मैं इस विषय के बारे में बहुत सोचता हूं.....और यह भी सोचता हूं कि हम लोग किसी फुटपाथ से बैंगन खरीदते हुये उसे इतनी गंभीरता से चैक करते हैं.....उस के खराब होने का अंदेशा होते ही अगली रेहड़ी की तरफ़ चल पड़ते हैं। लेकिन जब अपने बेटी-बेटों की शादी की बात आती है और उन के भावी पति अथवा पत्नी की सेहत की बात कभी छिड़ी देखी ही नहीं गई।
लगभग तीन हफ्ते पहले मैंने एक सुप्रसिद्ध लैब का एक विज्ञापन एक अंग्रेज़ी के अखबार में देखा था। ऐसा विज्ञापन मैंने तो पहले बार ही देखा था.....शायद इस से पहले भी आया हो, लेकिन मेरी नज़र न उस पर पड़ी हो। आप भी जानने को उत्सुक हो रहे होंगे कि आखिर क्या था उस विज्ञापन में।
तो सुनिये, उस विज्ञापन में उस कंपनी द्वारा उपलब्ध करवाए जा रहे विभिन्न टैस्टों की जानकारी दी गई थी। उस में अलग अलग आयु वर्ग के लोगों के लिये विभिन्न स्कीमें थीं। एक स्कीम जिसे पहली बार किसी विज्ञापन में देख कर मुझे बेइंतहा खुशी हुई वह थी .......विवाह से पूर्व युवक-युवती की जांच ( Pre-marital health check-up for individuals and couples) ……Detects presence of chronic infectious diseases. Identifies and helps prevent transmission of abnormal Hb related disorders to progeny.
मुझे यह पढ़ कर बहुत ही खुशी हुई क्योंकि मैं इस बात की बहुत हिमायत करता हूं कि शादी से पहले लड़के और लड़की का चैक-अप होना चाहिये। मुझे पता है कि हिंदोस्तानी समाज में यह बात विभिन्न कारणों की वजह से अभी लोगों के गले नहीं उतरेगी। इस के कारण भी तो बहुत से हैं।
इस देश में किसी लड़के-लड़की की शादी की जब बात चल रही होगी तो अगर कोई लड़के या लड़की की चैक-अप की बात छेड़ कर तो देखे, अगले दिन ही बिचोलिये का फोन आ जायेगा कि अभी लड़के वाले सोच रहे हैं.....चैक-अप की तो बात छोड़िये, लोग इन मौकों पर सेहत की बात करना ही महांपाप समझते हैं......मुझे कभी समझ नहीं आई कि ये लोग इतना डरे, सहमे से क्यों होते हैं !!
लेकिन कुछ भी हो लोगों की भई अपनी मजबूरियां हैं....अब अगर किसी लड़की का ब्याह किसी अमेरिका में रह रहे लड़के से तय हो रहा है और वर-पक्ष की कोई मांग भी नहीं है तो भला कौन लड़के के चैक-अप की बात घुसा कर अच्छी भली बनती बात को बिगाड़ने का साहस कर पायेगा। तो, इस तरह की विवाह से पूर्व चैक-अप की बात न छिड़ने का एक कारण जो हमारे सामने आ रहा है वह यही है कि हमारे देश में जो रिश्ते अपनी हैसियत वालों की बजाए अपने से so-called (!!!) ऊंचे या नीचे तबके ( मैं अपनी रियल लाइफ में इस तरह शब्द इस्तेमाल करने का घोर-विरोधी हूं, लेकिन यहां लिखना पड़ रहा है ) ......के साथ होते हैं, इन रिश्तों में लड़के के बापू का बड़ा सा बंगला या लड़की के डैड की फैक्टरी का रोब दूसरे पक्ष के मुंह पर पट्टी बांध देता है। और जितनी ही यह हैसियत की खाई गहरी होगी, यह पट्टी उतनी ही टाईट होती जायेगी।
एक कारण यह भी तो है कि अकसर हिंदोस्तान में रिश्तों में ही रिश्ते हो जाते हैं और लड़की या लड़के का शादी से पूर्व चैक-अप की बात कहने की भला कौन हिम्मत करे.......पता चले कि यह रिश्ता तो हुया नहीं और पहले वाले रिश्तों पर भी इस बात का असर पड़ गया।
