कल सुबह मैं बीबीसी की एक रिपोर्ट पढ रहा था ---यह भारत में कुपोषण का शिकार बच्चों के ऊपर थी। बेशक एक विश्वसनीय रिपोर्ट थी---यह पढ़ते हुये मुझे यही लग रहा था कि जिन बड़े लोगों को लाखों-करोड़ों रूपये रिश्वत में लेने की कभी न शांत होने वाली खुजली होती है या जो लोग इतनी ही बड़ी रकम के घपले कर के दिल के दर्द की बात कह कर बड़े बड़े अस्पतालों में भर्ती हो जाते हैं, उन्हें इस तरह की रिपोर्टें दिखानी चाहियें ---- शायद वे चुल्लू भर पानी ढूंढने लगें ---- लेकिन इन दिल के दर्द के मरीज़ों के पास दिल कहां होता है ?
यह रिपोर्ट पढ़ते हुये मेरा ध्यान अपने फुरसतिया ब्लॉग के श्री अनूप शुक्ल जी की तरफ़ जा रहा था --एक बार उन्होंने मुझे इ-मेल की थी कि उन्होंने मेरी तंबाकू वाली सचित्र पोस्टों के प्रिंट आउट अपने ऑफिस में लगा रखे हैं और इस से उन के ऑफिस में काम कर रहे बहुत से वर्करों को तंबाखू, गुटखा, पानमसाला छोड़ने की प्रेरणा मिलती है।
लेकिन इस देश से रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार को उखाड़ने के लिये क्या करना चाहिये --- मुझे लगता है कि जो लोग इस तरह से पैसा इकट्ठा करने में लगे रहते हैं उन के दफ्तरों में बड़ी बड़ी हस्तियों की तस्वीरें टांगने से तो कुछ नहीं होता ----सीधी सी बात है कि इन्हें इन तस्वीरों के बावजूद भी शर्म नहीं आती ----लेकिन ये इन तस्वीरों की आंखों ज़रूर झुका देते होंगे। अगर इस तरह की रिपोर्टों के प्रिट आउट सामन रखने में ऐसे लोगों को कोई झिझक महसूस हो तो कम से कम भ्रष्टाचार की आंधी में अंधे हो चुके ये लोग गांधीजी के उस कथन का ही ध्यान कर लिया करें ----जिस में उन्होंने कहा कि मैं तुम्हें एक तैलिसमैन ( Touchstone) देता हूं --जब भी आप कोई काम करने लगो तो देश के सब से गरीब आदमी की तस्वीर अपनी आंखों के सामने रख कर यह सोचो कि मेरा यह फैसला क्या उस अभागे आदमी का कुछ भला कर के उस की तस्वीर बदल सकता है ?
ऐसे रिश्वतखोरों के दफ़्तर में बीबीसी की इस रिपोर्ट के प्रिंट आउट उन के ऑफिस के पिन-अप बोर्ड पर या फिर टेबल के कांच के नीचे रखे होने चाहिये जिस पर कागज़ रख कर वे किसी बात के लिये अपनी सहमति देते हैं ---शायद इन बच्चों की तस्वीरें देख कर उन का मन बदल जाए।
रिपोर्ट में बड़ा हृदय-विदारक दृश्य बताया गया है ---यह भी नहीं है कि यह सब हम लोग पहले ही से नहीं जानते ---लेकिन बीबीसी संवाददाता ने जिस तरह से पास से इसे कवर किया है वह इन तथ्यों को अत्यंत विश्वसनीय बना देता है।
रिपोर्ट में मध्यप्रदेश की बात की गई है --- वहां पर एक करोड़ बच्चे हैं और जिन में से 50से 60प्रतिशत भूखमरी एवं कपोषण का शिकार हैं। इस बीमारी का इलाज करवा रहे बच्चों के पास संवाददाता गया। इस तरह के बच्चों का वर्णऩ भी इस रिपोर्ट में है जो कि इतने कमज़ोर हैं कि वे खाना न खाने/चबाने की हद तक लाचार हैं।
रिपोर्ट में साफ़ कहा गया है इस सब के लिये बहुत सी बातें जिम्मेदार हैं ---- पिछले कुछ सालों से सूखा पड़ा हुया है, भ्रष्टाचार है ----विभिन्न स्तरों पर है, इन बच्चों के लिये आने वाले राशन को इधर-करने पर भी इन सफेदपोश लुटेरों का दिल नहीं पसीजता----केवल इस लिये कि कुछ एफ.डी और जमा हो जाएं, कुछ शेयर और खरीद लिये हैं या फिर छोटी उम्र में ही बहुत से प्लॉट खरीद लिये जाएं ------लेकिन स्वर्ग-नरक यहीं हैं ----- ऐसे लोगों को बड़ी बड़ी बीमारियों से कोई भी बचा नहीं सकता क्योंकि अकसर इस तरह के स्मार्ट लोग इतने स्ट्रैस में जीते हैं कि सारी सारी उम्र की कमाई बड़े बड़े कार्पोरेट अस्पतालों को थमा कर इन्हें अपने पापों का प्रायश्चित तो करना ही पड़ता है।
