मैं दो साल पहले उस रिक्शे ( हां, वही जिस पर आदमी को एक आदमी ढोता है) से आ रहा था....उस रिक्शे ने मुझे अपनी ओर आकर्षित किया ...क्योंकि उस के चालक ने उसे बहुत सजाया हुया था...और इस के साथ ही उस में से बहुत बढ़िया बढ़िया फिल्मी गीतों की आवाज़ आ रही थी और उस रिक्शा चालक ने एक नेम प्लेट भी लगाई हुई थी....गंगाधर और साथ में लिखा हुया था, अपना पता......दयानंद हास्पीटल। मैं और मेरी पत्नी नये नये फिरोज़पुर(पंजाब) से तबदील हो कर इधर यमुनानगर आये थे ( हमारी पोस्टिंग आल इंडिया स्तर पर होती है) ...मुझे याद है कि मैं उस के रिक्शे पर बैठते ही उस से बतियाने लगा था. यह तो मेरी बचपन से ही आदत रही है कि मैं रिक्शे वालों से बैठते ही दोस्ती कर लेता हूं....क्या है ना कि इस से दोनों का टाइम अच्छा पास हो जाता है। और, इस से भी ज़रूरी यह है कि मैंने देखा है कि इस से रिक्शेवाला को अच्छा लगता है। सो, उस दिन भी अपनी वार्तालाप चली ...मैंने पूछा कि गंगाधर, यह क्या है जो बज रहा है, यार आवाज़ भी बहुत बढ़िया आ रही है, उस ने सब बताया कि यह तो मैंने 125 रूपये में फलां फलां दुकान से खरीदा था......मेरे यह पूछने पर कि क्या इस को बैटरी से चलाते हो , उस ने बताया कि बैटरी तो इस के अंदर ही है, जिसे रात में चार्ज कर लेता हूं और सुबह 8-10 घंटे मज़े से इस के साथ ऐश करता हूं। और उस ने यह भी बता दिया कि बाबू, यह बैटरी छ-महीने तक चलती है और केवल 30-40 रूपये की ही आती है। यानि उस 15-20 मिनट में उस ने मुझे इस डिब्बे से अच्छी तरह से वाकिफ करवा दिया । और हम कहते हैं कि हम अपने साथ वाले ब्लोगियों से ही सीख सकते हैं........यकीन मेरा भी बड़ा पक्का है कि बहुत कम लोग ही हैं कि जो अपना हुनर किसे के साथ साझे करने में हर्ष महसूस करते हैं। पता नहीं , हम यह ज्ञान कहां बाँध कर ले जायेंगे। लेकिन मेरे चीखने से क्या होगा ?
हां, मैं बेहद इमानदारी से कह रहा हूं कि इस एफएम रेडियो के डिब्बे के बारे में मुझे इस से पहले कुछ भी पता न था. मैं सोचता था पता नहीं कितना ज्यादा कम्पलिकेटेड मामला है इस को मेनटेन करना । सो, अगले दिन ही मैं भी उठा लाया एक वैसा ही एफएम रेडियो.......चार पांच तो शुरू शुरू में बांट भी डाले....घर में जो भी आता , उस को सारा उस गंगाधर की बातें दोहरा देता और साथ में वह डिब्बा थमा देता। हमारे यहां काम करने वाली को भी वह बहुत अच्छा लगता था----एक दो बार उस ने श्रीमति से इतना पूछा कि यह कितने का आता है , तो दूसरे दिन उस को भी ला कर दे दिया। जब मेरी मासी को मैंने वह गंगाधर से प्रेरणा लेने वाली बात बताई तो उऩ्होंने ठहाके लगात हुये कह दियाय........प्रवीण, तू तो देखना कभी भी नहीं बदलेगा....मैंने कहा था ...कि आखिर ज़रूरत ही क्या है।
मैं यह ही नहीं कहता कि मैं तो एफएम रेडियो का शैल्फ-स्टाइलड ब्रैंड अम्बैसेडर हूं क्योंकि जब लोग किसी डाक्टर के यहां---घर में और हस्पताल में --एफ एम वाला डिब्बा बजता देखते हैं ना तो वे भी इसे सुनने के लिये प्रेरित होते हैं...........और वैसा देखा जाये तो कितना सस्ता, सुंदर और टिकाऊ साधन है यह मनोरंजन का .................तो , सोचता हूं कि ऐसा नहीं हो सकता कि आने वाले समय में लोग विवाह शादियों में भाग लेने के बाद आये रिश्तेदारों को बर्फी के डिब्बे की बजाए .........एक एक एफएम का डिब्बा थमा दिया करेंगे....बर्फी से तो मोटापा ही बढ़ेगा और यह एफएम पर आने वाले रोज़ाना डाक्टरों के प्रवचन सुन कर कुछ तो असर होगा ही । और एक बात भी तो है कि अगर मेरा यह सपना (गिफ्ट में यह डिब्बा देने वाला) पूरा हो गया तो भई अपने ब्लागर-बंधुओं ...यूनुस जी , कमल शर्मा जी (मैं समझता हूं कि वे भी रेडियो की दुनिया के साथ जुड़े हुये हैं) की रेटिंग तो आसमान छूने लगेगी।
और हम सब को बहुत अच्छा लगेगा।
आइडिया तो एकदम धाँसू है सर, पर क्या टीवी पर चिपके रहने वाले लोग इसे समझेंगे.
जवाब देंहटाएंdoctor sahab aapka irada bhi achcha hai aur dil bhi!
जवाब देंहटाएंKya baat hai...
जवाब देंहटाएंGood Uncle ! Idea is cool, keep it up.
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