कहने का भाव यही है कि हमारे लोगों के लिये दो जमा दो हमेशा चार नहीं हैं.....इन की समस्यायों के बहुत आयाम हैं। ये बेचारे तरह तरह के रिश्तों के बोझ तले, सामाजिक धारणाओं, रूढ़िवादी विचारों तले बुरी तरह से दबे हुये हैं .....इसलिये मैं कभी भी इन्हें किसी भी बात का दोष नहीं देता हूं......इस भोली भाली जनता का क्या दोष है..............और एक बात तो और भी बहुत दुःखद यह है कि इन मां-बाप को ही इस तरह की अवेयरनैस नहीं है तो ये क्या किसी से कुछ कहेंगे ।।
तो, फिर इस बात का समाधान कहां है....समाधान धरा पड़ा है ....इस तरह के विज्ञापनों में जिन्होंने सीधी बात ही पढ़े-लिखे लड़के-लड़की तक ही पहुंचा दी। लैब भी बहुत प्रसिद्ध है......इस लिये इस की रिपोर्ट भी पूरी विश्वसनीय होगी...यह नहीं कि नुक्कड़ पर कल ही खुली किसी लैब से रिपोर्ट ला कर लड़की या लड़के वालों को दी जा रही है जिससे उन का बस मुंह ही बंद हो जायेगा।
तो, मेरे विचार में इस बात में पहले पड़े-लिखे लड़के लड़कियों को ही करनी होगी.....और यह पैकेज भी कितना बढ़िया है कि दोनों इक्ट्ठे ही जा कर अपने टैस्ट करवा सकते हैं। क्या आप को लगता है कि यह बात किसी तरह से भी यह कुंडली –वुंडली के मिलान से कम अहमियत वाली है। नहीं ना.....बल्कि उस से भी शायद कईं गुणा ज़्यादा ज़रूरी है।
चूंकि लड़का-लड़की साथ साथ जा रहे हैं इस लिये किसी को बुरा लगने का सवाल ही नहीं पैदा होता। मुझे ऐसा लगता है कि अभी से अगर ये पढ़े-लिखे लोग इस तरफ पहला कदम उठाना शुरू करेंगे तो धीरे धीरे लोगों की झिझक दूर हो जायेगी।
मेरा यह लिखने का कारण केवल इतना है कि आप सब को भी पता है कि लोग सदियों से इन रिश्तों के समय तरह तरह के झूठ बोलते आये हैं , बीमारियां छुपाते आये हैं.........लेकिन अब तो भई जीने-मरने की बात हो गई है, दोस्तो।
कितनी बार अखबारों में पढ़ चुके हैं कि किसी विवाहित युवक को जब एच-आई-व्ही संक्रमण का पता चला तो सारा दोष उस की बीवी पर मढ़ा गया और उस के चाल-चलन पर शक किया गया। वैसे यह तो एक लंबी डिबेट है....हां, बिलकुल उस जैसी कि मुर्गी पहले आई या अंडा........लेकिन इतनी लंबी-चौड़ी डिबेट में पड़ने की बजाए सीधी तरह से लड़के-लड़की अपने मां-बाप को बीच में डाले बिना ही अपने ही लैवल पर विवाह-पूर्व अपना टैस्ट ही करवा लें तो कितने झंझटों से बचा जा सकता है।
रही बात कि हर मां-बाप का यह सोचना कि मेरे बच्चों का तो मुझे पता है ...मैं उन की गारंटी लेता हूं....उन्हें टैस्ट/वैस्ट करवाने की कोई ज़रूरत नहीं है........इस तरह की सोच में ही गड़बड़ी है, आज कल कौन किस की गारंटी ले सकता है .....इसलिये बेहतर होगा कि हम लोग शादी के वक्त इस तरह की गारंटी देना या स्वीकार करना बंद करें। बच्चों की पूरी लाइफ का मामला तो है ही......लाइफ एंड डैथ का मसला है भई।
