एक अनुमान के अनुसार अमेरिका में 81 फीसदी लोग किसी न किसी तरह से विज़न-करैक्शन ( चश्मा, कंटैक्ट लैंस इत्यादि) का इस्तेमाल करते हैं लेकिन इस के बावजूद 26 फीसदी लोग ऐसे हैं जिन्होंने पिछले दो वर्षों में अपनी आंखों का चैक-अप नहीं करवाया है। एक स्टडी में पाया गया है कि बहुत से लोग अपनी आंखों की सेहत के प्रति ज़्यादा सजग नहीं हैं।
हर व्यस्क व्यक्ति को कम से कम दो साल में एक बार अपनी आंखों का मुकम्मल चैक-अप करवाना चाहिये – लेकिन उन लोगों के लिये तो यह और भी ज़रूरी हो जाता है जिन्हें चश्मा लगा हुआ है या जो लोग कंटैक्ट लैंस इस्तेमाल करते हैं। और साठ साल की आयु के बाद तो हर साल आंखों का पूर्ण चैक-अप करवाया जाना चाहिये।
18 साल व उस से ऊपर के 1001 अमेरिकी लोगों को लेकर जब एक सर्वे किया गया तो उस से यह पता चला –
ज़्यादातर अमेरिकी लोगों ( 72फीसदी) जिन की उम्र 55 के आसपास थी – इन्होंने अपनी आंखों की दृष्टि ( vision changes) में बदलाव 40 से 45 साल की उम्र में नोटिस करने शुरू कर दिये थे।
अपनी दृष्टि के बारे में चिंतित होते हुये भी 15प्रतिशत लोग ऐसे थे जो न तो चश्मा ही पहनते हैं और न ही कभी नेत्र-रोग विशेषज्ञ के पास ही गये हैं।
62फीसदी लोग ऐसे थे जिन्हें यह पता नहीं था कि कईं बार डायबिटीज़ का पता ही नेत्र-रोग विशेषज्ञ को आपकी आंखों की जांच से पता चलता है। और 71 फीसदी लोगों का इस बात का आभास नहीं था कि आंखों के पूरे चैक-अप से हाई-ब्लड-प्रैशर, ब्रेन-ट्यूमर, कैंसर, दिल की बीमारी तथा मल्टीपल-स्क्लिरोसिस( multiple sclerosis) जैसी बीमारियों का पता चल सकता है।
कुछ भ्रांतियां पाई गईं कि कुछ तरह से आंखें खराब हो जाती हैं। उदाहरण के तौर पर 71फीसदी लोग यह समझते हैं कि मंद रोशमी के तले पढ़ने से, टीवी को बहुत नज़दीक को देखने से, अथवा आंखों को मलने से आंखें खराब हो जाती हैं। इन सब बातों से आंखों पर स्ट्रेन तो पड़ता है लेकिन इन से आंखें या आंखों की रोशनी वास्तव में खराब नहीं होती है।
इसलिये टीवी से सुरक्षित दूरी बनाये रखने वाली और अच्छी रोशनी में पढ़ने जैसी बातें तो अपनी जगह पर कायम है ही हैं।
There were many misconceptions about behaviours that can damage eyes. For example, many incorrectly believe that eye damage can be caused by reading under dim light (71 percent), sitting too close to the television ( 66 percent), or by rubbing the eyes. These behaviours can cause eye strain but don’t cause actual damage to the eye or eyesight.
हर व्यस्क व्यक्ति को कम से कम दो साल में एक बार अपनी आंखों का मुकम्मल चैक-अप करवाना चाहिये – लेकिन उन लोगों के लिये तो यह और भी ज़रूरी हो जाता है जिन्हें चश्मा लगा हुआ है या जो लोग कंटैक्ट लैंस इस्तेमाल करते हैं। और साठ साल की आयु के बाद तो हर साल आंखों का पूर्ण चैक-अप करवाया जाना चाहिये।
18 साल व उस से ऊपर के 1001 अमेरिकी लोगों को लेकर जब एक सर्वे किया गया तो उस से यह पता चला –
ज़्यादातर अमेरिकी लोगों ( 72फीसदी) जिन की उम्र 55 के आसपास थी – इन्होंने अपनी आंखों की दृष्टि ( vision changes) में बदलाव 40 से 45 साल की उम्र में नोटिस करने शुरू कर दिये थे।
अपनी दृष्टि के बारे में चिंतित होते हुये भी 15प्रतिशत लोग ऐसे थे जो न तो चश्मा ही पहनते हैं और न ही कभी नेत्र-रोग विशेषज्ञ के पास ही गये हैं।
62फीसदी लोग ऐसे थे जिन्हें यह पता नहीं था कि कईं बार डायबिटीज़ का पता ही नेत्र-रोग विशेषज्ञ को आपकी आंखों की जांच से पता चलता है। और 71 फीसदी लोगों का इस बात का आभास नहीं था कि आंखों के पूरे चैक-अप से हाई-ब्लड-प्रैशर, ब्रेन-ट्यूमर, कैंसर, दिल की बीमारी तथा मल्टीपल-स्क्लिरोसिस( multiple sclerosis) जैसी बीमारियों का पता चल सकता है।
कुछ भ्रांतियां पाई गईं कि कुछ तरह से आंखें खराब हो जाती हैं। उदाहरण के तौर पर 71फीसदी लोग यह समझते हैं कि मंद रोशमी के तले पढ़ने से, टीवी को बहुत नज़दीक को देखने से, अथवा आंखों को मलने से आंखें खराब हो जाती हैं। इन सब बातों से आंखों पर स्ट्रेन तो पड़ता है लेकिन इन से आंखें या आंखों की रोशनी वास्तव में खराब नहीं होती है।
इसलिये टीवी से सुरक्षित दूरी बनाये रखने वाली और अच्छी रोशनी में पढ़ने जैसी बातें तो अपनी जगह पर कायम है ही हैं।
There were many misconceptions about behaviours that can damage eyes. For example, many incorrectly believe that eye damage can be caused by reading under dim light (71 percent), sitting too close to the television ( 66 percent), or by rubbing the eyes. These behaviours can cause eye strain but don’t cause actual damage to the eye or eyesight.