हां, तो कल शाम मैं और मेरी मां अंबाला छावनी से जगाधरी की लोकल ट्रेन में सफ़र कर रहे था --- सामने वाली सीट पर एक दादी अपने दो पोतों के साथ बैठी हुई थी --- 13-14 साल की उम्र के थे वे दोनों लाडले। 50-55 मिनट का सफ़र है---लेकिन जब हम लोग गाड़ी में चढ़े तो उन्होंने ने बिस्कुटों का एक एक पैकेट पकड़ा हुआ था ----उस के बाद प्यारी दादी ने उन्हें ब्रैड-पकोडे खरीद कर दिये ---- अभी वे खत्म ही नहीं हुये थे कि दादी अम्मा ने अपने पिटारे से मठरीयां निकाल लीं और साथ में भुजिये का पैकेट पड़ा था और तली हुई मूंगफली बेचने वाले को भी दादी ने यूं ही जाने नहीं दिया ----इस के बाद बारी आई घर में बने रोटियों की नींबू के आचार के साथ खाने की।
कमबख्त नींबू के आचार के महक इतनी बढ़िया कि मेरी जैसे पास बैठे बंदे का जो दिल मितला रहा था वह उस की रूहानी खुशबू से ही ठीक हो गया। लेकिन दादी के बार बार मिन्नतें करने के बाद भी उन लाडले पोपलू बच्चों ने रोटी नहीं खाई ---- आखिर हार कर दादी खुद ही खाने लगीं। दादी उन्हें बार बार यह कहे जा रही थी कि गाड़ी में खाने का बहुत मज़ा आता है ( जिस से आप भी सहमत होंगे) और उस बेचारी ने तो इतना भी कहा कि साथ में वह उन को चाय भी दिला देगी ---- लेकिन उन दुलारों के पेट में जगह भी तो होनी चाहिये थे -----और वैसे भी जब इतनी लाडली दादी साथ तो भला कौन पड़े घर की रोटियों के चक्कर में !!
कल ही सुबह मध्यप्रदेश के बच्चे में कुपोषण की बातें पढ़ीं थीं और शाम को गाड़ी में मैं पंजाब-हरियाणा में कुपोषित बच्चे तैयार होने की प्रक्रिया देख कर यही सोच रहा था कि काश, लोग समझ लें कि बच्चों का यह खान-पान भी उन्हें कुपोषण की तरफ़ ही धकेल रहा है। दादी जी, फूल कर कुप्पा हो रहे बबलू-पपलू की सेहत पर थोड़ा सा रहम करो।
क्या इस तरह बच्चों को खाय-पिया लग जायेगा ?
हनी, हम लोग बच्चों को मार रहे हैं !!
वैसे, इस गाने में भी ये लोग अपने हिंदोस्तान की ही बात कर रहे हैं ना ?
3 comments:
ड्रा चोपडा जी,आप ने हमेशा ही बहुत उपयोगी जानकारी दी हे, ओर आप के आज के लेख मे **वैसे वो बात दूसरी है कि उसे लिखा कुछ इस तरह से होता है कि उसे पहले तो कोई ढूंढ ही न पाये और अगर गलती से ढूंढ ले भी तो बंदा पढ़ ही न पाये।*
तो इस के लिखने का कया फ़ायदा,अगर बडे शव्दो मे लिखा हो ओर खरीदते वक्त दिखे तब तो ठीक हे, हमारे यहां सिगरेट के पाकेट पर मोटे ओर साफ़ शव्दो मे चारो ओर चेतावनी लिखी होती हे, १६ साल से छोटे बच्चे कॊ ऎसी चीजे बेचने पर दुकानदार को भारी जुर्माना चुकाना पडता हे,जब की भारत मे बच्चे से ही यह सब मगबाते मा बाप.
मै तो इससे दूर ही हूँ पर मुझे लगता है कि जिन्हे तलब लग चुकी है वो इसे आसानी से छोडने से रहे। क्या हम इसका कोई विकल्प खोज सकते है जो नुकसान रहित हो? मैने हर्बल सिगरेट पर काम किया है पर इसे इतना अधिक अच्छा नही बना पाया कि असली सिगरेट वाले सब छोडकर इसे पीने लगे। कोशिश जारी है।
केन्सर अस्पताल में बड़े भीषण केस देखे हैं मुंह के केन्सर के। पर उसी अस्पताल में मरीज की सेवा में तैनात परिवार जनों को गुटका खाते भी पाया!
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