रविवार, 7 जून 2009

जय हो ! ---बाबा रामदेव जी, तुसीं बहुत ग्रेट हो !

सुबह जब मैं नेट पर बैठ कर अपना टाइम बिता रहा होता हूं तो मेरी मां अपने कमरे में बाबा रामदेव का सम्पूर्ण कार्यक्रम देख रही होती हैं। और अकसर ऐसा बहुत बार होता है कि जब बाबा की एक-दो बातें मेरे कानों में पहुंच जाती हैं तो मैं नेट पर से उठ कर टीवी के सामने बैठ कर बाबा की बहुत बढ़िया बढ़िया बातें सुननी शुरू कर देता हूं। और मैं उन की सब बातों से सहमत हूं --- सहमत क्या हूं मैं भी अपने आप को उन का भक्त ही मानने लगा हूं। लेकिन कईं बार मेरी अंग्रेज़ी अकल अपनी टांग थोड़ी अड़ानी शुरू तो करती है लेकिन फिर मैं उसे समझा देता हूं कि ये बातें कहने वाला कोई आम इंसान नहीं है ---एक ऐसा देवता है जो कि सारे विश्व को सेहत का तोहफ़ा देने ही आया है।

आज मैं बैठा बैठा यही सोच रहा था कि क्या है इस महात्मा की बातों में कि इतने लोग इन की बातों को अपने जीवन में उतार कर अपने जीवन को पटड़ी पर ला रहे हैं। तो मुझे जो समझ आया वह यही है कि यह संत सेहत की बात करता है जब कि आज का आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान केवल एवं केवल बीमारी की ही बात करता है। यह देवता बात करता है कि कैसे घर में ही उगे बेल-बूटों से कोई अपने जीवन में खुशहाली-हरियाली ला सकता है। लेकिन माडर्न मैडीसन कहती है कि इस बीमारी से बचना है तो यह खा, उस से बचना है तो वह खा, कोलैस्ट्रोल कम करने के लिये यह कर --------यह मेरा बहुत स्ट्रांग ओपिनियन है कि इस अल्ट्रा-मार्डन सिस्टम में पुरानी (क्रानिक) बीमारियों का एक कारोबार सा ही हो रहा दिखता है। महंगे महंगे टैस्ट, और उस से भी कहीं महंगी दवाईयां और तरह तरह के आप्रेशन। इस में कोई संदेह नहीं कि आधुनिक चिकित्सा प्रणाली ने डायग्नोसिस( रोगों के निदान ) के क्षेत्र में अच्छी खासी तरक्की की है, एक्यूट बीमारियों ( अल्प अवधि रोगों ) में कईं बार आधुनिक चिकित्सा प्रणाली एक वरदान सिद्ध होती है और कईं बार किसी बीमारी का इलाज केवल आप्रेशन से ही संभव होता है।

अब इस पोस्ट को पढ़ के कोई यह कहे कि यार, टैस्ट महंगे हैं, इलाज महंगे हैं तो महंगे हैं, इस से तेरा पेट क्यों दर्द हो रहा है। मेरा पेट दर्द इसलिये होता है कि यह इतना महंगा और अकसर कंफ्यूज़ कर देने वाला सिस्टम हमारे देश की ज़्यादातर गरीब जनता के लिये लगता है उपर्युक्त नहीं है। बाबा रामदेव किसी भी बीमारी की जड़ को खोद कर बाहर फैंक निकालता है जब कि आज का आधुनिक सिस्टम अकसर लक्षण दबाने में ही लगा हुआ है। बाबा हॉलिस्टिक हैल्थ की ही बात करते हैं जब कि आज का अत्याधुनिक सिस्टम शरीर को अनगिनत हिस्सों में बांट कर उस को दुरूस्त करने की बातें करता है। सोचता हूं कि ऐसे में शरीर की विभिन्न प्रणालीयों का समन्व्य केवल सांकेतिक ही तो नहीं हो कर रह गया।