अभी अभी लिखते लिखते मुझे लगभग 10-12साल पुरानी बात याद आ रही है....उन दिनों मैं बंबई सर्विस करता था ...एक आफीसर का बेटा था जो स्वयं भी नौकरी कर रहा था। उस 23-24 साल के लड़के को एक्सीडैंट की वजह से काफी चोटें आईं थीं और मैंने उसे आप्रेट करना था.......उस के बहुत से टैस्ट हुये थे जिन में से एक एचआईव्ही टैस्ट भी था जो उस का पॉजिटिव आया था। दो टैस्टों से इस टैस्ट को कंफर्म भी कर लिया गया था। मेरी उस के पिता से बात हो रही थो तो उस ने दो बातें कीं.....जो मुझे आज भी एकदम स्पष्ट याद हैं.....and only such casual remarks by some people have over a period of time and my education cum training at Tata Institute of Social Sciences, Bombay has revolutionized my thinking on such sensitive issues !!………………उस ने कहा कि डाक्टर साहब, आप को बताता हूं कि यह जब नया नया नौकरी लगा तो बाहर रह रहा था तो उस के पड़ोस रहने वाली एक लड़की ने इसे खराब कर दिया। और दूसरी बात उस ने कही कि मैं तो बस अपने शहर जा कर तुरंत इस की शादी कर दूंगा ......क्योंकि यह शादी के बाद बिलकुल ठीक हो जायेगा। इन दो बातों ने मुझे बहुत लंबे अरसे तक हिला कर रखा।
इसलिये आज जब यह विवाह-पूर्व युवक-युवती के चैक-अप वाले विज्ञापन वाली अखबार को ढूंढा तो दो बातें लिखने की तमन्ना जाग उठी।
शादी से पहले मेडिकल जांच होनी बहुत ज़रूरी है, लेकिन ऐसा करने वालों की संख्या कुंडली मिलाने वालों का ०.०००१ प्रतिशत भी नहीं है. हिन्दुस्तान में शादी दो परिवारों के बीच होती है, न की दो दिलों या दो शरीरों के बीच. इसलिए सभी लोग खानदान तो देख लेते हैं, लेकिन ब्लड ग्रुप जांचने का ख्याल किसी को नहीं आता. एक डॉक्टर होने के नाते मैं इस बात की हिमायत करीब १० साल से कर रहा हूँ, लेकिन मेरी कोई भी नहीं सुनता. मेरे अपने भी नहीं.
जवाब देंहटाएंचलिए फ़र्ज़ कीजिये की कोई मेरी बात सुनकर ब्लड टेस्टिंग करवा भी लेता है, और उसमें कुछ खोट निकलता है. ऐसे में क्या बना-बनाया रिश्ता तोडा जाएगा? जिसमें खोट निकला है उसके आने वाले रिश्तों की संख्या में कमी होगी? यदि खोट निकलने के बावजूद उसकी शादी होती है, तो दहेज़, प्रताड़ना, और अन्य सामाजिक बुराइयां उसे बदहाल नहीं करेंगी, क्योंकि लोगों को पहले से ही पता है की उसमें खोट है.
मुझे लगता है की शादी से पहले मेडिकल जांच से महिलाओं को अत्यधिक नुक्सान हो सकता है भारत जैसे देश में, जहाँ महिला और दलित समानार्थी हैं.
इस बात पर घनघोर विचार विमर्श की ज़रूरत है, संसद में उछाले गए रुपयों, परमाणु संधि, या आरुशी हत्याकांड से कहीं अधिक. क्योंकि इससे सभी लोग प्रभावित हो सकते हैं, और बदलाव के फायदे-नुक्सान तुंरत ही देखने को मिलेंगे.
गौरतलब बात ये है की मेरे कई नौजवान दोस्त शनिवार की रंगीली शाम को इटली का परांठा (जिसे अंग्रेज़ी में पिज्जा कहते हैं) खाने के लिए ५०० रूपये खर्च कर सकते हैं, लेकिन ७० रूपये की एक गोली जो डॉक्टर ने लिखी है, वो उन्हें महँगी लगती है.
शादी से पहले कुछ बेसिक चेक-अप होने चाहियें, जन्मपत्री मिलान के साथ साथ!
जवाब देंहटाएंबात गौर करने लायक है पर कोई करता नही सब भगवान भरोसे में लगे रहते है करता भी है नही भी ....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया पोस्ट। इसमें आपने उस लैब का पता क्यों नहीं दिया? कई ऐसे लोग, जिनकी नज़र उस विज्ञापन पर नहीं पड़ी, आपकी पोस्ट के जरिए वहाँ तक पहुँच सकते हैं।
जवाब देंहटाएं- आनंद