शुक्रवार, 29 फ़रवरी 2008

यह खबर यहां कर क्या रही है ?


तीन दिन पहले एक इंगलिश के पेपर में एक बहुत बड़ी खबर लगी जिसे देख कर मुझे बहुत अचंभा हुया कि आखिर इस की न्यूज़-वैल्यू है क्या जो इसे इतना स्पेस दिया गया है.....मुझे अचंभा होना इसलिए भी लाज़मी था क्योंकि इस पेपर की बैलेंसड रिपोर्टिंग के लिए मेरे मन में इस के लिए बहुत सम्मान है।
खबर क्या थी .....खबर थी......Surgeons urged to take precaution to prevent rupture of aneurysm……हिंदी में लिखता हूं.....शल्य-चिकित्सकों को ऐन्यूरिज़्म को फटने से बचाने के लिए एहतियात बरतने को कहा गया...... अब एक औसत पाठक को ऐसी खबर से क्या लेना देना। इस खबर को इतना ज़्यादा बोल्ड शीर्षक में दिखना अजीब सा लगा कि इस में इस ऐन्यूरिज़्म के बारे में तो इतना ही लिखा हुया था कि यह किसी रक्त-नाड़ी( ब्लड-वैसल) का एक गुब्बारे-नुमा उभार होता है। और साथ में यह भी लिखा गया था कि न्यूरोसर्जन्स को यह चेतावनी दी गई थी कि .... इन को इंसीज़न (सर्जीकल ब्लेड से जो कट लगाते हैं) निचले कोण से लगाने को कहा गया है। अब यह बात आम पब्लिक को तो क्या ज़्यादातर डाक्टरों के भी ऊपर से ही निकल गई होगी।
उस खबर में इस बीमारी के कारणों, इस के रोग-लक्षणों , इस की डॉयग्नोसिस आदि के बारे में कुछ नहीं बताया गया था......लेकिन इस बात को खूब अच्छी तरह से कवर किया गया था कि उस जापान से आने वाली शख्शियत ने किस वीआईपी का इलाज किया था....अब वो क्या कर रहा है, उस को सम्मानित किये जाने की बहुत बड़ी सी फोटो भी खबर के साथ पड़ी हुई थी। सोच रहा हूं ...ऐसी प्रोफैशनल एडवाईज़ तो सामान्यतः प्रोफैशनल जर्नल में ही दिखती है। और फिर सोच रहा हूं कि शायद खबर में कोई खराबी नहीं थी, उस के शीर्षक में ही गड़बड़ थी....ऐसा लग रहा है कि अगर इसी खबर का शीर्षक कुछ इस तरह का होता कि .....विख्यात न्यूरोसर्जन सम्मानित.........।
कहीं यह अखबार वाले यह समझने की भूल तो नहीं कर बैठे कि इस देश के हर शहर की नुक्कड़ो पर न्यूरोसर्जन नहीं , नीम-हकीम झोला-छाप छाये हुये हैं........उन को सुधारने के लिये भी ,उन का माइंड-सैट चेंज करने के लिए भी कुछ मसाला डाला करो..................न्यूरोसर्जन तो ऐसी खबरें इंटरनैट पर या अपने प्रोफैश्नल जर्नलों में देख ही लेते हैं। नहीं तो, कम से कम खबर के शीर्षक की तरफ़ ही देख लेना चाहिए।

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