अगर यह सच नहीं है तो फिर क्यों लोगों का ब्लड-प्रैशर (उच्च रक्तचाप ) कंट्रोल क्यों नहीं हो रहा, क्यों लोग मधुमेह ( डायबिटीज़) की जटिलताओं से परेशान हैं। कारण वही जो मैं समझ पाया हूं कि लोग अपनी जीवन-शैली बदलने की बजाये एक टेबलेट पर ज़्य़ादा भरोसा करने लग पड़े हैं। लेकिन बाबा उन को जीवनशैली बदलने की प्रेरणा देता है जिस से उन के शरीर के सैल्युलर लेवल पर पाज़िटिव चेंज आ जाते हैं।

मैं तो भई बाबा की बातों का इतना कायल हूं कि अकसर सोचता हूं कि इस जैसे देव-पुरूष को संसार की किसी शीर्ष स्वास्थ्य संस्था जैसे की विश्व स्वास्थ्य संगठन का मुखिया होना चाहिये --- क्योंकि सारी दुनिया को सेहत का उपहार देना केवल इस तरह के स्वामी के ही बश की बात है।

बाबा की बातों में इतनी कशिश है कि जब से टीवी पर बात कर रहे होते हैं तो बीच में उठने की बिल्कुल इच्छा नहीं होती। सब कुछ अकसर वे अपनी बातों में कवर कर रहे होते हैं। मैं अकसर यह भी सोचता हूं कि ये रोज़ाना इतनी बातें खुले दिल से सारे संसार के साथ साझा कर रहे होते हैं कि अगर कोई व्यक्ति उन की रोज़ाना एक बात भी पकड़ ले तो जीवन में बहार आ जाये।

अब हर जगह हम किसी भी बात का प्रूफ़ नहीं मांग सकते --- स्वामी रामदेव जी जैसे लोग प्रकृति के साथ बिल्कुल रल-मिल कर रह रहे हैं ---इसलिये प्रकृति भी ऐसे लोगों से फिर कुछ भी छिपा कर नहीं रखती। अब मेरी मां मुझे अकसर कहा करती हैं कि रात को दही मत खाया करो क्योंकि बाबा रामदेव बार-बार इस के बारे में कहते हैं। अब अगर मैं अपनी अंग्रेज़ी अकल को इस में भी घुसा दूंगा तो फिर मैं यही कहूंगा कि इस से क्या होगा, हमारी किताबों में तो ऐसा कहीं नहीं लिखा। लेकिन जैसा कि मैंने समझा है कि हर बात में तर्क-वितर्क की कोई गुंजाईश होती कहां है, कुछ बातें जब संत-महात्माओं के मुख से निकलती हैं तो उन्हें ब्रह्म-वाक्य जान कर मान लेने में ही बेहतरी होती है। जी हां, मैंने रात को दही खाना पिछले कुछ महीनों से छोड़ रखा है।

आज भी बाबा सुबह बता रहे थे कि खाने-पीने की जितनी मिलावट यहां होती है वह शायद ही किसी दूसरी जगह होती हो। मुझे पूरा विश्वास सा होने लगा है कि जैसे हमारे आयुर्वेद डाक्टर कहते हैं कि खाने-पीने की वस्तुओ का सेवन अपने शरीर की प्रवृत्ति के अनुसार ही किया जाये --- ऐसा है ना कि अकसर हमें कईं खाध्य पदार्थ सूट नहीं करते और हम उन्हें खा कर बीमार सा हो जाते हैं ---कोई कोई दाल ऐसी है जो रात में हज़्म नहीं होती हैं लेकिन इस के बारे में मेरे ख्याल में आज का सिस्टम कम ही कुछ कहता है जब कि आयुर्वैदिक प्रणाली में इन सब के बारे में खूब चर्चा होती है।

हां, एक ध्यान आ रहा है कि यह जो हम लोग ई.टी.जी( इलैक्ट्रोत्रिदोषोग्राम) के बारे में इतना सुनते हैं इस के बारे में भी हमें जानकारी हासिल करने की ज़रूरत है। इस के बारे में मेरे मन में भी बहुत से प्रश्न हैं ---लेकिन मैंने शायद अभी तक इस के बारे में कभी गंभीरता से जानने की ही कोशिश ही नहीं की। लेकिन सोचता हूं अब मैं इस के बारे में जान ही लूं।

