एक वेबसाइट है जिस पर प्रिंटमीडिया एवं इलैक्ट्रोनिक मीडिया पर चल रही सेहत संबंधी समाचारों की खिंचाई भी होती और जो बिल्कुल सुथरा और बिना किसी लाग-लपेट के सेहत के बारे में बढ़िया संदेश देते हैं उन की प्रशंसा भी की जाती है --इस साइट का नाम है healthnewsreview.org. मैं अकसर एक दो दिन में इस साइट को ज़रूर विज़िट करता हूं ---हो सके तो कभी कभी आप भी देख लिया करें।
मैं इस पर एक रिपोट---क्या अपने आप आंत साफ करने वाली दवाईयां सेहत में सुधार करती हैं?--- देख रहा था जिस में बड़ी आंत को साफ़ करने संबंधी एक न्यूज़-रिपोर्ट को इस साइट पर पांच सितारे मिले थे क्योंकि उस में बड़ी साफगोई से आंत की सफाई के लिये मार्कीट में आने वाले प्रोडक्टस् की पोल खोली गई है।
बड़ी आंत की सफ़ाई की बात करते हैं तो मुझे अपने योग में बहुत सक्रिय होने वाले दिन याद आ जाते हैं--यह बात आठ सल पहले की है जब हम लोग योग के एक रैज़ीडैंशियल कार्यक्रम के लिये जाया करते थे तो वहां पर एक क्रिया करते थे --शंख-प्रक्षालन। इस क्रिया के दौरान हमें एक दिन सुबह सुबह गुनगुना नमकीन पानी पीने को कहते थे ---जितना हम आसानी से पी सकें ---होता यूं था कि कुछ गिलास पीने के बाद हम लोग टायलेट की तरफ़ भागना शुरू कर देते थे --- और शायद एक घंटे में आठ दस बार हमें टायलेट जाना पड़ता था ---कुछ ही मिनटों में बिल्कुल पानी जैसे मल होने लगते थे और देखते ही देखते बिल्कुल हल्कापन --- और उस के बाद हमें चावल का पानी (क्या बोलते हैं उसे मांड) दिया जाता था।
और हमें यह सचेत भी किया जाता था कि हम लोग इस प्रक्रिया को अपने आप घर में ना आजमाएं ---केवल योग गुरू की निगरानी में ही यह प्रक्रिया दो महीने के बाद की जा सकती है। मुझे भी इस तरह की क्रिया को एक योग आश्रम में तीन-चार बार करने का अवसर मिला।
अच्छा हम लोग तो उस रिपोर्ट की चर्चा कर रहे थे जिस में कुछ विज्ञापनों का विश्लेषण किया गया है जो अपने प्रोड्क्टस के द्वारा बड़ी आंत को साफ़ करने का ढिंढोरा पीट रहे हैं। दरअसल अमीर दूर-देशों में आंत की बहुत ज़्यादा तकलीफ़े हैं --अन्य कारणों के साथ साथ वहां पर यह जो नॉन-वैजीटेरियन खाना बहुत चलता है और वह भी अत्यंत प्रोसैस्ड----इस सब से यह तकलीफ़ें जैसे कि बड़ी आंत का कैंसर जैसे रोग काफी आम हैं।
मैं जब इस रिपोर्ट को देख रहा था तो मैं भी यह सोच कर दंग था कि ऐसे कैसे किसी स्वस्थ बंदे की आंत में 10पाउंड, बीस पाउंड और यहां तक कि चालीस पाउंड तक मल फंसा रहता है जिस के परिणामस्वरूप उसे हमेशा यह बोझा ढोने के लिये मजबूर होना पड़ता है।
इस में कोई शक नहीं कि अगर पेट ठीक तरह से साफ़ नहीं होता तो तबीयत नासाज़ सी ही रहती है । लेकिन अब अगर तीस चालीस पाउंड मल आंतों में फंसे होने की बात कोई कहे तो कोई उसे क्या कहे?
इस बढ़िया सा रिपोर्ट की पारदर्शिता देखिये कि उस में एक पेट के रोगों के माहिर डाक्टर की टिप्पणी भी दी गई थी। उसे भी यह बीस-तीस-चालीस पाउंड वाली बात बड़ी रोचक दिखी--उस ने मज़ाक में यह भी कह दिया कि गिनिज़ बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड को खंगालना पड़ सकता है।
और उस ने इस तरह के प्रोड्कट्स के बारे में लोगों को यह कहते हुये भी सचेत किया कि इस में मैग्नीशयम की मात्रा इतनी ज़्यादा होती है कि यह गुर्दे के रोगों से जूझ रहे लोगों के लिये खतरनाक हो सकती है। और जाते जाते उन्होंने यह भी कह दिया अगर कोई स्लिम-ट्रिम होने के लिये इन आंत की सफाई के लिये आने वाले पावडरों का सहारा ले रहा है तो उसे भी इन से दूर ही रहने की ज़रूरत है।
वैसे आप को भी लगता होगा कि अखबार में,मीडिया में छपने वाली सेहत की खबरों की अगर रोज़ाना इतनी खिंचाई होगी तो यह सब लिख कर लोगों को भ्रमित करने वाले लोग कैसे अपने आप लाइन पर न आएंगे।
मुझे यह लिखते लिखते ध्यान आ रहा है कि रिपोर्ट का पोस्ट-मार्टम तो हो गया लेकिन क्या इस में लिखी बातों ने क्या हमें कुछ सोचने पर मजबूर भी किया ? -- बात सोचने वाली यह भी है कि आंते भी क्या करें ----ऐसी कौन सी मशीनरी है जो 365दिन चौबीस घंटे चलती रहे --कोई विश्राम नहीं ----आखिर वह कब थोड़ी सुस्ताए --- वह तो तभी हो सकता है जब हम अपने मुंह को थोड़ा विराम दें ----उपवास रखने की आदत डालें ----दिन, विधि और अवधि आप स्वयं तय करें। मैं भी सोच रहा हूं कि उपवास रखना शूरू करूं।