर वे धूम्रपान नहीं कर रहे हैं, बीड़ी-सिगरेट को छू नहीं रहे हैं तो एक पुण्य का काम कर रहे हैं...फिर वे उसी वक्त यह कह देते हैं कि बस थोड़ा गुटखा, तंबाकू-चूना मुंह में रख लेते हैं...और उसे भी थूक देते हैं, अंदर नहीं लेते।

यही सब से बड़ी भ्रांति है तंबाकू-गुटखा चबाने वालों में.. लेकिन वास्तविकता यह है कि तंबाकू किसी भी रूप में कहर तो बरपाएगा ही। जो तंबाकू-गुटखा लोग मुंह में होठों या गाल के अंदर दबा कर रख लेते हैं और धीरे धीरे चूसते रहते हैं, इस माध्यम से भी तंबाकू में मौजूद निकोटीन एवं अन्य हानिकारक तत्व मुंह की झिल्ली के रास्ते (through oral mucous membrane)शरीर में निरंतर प्रवेश करते ही रहते हैं। 

और शरीर में जो निकोटीन अंदर जाता है, वह चाहे किसी भी रूट से जाए, वह दिल, दिमाग एवं नाड़ियों की सेहत के लिए बराबर ही खतरनाक है। यह बात समझनी बेहद ज़रूरी है। 

शायद ही शरीर का कोई अंग हो जो इस हत्यारे की मार से बच पाता हो। शरीर में पहुंच कर तो यह उत्पात मचाता ही है, शरीर के िजस रास्ते से यह बाहर निकलता है (एक्सक्रिशन - excretion) उन को भी अपनी चपेट में ले लेता है। 

ज़ाहिर सी बात है कि तंबाकू शरीर के अंदर गया है तो इस के विषैले तत्व बाहर तो निकलेगें ही ही... और पेशाब के रास्ते से भी ये बाहर निकलते हैं। यह तो एक उदाहरण है... तंबाकू का बुरा प्रभाव शरीर के हर अंग पर होता ही है। मेरी नानी के दांतों में दर्द रहता था...किसी ने नसवार लगाने की सलाह दे दी.....नसवार (creamy snuff, पेस्ट जैसे रूप में मिलने वाला तंबाकू)....इस की उन्हें लत लग गई....नियमित इस्तेमाल करने लगीं....अचानक पेशाब में खून आने लगा..जांच होने पर पता चला कि मसाने (पेशाब की थैली - urinary bladder) का कैंसर हो गया है, आप्रेशन भी करवाया, बिजली (radiotherapy) भी लगवाई लेकिन कुछ ही महीनों में चल बसीं। पीजीआई के डाक्टरों ने बताया कि तंबाकू का कोई भी रूप इस तरह की बीमारियों भी पैदा कर देता है। 

बस यह पोस्ट तो बस इसी बात को याद दिलाने के लिए ही थी कि तंबाकू किसी भी रूप में जानलेवा ही है........अब जान किस की जायेगी और किस की बच जाएगी, यह पहले से पता लगा पाना दुर्गम सा काम है.....वही बात है जैसे कोई कहे कि असुरक्षित संभोग करने वाले, बहुत से पार्टनर के साथ सेक्स करने वाले सभी लोगों को थोड़े ना एचआईव्ही संक्रमण हो जाता है, बहुत से बच भी जाते होंगे......ठीक है, शायद बच जाते होंगे कुछ.......लेकिन मुझे दुःख इस बात का होता है कि पता है कि तंबाकू ने अगर एक बार शरीर के किसी अंग में उत्पात मचा दिया तो फिर अकसर बहुत देर हो चुकी होती है....ऐसे में भला क्यों किसी लफड़े का ही इंतज़ार किया जाए। 

यही बातें रोज़ाना पता नहीं कितनी बार ओपीडी में बैठ कर रिपीट की जाती हैं, लेकिन कोई सुनता है क्या?.... शायद, लेकिन तभी जब कोई न कोई लक्षण शरीर में दिखने लगते हैं।