आज कितने ही लोग प्राणायाम् एवं प्राकृतिक जीवन-शैली की ओर प्रेरित हो रहे हैं-- इस सब का श्रेय परमश्र्देय़ बाबा को ही जाता है ---कितने उत्साह से वह अपना काम कर रहे हैं यह देख कर मैं अकसर दंग रह जाता हूं। निःसंदेह वह आज के मानव को एक संपूर्ण इंसान बना रहे हैं।

बस,आज बाबा रामदेव स्पैशल इस पोस्ट पर इतना ही लिख कर विराम ले रहा हूं।

9 टिप्‍पणियां:

  1. हम तो कहेंगे डा.चोपड़ा, तुसी ग्रेट हो।

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  2. samay nadi ki dhar ki jisme sab bah jaya karte hain
    par hote hain kuchh log jo itihas banaya karte hain
    BABA RAMDEV UN ME SE HI EK HAIN
    aapko badhai is umda post k liye

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  3. आप ने सच लिखा, अग्रेजी दवा एक तरफ़ लाभ करती है, तो दुसरी तरफ़ नुकसान भी, लेकिन बाबा की बाते तो लाभ ही करती है, इस लिये हम कहेगे बाबा तो महान है ही, आप भी महान है.
    धन्यवाद

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  4. बाबा की दवाओं के बारें में कुछ नहीं कह सकते पर कम से कम वो लोगो को सुबह ५ बजे उठाकर कसरत करवा देते है, ये अच्छा है..

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  5. विज्ञान को अगर धर्म से जोड़ दिया जाये तब वह लोग जो धार्मिक हैं इसे ईश्वर के आदेश से कम नही मानते हैं ..बाबा रामदेव जी ने जो लहर इस देश में लाई है. उसके मूल में भी यही कारण है.

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  6. जो भी हो-स्वास्थय सजगता में एक क्रांति तो ले ही आये बाबा!!

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  7. मनुष्य प्रकृति की ओर उन्मुख हो तो ....जय हो बाबा की.

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  8. डा. चोपडा जी ,

    इस लेख से तो आपने बहुत कुछ कह ही दिया है .

    एक बात समझ ली जाये तो बाबा का और सब समझ में आ जायेगा .

    आधुनिक चिकित्सा शास्त्र 'धंधा ' है . हम बीमार ही न हों तो 'वो' तो चौपट हो जायेंगे न ? उन्हें दवाएं 'बेचनी ' हैं .बाबा स्वास्थ्य बनाये रखने की विधि बताते हैं .

    इस बाजारवाद में फायदे का फैक्टर महत्व पूर्ण है. उद्देस ही दूसरा है.हाँ इस विज्ञानं ने रोग हो जाने पर सेवाएँ इजाद की हैं , प्रभावी भी हैं .

    आपको आश्चर्य नहीं होगा की कई दवा कंपनियों के ऐसे कारनामे भी आये हैं की रिसर्च में कुछ ऐसा हाँथ लगा जो असरकारक इतना था की रोग मुक्ति की सम्पूर्ण संभावनाएं रखता था और आगे के लिए मरीज़ निरोग हो जाता तो ऐसी रिसर्चें ही बंद कर दीं और उस ज्ञान को ही दबा दिया .उनके लिए जरूरी है की हम बीमार बने रहें . उन्हें तो दवा बेच कर पैसे बनाने हैं .

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  9. आत्मन भाई,ई.टी.जी.(इलैक्ट्रोत्रिदोषग्राम)के प्रति दिलचस्पी भले ही बाबा रामदेव की मासिक पुस्तक योगसंदेश में प्रकाशन के बाद जतायी है लेकिन धन्यवाद करूंगा। मैं निजी तौर पर तो आपको सहमत न कर पाया था शायद तो बाबा रामदेव ने आपके विचार इस तरफ मोड़े इसके लिये बाबा का आभार और आपका भी आभारी हूं।
    डा.रूपेश श्रीवास्तव

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